KKN गुरुग्राम डेस्क | उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के श्याम नगर इलाके में इन दिनों सन्नाटा पसरा है। 29 वर्षीय सीमेंट कारोबारी शुभम द्विवेदी की पहलगाम आतंकी हमले में मौत ने पूरे मोहल्ले को झकझोर कर रख दिया है। शुभम के घर और परिवार में अचानक आई इस त्रासदी ने हर किसी की आंखों में आंसू भर दिए हैं।
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सबसे ज़्यादा गहरा सदमा पहुंचा है शुभम की 85 वर्षीय दादी विमला देवी को। जो आज भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनका पोता अब इस दुनिया में नहीं है।
हर दिन कई बार पोते के कमरे में चली जाती हैं दादी
विमला देवी हर दिन कई बार अनायास ही शुभम के कमरे में चली जाती हैं। वह उस कुर्सी को निहारती हैं, जहां शुभम बैठकर उनसे कहानियां सुना करता था। दीवार पर टंगी शुभम की तस्वीर अब उन्हें जीवन की सबसे बड़ी पीड़ा देती है।
“जब भी कहती थी कि मेरी ज़िंदगी में शादी कर लो, तो कहता था – ऐसा मत कहो दादी। कौन जानता था कि वो मुझसे पहले चला जाएगा।”
शुभम की अंतिम विदाई में शामिल हुई पत्नी एशान्या, पहना उनकी पसंदीदा शर्ट
शुभम का अंतिम संस्कार गुरुवार को उनके पैतृक गांव में किया गया। अंतिम यात्रा में शामिल होने आईं उनकी पत्नी एशान्या ने उनकी पसंदीदा स्काई ब्लू शर्ट पहनकर उन्हें विदाई दी।
केवल दो महीने पहले शुभम और एशान्या की शादी हुई थी, और अब एशान्या की मांग सूनी हो चुकी है।
“हमने साथ जीवन की नई शुरुआत की थी, लेकिन इतनी जल्दी सब खत्म हो जाएगा, ये सोचा भी नहीं था।” – एशान्या
दादी का दर्द: शादी के लिए मनाती रहीं, अब बेटे जैसा पोता चला गया
विमला देवी बताती हैं कि वह अक्सर शुभम से कहती थीं – “मेरे जीते जी शादी कर लो बेटा।” शुभम हंसकर टाल देता था।
“अब बस उसकी यादें हैं और उसका खाली कमरा। कभी-कभी लगता है अभी दरवाज़ा खुलेगा और शुभम हंसता हुआ आ जाएगा।”
वह शुभम के साथ बिताए हर पल को याद करती हैं – साथ में भोजन करना, बग़ीचे में बैठकर बातें करना, और रोज़ की हल्की-फुल्की हँसी।
श्याम नगर के लोग भी दुखी, कहते हैं – बहुत ही नेक और मेहनती लड़का था
कानपुर के श्याम नगर में रहने वाले लोग शुभम के व्यवहार और उनके काम की तारीफ़ करते नहीं थकते।
“शुभम बहुत ही मेहनती और ईमानदार लड़का था। छोटा बिजनेस था, लेकिन बड़ा सपना था उसका।” – राकेश तिवारी, पड़ोसी
उनका सीमेंट का व्यापार धीरे-धीरे बढ़ रहा था। कम उम्र में ही उन्होंने क्षेत्र में पहचान बना ली थी।
पहलगाम आतंकी हमला: एक और निर्दोष जान चली गई
शुभम जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में व्यापारिक दौरे पर गए थे, जहां आतंकवादियों ने नागरिकों को निशाना बनाकर हमला कर दिया। इस हमले में कई लोगों की मौत हुई, और कई घायल हुए।
शुभम भी उसी हमले में मारे गए। खबर सुनते ही पूरे परिवार पर जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
दादी की सरकार से अपील – खतरनाक जगहों पर आम लोगों को ना भेजा जाए
अपने आंसुओं को मुश्किल से रोकते हुए, विमला देवी ने सरकार से गुहार लगाई:
“ऐसी खतरनाक जगहों पर आम लोगों को जाने की इजाज़त क्यों दी जाती है? हम जैसे आम परिवारों के बच्चे ऐसे हमलों में क्यों मारे जाएं?”
उनका यह सवाल केवल एक दादी का नहीं, बल्कि उन सैकड़ों परिवारों की आवाज़ है जो आतंकवाद की आग में अपनों को खो चुके हैं।
क्या देश में सुरक्षित नहीं हैं हमारे नागरिक?
पहलगाम जैसे पर्यटन स्थलों को आम नागरिकों और कारोबारियों के लिए सुरक्षित बनाना ज़रूरी है।
आज सवाल उठते हैं:
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क्या सुरक्षा एजेंसियां सतर्क हैं?
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क्या खुफिया सूचना पर्याप्त है?
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क्या आतंकियों को रोकने के लिए ठोस रणनीति है?
जब तक इन सवालों का जवाब नहीं मिलेगा, तब तक न जाने कितने और शुभम इस दुनिया से यूं ही चले जाएंगे।
शुभम द्विवेदी सिर्फ एक व्यक्ति नहीं थे, वह एक परिवार की उम्मीद थे, एक दादी की मुस्कान थे, एक पत्नी का सपना थे। उनकी कहानी उन हजारों युवाओं जैसी है जो मेहनत करके जीवन संवारना चाहते हैं, लेकिन आतंकवाद उनके सपनों को निगल जाता है।