लेखक: Shaunit Nishant

  • चीन के घातक प्लान को समझना जरुरी है

    चीन के घातक प्लान को समझना जरुरी है

    जिस देश की सोच दूरदर्शी नहीं हो। जो, इतिहास से सबक सिखने को तैयार नहीं हो और जहां के नागिरिक कुतर्को को ज्ञान का आधार मान कर आपस में लड़ने भिड़ने और मरने मारने पर उतारू हो। वहां की आजाद फिजां में लम्बे समय तक सांस लेना मुश्किल हो सकता है। क्योंकि, अनजाने में ही सही… मूल समस्या की ओर से हमने आंखें मूंद ली है। हमारा पड़ोसी मुल्क चीन और पाकिस्तान, दूरदर्शी और घातक प्लान पर गंभीरता से काम कर रहा है। क्या है, उनका प्लान और वह भारत के लिए कितना घातक हो सकता है। इसको समझना जरुरी हो गया है। देखिए, इस रिपोर्ट में…।

  • वो महज गीत नहीं बल्कि जिन्दगी की फलसफा लिखते थे

    वो महज गीत नहीं बल्कि जिन्दगी की फलसफा लिखते थे

    गुजरे जमाने के मशहूर गीतकार संतोस आनंद जी की लिखी पंक्तियां, अक्सर दिल को छू जाती है। उनकी हस्ती को समझना आसान नहीं है। ऐसे में उनकी लिखी कुछ पाक्तियों के सहारे उन्हें समझने की कोशिश करेंगे। KKN लाइव के खबरो की खबर और लीक से हट कर खबर के इस सेगमेंट में आज मशहूर गीतकार संतोष आनंद की बात करेंगे। उनके जीवन की गहराई और उतार चढ़ाव को समझने की कोशिश करेंगे। उनकी लिखी नगमो में प्यार के फलसफा को समझने की कोशिश करेंगे।

  • मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा : दुष्यंत कुमार

    मैं सजदे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा : दुष्यंत कुमार

    गजल, हिन्दी साहित्य की एक नई विधा है। नई विधा इसलिए है, क्योंकि गजल मूलत: फारसी की काव्य विधा मानी जाती है। फारसी से यह उर्दू में आई और यही रच बस गई। कालांतर में हिन्दी गजल का प्रचलन भी तेजी से हुआ। गजल को प्रेम की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम माना जाता था। टूटे हुए आशिक के मुंह से बरबस फुट पड़ने वाला अल्फाज माना जाता था। अपनी प्रेमिका के उलझे हुए केशुओं को सहलाने और उसके कोमल स्पर्श को महसूस करने की खुबसूरत अंदाज माना जाता था। किंतु, 70 का दशक आते-आते युवा कवि दुष्यंत कुमार ने गजल को कोठे की रंगीन दुनिया से खींच कर आक्रोश से उबलते युवाओं की जुबान बना दिया। बुझती राख को चिंगारी बना दिया। दुष्यंत कुमार ने आक्रोश को शब्दो में ऐसे पिरोया कि युवाओं के अरमान कुलाचे भरने लगा। देखिए, इस रिपोर्ट में…

     

     

  • वेब सीरीज में विवादो की ये है हकीकत

    वेब सीरीज में विवादो की ये है हकीकत

    साहित्य समाज का आईना होता है। एक साहित्यकार अपनी कथानक के माध्यम से अपने दौर का चित्रण कर देता है। सिनेमा भी इसी की एक विधा है। फिल्में अपने दौर का दस्तावेज होती हैं। कहतें है कि आज का दौर रुपये इखट्ठा करने का दौर है और चंद रुपये की लालच में हममें से कई लोगो ने साहित्य की इस विधा को बदनाम करने में गुरेज नहीं किया है। नतीजा, मौजूदा दौर के सिनेमा का विवादो से चोली दामन का संबंध होना स्वभाविक है। कुछ लोग इसको स्ट्रैटजी बतातें है। यानी जान बूझ कर विवाद खड़ा करो। प्रचार बटोरो और रुपये कमाओं। सच क्या है। मुझे नहीं पता। पर, इससे इनकार भी नहीं है कि ओटीटी पर रिलीज होने वाली वेब सीरीज को लेकर अक्सर कोई न कोई नया विवाद खड़ा होना अब नई बात नहीं रही। आखिरकार इस विवाद की वजह क्या है। क्यों जानबूझ कर विवादित विषयो को तरगेट किया जाता है। देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • इतिहास का जीवित धरोहर है लालकिला

