क्या रामायण में वर्णित पाताल लोक का अस्तित्व वास्तविक है? हनुमान जी के पुत्र मकरध्वज और मध्य अमेरिका के होंडुरास में खोजे गए प्राचीन शहर सियूदाद ब्लांका के बीच क्या संबंध है? क्या यह वही पाताल लोक है, जिसे पौराणिक ग्रंथों में 70 योजन गहराई पर बताया गया है? जानिए पौराणिक कथाओं और आधुनिक विज्ञान की रोमांचक पड़ताल।
लेखक: Shaunit Nishant
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वृंदावन विवाद: 90 वर्षीय बृजवासी महिला ने प्रेमा नंद महाराज के बारे में खोला राज
वृंदावन में संत प्रेमा नंद महाराज की रात की पदयात्रा के खिलाफ हो रहे विरोधों के बाद यह मुद्दा व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। रात की इस पदयात्रा का रुकना लाखों भक्तों के लिए निराशाजनक साबित हुआ है। इसी बीच, एक 90 वर्षीय बृजवासी महिला, शिला, ने प्रेमा नंद महाराज के बारे में एक पुराना राज़ उजागर किया है, जो इस विवाद को और भी गहरे पैमाने पर ले आया है।
प्रेमा नंद महाराज का बनारस से जुड़ाव
शिला के अनुसार, प्रेमा नंद महाराज कभी बनारस में रहते थे, जहाँ वह और उनके पति श्री राम शर्मा जी उनसे मिलने जाया करते थे। शिला ने याद करते हुए बताया कि एक दिन, प्रेमा नंद महाराज ने कहा कि वह वृंदावन जाना चाहते हैं। इस पर उनके पति ने जवाब दिया:
“बांके बिहारी जी आपका हाथ पकड़कर आपको वहां ले जाएंगे।”
फकीर बाबा से आध्यात्मिक गुरु तक का सफर
शिला ने यह भी बताया कि जब उन्होंने पहली बार प्रेमा नंद महाराज को बनारस में देखा, तो उनके बाल लंबे और उलझे हुए थे और वह फकीर बाबा की तरह जीवन यापन करते थे। लेकिन, जब वह वृंदावन आए, तो उन्होंने राधा का नाम फैलाना शुरू किया और धीरे-धीरे बहुत प्रसिद्ध हो गए।
स्वास्थ्य के बावजूद रात की पदयात्रा जारी
शिला ने आगे कहा कि प्रेमा नंद महाराज को किडनी की समस्या होने के बावजूद, वह रात को पदयात्रा करते हैं, ताकि वह अपने भक्तों को दर्शन दे सकें। उनके लिए यह एक आध्यात्मिक सेवा है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण परंपरा बन चुकी है।
विरोध क्यों हो रहा है?
प्रेमा नंद महाराज की रात की पदयात्रा के खिलाफ विरोध ने उनके भक्तों को गुस्से में डाल दिया है। कुछ लोग कहते हैं कि इन रात की पदयात्राओं से शांति में खलल पड़ता है, जबकि अन्य का मानना है कि यह एक पवित्र परंपरा है, जिसे रोकना नहीं चाहिए।
इस विवाद के बीच शिला की पुरानी यादों और प्रेमा नंद महाराज के जीवन के ऐतिहासिक पहलू पर प्रकाश डालने वाली बातों ने एक नया मोड़ लिया है। भक्त अब भी इस विवाद का समाधान चाहते हैं, ताकि वे बिना किसी रुकावट के उनके दर्शन कर सकें।
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VD12 के टीज़र को Jr NTR ने दी अपनी आवाज़, विजय देवरकोंडा का स्पाई थ्रिलर बना और खास
विजय देवरकोंडा की आगामी फिल्म VD12 को लेकर फैंस के बीच जबरदस्त उत्साह है, और अब इस फिल्म को और भी खास बना दिया है Jr NTR ने। मेकर्स ने कंफर्म किया है कि Jr NTR ने VD12 के तेलुगु टीज़र के लिए अपनी आवाज़ दी है, जो 12 फरवरी को रिलीज़ होने वाला है।
Jr NTR बने VD12 के तेलुगु टीज़र की आवाज़
साउथ सुपरस्टार Jr NTR ने अपने दोस्त और अभिनेता विजय देवरकोंडा की फिल्म VD12 को सपोर्ट करते हुए तेलुगु टीज़र के लिए डबिंग की है। उनकी आवाज़ से यह टीज़र और भी दमदार होने वाला है।
गौतम तिन्नानुरी द्वारा निर्देशित यह फिल्म एक हाई-ऑक्टेन स्पाई एक्शन थ्रिलर बताई जा रही है, जिसमें विजय देवरकोंडा एक पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाते नजर आएंगे।
क्या रणबीर कपूर और सूर्या भी देंगे अपनी आवाज़?
रिपोर्ट्स की मानें तो रणबीर कपूर और सूर्या भी VD12 के हिंदी और तमिल टीज़र के लिए अपनी आवाज़ दे सकते हैं। अगर यह खबर सच साबित होती है, तो यह फिल्म पैन-इंडिया स्तर पर और भी बड़ी हिट साबित हो सकती है।
विजय देवरकोंडा ने Jr NTR को कहा धन्यवाद
विजय देवरकोंडा ने X (पहले ट्विटर) पर एक पोस्ट शेयर कर Jr NTR के प्रति अपना आभार व्यक्त किया। उन्होंने Jr NTR के साथ अपनी एक तस्वीर भी शेयर की और बताया कि उन्होंने एक शानदार दिन बिताया।
“कल का पूरा दिन उनके साथ बिताया। जिंदगी, समय और सिनेमा पर बातें कीं, खूब हंसी-मजाक हुआ… हमने साथ में टीज़र की डबिंग देखी, वो भी उतने ही उत्साहित थे जितना मैं। धन्यवाद @tarak9999 अन्ना, इस खूबसूरत दिन के लिए और हमारी दुनिया में अपनी एनर्जी जोड़ने के लिए!”
VD12: साल की सबसे बड़ी स्पाई थ्रिलर में से एक
Jr NTR की दमदार आवाज़, रणबीर कपूर और सूर्या की संभावित भागीदारी और विजय देवरकोंडा के दमदार एक्शन अवतार के साथ, VD12 इस साल की सबसे चर्चित फिल्मों में से एक बन गई है। फिल्म का टीज़र 12 फरवरी को रिलीज़ होने वाला है, और फैंस इसका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
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Salman Khan और Atlee की फिल्म हुई बंद? 500 करोड़ के बजट ने बढ़ाई अटकलें
बॉलीवुड सुपरस्टार Salman Khan और हिट डायरेक्टर Atlee की आगामी फिल्म A6 को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। इस बड़े बजट की फिल्म में सुपरस्टार Rajinikanth के भी शामिल होने की अटकलें थीं। हालांकि, अब खबरें आ रही हैं कि यह प्रोजेक्ट रद्द हो सकता है। वहीं, सलमान अपनी दूसरी एक्शन फिल्म ‘Sikandar’ की तैयारियों में जुटे हुए हैं।
Atlee और Salman Khan की फिल्म A6 की क्या है सच्चाई?
‘Jawan’ की जबरदस्त सफलता के बाद Atlee एक और बड़ी फिल्म की प्लानिंग कर रहे थे। खबरों के मुताबिक, यह फिल्म पैन-इंडिया रिलीज के तौर पर बनाई जा रही थी, जिसमें पुनर्जन्म और पीरियड ड्रामा का अनोखा कॉम्बिनेशन देखने को मिलता। इसके लिए 500 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, Atlee और Salman Khan के इस प्रोजेक्ट में साउथ के दिग्गज सुपरस्टार Rajinikanth या Kamal Haasan में से किसी एक को कास्ट करने की चर्चा थी। फिल्म की प्री-प्रोडक्शन का काम शुरू हो चुका था, और Salman Khan इस रोल के लिए खास बॉडी ट्रांसफॉर्मेशन पर भी काम कर रहे थे।
फिल्म रद्द होने की खबरें क्यों आ रही हैं?
जहां एक ओर कुछ रिपोर्ट्स कह रही हैं कि फिल्म की तैयारियां जारी हैं, वहीं Masala.com की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि A6 को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। हाल ही में आई खबरों के मुताबिक, प्रोजेक्ट को बजट या अन्य कारणों से बंद किया जा सकता है।
हालांकि, Salman Khan और Atlee की ओर से अब तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। इससे फैन्स के बीच कन्फ्यूजन बनी हुई है कि फिल्म बनेगी या नहीं।
अगर फिल्म बनी, तो क्या होगी खासियत?
अगर A6 आगे बढ़ती है, तो यह पैन-इंडिया रिलीज होगी और इसे 2026 में सिनेमाघरों में लाने की योजना थी। फिल्म की स्टोरीलाइन पुनर्जन्म और पीरियड ड्रामा पर आधारित होगी, जो इसे अन्य फिल्मों से अलग बनाती।
सलमान खान की दूसरी बड़ी फिल्म ‘Sikandar’ पर फोकस
इसी बीच, सलमान खान अपनी दूसरी बड़ी एक्शन फिल्म ‘Sikandar’ की तैयारियों में व्यस्त हैं। इस फिल्म को एआर मुरुगादॉस डायरेक्ट कर रहे हैं, जिसमें रश्मिका मंदाना, काजल अग्रवाल, सत्यराज, शर्मन जोशी और प्रतीक बब्बर जैसे सितारे नजर आएंगे।
क्या सलमान-एटली की जोड़ी बनेगी या नहीं?
