KKN गुरुग्राम डेस्क | प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ रैली, जिसे बिहार के राजनीतिक बदलाव के रूप में देखा जा रहा था, अब भाजपा के निशाने पर है। भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल ने इस रैली को फ्लॉप करार दिया है और दावा किया है कि रैली में दावा किए गए पांच लाख लोगों की संख्या से कहीं कम लोग गांधी मैदान पहुंचे। जायसवाल ने बताया कि रैली में केवल 20,000 से 30,000 लोग ही उपस्थित थे, जो इस आयोजन की असफलता का एक बड़ा प्रमाण है।
बीजेपी का आरोप: करोड़ों खर्च करने के बावजूद रैली में कम लोग पहुंचे
भाजपा नेता दिलीप जायसवाल ने प्रेस से बातचीत में कहा कि प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने बिहार में इस रैली के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपये खर्च किए थे, लेकिन इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उन्होंने दावा किया, “प्रशांत किशोर और उनकी टीम ने रैली को लेकर जो प्रचार किया, वह पूरी तरह से झूठा साबित हुआ। एक तरफ तो पांच लाख की भीड़ का दावा किया गया, जबकि गांधी मैदान में सिर्फ 20,000 से 30,000 लोग ही पहुंचे।”
इस टिप्पणी के साथ ही भाजपा ने सवाल उठाया है कि बिहार के लोगों ने किशोर के राजनीतिक अभियान को क्यों नजरअंदाज किया। जायसवाल ने यह भी कहा कि इस रैली के जरिए बिहार की जनता को प्रभावित करने की कोशिशें पूरी तरह से विफल रही हैं।
प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ रैली: एक राजनीतिक मोर्चा
प्रशांत किशोर, जो पहले चुनावी रणनीतिकार के तौर पर कई राज्यों में सफल रहे हैं, ने अपनी राजनीतिक यात्रा को ‘जन सुराज’ नामक आंदोलन के तहत बिहार से शुरू किया। उनका उद्देश्य बिहार की मौजूदा सरकार को चुनौती देना और एक नया राजनीतिक विकल्प पेश करना था। इस रैली के आयोजन का उद्देश्य बिहार के लोगों को यह विश्वास दिलाना था कि बिहार के लिए एक नया राजनीतिक बदलाव जरूरी है, लेकिन रैली में हुई कम उपस्थिति ने इस पहल को बुरी तरह से प्रभावित किया।
NDA की प्रतिक्रिया: रैली को बताया ‘फ्लॉप’
प्रशांत किशोर के अभियान को लेकर भाजपा और NDA के अन्य नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी। NDA के नेताओं ने इस रैली को ‘फ्लॉप’ करार दिया और कहा कि यह आयोजन सिर्फ प्रशांत किशोर के आत्मप्रचार का एक जरिया था। NDA के एक प्रवक्ता ने कहा, “अगर रैली में इतनी बड़ी संख्या में लोग शामिल होते तो बिहार की राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में यह एक बड़ा मोड़ होता। लेकिन रैली के कम लोग उपस्थित होने से साबित होता है कि बिहार के लोग किशोर के राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रभावित नहीं हैं।”
राजद की आलोचना: प्रशांत किशोर की रैली पर तंज
राजद (राष्ट्रीय जनता दल) भी प्रशांत किशोर के अभियान पर मजे ले रही है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्वीट कर कहा कि प्रशांत किशोर का अभियान सिर्फ प्रचार की रणनीति बन कर रह गया है। यादव ने कहा, “अगर प्रशांत किशोर को बिहार के लोगों की चिंता थी, तो उन्हें उनकी समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश करनी चाहिए थी, बजाय इसके कि वह लाखों रुपये खर्च कर एक फ्लॉप रैली आयोजित करें।”
राजद नेताओं ने यह भी कहा कि यह रैली बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ किशोर की व्यक्तिगत राजनीति का हिस्सा है, जो अब पूरी तरह से विफल हो चुकी है।
प्रशांत किशोर की राजनीति: क्या हो रहा है भविष्य?
प्रशांत किशोर के राजनीतिक कदमों को लेकर अब कई सवाल उठने लगे हैं। उनकी यह पहली बड़ी राजनीतिक पहल थी, और फिलहाल इसका परिणाम निराशाजनक रहा है। हालांकि, उनके पास चुनावी रणनीति का गहरा अनुभव है, लेकिन अब उन्हें यह साबित करना होगा कि वह सिर्फ एक चुनावी रणनीतिकार नहीं बल्कि बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक मजबूत नेता भी हो सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर प्रशांत किशोर को बिहार में अपनी जगह बनानी है, तो उन्हें बिहार की जनता से सीधे जुड़ने की आवश्यकता है। किशोर को यह दिखाना होगा कि उनका आंदोलन सिर्फ उनके व्यक्तिगत राजनीतिक फायदे के लिए नहीं है, बल्कि यह बिहार के लोगों के लिए वास्तविक बदलाव की दिशा में है।
भविष्य की राजनीति: प्रशांत किशोर को मिलेगा दूसरा मौका?
प्रशांत किशोर के लिए यह असफल रैली एक बडी चुनौती बन सकती है, लेकिन यह उनके राजनीतिक जीवन का अंत नहीं होगा। राजनीति में कई बार ऐसे उतार-चढ़ाव आते हैं, और इस असफलता को उनकी राजनीतिक यात्रा की आखिरी कड़ी के रूप में नहीं देखा जा सकता। अगर वे अपने आंदोलन को सही दिशा में ले जाने में सफल होते हैं, तो भविष्य में यह उन्हें एक मजबूत राजनेता के रूप में स्थापित कर सकता है।
बीजेपी का आकलन: रैली से भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ा
भाजपा नेताओं ने भी यह स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी के लिए प्रशांत किशोर की रैली से कोई खास फर्क नहीं पड़ा। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने कहा कि बिहार में उनकी पार्टी की स्थिति मजबूत है और किसी भी विरोधी को उनके खिलाफ खड़ा करने के प्रयास विफल रहेंगे। भाजपा का दावा है कि उनकी पार्टी बिहार की जनता के बीच हमेशा अपनी नीतियों के जरिए लोकप्रिय रही है, और वे किसी भी राजनीतिक चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं।
हालांकि प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ रैली को भाजपा और राजद से तीव्र आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या बिहार में राजनीतिक बदलाव संभव है। प्रशांत किशोर के लिए यह केवल एक चरण है, और उनका राजनीतिक सफर अभी पूरा नहीं हुआ है। अगर वह बिहार के लोगों के मुद्दों से जुड़ने और उनके विश्वास को जीतने में सफल होते हैं, तो शायद उनकी राजनीति का भविष्य उज्जवल हो सकता है।
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