    इतिहास का जीवित धरोहर है लालकिला

    लालकिला, एक ऐसा नाम जो किसी पहचान की मुहताज नहीं है। यह ईट और पत्थर से बना, महज एक भवन नहीं। बल्कि, इतिहास की जिवित धरोहर है। राजा बदले, राजघराना बदला और सत्ता का केन्द्र भी बदलता रहा। मुगल से लेकर अंग्रेज तक और अब स्वतंत्र भारत में कॉग्रेस से लेकर बीजेपी तक। हुकूमत बदली। हुक्मरान भी बदले। पर, लालकिला का प्रचीर नहीं बदला। लालकिला की आन, बान और शान नहीं बदला। तभी तो यूनेस्को ने इस लालकिला को विश्व का धरोहर घोषित कर दिया है। 26 जनवरी 2021 को लालकिला पर जो हुआ। उसको हम सभी ने देखा। किसी ने किसानो की गलती देखी और किसी ने सरकार की। पर, जो नहीं दिखा। वह था लालकिला की महत्ता। इस पर किसी का ध्यान नहीं गया। केकेएन लाइव के ‘‘खबरो की खबर’’ के इस सेगमेंट में लालकिला की विशिष्ट पहचान से पर आधारित इस रिपोर्ट को देखिए…

     

  • 1857 के गदर की अनसुनी बातें

    1857 के गदर की अनसुनी बातें

    हम बात करेंगे 1857 के गदर की। जिसे अंग्रेजो ने महज सिपाही बिद्रोह कहा था। यह इतिहास का एक ऐसा मोड़ है, जिसको समझना और याद रखना हम सभी के लिए बहुत जरुरी है। हमारी चट्टानी एकता के लिए जरुरी है। गंगा जमुनी संस्कृति के लिए जरुरी है। आजादी को अक्षुण बनाये रखने के लिए जरुरी है और हमे हमारी साझा विरासत को समझने के लिए भी बहुत जरुरी है। कहतें है कि मेरठ के सैनिक छावनी में अंग्रेज अधिकारी परेड का निरीक्षण करने पहुंचे ही थे कि एन.आई. ट्वैंटी की पैदल टुकड़ी ने अंग्रेज अधिकारी का आदेश मानने से इनकार कर दिया। फिर क्या हुआ? देखिए, इस रिपोर्ट में…

     

  • माउंट एवरेस्ट या माउंट सिकदर, दस्ताबेज में छिपा है हकीकत

    माउंट एवरेस्ट या माउंट सिकदर, दस्ताबेज में छिपा है हकीकत

    हिमालय पर्वत माला की सबसे उंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम तो आपने सुना होगा। पर, आपने कभी सोचा है कि इसका नाम माउंट एवरेस्ट कैसे पड़ा। इसकी एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। एक अंग्रेज अधिकारी जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर इस पर्वत शिखर का नाम माउंट एवरेस्ट रख दिया गया। जबकि, सच्चाई ये है कि इस चोटी की पहली खोज भारत के एक गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने किया था और कायदे से देखा जाये जो इस चोटी का नाम माउंट सिकदर होना चाहिए था। नेपाल में इसको सागरमाथा और तिब्बत में चोमो लुंगमा के नाम से क्यों जानते है? देखिए इस रिपोर्ट में…

  • शिक्षा का अलख जगाना होगा

    शिक्षा का अलख जगाना होगा

    बिहार राज्य प्रेरक संघ के प्रदेश अध्यक्ष बेचन राय ने कहा कि नव साक्षरो में एक बार फिर से शिक्षा का अलख जगाना होगा। कहा कि सरकार इसके लिए गंभीर है और शीघ्र ही कुछ नया होने वाला है। KKN लाइव के ‘’इनसे मिलिए’’ सेगमेंट में अपनी बातें रखते हुए बेचन राय ने मीनापुर के नोडल केन्द्र की उपलब्धियों से अवगत कराया। कम्प्यूटर शिक्षा, संगीत की शिक्षा और पेटिंग आदि की विस्तार से जानकारी दी। श्री राय ने और क्या कहा? देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • बाबा साहेब की चेतावनी को गंभीरता से समझना होगा