अब सवाल यह है कि क्या Salman Khan और Atlee की यह मेगा बजट फिल्म बनेगी या सिर्फ अटकलों तक सीमित रह जाएगी? फैन्स को आधिकारिक घोषणा का इंतजार है। अगर यह फिल्म आगे बढ़ती है, तो यह निश्चित रूप से बॉक्स ऑफिस पर धमाका कर सकती है।
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Instagram ने भारत में लॉन्च किए Teen Accounts, अब ऑनलाइन सुरक्षा होगी और मजबूत
Instagram ने भारत में Teen Accounts को लॉन्च करने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य युवा यूजर्स की ऑनलाइन सुरक्षा बढ़ाना है। इस नए फीचर के जरिए किशोरों को सुरक्षित और उम्र-उपयुक्त डिजिटल स्पेस मिलेगा, साथ ही माता-पिता को अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर बेहतर नियंत्रण रखने का मौका मिलेगा।
Instagram Teen Accounts की मुख्य विशेषताएँ
- Teen Users को सबसे सुरक्षित सेटिंग्स में ऑटोमैटिकली रखा जाएगा, जिससे गलत उम्र दर्ज करने और संवेदनशील कंटेंट देखने की संभावना कम होगी।
- 16 साल से कम उम्र के यूजर्स के लिए कोई भी सुरक्षा सेटिंग बदलने से पहले पैरेंट्स की मंजूरी जरूरी होगी।
- माता-पिता स्क्रीन टाइम लिमिट सेट कर सकते हैं, हाल के कॉन्टैक्ट्स मॉनिटर कर सकते हैं और एप्लिकेशन एक्सेस को निश्चित समय के लिए प्रतिबंधित कर सकते हैं।
युवा यूजर्स के लिए मजबूत सुरक्षा उपाय
Instagram का Teen Accounts फीचर, Safer Internet Day 2025 पर लॉन्च किया गया है और इसे फेज़-वाइज भारत में रोलआउट किया जाएगा।
आज के डिजिटल युग में, साइबरबुलिंग, हानिकारक कंटेंट और प्राइवेसी रिस्क को लेकर माता-पिता, शिक्षक और नीति-निर्माता चिंतित हैं। Instagram के नए Teen Accounts इन्हीं चिंताओं को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किए गए हैं, जिससे किशोरों को एक सुरक्षित ऑनलाइन अनुभव मिल सके।
Teen Accounts में मिलने वाले सुरक्षा फीचर्स
1. डिफॉल्ट प्राइवेट अकाउंट्स
Teen Users के अकाउंट्स ऑटोमैटिकली प्राइवेट मोड में सेट किए जाएंगे। इसका मतलब:
- अनजान लोग उनके प्रोफाइल को एक्सेस नहीं कर पाएंगे।
- फॉलो रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने का पूरा नियंत्रण यूजर के पास रहेगा।
- यह नियम 16 साल से कम उम्र के सभी यूजर्स और 18 साल से कम उम्र में साइन-अप करने वालों पर लागू होगा।
2. सख्त मैसेजिंग कंट्रोल
अंजान लोगों से मैसेज आने से रोकने के लिए सख्त मैसेजिंग सेटिंग्स लागू की जाएंगी:
- सिर्फ उन्हीं लोगों के मैसेज आ सकेंगे, जिन्हें किशोर पहले से फॉलो करते हैं या जिनके साथ वे कनेक्टेड हैं।
- अनजान लोग डायरेक्ट मैसेज नहीं भेज पाएंगे।
3. संवेदनशील कंटेंट पर प्रतिबंध
Teen Accounts पर संवेदनशील कंटेंट दिखाने की अनुमति नहीं होगी। यह कंटेंट Explore, Reels और Feed सेक्शन में बैन रहेगा।
- हिंसा और झगड़े से जुड़े वीडियो ब्लॉक किए जाएंगे।
- कॉस्मेटिक सर्जरी प्रमोशन या अन्य हानिकारक सामग्री प्रतिबंधित होगी।
- सेक्सुअली सजेस्टिव कंटेंट और सेल्फ-हार्म से जुड़ी पोस्ट सीमित कर दी जाएंगी।
4. टैगिंग और मेंशन पर कंट्रोल
ऑनलाइन बुलिंग और हैरेसमेंट रोकने के लिए इंस्टाग्राम ने:
- सिर्फ फॉलो किए गए लोगों को टैग करने और मेंशन करने की अनुमति दी है।
- Hidden Words फीचर ऑटोमैटिकली ऑन रहेगा, जिससे आपत्तिजनक शब्दों वाले कमेंट्स और DMs फिल्टर हो जाएंगे।
5. स्क्रीन टाइम लिमिट और स्लीप मोड
Instagram अब स्क्रीन टाइम कंट्रोल के नए फीचर्स लॉन्च कर रहा है:
- 60 मिनट के बाद स्क्रीन टाइम रिमाइंडर आएगा, जिससे यूजर को ऐप से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
- स्लीप मोड (रात 10 बजे से सुबह 7 बजे तक) लागू होगा, जिसमें:
- सभी नोटिफिकेशन म्यूट हो जाएंगे।
- DMs का ऑटोमैटिक रिप्लाई ऑन रहेगा, जिससे यूजर की अनुपस्थिति की सूचना दी जाएगी।
माता-पिता के लिए सुपरविजन टूल्स
Instagram ने Parental Supervision Tools को और मजबूत किया है, जिससे माता-पिता अपने बच्चों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर नियंत्रण रख सकें।
1. सुरक्षा सेटिंग बदलने के लिए माता-पिता की मंजूरी जरूरी
16 साल से कम उम्र के यूजर्स के लिए किसी भी सुरक्षा सेटिंग में बदलाव करने से पहले माता-पिता की मंजूरी अनिवार्य होगी।
- 16+ उम्र के किशोरों के लिए माता-पिता कभी भी सुपरविजन ऑन कर सकते हैं और सेटिंग्स मैनुअली चेक कर सकते हैं।
- जल्द ही पैरेंट्स को सीधे इन सेटिंग्स को एडजस्ट करने का भी ऑप्शन मिलेगा।
2. हाल के मैसेजिंग कॉन्टैक्ट्स मॉनिटर करना
माता-पिता:
- पिछले 7 दिनों में किए गए मैसेजिंग कॉन्टैक्ट्स की लिस्ट देख सकते हैं (बिना मैसेज कंटेंट पढ़े)।
3. स्क्रीन टाइम लिमिट सेट करना
माता-पिता:
- इंस्टाग्राम के इस्तेमाल का डेली लिमिट सेट कर सकते हैं, जिससे टाइम लिमिट पार होते ही ऐप एक्सेस बंद हो जाएगा।
4. निश्चित समय पर ऐप एक्सेस ब्लॉक करना
माता-पिता:
- रात के समय या पढ़ाई के दौरान इंस्टाग्राम एक्सेस को ब्लॉक कर सकते हैं।
Age Verification सिस्टम को और मजबूत किया गया
Teen Accounts को गलत उम्र दर्ज करने से रोकने के लिए Instagram एज वेरिफिकेशन को और सख्त बना रहा है।
- यदि कोई यूजर एडल्ट एज के साथ अकाउंट बनाने की कोशिश करता है, तो अतिरिक्त वेरिफिकेशन स्टेप्स लागू होंगे।
- इससे यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किशोरों को सही सुरक्षा सेटिंग्स में रखा जाए।
सुरक्षित कंटेंट और कम्युनिटी गाइडलाइंस को और मजबूत किया गया
- संवेदनशील कंटेंट फिल्टर को सबसे सख्त लेवल पर सेट किया जाएगा।
- यौन, हिंसा और सेल्फ-हार्म से जुड़े कंटेंट को फिल्टर किया जाएगा, भले ही वह किसी फॉलो किए गए अकाउंट से क्यों न आया हो।
विशेषज्ञों की राय
Mansi Zaveri, Founder & CEO, Kidsstoppress.com
“Teen Safety ऑनलाइन बहुत जरूरी है। Instagram के Teen Accounts फीचर से प्राइवेसी सेटिंग्स मजबूत होंगी, माता-पिता को ज्यादा नियंत्रण मिलेगा और अवांछित इंटरैक्शन को रोका जा सकेगा।”
Uma Subramanian, Co-Founder & Director, RATI Foundation
“Teen Accounts का अपडेट इंस्टाग्राम पर सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम है। किशोरों की स्वायत्तता और सुरक्षा में संतुलन बनाए रखना मुश्किल है, लेकिन यह पहल सही दिशा में एक सकारात्मक कदम है।”
Instagram का Teen Accounts फीचर किशोरों के लिए एक सुरक्षित और जिम्मेदार डिजिटल वातावरण बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
इस नए फीचर से:
- ऑनलाइन खतरों को कम किया जाएगा।
- माता-पिता को ज्यादा नियंत्रण मिलेगा।
- किशोरों को उम्र-उपयुक्त और सुरक्षित सोशल मीडिया अनुभव मिलेगा।
इंस्टाग्राम के इस कदम से डिजिटल सेफ्टी में बड़ा बदलाव आने की उम्मीद है।
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सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अपूर्वा मुखिजा और यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया के खिलाफ केस दर्ज, विवादित टिप्पणियों के कारण हुई गिरफ्तारी
सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अपूर्वा मुखिजा, यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया और कुछ अन्य व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस केस दर्ज किया गया है, जो कि कॉमेडियन समय रैना के शो India’s Got Latent में अपनी विवादित टिप्पणियों के कारण सुर्खियों में आए थे। आरोपियों पर अश्लीलता फैलाने और यौन संबंधी आपत्तिजनक चर्चाओं में शामिल होने का आरोप लगाया गया है, जिससे सार्वजनिक आक्रोश फैल गया है।
‘India’s Got Latent’ शो में हुआ विवाद
India’s Got Latent के हालिया एपिसोड में अपूर्वा मुखिजा, जिन्हें ऑनलाइन ‘Rebel Kid’ और ‘Kaleshi Aurat’ के नाम से जाना जाता है, पैनलिस्ट के रूप में दिखाई दीं। उनके साथ यूट्यूबर रणवीर अल्लाहबादिया, कॉमेडियन आशीष चंचलानी, जसप्रीत सिंह और शो के होस्ट समय रैना भी थे। इस एपिसोड में अपूर्वा ने एक प्रतियोगी की मां के बारे में आपत्तिजनक और अश्लील टिप्पणी की, जिससे दर्शकों में गहरी नाराजगी फैल गई। हालांकि शो को अपनी बिना रोक-टोक हंसी-मजाक के लिए जाना जाता है, लेकिन इस एपिसोड को देखने के बाद कई दर्शकों ने यह महसूस किया कि इस बार शो ने एक सीमा पार कर दी है।
रणवीर अल्लाहबादिया के कमेंट्स भी विवाद का केंद्र बने, लेकिन अपूर्वा की टिप्पणियों ने भी काफी आक्रोश पैदा किया। विवाद के बाद, अपूर्वा ने अपने एक दोस्त के साथ हुई प्राइवेट चैट का स्क्रीनशॉट पोस्ट किया, जिसमें लिखा था: “मेरे और [दोस्त] के आखिरी 2 ब्रेन सेल्स नए प्रॉब्लम का हल सोचने की कोशिश कर रहे हैं, जो मैंने क्रिएट किया।”
अपूर्वा मुखिजा कौन हैं?
