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  • भारत के लिए चीन की खतरनाक साजिश

    भारत के लिए चीन की खतरनाक साजिश

    गैर परंपरागत तरीके से भारत को कमजोर करना चाहता है चीन

    KKN न्यूज ब्यूरो। धूल उड़ाती टैंक और आसमान में गर्जना करती फाइटर जेट। संगीन के साये में एक-एक इंच जमीन और अस्मिता की रक्षा के लिए गुथ्थम-गुथ्था करते हमारे जांबाज। जो, अपनी आहूति देने के लिए हरपल तैयार खड़े है। दरअसल, यह दृश्य है भारत-चीन सीमा की। सिपाही आर-पार के मूड में है। सियासतदान नफा-नुकसान तलाश रहे है। बार्ता बार-बार विफल हो रही है। सीमा पर बढ़ता तनाव खतरे का संकेत देने लगा है। ऐसे में सवाल उठता है कि युद्ध होगा क्या? आखिर ऐसा क्या हुआ कि चीन अचानक बिलबिला उठा? ऐसे और भी कई सवाल है और इसी सवाल का जवाब तलाशने की हमने कोशिश की है।

    अनुच्छेद 370 से जुड़ा है चीन की बिलबिलाहट

    दरअसल, जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से ही चीन बिलबिलाया हुआ है। क्योंकि, अनुच्छेद 370 के हटते ही चीन के कब्जे वाला अक्साई चीन का इलाका पर अब भारत का दावा प्रवल हो गया है। कहते है कि अक्साई चीन यदि चीन के हाथो से निकल गया तो शीनजियांग में उईगर मुसलमानो को काबू में रखना चीन के लिए कठिन हो जायेगा। दूसरा ये कि यदि भारत ने पीओके पर कब्जा कर लिया तो चीन के  सीपीईसी प्रोजेक्ट को अरबो का नुकसान हो सकता है। इससे बचने के लिए चीन की सेना भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए रखना चाहती है और गलवान की घटना को इस कड़ी से जोड़ कर देखा जाने लगा है। दुसरा बड़ा कारण कोरोना है। कोरोना वायरस को लेकर चीन इन दिनो दुनिया के निशाने पर है। इसका असर चीन के घरेलू राजनीति पर भी है। सत्ता पर शीजिंगपिंग की पकड़ कमजोर पड़ने लगी है। लिहाजा, एक रणनीति के तहत अपनी घरेलू राजनीति के दबाव से उबरने के लिए जान बूझ कर चीन ने सीमा पर तनाव पैदा करके लोगो का ध्यान बाटना चाह रही हैं।

    भारत की सीमा सड़क परियोजना

    भारत की सीमा सड़क परियोजना चीन के गले की हड्डी बन गई है। आजादी के सात दशक बाद पहली बार सीमा पर भारत की जबरदस्त सक्रियाता से चीन सकते में है। लिहाजा, इसको चीन के नाराजगी की सबसे बड़ा और शायद असली कारण बताया जा रहा है। दरअसल, भारत सरकार ने सीमा पर सामरिक महत्व के 73 सड़को के निर्माण का कर्य आरंभ कर दिया है।

     

    इससे चीन की विस्तारवादी नीति को भारत के सीमा पर करारा तमाचा लगा है। दरअसल, यही वह बड़ी वजह है कि जिसकी वजह से चीन बिलबिला उठा है। इस बीच चीन से चल रही तानातानी के बीच में ही केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग यानी CPWD और सीमा सड़क संगठन यानी BRO के साथ बैठक करके सीमा पर सामरिक महत्व के 32 सड़को के निर्माण को मंजूरी दे दी है। इसी के साथ चीन की सीमा से सटे इलाको में सामरिक महत्व के 73 सड़को के निर्माण का काम शुरू हो चुका है। इनमें से 12 सड़कों का निर्माण CPWD और 61 सड़कों का निर्माण BRO कर रहा है। चीन के बौखलाहट की यह सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। यहां आपको बता देना जरुरी है कि सीमा पर बनने वाली सभी सड़को की देख-रेख का ज़िम्मा केन्द्रीय गृह मंत्रालय करती है। यानी गृह मंत्रालय के अनुमोदन और प्रर्यवेक्षण में ही सीमा पर सड़क बनाया जाता है। जानकारी के मुताबिक इसमें से कई पर काम फाइनल स्टेज में है। बताया जा रहा हैं कि इन सड़को के बन जाने से सैनिक उपकरण के साथ भारतीय सेना की सीमा तक पहुंच आसान हो जायेगी। लिहाजा, चीन इन तमाम सड़को के निर्माण कार्य को लेकर बेवजह  का अडंगा खड़ा कर रहा है और इन्हीं कारणो से चीन बौखलाया हुआ है। क्योंकि, चीन को अच्छे से मालुम है कि इन सड़को के बन जाने के बाद उसकी विस्तारवादी नीति को भारत की सीमा पर लागू करना मुश्किल हो जायेगा। यहां आपको जान लेना जरुरी है कि चीन अपने इलाके में सीमा से सटे सड़क का पहले ही निर्माण कर चुका है। यही काम अब भारत कर रहा है। तो चीन बौखला गया है। सड़क निर्माण के इस प्रोजेकट में लद्दाख वैली में बनाए जाने वाले सामरिक महत्व के सड़क भी शामिल हैं। इतना ही नहीं बल्कि, सड़कों के अलावा इन सीमावर्ती इलाको में सरकार ने ऊर्जा, स्वास्थ्य और शिक्षा के विकास के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने का काम भी शुरू कर दिया है।