    बाबा साहेब की चेतावनी को गंभीरता से समझना होगा

    दुनिया में इन दिनो किताबें पढ़ने की प्रवृत्ति कम हुई है। पर, भारत में यह प्रवृत्ति अब खतरनाक रूप लेने लगा है। दुनिया को ज्ञान की शिक्षा देने वाला भारत के अधिकांश लोग अब सुनी सुनाई बातो पर यकीन करने लगे है। नतीजा, गलत सूचनाओं ने अपनी मजबूत जगह बना ली है और बड़ी संख्या में लोग गुमराह हो रहें है। ताज्जुब की बात ये है कि हम भारतवंशी जिनको अपना आदर्श मानते है। पूजा करते है। उनकी लिखी पुस्तको को भी नहीं पढ़ते है और सुनी सुनाई बातो पर आसानी से यकीन कर लेते है। मिशाल के तौर पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेदकर को ही ले लीजिए। एक कड़बी हकीकत है कि बाबा साहेब को समग्रता में समझने वालो की कमी हो गई है। देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त से जुड़ा है रहस्य

    भारत छोड़ो आंदोलन 9 अगस्त से जुड़ा है रहस्य

    मुम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी की बैठक चल रही थी और देर शाम को कॉग्रेस ने एक एतिहासिक प्रस्ताव पारित कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन का प्रस्ताव। अब तक स्वायत्तता की मांग करने वाली कॉग्रेस ने यह तय किया कि अब भारत में ब्रिटिश शासन नहीं  चलेगा और इसकी तत्काल समाप्ति जरुरी है। इसके लिए आजादी के सबसे बड़े आंदोलन यानी भारत छोड़ो आंदोलन की घोषणा कर  दी। कॉग्रेस से प्रस्ताव पारित होते ही 9 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हो गया। इसको अगस्त क्रांति भी कहा जाता है। उस समय पूरी दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की आग में जल रही थीं। इस निर्णय से करीब चार महीने पहले अप्रैल 1942 में क्रिप्स मिशन के असफल होने से कॉग्रेस के लोगो में अंग्रेजो के प्रति अविश्वास का भाव प्रवल होने लगा था। आखिरकार कॉग्रेस को कठोर निर्णय लेने पड़े। यहां आपको याद दिलादें कि 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने के पीछे एक रहस्य छिपा है। दरअसल, 17 साल पहले 9 अगस्त को ही काकोरी काण्ड हुआ था और इस घटना से ब्रिटिश हुकूमत की चूलें हिल गई थीं। लिहाजा कॉग्रेस ने एक बार फिर से 9 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन की शंखनाद करके ब्रिटिश हूकूमत को कड़ा संदेश देना चाहती थीं। काकोरी कांड के संबंध में बात करेंगे। फिलहाल जानते है कि क्या है भारत छोड़ो आंदोलन और उस वक्त इसकी जरुरत क्यों पड़ी? देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • बिहार के गांवो में कभी भी हो सकता है कोरोना विस्फोट

    बिहार के गांवो में कभी भी हो सकता है कोरोना विस्फोट

    बिहार में कोरोना का मीटर तेजी से बढ़ रहा है। गांव की स्थिति शहर से भी अधिक खराब है। तैयारी के नाम पर स्थानीय प्रशासन महज खानापूर्ति करने में लगी है। अव्वल तो जांच नहीं होता। यदि हो गई, तो रिपोर्ट आने में सप्ताह बीत जाता है। सैनेटाइजेशन और मास्क की गांव में रश्म अदायिगी भी ठीक से करने को कोई तैयार नहीं है। गांव के हाट-बाजार में सोशल डिस्टेंस महज तकिया-कलाम बन कर रह गया है। ऐसे में हालात बेकाबू हुआ तो क्या होगा? इसी विषय पर केकेएन लाइव के ऑन लाइन परिचर्चा में शामिल हुये समाजिक कार्यकर्ता पूर्व मुखिया मो. सदरुल खां, शिक्षक दिलिप कुमार, समाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता सोनू कुमार और पत्रकार कृष्णमाधव सिंह। देखिए, पूरी रिपोर्ट…