अपूर्वा मुखिजा का जन्म 2001 में हुआ था और वह एक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर हैं, जिनके इंस्टाग्राम पर 2.7 मिलियन से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। वह अपनी मिनी व्लॉग्स, कैन्ड स्टोरीटेलिंग और लाइफस्टाइल, फैशन और ट्रैवल व्लॉग्स के लिए प्रसिद्ध हैं।
अपूर्वा ने दिल्ली पब्लिक स्कूल, पानीपत और कोंवेंट ऑफ जीसस एंड मैरी, नई दिल्ली से अपनी पढ़ाई की है। इसके बाद उन्होंने मणिपाल यूनिवर्सिटी, जयपुर से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बी.टेक किया।
इसके अलावा, अपूर्वा मुखिजा डेल टेक्नोलॉजीज में असोसिएट सेल्स इंजीनियर एनालिस्ट के तौर पर काम करती हैं, जैसा कि उनके लिंक्डइन प्रोफाइल में बताया गया है। उन्होंने सोशल मीडिया मार्केटिंग और वेब डेवलपमेंट में इंटर्नशिप भी की है, और डाइनआउट, MX TakaTak, The Sparks Foundation, और CodeMath जैसी कंपनियों के साथ काम किया है।
अपूर्वा सोशल मीडिया पर अपने कंटेंट से ज्यादा लोकप्रिय हो गईं। उन्हें Forbes की Top 100 Digital Stars 2023 में शामिल किया गया और Forbes’ 2024 Creator List में 8वीं रैंक पर रखा गया।
अपूर्वा मुखिजा की कामयाबी और ब्रांड्स के साथ सहयोग
अपूर्वा, जो सिर्फ 24 साल की हैं, अब तक 60 से ज्यादा बड़े ब्रांड्स के साथ काम कर चुकी हैं, जिनमें OnePlus, Netflix, Spotify, Google, Amazon, Flipkart, Meta और Hotstar जैसे दिग्गज शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने हिंदी वेब सीरीज Baat Pakki (2025) में भी अभिनय किया और विभिन्न फैशन शोज में रैंप वॉक किया।
पुरस्कार और सम्मान
अपूर्वा मुखिजा को डिजिटल और इंफ्लुएंसर इंडस्ट्री में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्हें 2023 Exhibit Award, 2024 Who’s Next Influencer Award (Storyteller of the Year), 2024 Entrepreneur India Award (Rising Star of the Year) और 2024 Cosmopolitan Blogger Award से नवाजा गया।
हालांकि, हालिया विवाद ने उनके करियर को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है, जिससे उनकी पेशेवर उपलब्धियां अब विवाद के कारण overshadow हो रही हैं। जैसे-जैसे सार्वजनिक प्रतिक्रिया तेज हो रही है, अपूर्वा और रणवीर के खिलाफ चल रही कानूनी प्रक्रिया यह तय करेगी कि क्या यह मामला भारतीय डिजिटल कंटेंट के लिए एक नया मिसाल कायम करेगा।
कानूनी और सामाजिक प्रभाव
अपूर्वा मुखिजा, रणवीर अल्लाहबादिया और अन्य आरोपियों के खिलाफ केस ने कंटेंट क्रिएटर्स और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए जिम्मेदारी की सवाल उठाए हैं। जैसे-जैसे कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या यह केस भविष्य में विवादास्पद डिजिटल कंटेंट के नियमन के लिए एक मिसाल बनता है।
जहां कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बोल्ड कॉमेडी के पक्षधर हैं, वहीं दूसरों का कहना है कि ऑनलाइन कंटेंट में अधिक संवेदनशीलता और सामाजिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। इस बहस का परिणाम यह तय करेगा कि भविष्य में क्रिएटिव फ्रीडम और सामाजिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन कैसे बनेगा।
यह केस न केवल अपूर्वा और रणवीर के लिए बल्कि समग्र सोशल मीडिया लैंडस्केप के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, खासकर भारत में जहां डिजिटल कंटेंट तेजी से विकसित हो रहा है और समाज पर उसका प्रभाव बढ़ रहा है।
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Realme P3 Pro: भारत में लॉन्च की तारीख और प्रमुख फीचर्स
Realme ने अपने नए स्मार्टफोन Realme P3 Pro के लॉन्च की घोषणा कर दी है। यह स्मार्टफोन भारत में 18 फरवरी, 2025 को दोपहर 12 बजे लॉन्च होगा। इस स्मार्टफोन को Flipkart और Realme की आधिकारिक वेबसाइट पर खरीदा जा सकेगा। इस फोन के लिए लोग बहुत उत्साहित हैं क्योंकि Realme अपनी शानदार और किफायती स्मार्टफोन के लिए जाना जाता है।
Realme P3 Pro लॉन्च डेट और उपलब्धता
Realme P3 Pro की आधिकारिक लॉन्च डेट 18 फरवरी 2025 है, और इसे दोपहर 12 बजे भारतीय समयानुसार पेश किया जाएगा। स्मार्टफोन की बिक्री Flipkart और Realme की वेबसाइट पर होगी। यह स्मार्टफोन तीन आकर्षक रंगों में उपलब्ध होगा: Nebula Glow, Galaxy Purple और Saturn Brown। इन रंगों के साथ, कंपनी विभिन्न यूजर्स की पसंद को ध्यान में रखते हुए स्टाइल और डिजाइन में नया ट्विस्ट लाने की कोशिश कर रही है।
Realme P3 Pro डिस्प्ले और डिजाइन
Realme P3 Pro का डिस्प्ले एक प्रमुख फीचर होने वाला है। यह स्मार्टफोन 6.83 इंच की बड़ी डिस्प्ले के साथ आएगा, जो 1.5K रिज़ॉल्यूशन और 120Hz रिफ्रेश रेट को सपोर्ट करेगा। इसका मतलब है कि यूजर्स को स्मूथ और रिस्पॉन्सिव अनुभव मिलेगा, चाहे वो गेमिंग कर रहे हों, वीडियो देख रहे हों, या ऐप्स चला रहे हों।
इसके अलावा, इस स्मार्टफोन में 1,500 निट्स की पीक ब्राइटनेस होगी, जिससे यह स्मार्टफोन दिन की रोशनी में भी आसानी से देखा जा सकेगा। यह फीचर इसे इस सेगमेंट में एक काफ़ी आकर्षक विकल्प बनाता है। Realme P3 Pro में एक खास Quad-Curved EdgeFlow डिज़ाइन होगा, जो इस श्रेणी का पहला स्मार्टफोन होगा। यह डिज़ाइन एक फ्यूचरिस्टिक लुक देगा और इसे बाजार में अलग पहचान दिलाएगा।
Realme P3 Pro की परफॉर्मेंस: Qualcomm Snapdragon 7s Gen 3 प्रोसेसर
Realme P3 Pro स्मार्टफोन में Qualcomm Snapdragon 7s Gen 3 प्रोसेसर मिलेगा, जो स्मार्टफोन की परफॉर्मेंस को एक नया आयाम देगा। यह प्रोसेसर तेज़ और सटीक प्रोसेसिंग क्षमता के साथ आता है, जिससे गेमिंग, मल्टीटास्किंग, और हैवी ऐप्स का उपयोग करना आसान होगा। इसके अलावा, Snapdragon 7s Gen 3 प्रोसेसर अधिक बैटरी क्षमता बनाए रखते हुए बेहतर ऊर्जा दक्षता प्रदान करता है, जो कि लंबे समय तक इस्तेमाल करने में मदद करता है।
इस स्मार्टफोन में तीन स्टोरेज वेरिएंट्स मिलेंगे, जो अलग-अलग उपयोगकर्ताओं की ज़रूरतों के अनुसार उपलब्ध होंगे:
- 8GB RAM + 128GB स्टोरेज
- 8GB RAM + 256GB स्टोरेज
- 12GB RAM + 256GB स्टोरेज
इन वेरिएंट्स के साथ, यूजर्स को अपनी ज़रूरत के हिसाब से पर्याप्त स्टोरेज और रैम मिलेगा, ताकि वे अपनी फाइल्स, ऐप्स और गेम्स को बिना किसी दिक्कत के चला सकें।
Realme P3 Pro में बैटरी और फास्ट चार्जिंग
Realme P3 Pro में 6,000mAh की विशाल बैटरी होगी, जो उसके पिछले वर्शन, Realme P2 Pro से अधिक होगी (जो 5,200mAh बैटरी के साथ आता था)। इस बड़ी बैटरी के साथ, स्मार्टफोन को पूरे दिन चलाने की क्षमता मिलती है, जिससे यूजर्स को बार-बार चार्ज करने की चिंता नहीं रहेगी।
इसके अलावा, Realme P3 Pro में 80W फास्ट चार्जिंग सपोर्ट मिलेगा, जो स्मार्टफोन को सिर्फ 24 मिनट में पूरी तरह से चार्ज करने का दावा करता है। यह एक बड़ी सुविधा होगी, खासकर जब यूजर्स को जल्दी में चार्जिंग करनी हो। Realme ने इस बैटरी पर 4 साल की हेल्थ गारंटी भी दी है, जिससे लंबे समय तक इसकी परफॉर्मेंस बनी रहेगी।
कैमरा और फोटोग्राफी क्षमताएं
हालांकि Realme ने अभी तक P3 Pro के कैमरे के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है, लेकिन इसे लेकर काफी उम्मीदें हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि इसमें एक शानदार कैमरा सेटअप मिलेगा, जो एआई फीचर्स, नाइट मोड और कई लेंस ऑप्शन्स के साथ आएगा। Realme के स्मार्टफोन आमतौर पर बेहतरीन फोटोग्राफी परफॉर्मेंस प्रदान करते हैं, और P3 Pro में भी यही ट्रेंड जारी रहने की संभावना है।
फोटोग्राफी के शौकिन यूजर्स के लिए यह स्मार्टफोन एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है, जो विभिन्न स्थितियों में शानदार तस्वीरें खींचने में सक्षम होगा।