     470 किलोमीटर लम्बी सड़क तैयार

    भारत- चीन सीमा पर सड़कों के निर्माण के लिए पत्थर हटाने का काम वर्ष 2017 में ही शुरू हो चुका था। इस बीच करीब 470 किलोमीटर में काम भी पूरा हो चुका है। इसी प्रकार 380 किलोमीटर में सड़क के लिए जमीन को समतल करने का काम पूरा हो चुका है। वर्ष 2017 से पहले के एक दशक में 170 किलोमीटर में चल रहे सड़क निर्माण कार्य में भी अब तेजी आ गई है। सीमा की छोटी बड़़ी सभी सड़को को मिला कर देखा जाए तो वर्ष 2014 के बाद सीमा पर 4 हजार 764 छोटी बड़ी सड़कों का निर्माण हुआ है। हालांकि, यहां पहले से भी 3 हजार 160 किलोमीटर की सड़के मौजूद थीं। दरअसल, यही वह कारण है, जिससे चीन बौखला गया है।

       टनल और बजट से घबराया चीन

    टनल निर्माण की बात करें तो वर्ष 2014 से लेकर अभी तक सीमा पर आधा दर्जन टनल का निर्माण हो चुका है। इससे पहले यहां मात्र एक टनल हुआ करता था। केन्द्र की सरकार ने सड़क प्रोजेक्ट के बजट में जबरदस्त इज़ाफा किया है। अब इस पर भी गौर करिए। साल 2008 से लेकर साल 2016 तक सीमा पर सड़क निर्माण हेतु अनुमानित बजट 4 हजार 600 करोड़ रुपये हुआ करता था। जबकि वर्ष 2018 में इसको बढ़ा कर 5 हजार 450 करोड़ कर दिया गया। वर्ष 2019 में इसको बढ़ा कर 6 हजार 700 करोड़ और वर्ष 2020-2021 के लिए इसको बढ़ा कर 11 हजार 800 करोड़ रूपए कर दिया गया है। जानकार मानते है कि इन सड़को के बन जाने के बाद सीमा पर चीन के चालबाजी को काउंटर करने में भारत सक्षम हो जायेगा और यही बात अब चीन को चूभने लगा है।

    अनिश्चितता की भंवर में फंसा सीपीईसी

    जानकार मानते है कि चीन के बौखलाहट का बड़ा कारण सीपीईसी यानी चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर है। दरअसल, यह प्रोजेक्ट चीन की महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट है। यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन जैसे विवादित इलाको से होकर गुजरता है। भारत इस प्रोजेक्ट का शुरू से ही विरोध करता रहा है। किंतु, चीन ने भारत के विरोध को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। इस बीच जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद पीओके और अक्साई चीन पर भारत का दावा प्रवल हो गया और यही बात अब चीन को चूभने लगा है। क्योंकि सीपीईसी का पूरा गलियारा पाक अधिकृत कश्मीर और अक्साई चीन से होकर गुजरता है। यह पूरा प्रोजेक्ट मुख्य तौर पर यह एक हाइवे और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है और यह चीन के काशगर को पाकिस्तान के ग्वारदर से जोड़ता है। आपको बतादें कि चीन के इस महत्वाकांक्षी सीपीईसी प्रोजेक्ट की कुल लागत 46 अरब डॉलर यानी करीब 31 लाख करोड़ रुपए की है। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद पीओके और अक्साई चीन पर कानूनी तौर पर भारत का दावा प्रवल हो गया है। यदि भारत ने पीओके पर कब्जा कर लिया तो चीन के इस महत्वाकांक्षी सीपीईसी प्रोजेक्ट को 31 लाख करोड़ रुपये का भारी  नुकसान हो जायेगा। नतीजा, इससे बचने के लिए चीन की सरकार ने भारत को कमजोर करने के लिए भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना शुरू कर दिया है और गलवान का विवाद इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। हालिया वर्षो में भारतीय सेना ने आक्रामक रूख अख्तियार कर लिया है। इसको देख कर चीन हैरान है। डोकलाम से लेकर गलवान तक। भारतीय फौज के आक्रामक रूख को देख चीन हैरान है।