  • कोरोना के बीच में ही ब्यूबोनिक ने दी दस्तक

    कोरोना के बीच में ही ब्यूबोनिक ने दी दस्तक

    दुनिया से कोरोना वायरस का खतरा अभी टला भी नहीं था कि ब्यूबोनिक प्लेग ने दस्तक दे दी। जानकार मानते है कि कोरोना से कई गुणा अधिक खतरनाक है ब्यूबोनिक प्लेग। गौर करने वाली बात ये है कि ब्यूबोनिक प्लेग भी कोरोना की तरह चीन से ही निकला है। लिहाजा, इस खबर के प्रकाश में आते ही पूरी दुनिया हैरत में है। क्योंकि, दुनिया का बड़़ा हिस्सा अभी भी कोरोना संक्रमण से जूझ रहा है। ऐसे में ब्यूबोनिक प्लेग, दुनिया के लिए बड़े खतरे का संकेत माना जा रहा है। क्या है ब्यूबोनिक प्लेग और शरीर पर इसका असर कितना खतरनाक होगा? देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • इस सप्‍ताह के कुछ मुद्दे । 7th July 2020

    इस सेगमेंट में हम हाल के हुए कुछ बड़ी घटनाओं के बारे में बात करेंगे और उस पर साहित्यिक अंदाज़ में अपनी बात भी रखेंगे उम्मीद है की आपको यह सेगमेंट पसंद आएगा तो बिना वक्त को गंवाये सबसे पहले हम बात करते हैं…

  • भारत की सेना ढ़ाई मोर्चा पर युद्ध की तैयारी कर चुकी है: बसंत

    भारत की सेना ढ़ाई मोर्चा पर युद्ध की तैयारी कर चुकी है: बसंत

    इंडियन एयरफोर्स के ग्रुप कैप्टन (रि.) बसंत कुमार कहतें है कि भारत की सेना हर मोर्चे पर चीन पर भारी पड़ेगा। केकेएन लाइव के “इनसे मिलिए” सेगमेंट में बोलते हुए रक्षा विशेषज्ञ बसंत कुमार ने कहा कि भारतीय सेना एक साथ ढ़ाई मोर्चे पर लड़ने को तैयार है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आदेश मिला तो भारत की सेना अक्साई चीन और पीओके पर कब्जा करने को बहुत पहले से तैयार बैठी है। युद्ध की सम्भावना से इनकार करते हुए बसंत कुमार ने बताया कि यदि युद्ध हुआ तो चीन बर्बाद हो जायेगा। इस एक्सक्ल्यूसिव इंटरव्यू में रक्षा विशेषज्ञ बसंत कुमार ने और क्या कहा? देखिए, पूरी रिपोर्ट…

  • भारत पर साइबर अटैक की तैयारी में है चीन

    भारत पर साइबर अटैक की तैयारी में है चीन

    भारत चीन सीमा पर सैनिको की जबरदस्त जमावड़ा है। धूल उड़ाती टैंक है और आसमान में गर्जना करती फाइटर जेट भी है। संगीन के साये में एक-एक इंच जमीन के लिए गुथ्थम-गुथ्था करते हमारे जांबाज सिपाही अब आर-पार के मूड में है और बार-बार विफल हो रही वार्ता, खतरे का संकेत भी है। ऐसे में सवाल उठता है कि युद्ध होगा क्या? आखिर ऐसा क्या हुआ कि चीन अचानक बिलबिला उठा। चीन के इसी बिलबिलाहट को डीकोड करता हमारा यह रिपोर्ट…

  • जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी : भूपाल

    जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी : भूपाल

    बिहार में बीजेपी पिछड़ा प्रकोष्ठ के प्रदेश प्रवक्ता भूपाल भारती का मानना है कि जनसंख्या के अनुपात में राजनीतिक हिस्सेदारी मिलनी चाहिए। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी में जातिवाद की जगह पर राष्ट्रवाद को अधिक तबज्जो दी जाती है। केकेएन लाइव के ‘’इनसे मिलिए’’ सेगमेंट में बीजेपी नेता भूपाल भारती ने बिहार की राजनीति पर बेबाकी से अपनी बातें रखी। ऑनलाइन इंटरव्यू के दौरान बीजेपी नेता ने आरजेडी के भविष्य को लेकर चौकाने वाला दावा किया। बिहार में शराबबंदी, विधि व्यवस्था और दलालीप्रथा समेत एलजेपी की भूमिका को लेकर और क्या कहा? देखिए, पूरा इंटरव्यू…