सॉफ़्टवेयर और यूज़र इंटरफेस
Realme P3 Pro में नवीनतम Realme UI होगा, जो एंड्रॉयड बेस्ड है। Realme UI को उपयोगकर्ता अनुभव के लिहाज से बहुत अच्छा माना जाता है, और इसमें कई कस्टमाइजेशन ऑप्शन्स और यूटिलिटी फीचर्स होते हैं। स्मार्टफोन का इंटरफेस सीधा और आसान है, जिससे यूजर्स को बिना किसी परेशानी के नेविगेट करना आसान होता है।
इसमें स्मार्ट साइडबार, ड्यूल मोड और गेम स्पेस जैसे कई फीचर्स होंगे, जो गेमिंग और मल्टीटास्किंग के लिए उपयोगी साबित होंगे।
मूल्य निर्धारण और प्रतिस्पर्धा
Realme P3 Pro का मूल्य भारतीय बाजार में काफी प्रतिस्पर्धात्मक हो सकता है। इसके शक्तिशाली Snapdragon 7s Gen 3 प्रोसेसर, बड़े बैटरी पैक और फास्ट चार्जिंग जैसी सुविधाओं को देखते हुए यह एक बेहतरीन डिवाइस साबित हो सकता है। यह स्मार्टफोन Xiaomi, Samsung और OnePlus जैसे ब्रांड्स से प्रतिस्पर्धा करेगा, जो मिड-रेंज स्मार्टफोन सेगमेंट में सक्रिय हैं।
Realme ने हमेशा किफायती मूल्य में बेहतरीन स्मार्टफोन्स पेश किए हैं, और P3 Pro भी इस मामले में कोई अपवाद नहीं होगा। इसकी कीमत वाजिब होगी, जो इसे ज्यादा यूजर्स तक पहुंचाने में मदद करेगी।
निष्कर्ष
Realme P3 Pro का भारत में 18 फरवरी 2025 को लॉन्च होना, मिड-रेंज स्मार्टफोन मार्केट के लिए एक बड़ा कदम हो सकता है। स्मार्टफोन की शानदार डिस्प्ले, शक्तिशाली Snapdragon 7s Gen 3 प्रोसेसर, विशाल बैटरी और तेज़ चार्जिंग जैसी खूबियाँ इसे बाजार में एक मजबूत प्रतिस्पर्धी बना सकती हैं।
जैसे-जैसे लॉन्च के नजदीक जानकारी सामने आएगी, यह देखना दिलचस्प होगा कि यह स्मार्टफोन किस प्रकार अपने प्रतिस्पर्धियों को मात देता है। हालांकि, Realme की तरफ से यह उम्मीद की जा सकती है कि P3 Pro एक बेहतरीन विकल्प होगा, जो प्रदर्शन और मूल्य दोनों के मामले में संतुलन बनाए रखेगा।
Realme P3 Pro के लॉन्च इवेंट का इंतजार करें, जहां और भी विशेष फीचर्स और विवरणों का खुलासा किया जाएगा।
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रेजांगला का युद्ध और चीन की हकीकत
KKN न्यूज ब्यूरो। वर्ष 1962 के युद्ध की कई बातें है, जिसको समझना जरूरी है। बेशक हम चीन से युद्ध हार गए थे। चीन ने हमारे 38 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया था। पर, क्या 62 के युद्ध की सिर्फ इतनी सी हकीकत है? क्या कभी आपके मन में यह सवाल उठा कि हम हारे कैसे? क्या हुआ होगा सीमा पर? हमारे बहादुर और जांबाज सैनिकों को अपना पराक्रम दिखाने का मौका मिला भी या नहीं? ऐसे और भी कई सवाल है। इसका जवाब तलाशने के लिए 62 के युद्ध से जुड़े ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन जरूरी हो गया है।
चीन का हमला
बात 18 नवंबर, वर्ष 1962 की है। लद्दाख के चुशुल घाटी में सुबह की सूरज निकलने से ठीक पहले घना कोहरा के साथ अंधेरा अभी ठीक से छठा भी नहीं था। चारों ओर बर्फ से ढकी घाटी और फिंजा में पसरी अजीब सी खामोशी। इसी खामोशी के बीच रेजांगला पोस्ट की रक्षा में तैनात था भारतीय फौज की छोटी टुकड़ी। खामोशी के उस पार बैठे खतरे को भारत के जवान ठीक से पहचान पाते। इससे पहले सुबह के ठीक साढ़े तीन बजे… घाटी का शांत माहौल अचानक गोलियों की तड़-तड़ाहट से गूंजने लगा। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी यानी PLA के करीब तीन हजार जवानों ने रेजांगला पोस्ट पर धावा बोल दिया। चीन के सैनिकों के पास भारी मात्रा में गोला-बारूद था। सेमी आटोमेटिक रायफल था और आर्टिलरी सपोट भी था।
भारत की छोटी टुकड़ी
भारत की ओर से मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चुशुल घाटी में 13 कुमाऊं रेजिमेंट की एक बेहद छोटी टुकड़ी मौजूद थीं। भारतीय सैन्य टुकड़ी में मात्र 120 जवान थे। वह भी थ्री-नॉट-थ्री रायफल के सहारे। थ्री-नॉट-थ्री रायफल को फायर करने से पहले प्रत्येक गोली लोड करना पड़ता था और खोखा को खींच कर निकालना पड़ता था। भारतीय सैनिक को उस वक्त यहां कोई आर्टिलरी सपोर्ट भी नहीं था। ऐसे में चीन के तीन हजार की विशाल फौज और जवाब में भारत के मात्र 120 जवान…। वह भी थ्री-नॉट-थ्री रायफल के सहारे। दूसरी ओर चीन के पास आधुनिक हथियारों का जखीरा मौजूद था। चुशुल घाटी की खतरनाक चोटियों पर उस वक्त भारत की ओर से आर्टिलरी का सपोर्ट भेजना मुमकिन नहीं था। क्योंकि, भारत की ओर से वहां तक रास्ता नहीं था।
टूट गया रेडियो संपर्क
इधर, सेंट्रल कमान ने रेजांगला के जवानो को उनके अपने विवेक पर छोड़ दिया। जरूरत पड़ने पर पोस्ट छोर कर पीछे हटने का आदेश भी था। किसी को उम्मीद नहीं थीं कि चीन की सेना रेजांगला में इतना जबरदस्त हमला कर देगा। ऐसे में रेजांगला के पोस्ट पर मौजूद मेजर शैतान सिंह को निर्णय लेना था। बताते चलें कि खराब मौसम की वजह से रेजांगला में मौजूद सैनिको का अपने बेस कैंप से रेडियो संपर्क टूट चुका था। इस बीच मेजर शैतान सिंह ने पोस्ट पर डटे रहने और पोस्ट की रक्षा करने का निर्णय कर लिया। फिर जो हुआ, वह कल्पना से परे है। बेशक हमारे सैनिक कम थे, साजो-सामान का घोर अभाव था। किंतु, उनके बुलन्द हौसलों की दास्तान इतिहास में दर्ज होने वाला था। कुमाउं रेजिमेंट के इन वीर जाबांजो को अंजाम पता था। वह जान रहे थे कि युद्ध में उनकी हार तय है। लेकिन इसके बावजूद बेमिसाल बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने अपने बेमिसाल शौर्य का प्रदर्शन करना मुनासिब समझा। मेजर शैतान सिंह की टुकड़ी ने आखिरी आदमी, आखिरी राउंड और आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ने का हुंकार भर दिया।
दो घंटे की निर्णायक युद्ध
13 कुमाऊं के 120 जवानों ने युद्ध के पहले दो घंटे में ही चीन के 1,300 सैनिकों को मार गिराये। बाकी के चीनी सैनिक भारतीय पराक्रम के सामने टिक नहीं पाये और मैदान छोड़ कर भाग खड़े हुए। तीन- तीन गोली लगने के बाद भी मेजर शैतान सिंह ने पोस्ट नहीं छोरा। हालांकि, बाद में वे शहीद हो गये। इस लड़ाई में भारत के 117 सैनिक शहीद हुए और बंदी बने एक सैनिक भी चीन की सरहद को पार करके भागने में कामयाब हो गया था। मेजर शैतान सिंह को मरनो-परान्त परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। बाद में कुमाउं रेजिमेंट के इस सैन्य टुकड़ी को पांच वीर चक्र और चार सेना पदक से सम्मानित किया गया। सैन्य इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक पहले कभी नहीं मिला था।
सिपाही की दास्तान
रेजांगला के उस युद्ध में जिन्दा बचे रामचन्द्र यादव को बाद में मानद कैप्टन की उपाधि दी गई। बतादें कि रामचंद्र यादव 19 नवंबर को कमान मुख्यालय पहुंचे थे। इसके बाद 22 नवंबर तक उनको जम्मू के एक आर्मी हॉस्पिटल में रखा गया। रामचन्द्र यादव ने अपने सैनिक अधिकारियों को युद्ध की जो कहानी बताई। दरअसल, वह रोंगटे खड़ी करने वाला है। रामचन्द्र यादव ने बताया कि मेजर शैतान के आदेश पर वे इस लिए जिन्दा बचे, ताकि पूरे देश को 120 जवानों की वीरगाथा का पता चल सके। उनके मुताबिक युद्ध के दौरान चीन की सेना दो बार पीछे हटी और री-इनफ्रोर्समेंट के साथ फिर से धावा बोल दिया। शुरू में चीन की ओर से काफी उग्र हमला हुआ था। किंतु, भारत की ओर से की गई जवाबी फायरिंग से चीन के सैनिकों की हिम्मत टूट गई। वे पीछे हटे और दुबारा हमला किया। इधर, भारतीय सैनिकों का गोला-बारूद खत्म होने लगा था।
पटक- पटक कर मारा
