KKN गुरुग्राम डेस्क | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक साहसिक कदम उठाते हुए कई देशों से आयातित वस्तुओं पर व्यापक टैरिफ (शुल्क) लगाने की घोषणा की है। उनका कहना है कि यह एक “ज़रूरी दवा” है जो दशकों से अमेरिकी उद्योगों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए आवश्यक है। हालांकि, इस फैसले ने वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में हड़कंप मचा दिया है और यह चर्चा का विषय बन गया है कि क्या यह नीति अमेरिका और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए फायदे का सौदा होगी या भारी नुकसानदेह साबित हो सकती है।
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टैरिफ लगाने के पीछे ट्रंप का तर्क
राष्ट्रपति ट्रंप लंबे समय से अमेरिका के व्यापार घाटे को लेकर चिंता व्यक्त करते रहे हैं। उनका मानना है कि पूर्ववर्ती प्रशासनों ने अनुचित व्यापार समझौतों के माध्यम से अन्य देशों को अमेरिका का शोषण करने दिया। इस टैरिफ नीति के पीछे उनकी तीन मुख्य मंशाएँ हैं:
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घरेलू विनिर्माण को प्रोत्साहन
ट्रंप प्रशासन का मानना है कि जब आयातित वस्तुएं महंगी होंगी, तब उपभोक्ता और व्यवसाय घरेलू उत्पादों की ओर रुख करेंगे, जिससे अमेरिकी उद्योगों को बल मिलेगा। -
अनुचित व्यापार व्यवहार का विरोध
अमेरिका का आरोप है कि कुछ देश मुद्रा के साथ छेड़छाड़ करते हैं और अमेरिकी उत्पादों पर ऊंचे शुल्क लगाते हैं। नई टैरिफ नीति को ऐसे देशों के खिलाफ एक जवाबी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। -
व्यापार घाटे में कमी
जब आयात घटेगा और निर्यात बढ़ेगा, तो अमेरिका के व्यापार घाटे में स्वाभाविक रूप से कमी आएगी।
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा, “मैं नहीं चाहता कि कुछ नीचे जाए, लेकिन कभी-कभी किसी चीज को ठीक करने के लिए दवा लेनी पड़ती है।” यह कथन उनके नीति-निर्माण की गंभीरता को दर्शाता है।
वैश्विक बाज़ार की प्रतिक्रिया
टैरिफ की घोषणा के साथ ही वैश्विक वित्तीय बाज़ारों में अस्थिरता बढ़ गई है।
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शेयर बाज़ार में गिरावट: जापान के निक्केई 225 सूचकांक में लगभग 8% की गिरावट दर्ज की गई, वहीं यूरोपीय बाज़ारों में भी भारी गिरावट देखी गई। अमेरिकी डॉव जोन्स इंडस्ट्रियल एवरेज में भी तेज गिरावट आई।
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निवेशक भावनाओं में बदलाव: संभावित व्यापार युद्ध की आशंका से निवेशक डरे हुए हैं और उन्होंने सुरक्षित निवेश साधनों की ओर रुख किया है।
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मुद्राओं में उतार-चढ़ाव: जिन देशों पर टैरिफ लगे हैं उनकी मुद्राएं कमजोर हुई हैं, जबकि अमेरिकी डॉलर में अल्पकालिक मजबूती देखने को मिली है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं और प्रतिकार
अमेरिकी टैरिफ नीति के विरोध में कई देशों ने सख्त प्रतिक्रिया दी है और जवाबी कदम उठाने की बात कही है:
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चीन: अमेरिका के टैरिफ के जवाब में चीन ने भी अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क लगा दिया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ गया है।
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यूरोपीय संघ: यूरोपीय नेताओं ने इस कदम की आलोचना की है और नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली को बनाए रखने की वकालत करते हुए जवाबी उपायों की योजना बनाई है।
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आसियान राष्ट्र: मलेशिया सहित कई दक्षिण-पूर्व एशियाई देश एक क्षेत्रीय रणनीति के तहत मिलकर अमेरिका की नीति का सामना करने की बात कर रहे हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखलाएं बनी रहें।
आर्थिक प्रभाव और विश्लेषण
आर्थिक विशेषज्ञ टैरिफ नीति के संभावित प्रभावों को लेकर दो मतों में बंटे हुए हैं:
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वैश्विक मंदी का खतरा
यदि व्यापार तनाव और बढ़ता है तो वैश्विक आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी पड़ सकती है। कुछ विशेषज्ञ इसे संभावित वैश्विक मंदी की शुरुआत मान रहे हैं। -
उपभोक्ताओं पर असर
टैरिफ की वजह से आयातित वस्तुएं महंगी हो जाएंगी, जिससे आम उपभोक्ता की क्रय शक्ति पर असर पड़ेगा और महंगाई बढ़ सकती है। -
राजनयिक संबंधों पर तनाव
अमेरिका की एकतरफा कार्रवाई से उसके वैश्विक साझेदारों के साथ संबंधों में तनाव आ सकता है, जिससे भविष्य के व्यापार समझौतों में जटिलताएं बढ़ेंगी।
डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति अमेरिका की पारंपरिक व्यापार नीतियों से एक बड़ा विचलन है। यह नीति घरेलू उद्योगों को सुरक्षा देने और व्यापार असंतुलन को दूर करने के उद्देश्य से लाई गई है। हालांकि, इस नीति के तत्काल प्रभाव में जहां वित्तीय बाज़ारों में भारी अस्थिरता आई है, वहीं दुनिया भर में व्यापारिक और राजनयिक प्रतिक्रिया भी देखने को मिल रही है।
यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी कि यह “ज़रूरी इलाज” अमेरिका की अर्थव्यवस्था को स्वस्थ बनाएगा या एक “जोखिम भरा दांव” बनकर आर्थिक तनाव और वैश्विक अस्थिरता को जन्म देगा। आने वाले समय में ही यह स्पष्ट होगा कि ट्रंप की यह आक्रामक नीति अमेरिका और वैश्विक व्यापार पर किस प्रकार का असर डालती है।
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