  • इस सप्‍ताह के कुछ मुद्दे । 30 June 2020

    इस सप्‍ताह के कुछ मुद्दे । 30 June 2020

    इस सेगमेंट में हम हाल के हुए कुछ बड़ी घटनाओं के बारे में बात करेंगे और उस पर साहित्यिक अंदाज़ में अपनी बात भी रखेंगे उम्मीद है की आपको यह सेगमेंट पसंद आएगा तो बिना वक्त को गंवाये सबसे पहले हम बात करते हैं…

  • बिहार में नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव

    बिहार में नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव

    इसी साल यानी वर्ष 2020 के 29 नवम्बर को बिहार विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। जाहिर है इससे पहले चुनाव होगा। दरअसल, होली बाद ही बिहार चुनावी मोड में आने को तैयार हो गया था। फरबरी में इसकी कशमकश दिखने लगा था। किंतु कोरोना ने सभी कुछ गड्डमड्ड करके रख दिया। हालांकि, लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरो के बिहार लौटने का  सिलसिला जैसे ही जोर पकड़ा कि सियासतदानो को मौका मिल गया। पक्ष हो या विपक्ष, इस मौका को लपकने की गरज से सभी दौर पड़े। फिर जो हुआ, किसी से छिपा नहीं है। अब सवाल उठता है कि इसका लाभ किसको मिलेगा? इससे भी बड़ा सवाल ये कि कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री… नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव? पड़ताल जरुरी है।  देखिए इस रिपोर्ट में…

  • तानाशाह के लिए वरदान होता है वर्ग संघर्ष

    तानाशाह के लिए वरदान होता है वर्ग संघर्ष

    प्रजातंत्र में  शासन सत्ता को प्राप्त करने के लिए व्यवस्था पर चोट करने की परंपरा रही है। कालांतर में यही परंपराएं तनाव की वजह बनी और समाजिक तानाबाना की खाई चौड़ी होती चली गई। राजनीतिक नफा नुकसान की गणित में उलझे हमारे सियासतदान इस कदर मदहोश हो गए कि उन्हें भविष्य का खतरा कभी दिखाई नहीं पड़ा। नि:संदेह क्षणिक काल के लिए इसका लाभ मिला। पर, वह समाजिक समीकरण को चीर लम्बित नुकसान पहुंचा गये। जहां भी ऐसा हुआ वहां की समाज को इसकी खामियाजा भी भुगतनना पड़ा है। जाने अनजाने में हम भारतवंशी भी इसी खतरे के मुहाने पर आकर खड़ें हो गएं है। क्योंकि, चोट खाकर जख्मी हुई व्यवस्था कालांतर में खुद को कमजोर और असहाय बना लेती है। यहीं से जन्म होता है तानाशाही व्यवस्था की। इसका दुष्परिणाम लम्बे कालखंड को कैसे प्रभावित करता है? देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • इंडो नेपाल सीमा विवाद की असली वजह

    इंडो नेपाल सीमा विवाद की असली वजह

    भारत और नेपाल के संबंधो को लेकर इन दिनो कुछ तल्खी आ गई है। इसकी वजह सीमा विवाद बताई जा रही है। बतादें कि नेपाल और भारत के बीच करीब 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी और खुली सीमा है। एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट की जरुरत नहीं है। दोनो देश के बीच सदियो से बेटी और रोटी का संबंध है। कभी सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। अलबत्ता चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद होता रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री के बयान के बाद भारत और नेपाल के बीच चली आ रही सदियों पुराने संबंधो को लेकर समीक्षा शुरू हो गई है। यह कुछ हद तक स्वभाविक भी है। सवाल उठता है कि नेपाल के प्रधानमंत्री ने ऐसा बयान क्यों दिया? इसको समझने के लिए भारत और नेपाल के बीच चली आ रही सदियों पुराने संबंधो को समझना होगा। विवाद के कारणो को समझना होगा और चीन की चाल को भी समझना होगा।