मेजर शैतान सिंह ने बैनेट के सहारे और खाली हाथों से युद्ध लड़ने का फैसला कर लिया था। उस वक्त वहां एक सिपाही मौजूद था। उसका नाम राम सिंह था। दरअसल, वह रेसलर रह चुका था। मेजर शैतान सिंह से आदेश मिलते ही सिपाही राम सिंह दुश्मन पर टूट पड़ा। उसने एक साथ दो-दो चीनी सैनिक को पकड़ा और उसका सिर आपस में टकरा कर दोनों को एक साथ मौत के घाट उतारने लगा। राम सिंह ने आधा दर्जन से अधिक चीनी सैनिकों को थोड़ी देर में ही मौत के घाट उतार दिया। इस बीच चीन के एक सैनिक ने राम सिंह के सिर में गोली मार दी। शहीद होने से पहले रमा सिंह के रौद्र रूप को देख कर चीनी खेमा में हड़कंप मच गया था।
रेजांगला शौर्य दिवस
13 कुमाऊं के यह सभी 120 जवान दक्षिण हरियाणा के रहने वाले थे। इनमें से अधिकांश गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिला के थे। रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की याद में भव्य स्मारक आज भी मौजूद है। इतना ही नहीं बल्कि, रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस मनाया जाता है। यह बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। किंतु देश के अधिकांश लोग रेजांगला के इन बहादुर सैनिक और उनके कारनामों को ठीक से नहीं जानते हैं।
चुशुल घाटी में है रेजांगला
पहाड़ की बिहरो में हुई इस युद्ध को रेजांगला का युद्ध क्यों कहा जाता है? दरअसल, लद्दाख के चुशुल घाटी में एक पहाड़ी दर्रा है। इसको स्थानीय लोग रेजांगला का दर्रा बोलते है। चूंकि, इसी दर्रा के समीप वर्ष 1962 में 13 कुमाउं का अंतिम दस्ता मौजूद था और इसी के समीप यह भीषण युद्ध हुआ था। लिहाजा, इसको रेजांगला का युद्ध कहा जाने लगा। लद्दाख की दुर्गम बर्फीली चोटी पर चीनी सेना के साथ हुए रेजांगला युद्ध की गौरव गाथा अद्वितीय है।
चीन का धोखा
रेजांगला का यह युद्ध 18 नवम्बर की सुबह में शुरू हुई थीं। किंतु, भारतीय सेना के सामने परीक्षा की घड़ी 17 नवंबर की रात में ही शुरू हो चुकीं थीं। दरअसल, 17 नवम्बर की रात इस इलाके में जबरदस्त बर्फिला तूफान आई थी। इस तूफान के कारण रेजांगला की बर्फीली चोटी पर मोर्चा संभाल रहे भारतीय जवानों का संपर्क अपने बटालियन मुख्यालय से टूट चुका था। तेज बर्फीले तूफान के बीच 18 नवम्बर की सुबह साढ़े 3 बजे चीनी सैनिक इलाके में घुस चुके थे। अंधेरे में हमारे बहादुर सैनिकों ने चीनी टुकड़ी पर फायर झोक दिया। करीब एक घंटे के बाद पता चला है कि चीनियों ने याक के गले में लालटेन लटका कर हमारे सैनिक को चकमा देने का काम किया है। दरअसल, चीनी सैनिक उस बेजबान जानवर को ढाल बना कर पीछे से भारतीय फौज पर हमला कर रहे थे।
झुंड में किया हमला
सुबह करीब 5 बजे में मौसम थोड़ा ठीक होते ही भारत के सैनिक इस चाल को समझ गए। हालांकि, उन्हें सम्भलने का मौका मिलता, इससे पहले ही चीनी सैनिकों की एक बड़ी टुकड़ी सामने आ गई और झुंड में हमला करना शुरू कर दिया। हालांकि, भारत के जवाबी फायरिंग के सामने वे टिक नहीं सके। पीछे हटे और थोड़ी देर बाद दुबारा से हमला कर दिया।
पराक्रम पर मुहर
सुबह के करीब 8 बजने को था। भारतीय सेना के पास गोली नहीं बचा था। बावजूद इसके हमारे बहादुर सैनिको ने हार नहीं मानी। लड़ाई जारी रहा। बैनेट से लड़े। खुले हाथों से लड़े। उन्हीं का बन्दूक छिन कर उन्हीं से लड़े। तबतक लड़ते रहे, जबतक शहीद नहीं हो गये। कहतें हैं कि इस लड़ाई में चीन का इतना जबरदस्त नुकसान हो गया कि चीन के सैनिक रेजांगला से एक कदम भी आगे बढ़ नहीं पाया। चीन को यह करारी शिकश्त शायद आज भी याद हो। यह सच है कि 62 में रेजांगला का युद्ध हम हार गये। पर, इससे भी बड़ा सच ये है कि चीन के दिलों दिमाग पर भारतीय पराक्रम का मुहर भी लगा गये।
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‘दुनिया के चश्मे से’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण
पत्रकारिता की भूमिका पर संगोष्ठी
श्रद्धांजलि सभा KKN न्यूज ब्यूरो । बिहार के मुजफ्फरपुर में गुरुवार को पत्रकार शिवशंकर श्रीवास्तव स्मृति पर्व का आयोजन हुआ। मिठनपुरा क्लब रोड स्थित मदर टेरेसा विद्यापीठ में आयोजित स्मृति पर्व के मौके पर ‘समाज में पत्रकारिता की भूमिका’ विषय पर संगोष्ठी को संबोधित करते हुए अधिवक्ता पंकज बसंत ने कहा कि लिखी हुई बात प्रमाणपत्र की तरह होता है। समाज की दशा और दिशा तय करने में पत्रकारिता की भूमिका अहम होती है। आज समय के साथ आदमी बदले हैं, तो पत्रकारिता भी बदली है। वरीय चिकित्सक डॉ. नवीन कुमार ने कहा कि शिवशंकर श्रीवास्तव ने पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर स्थापित किया है। सामाजिक कार्यकर्ता अनिल कुमार ने कहा कि शिवशंकर श्रीवास्तव चौथे स्तम्भ की मजबूती थे। भोला चौधरी ने कहा कि शिवशंकर जी की पत्रकारिता समाज के लिए समर्पित थी।
पुस्तक का हुआ लोकार्पण
स्मृति पर्व के मौके पर दिवंगत पत्रकार शिवशंकर श्रीवास्तव की पुस्तक “पत्रकार शिवशंकर श्रीवास्तव (दुनिया के चश्मे से)” का लोकार्पण किया गया। इससे पहले मौजूद पत्रकार, शिक्षाविद और राजनेताओं ने दिवंगत पत्रकार शिवशंकर श्रीवास्तव की तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। आस्था झा व कनिष्का पूर्वा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया और सतीश कुमार झा ने विषय प्रवेश कराया।
पत्रकार का सामाजिक सरोकार
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे साहित्यकार डॉ. संजय पंकज ने कहा कि पत्रकार शिवशंकर श्रीवास्तव अपनी लेखनी पर विश्वास करने वाले सांस्कृतिक और सामाजिक सरोकार के पत्रकार थे। स्मृति पर्व का सफल संचालन भाजपा के जिला प्रवक्ता प्रभात कुमार ने किया। धन्यवाद ज्ञापन अभिषेक प्रियदर्शी ने किया। मौके पर डॉ. हरिकिशोर प्रसाद सिंह, अजय कुमार, आनंद पटेल, राकेश कुमार साहू, पीयूष यादव, अनिल कुमार अनल, राजेश कुमार, राजेन्द्र ठाकुर, प्रेम भूषण, उमाशंकर प्रसाद, आदर्श रंजन, अभिषेक कश्यप, सामंत राज समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे।
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महापर्व छठ का खगोलीय महत्व
KKN न्यूज ब्यूरो। लोक आस्था का महापर्व छठ कार्तिक शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। यह एक खगोलीय घटना है। इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्र हो जाती हैं। सूर्य के पराबैगनी किरण के हानिकारक प्रभाव से जीवों की रक्षा के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा रही है।
आयन मंडल
सूर्य के प्रकाश के साथ उसकी पराबैगनी किरण चंद्रमा और पृथ्वी पर आती हैं। सूर्य का प्रकाश, जब पृथ्वी पर पहुंचता है, तो यहां इसको पहला वायुमंडल मिलता है। वायुमंडल में प्रवेश करने पर उसे आयन मंडल मिलता है। पराबैगनी किरणों का उपयोग कर वायुमंडल अपने ऑक्सीजन तत्त्व को संश्लेषित कर उसे एलोट्रोप ओजोन में बदल देता है। इस क्रिया द्वारा सूर्य की पराबैगनी किरणों का अधिकांश भाग पृथ्वी के वायुमंडल में ही अवशोषित हो जाता है।
पराबैगनी किरण
सामान्य अवस्था में पृथ्वी की सतह पर पहुँचने वाली पराबैगनी किरण की मात्रा मनुष्य या जीवों के सहन करने की सीमा में होती है। अत: सामान्य अवस्था में मनुष्यों पर उसका कोई विशेष हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है। अपितु, इससे वायुमंडल की हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं और इससे जीवन को लाभ होता है। किंतु, छठ के रोज खगोलीय कारणो से चंद्रमा और पृथ्वी पर सूर्य की पराबैगनी किरणो का कुछ अंश चंद्र की सतह से परावर्तित तथा कुछ अपवर्तित होती हुई पहुंचती है। कभी कभी यह पृथ्वी तक सामान्य से अधिक मात्रा में पहुंच जाती हैं। सूर्यास्त तथा सूर्योदय के वक्त यह और भी सघन हो जाती है।
साल में दो बार
ज्योतिषीय गणना के अनुसार यह घटना कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के छ: दिन उपरान्त आती है। यह घटना वर्ष में दो बार होता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। लिहाजा छठ भी वर्ष में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले छठ को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाये जाने वाले पर्व को कार्तिक छठ कहा जाता है।
