वक्फ संशोधन कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई आज

Supreme Court Adjourns Pleas Challenging Constitutionality of Election Commissioners Act, 2023

KKN गुरुग्राम डेस्क | वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने जा रही है। यह मामला अब संवैधानिक बहस का विषय बन चुका है क्योंकि इस कानून के खिलाफ 70 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं। इनमें से कुछ याचिकाएं इस अधिनियम को असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग कर रही हैं, जबकि कुछ याचिकाओं में इसके प्रभावी होने पर रोक लगाने की अपील की गई है।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ आज दोपहर 2 बजे से इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। इस कानून को लेकर राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं में गहरी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है।

 वक्फ अधिनियम 2025: पृष्ठभूमि

वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक 2025 को संसद द्वारा 4 अप्रैल 2025 को पारित किया गया था। इसके बाद 5 अप्रैल को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 8 अप्रैल से इसे लागू कर दिया गया।

सरकार का दावा है कि यह संशोधन वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन, भ्रष्टाचार पर रोक, और पारदर्शिता लाने के लिए किया गया है। लेकिन विपक्ष और कुछ धार्मिक संगठनों का आरोप है कि यह कानून मुसलमानों के धार्मिक अधिकारों पर हमला है और यह धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।

 सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं: कौन-कौन शामिल?

आज जिन 10 याचिकाओं की सुनवाई होनी है, उन्हें कई प्रमुख नेताओं और संगठनों ने दाखिल किया है, जिनमें शामिल हैं:

  • असदुद्दीन ओवैसी (AIMIM सांसद)

  • अमानतुल्लाह खान (AAP विधायक, दिल्ली)

  • जमीयत उलेमा-ए-हिंद (अध्यक्ष अरशद मदनी)

  • एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR)

  • ऑल केरल जमीयतुल उलेमा

  • मनोज कुमार झा (राजद सांसद)

  • अन्य सामाजिक कार्यकर्ता और मुस्लिम संगठन

इनमें से अधिकांश याचिकाएं इस कानून को असंवैधानिक, पक्षपातपूर्ण और धार्मिक आजादी के खिलाफ बताती हैं।

 याचिकाओं में उठाए गए मुख्य मुद्दे

1. अनुच्छेद 14 का उल्लंघन (समानता का अधिकार)

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि संशोधित कानून वक्फ संपत्तियों को दी गई सुरक्षा को कमजोर करता है और यह मुस्लिमों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार करता है, क्योंकि अन्य धार्मिक संस्थानों को यह छूट नहीं दी गई है।

2. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति

AAP विधायक अमानतुल्लाह खान ने तर्क दिया है कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति न केवल अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है, बल्कि इसका वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन से कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है।

3. धार्मिक स्वतंत्रता पर आघात

कई संगठनों ने तर्क दिया है कि यह कानून अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। इससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक संस्थाओं पर सरकारी नियंत्रण बढ़ेगा।

 सरकार की दलील

केंद्र सरकार का कहना है कि:

  • यह कानून धर्म से संबंधित नहीं है, बल्कि संपत्ति प्रबंधन से जुड़ा हुआ है।

  • वक्फ संपत्तियों में अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए यह संशोधन जरूरी है।

  • इससे वक्फ की आमदनी का सही इस्तेमाल सुनिश्चित होगा, जो गरीब मुसलमानों, महिलाओं और बच्चों की मदद में लगेगा।

  • इस बिल को संयुक्त संसदीय समिति ने जांचा है और इसमें विभिन्न समुदायों के सुझाव शामिल किए गए हैं।

  • गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने भी इस कानून का समर्थन किया है।

 राज्य सरकारों की भूमिका

अब तक 7 राज्य सरकारें इस कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • हरियाणा

  • मध्य प्रदेश

  • महाराष्ट्र

  • राजस्थान

  • छत्तीसगढ़

  • उत्तराखंड

  • असम

इन राज्यों का कहना है कि यह कानून संवैधानिक है और इसे लागू किया जाना चाहिए ताकि वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग रोका जा सके।

विरोध और प्रदर्शन

देश के कई हिस्सों में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन हुए हैं। सबसे गंभीर स्थिति पश्चिम बंगाल में देखी गई, जहां हिंसा में:

  • 3 लोगों की मौत हो गई

  • कई लोग घायल हुए और घरों को नुकसान पहुंचा

  • मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि उनकी सरकार इसे लागू नहीं करेगी

अन्य राज्यों में भी जैसे दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना में भी प्रदर्शन हुए हैं।

 विशेषज्ञों की राय: क्या है दांव पर?

✅ समर्थकों के अनुसार:

  • पारदर्शी और मजबूत संपत्ति प्रबंधन

  • गरीबों के लिए संसाधनों का सही उपयोग

  • भ्रष्टाचार पर नियंत्रण

❌ विरोधियों के अनुसार:

  • धार्मिक संस्थानों पर सरकारी हस्तक्षेप

  • समुदाय की स्वायत्तता में कटौती

  • धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर खतरा

 आगे की प्रक्रिया

  • आज की सुनवाई में कोर्ट प्रारंभिक तर्क सुनेगा।

  • संभावित रूप से यह मामला संवैधानिक पीठ को सौंपा जा सकता है।

  • कोर्ट अंतरिम आदेश (Stay) भी दे सकता है यदि इसे आवश्यक समझे।

यह मामला लंबा खिंच सकता है और आने वाले महीनों में इसपर गहन बहस की संभावना है।

वक्फ संशोधन कानून 2025 अब केवल एक प्रशासनिक मामला नहीं रहा, यह भारत में धर्म, राजनीति और संविधान के बीच संतुलन को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी मोर्चा बन चुका है। सुप्रीम कोर्ट में आज होने वाली सुनवाई मुस्लिम धार्मिक संस्थानों के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों की दिशा तय कर सकती है।

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