उषा और प्रत्यूषा
धर्मग्रंथो में सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना की जाती है। प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों का नमन किया जाता है। स्त्री और पुरुष समान रूप से इस पर्व को मनाते हैं।
वैदिक काल
भारत में सूर्योपासना का यह महापर्व ऋग वैदिक काल से होती आ रही है। सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण में विस्तार से की मिलता है। मध्य काल में सूर्योपासना का यह पर्व लोक आस्था का रूप लेने लगा था। देवता के रूप में सूर्य की वन्दना का उल्लेख पहली बार ऋगवेद में मिलता है। इसके बाद अन्य सभी वेदों के साथ ही उपनिषद् एवं आदि वैदिक ग्रन्थों में इसकी चर्चा प्रमुखता से की गई है। उत्तर वैदिक काल के अन्तिम कालखण्ड में सूर्य के मानवीय रूप की कल्पना होने लगी थी। यही आस्था, कालान्तर में सूर्य की मूर्ति पूजा का रूप ले लिया। पौराणिक काल आते-आते सूर्य पूजा का प्रचलन और अधिक हो गया। इसी कालखंड में अनेक स्थानों पर सूर्यदेव के मंदिर भी बनाये गये।
आरोग्य का देवता
पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता माना जाता था। कहतें हैं कि सूर्य की किरणों में कई रोगों को नष्ट करने की क्षमता पायी जाती है। ऋषि-मुनियों ने अपने अनुसन्धान के क्रम में वर्ष में दो बार इसका विशेष प्रभाव बताया है। सम्भवत: यही छठ पर्व के उद्भव की बेला रही होगी।
षष्ठी का अपभ्रंश है छठ
सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से पूर्वी भारत के बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों मनाया जाता है। प्रायः हिन्दुओं द्वारा मनाये जाने वाले इस पर्व को इस्लाम सहित अन्य धर्मावलम्बी भी मनाते हैं। धीरे-धीरे यह त्योहार प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ विश्वभर में प्रचलित हो चुका है। नहाय-खाय से आरंभ हो कर चार रोज तक चलने वाले इस महापर्व का समापन उषा अर्ध्य के साथ होता है। इस बीच दूसरे रोज छठब्रती के द्वारा खरना और तीसरे रोज संध्या अर्ध्य का उपासना होता है। छठ पर्व, षष्ठी का अपभ्रंश है। लोक परम्परा के अनुसार सूर्यदेव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है।
कर्ण का अर्घदान
कथाओं के मुताबिक भगवान कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ रोग हो गया था। इस रोग से मुक्ति के लिए विशेष सूर्योपासना की गयी, जिसके लिए शाक्य द्वीप से जानकार ब्राह्मणों को बुलाया गया था। एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। एक अन्य मान्यता के अनुसार आधुनिक छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की थी और अर्घदान किया था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की पद्धति प्रचलित है।
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नीतीश की भाजपा से दूरी कब और क्यों
KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार की राजनीति में एक बड़ा बदलाव आ गया है। भाजपा और जदयू का गठबंधन टूट गया है और नीतीश कुमार अब महागठबंधन के साथ मिल कर सरकार बनाने की तैयारी में है। दरअसल, 26 साल में ये दूसरी बार है जब नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो रहे हैं। समता पार्टी का गठन करने के बाद से नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ गए थे। वर्ष 2000 में पहली बार भाजपा की मदद से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने थे।
सात दिन के मुख्यमंत्री
2000 में विधानसभा चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। वर्ष 2000 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में समता पार्टी ने भाजपा और कुछ अन्य छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। दूसरी ओर से राजद, कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी मैदान में थी। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। उनदिनो केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी।
विलय के बाद बना एनडीए
वर्ष 2003 में समता पार्टी, लोक शक्ति, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी और जनता दल (शरद यादव ग्रुप) का जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नाम से विलय हो गया। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला था। राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
जदयू का बढ़ा जनाधार
बिहार में नए सिरे से चुनाव हुआ और एनडीए को बहुमत मिल गया। नवम्बर 2005 में नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहे। उस समय जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिली थी। एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिली थी। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली।
भाजपा को पहली बार दिखाया ठेंगा
वर्ष 2013 में नीतीश कुमार ने भाजपा से 17 साल पुराने संबंध को तोड़ कर साथ साथ छोड़ दिया था। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की घोषणा की थी। नीतीश कुमार भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। लिहाजा, उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया। भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। दूसरी ओर राजद ने नीतीश कुमार को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद पर बने रहे।
मांझी को बनाया मुख्यमंत्री
वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश कुमार की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, फरवरी 2015 में नीतीश कुमार ने फिर से बिहार की कमान अपने हाथ में ले ली और मुख्यमंत्री बने। इस बार उनकी सहयोगी राजद और कांग्रेस थी।
भाजपा को दी पटखनी
वर्ष 2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एक साथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू प्रसाद की राजद को 80 और नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिली। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू प्रसाद के पुत्र तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बने और दूसरे पुत्र तेजप्रताप यादव स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। किंतु, 2017 में तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार असहज हो गये और इस्तीफा दे दिया। हालांकि, चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली।
कम सीट को बताया साजिश
वर्ष 2020 में भाजपा और जदयू ने मिलकर एनडीए गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा। तब जदयू ने 115 और भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था। भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 74 सीटें हासिल की। ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जदयू सिर्फ 43 सीटें जीत पाई थी। नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन गये। भाजपा से दो उप मुख्यमंत्री बनाए गए। विधानसभा चुनाव में कम सीट मिलने को नीतीश कुमार भाजापा की साजिश मान कर चुप बैठे रहे। किंतु, आरसीपी प्रकरण के बाद भाजपा पर पार्टी को तोड़ने का आरोप लगाते हुए उन्होंने एनडीए छोड़ने का ऐलान कर दिया है।
बहुमत का आसान अंकगणित
अभी बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। यहां बहुमत साबित करने के लिए किसी भी पार्टी को 122 सीटों की जरूरत होती है। वर्तमान आंकड़ों को देखें तो बिहार में सबसे बड़ी पार्टी राजद है। उसके पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। वहीं, भाजपा के 77, जदयू के 45, कांग्रेस के 19, वाम दलों के 16, एआईएमआईएम का 01, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के 04 विधायक और एक निर्दलीय विधायक हैं। अब एक बार फिर से जदयू एनडीए से अलग हो गई है और महागठबंधन के साथ मिल कर सरकार बनाने की कबायत अंतिम चरण में है।
यादगार राजनीतिक सफर
वर्ष 1985 में नीतीश कुमार ने पहली बार नालंदा की हरनौत सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था। चार साल बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़े। इसके बाद 1990 की बात है। तब नीतीश कुमार ने जनता दल में अपने वरिष्ठ नेता लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री बनवाने में खूब मदद की। नीतीश कुमार हमेशा लालू प्रसाद को बड़े भाई कहकर बुलाते थे। वर्ष 1991 में मध्यावधि चुनाव में नीतीश बाढ़ इलाके से चुनाव जीता। वर्ष 1994 में नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद से बगावत कर दी और जॉर्ज फर्नांडीज के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया। उनका बेदाग राजनीतिक सफर यादगार बन चुका है।
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इलाहाबाद क्यों गये थे चन्द्रशेखर आजाद
KKN न्यूज ब्यूरो। बात वर्ष 1920 की है। अंग्रेजो के खिलाफ सड़क पर खुलेआम प्रदर्शन कर रहे एक 14 साल उम्र के किशोर को पुलिस अधिकारी 15 कोड़े मार कर छोड़ देने का आदेश देते हैं। दरअसल, यही से शुरू होता है असली कहानी। कोड़े मारने से पहले अंग्रेज का एक अधिकारी उस किशोर से पूछता है- तुम्हारा नाम क्या है? जवाब मिला- आजाद…। तुम्हारे बाप का नाम क्या है? जवाब मिला- स्वतंत्रता…। अंग्रेज अधिकारी ने पूछा- घर का पता बताओं? उस किशोर ने बिना डरे कहा- जेल…। जवाब सुन कर अंग्रेज अधिकारी चौक गये थे। बात यहीं नही रुकी। बल्कि, जब सिपाहियों ने कोड़े मारने शुरू किए। तब प्रत्येक कोड़े पर वह चिल्लाने की जगह। भारत माता की जय… बोलने लगा।
मुझे छोड़ कर गलती कर रहे हो
कहतें है कि कोड़े मारने का यह सिलसिला तबतक चला, जबतक वह किशोर बेहोश नहीं हो गया। कुछ घंटो के बाद जब किशोर को होश आया। तब अंग्रेज अधिकारी ने उसको रिहा कर दिया। अब उस किशोर की हिम्मत देखिए। जाने से पहले वह अंग्रेज अधिकारी के सामने खड़ा होकर मुस्कुराने लगा। जब अधिकारी ने मुस्कुराने की वजह पूछी। तो उसका जवाब था- मुझे छोड़ कर बड़ी गलती कर रहे हो…। कयोंकि, आज के बाद तुम लोग मुझे कभी पकड़ नही पाओगे। अंग्रेज अधिकारी ने किशोर की कही बातों को गंभीरता से नही लिया। पर, यह बात आगे चल कर बाकई सच साबित हो गया और आगे चल कर वह किशोर कभी अंग्रेजो की पकड़ में नही आया।
देश के लिए दिया प्राणो की आहूति
दरअसल, यही वो लड़का था। जो, आगे चल कर चन्द्रशेखर आजाद के नाम से जाना गया। चन्द्रशेखर आजाद एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने आजादी की खातिर युवा अवस्था में अपने प्राणो की आहूति दे दी। वे अक्सर कहा करते थे- “मैं आजाद हूँ, आजाद रहूँगा और आजाद ही मरूंगा”। उनकी यह कथन भी सच साबित हो गया। मात्र 24 साल की उम्र में अंग्रेजो से लड़ते हुए वे खुद की गोली से शहीद हो गए। पर, जिन्दा रहते हुए कभी पकड़े नहीं गए। कहतें है कि यह वो उम्र है, जब युवा पीढ़ी अपनी जिंदगी के सपने देखती है। उसको पूरा करने की हसरत लिए कोशिश करती है। ठीक उसी उम्र में देश की खातिर निस्वार्थ भाव से शहीद होना। मामुली घटना नही है।
क्यों चुनी क्रांति की कठिन राह
कहतें है कि असयोग आंदोलन में प्रदर्शन करते हुए नन्हे चन्द्रशेखर को अंग्रेजो से कोड़े की मार पड़ी थी। उसी आंदोलन को सन 1922 में महात्मा गांधी ने अचानक स्थगित कर दिया था। इस घटना का चन्द्रशेखर आजाद के बाल मन पर गहरा असर पड़ा और चन्द्रशेखर आजाद ने महात्मा गांधी से अलग होकर क्रान्तिकारी विचारधारा की ओर मुड़ गये। उन्होंने ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन’ से जुड़ कर आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया। उनदिनो महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल इसके सबसे बड़े नेता हुआ करते थे। इसके अतिरिक्त शचीन्द्रनाथ सन्याल और योगेशचन्द्र चटर्जी सरीखे क्रांतिकारी इस संगठन के सदस्य हुआ करते थे।
काकोरी के बाद आजाद को मिला कमान
काकोरी कांड के आरोप में वर्ष 1927 में जब इनमें से कई क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया। तब, चन्द्रशेखर आजाद ने इसका कमान अपने हाथो में ले लिया। इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद ने पहली बार उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारियों को एक जुट करके ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन’ का गठन किया था। बाद में भगत सिंह भी इस संगठन से जुडे और अंग्रेज अधिकारी सांण्डर्स की हत्या करके लाहौर में हुई लाला लाजपत राय के मौत का बदला लिया था। कहतें है कि दिल्ली के असेम्बली बम काण्ड के बाद यह संगठन काफी चर्चा में आ गया था।
काकोरी की है दिलचस्प कहानी
काकोरी कांड की दिलचस्प कहानी है। कहतें है कि 9 अगस्त 1925 को काकोरी में ट्रेन रोक कर सरकारी खजाना लूटा गया था। किंतु, इससे पहले शाहजहां पुर में चन्द्रशेखर आजाद ने मीटिंग बुलायी थीं। अशफाक उल्ला खां ने इसका विरोध किया था। बावजूद इसके धन जुटाने के लिए काकोरी कांड को अंजाम दिया गया। हालांकि, क्रांतिकारियों को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। अंग्रेज अधिकारी चन्द्रशेखर आज़ाद को नहीं पकड़ सके। पर, काकोरी के आरोपी पण्डित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाक उल्ला खां और ठाकुर रौशन सिंह को अंग्रेजो ने 19 दिसम्बर 1927 को फांसी पर चढ़ा दिया था। इसके मात्र दो रोज पहले ही राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी को अंग्रेजो ने फांसी पर लटका दिया था।
साधु के भेष में कांतिकारियों को एकजुट किया
लाख कोशिशों के बाद भी चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजो के हाथ नही आ रहे थे। कहतें हैं कि काकोरी काण्ड के बाद चन्द्रशेखर आजाद ने साधु का भेष धारण कर लिया था। साधु के बन कर चन्द्रशेखर आजाद गाजीपुर पहुच गए और वहां एक मठ में रह कर यही से आंदोलन का संचालन करने लगे थे। अपने चार बहादुर साथी के फांसी और 16 को कैद की सजा होने के बाद भी चन्द्रशेखर आजाद का हौसला कमजोर नहीं हुआ था। उन्होंने उत्तर भारत के सभी कान्तिकारियों को एकत्र करके 8 सितम्बर 1928 को दिल्ली के फीरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा करके अंग्रेजो को चकमा दे दिया। इसी सभा में यह तय किया गया कि सभी क्रान्तिकारियों को एकजुट होना चाहिए और ऐसा हुआ भी। इसी सभा में चन्द्रशेखर आज़ाद को कमाण्डर इन चीफ बना दिया गया था।
जब पुलिस के सामने से निकल गये थे आजाद
इसके बाद की एक घटना बड़ा दिलचस्प है। ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिए चन्द्रशेखर अपने एक मित्र के घर छिपे हुए थे। ठीक उसी समय अचानक किसी की तलाश में पुलिस वहां पहुंच गई। मित्र की पत्नी ने चन्द्रशेखर आजाद को एक धोती और अंगरखा पहना कर सिर में साफा बांध दिया और टोकड़ी में अनाज भर कर खुद उनकी पत्नी बन गई। समान बेचने का बहाना बना पुलिस के सामने ही चन्द्रशेखर आजाद को अपने साथ लेकर वह महिला चली गई। थोड़ी दूर पहुंचकर चन्द्रशेखर आजाद ने अनाज से भरा टोकड़ी एक मंदिर की सीढ़ियों पर रख दिया और मित्र की पत्नी को धन्यवाद देकर वहां से चले गए। पुलिस को बाद में पता चला कि टोकड़ी लेकर जाने वाला वह कोई मामुली किसान नहीं, बल्कि, चन्द्रशेखर आजाद थे।
ओरछा के जंगल को बनाया ठिकाना
अध्ययन करने से पता चला कि अंग्रेजो को चकमा देने के लिए चंद्रशेखर आजाद ने झांसी से करीब पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगल को अपना ठिकाना बना लिया था। पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से इसी जंगल में रहते हुए उन्होंने अपने साथियों के साथ निशानेबाजी का अभ्यास किया था। कहतें है कि चन्द्रशेखर आजाद का निशाना अचूक था। उन्हों गाड़ी चलाना भी आता था। अब एक घटना पर गौर करीए। क्रांतिकारियों के मन में लाला लाजपत राय के मौत का बदला लेने का जुनून सवार हो चुका था। तय हुआ कि जे.पी. सांडर्स को मार देना है।
अचूक निशाना लगा कर बचाई भगत की जान
योजना के तहत 17 दिसम्बर, 1928 को चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और राजगुरु ने लाहौर के पुलिस सुपरिटेडेंट के कार्यालय के समीप घात लगा दिया था। संध्या का समय था। जैसे ही जे.पी. सांडर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल से बाहर निकला। सबसे पहले राजगुरू ने गोली चला दी। पहली गोली सांडर्स के सिर में लगी और वह मोटर साइकिल से नीचे गिर गया। इसके बाद भगत सिंह आगे बढ़े और दनादन चार गोलियां उसके जिस्म में उतार कर भागने लगे। इस बीच सांडर्स के बॉडीगार्ड ने भगत सिंह को निशाने पर ले लिया। हालांकि, वह फायर करता। इससे पहले ही चन्द्रशेखर आज़ाद ने अपने अचूक निशाना से बॉडीगार्ड का काम तमाम कर दिया। इसके बाद क्रांतिकारियों ने पोस्टर लगा कर लाला लाजपत राय के मौत का बदला पूरा होने का ऐलान कर दिया। इससे अंग्रेज बौखला गए थे।
दुर्घटना की वजह से नही हुआ जेल ब्रेक
कहतें है कि भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए चन्द्रशेखर आज़ाद ने दुर्गा भाभी को गांधीजी के पास भेजा था। किंतु, गांधीजी इसके लिए तैयार नही हुए। इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद ने भगत सिंह को छुराने के लिए जेल ब्रेक करने की योजना बानाई। इसके लिए तैयारी शुरू हो गई। किंतु, अंतिम चरण में बम बनाने के दौरान भूलबस एक विस्फोट हो गया और इसमें भगवती चरण वोहरा की मौत हो गई। इस घटना के बाद क्रांतिकारियों के जेल ब्रेक की योजना पर पानी फिर गया।
कॉग्रेस नेता का मदद से इनकार
इधर, चन्द्रशेखर आजाद अपने साथियों को फांसी से हर हाल में बचाना चाहते थें। इसके लिए उन्होंने भेष बदल कर उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल पहुंच गए और जेल में बंद गणेश शंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी के परामर्श पर चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद चले गये। यहां 20 फरवरी को उन्होंने आनन्द भवन जाकर जवाहरलाल नेहरू से भेंट की। आजाद चाहते थे कि पण्डित जी अपने साथ गांधीजी को लेकर लॉर्ड इरविन से मिले और तीनो की फांसी को उम्रकैद में बदलने का अनुरोध करें। किंतु, जवाहरलाल नेहरू इसके लिए तैयार नहीं हुए।
पुलिस से लड़ते हुए खुद को मारी गोली
निराश होकर चन्द्रशेखर आजाद इधर उधर भटक रहे थे। इसी दौरान 27 फरबरी को चन्द्रशेखर आजाद अल्फ्रेड पार्क चले गए। वहां उनकी मुलाकात अपने एक पुराने मित्र सुखदेव राज से हो गई। दोनो मिल कर मंत्रणा कर ही रहे थे। तभी सी.आई.डी. का एस.पी. नॉट बाबर जीप से वहां अचानक पहुंच गया। उसके पीछे कर्नलगंज थाने की पुरी पुलिस टीम थी। दोनो ओर से जोरदार फायरिंग शुरू हो गया। चन्द्रशेखर आजाद अकेले ही पुलिस टीम से घंटो लड़ते रहे। किंतु, बाद में गोली कम पड़ गयी और अंतिम गोली उन्होंने स्वयं को मार कर शहीद हो गये।
समीप जाने की अंग्रेजो में नही थी हिम्मत
कहतें है चन्द्रशेखर आजाद के शहीद होने के बाद भी अंग्रेज अधिकारी उनके करीब पहुंचने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। घंटो बाद पुलिस ने उनके पैर में गोली मारी और कोई हरकत नहीं होने पर पुलिस के अधिकारी उनके करीब पहुंचने की साहस जुटा सके। इसके बाद पुलिस ने गुपचुप तरीके से चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार करने की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि, थोड़ी देर में ही यह खबर इलाहाबाद (प्रयागराज) में फैलने लगी। लोगों की भारी भीड़ अलफ्रेड पार्क में उमड़ गई।
अंग्रेजो के खिलाफ फुट पड़ा गुस्सा
जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे थे। लोग उस जगह की मिट्टी को पवित्र मान कर अपने घरो में ले जाने लगे। शहर में अंग्रेजो के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश भड़कने लगा। शाम होते-होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले शुरू हो गये। लोग बड़ी संख्या में सडकों पर आ गये और अंग्रेजो के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गया। गौर करने वाली बात ये है कि यह सभी कुछ स्वत: स्फुर्द था। कोई नेतृत्वकर्ता नहीं था।
अंतिम दर्शन को पहुंची थी कमला नेहरू
इधर, आज़ाद के बलिदान की खबर जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू तक पहुंच गई। कमला नेहरू ने तत्काल ही कई वरिष्ट कॉग्रेसी नेताओं को इसकी सूचना दिया। पर, किसी ने भी इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद कमला नेहरू ने वहां मौजूद पुरुषोत्तम दास टंडन को साथ लेकर इलाहाबाद के रसूलाबाद शमशान घाट पर चली गई। यही पर अंग्रेजो ने आजाद का दाह संस्कार किया था। अगले रोज युवाओं की टोली ने आजाद की चिता से अस्थियां चुन कर एक जुलूस निकाला। कहतें है कि इस जुलूस में पूरा इलाहाबाद इखट्ठा हो गया। इलाहाबाद की सभी मुख्य सडकों पर जाम लग गया।
घटना से कॉग्रेस ने किया किनारा
जुलूस के बाद एक सभा हुई। इस सभा को शचीन्द्रनाथ सान्याल की पत्नी प्रतिभा सान्याल ने सम्बोधित किया था। इस सभा को कमला नेहरू तथा पुरुषोत्तम दास टंडन ने भी सम्बोधित किया था। इस घटना से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि चन्द्रशेखर आजाद का व्यक्तित्व कम उम्र में ही कितना विराट रुप धारण कर चुका था। पर, उस समय कॉग्रेस के कोई भी बड़ा नेता इस घटना को बड़ी घटना मानने को तैयार नही था और कॉग्रेस ने चन्द्रशेखर आजाद की मौत पर शोक संवेदना देना भी उचित नही समझा।
झाबुआ के आदिवासियों का था गहरा असर
चन्द्रशेखर आजाद का आज जन्म 23 जुलाई 1906 ई. को हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम तिवारी तथा माता का नाम जगरानी देवी था। चन्द्रशेखर आजाद की शुरुआती पढ़ाई मध्यप्रदेश के झाबुआ जिला में हुआ था। किंतु, बहुत ही कम उम्र में संस्कृत पढ़ने के लिए उनको वाराणसी की संस्कृत विद्यापीठ में दाखिल करा दिया गया। झाबुआ में रहते हुए आजाद का बचपन आदिवासी इलाकों में बीता था। यही पर उन्होंने अपने भील बालकों के साथ धनुष बाण चलाना सीख लिया था। इसकी भी एक दिलचस्प कहानी है।
भील बालको से सीखा धनुष चलाना
कहतें है कि उनदिनो भारी अकाल पड़ा था। उन्हीं दिनो आजाद के पिता पंडित सीताराम तिवारी अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर मध्य प्रदेश चले गए। वहां अलीराज पुर रियासत में नौकरी करने लगे और वहीं समीप के भंबरा गांव में बस गये। यहीं पर बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। यह आदिवासी बाहुल्य इलाका था। नतीजा, बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाना सीख लिया था।
बनारस में हुआ था क्रांति का बीजारोपण
बनारस में रहते हुए चन्द्रशेखर आजाद का संपर्क क्रांतिकारी मनमंथ नाथ गुप्ता और प्रणवेश चटर्जी से हो गया। इसके बाद चन्द्रशेखर आजाद ने क्रान्तिकारी दल ज्वाइन करके भारत माता की आजादी के लिए अपने प्राणो की आहूति दे दी। कहतें है कि जैसा नाम वैसा काम। यानी चन्द्रशेखर आजाद जब तक जिन्दा रहे आजाद ही रहे। लाख कोशिशो के बाद भी अंग्रेज उनको गिरफ्तार नही कर सका।