    चीन कर सकता है जैविक हमला

    तानातानी के बीच चीन के साथ कॉनवेंसनल वार या एटोमिक वार होने की सम्भावना बहुत ही कम है। पर, हो सकता है कि लिमिट वार हो जाये। इसके लिए भारतीय सेना मुस्तैद है और चीन को मुहकी खानी पड़ेगी। इसमें कोई दो राय नहीं है। पर, चीन के वायोलॉजिकल वेपन से खतरा हो सकता है। क्योंकि, चीन के पास प्रयाप्त वायोलॉजिकल वेपन है और उस पर यकीन करना आत्मघाती हो सकता है। एक खतरा और है। और वह है साइवर अटैक का। दरअसल, कई मोर्चे पर मुंहगी खाने के बाद चीन ने बड़े पैमाने पर साइवर अटैक करने की योजना बना ली है और कुछ क्षेत्रो में यह हमला शुरू भी हो चुका है। आने वाले दिनो में इसमें और तेजी आने के पूरे आसार है। सीमा पर हालात युद्ध के जैसा है। पर मुझे लगता है कि युद्ध नहीं होगा। अलबत्ता एक दो रोज की झड़प हो जाये या कोई लिमिट वार हो जाये। पर, युद्ध नहीं होगा। क्योंकि, भारत से पांच अरब डॉलर से अधिक का कारोबार करने वाला चीन युद्ध का जोखिम नहीं उठा सकता है। यानी युद्ध की सम्भवना बहुत कम है। अब एक हकीकत और समझिए। दरअसल, चीन ने पिछले 16 वर्षों में भारत में जितना निवेश किया है। उसका 77 फीसदी निवेश पिछले पांच वर्षो में हुआ है। चीन ने अपने कुल निवेश का करीब 59 फीसदी हिस्सा अकेले मोटर और वाहन उद्योग में किया है। इसी प्रकार 11 फीसदी धातु उद्योग में और 7 फीसदी सर्विस सेक्टर में निवेश किया है। मोदी सरकार ने मेक इन इंडिया को सफल बनाने के लिए आयात को महंगा कर दिया है। सरकार ने मोबाइल कंपोनेंट पर 30 फीसदी और तैयार मोबाइल पर 10 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया है। इसके बाद चीनी की कई कंपनिया भारत में यूनिट लगा चुकी है। इसके अतिरिक्त चीन में उत्पादन लागत की तुलना में भारत का बाजार सस्ता होने की वजह से बड़ी संख्या में चीन के उद्योगपति अब भारत में निवेश करने लगे हैं। ऐसे हालात में चीन द्वारा भारत से युद्ध की बात करना, कपोल कल्पना नहीं, तो और क्या है? दूसरी बड़ी वजह ये कि चीन अभी दक्षिण चीन सागर में अमेरिका से उलझा हुआ है। चीन को अपने कई पड़ोसी देशों से सीमा विवाद है और हालात तनावपूर्ण बना हुआ है। ऐसे में भारत के साथ युद्ध की हालत में अपनी पूरी सैन्य क्षमता झोकना चीन के लिए मुश्किल हो जायेगा। एक बात और है। वह ये कि कोरोनाकाल में चीन के राष्ट्रपति शीजिनपिंग की छवि को बड़ा झटका लगा है। चीन पर दुनिया का विश्वास पहले से कम हुआ है। ऐसे में युद्ध हो गया तो पूरे विश्व में चीन की छवि धूमिल हो जायेगी। ऐसे में एशिया और अफ्रीका के कई देशों में आर्थिक साझेदारी करना चीन को मुश्किल हो जाएगा। यानी कुल मिला कर कहा जा सकता है कि बर्चश्व की धौसपट्टी चाहे जितना लम्बा हो जाये। पर, युद्ध के आसार बहुत ही कम है।

    युद्ध होने पर कमजोर पड़ेगा चीन

    हालात के दूसरे पहलू पर भी विचार कर लेते है। यानी, यदि युद्ध हो गया, तो क्या होगा? तुलनात्मक तौर पर भारत की सेना चीन के समक्ष भले ही कमजोर दिखता है। परंतु, वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है। चीनी की सेना 1969 में वियतनाम युद्ध हारने के बाद किसी युद्ध में भाग नहीं लिया है। जबकि भारतीय सेना हिमालय की सरहदों में लगातार संघर्ष करती रही है। दूसरा ये कि चीन से सटी बॉर्डर की भौगोलिक स्थिति भारत के पक्ष में है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि युद्ध होने पर चीन के विमानों को तिब्बत के ऊंचे पठार से उड़ान भरनी होगी। वहां ऑक्सिजन की बेहद कमी है। ऐसे में चीन के विमानों को फूललेंथ विस्फोटक और ईंधन के साथ उड़ान भरना मुश्किल होगा। सेटेलाइट से प्राप्त तस्वीरो से पता चला है कि युद्ध की स्थिति में चीन ने अपने जे-11 और जे-10 विमान को चोंगडू से उड़ान भरने के लिए तैयार कर दिया है। पर इसको क्षमता से कम विस्फोटक लेकर उड़ान भरना होगा। क्योंकि, वहां ऑक्सिजन की बेहद कमी है। जबकि, भारत ने असम के तेजपुर में सुखोई 30 को अग्रीम मोर्चा पर तैनात कर दिया है। अत्याधुनिक राफेल भारत को प्राप्त हो चुका है। युद्ध की स्थिति में विमान यहां से फूललेंथ के साथ उड़ान भर सकता है। बेशक, चीन के पास भारत से अधिक लड़ाकू विमान हैं। लेकिन भारत के सुखोई 30 एमआई का चीन के पास कोई तोड़ नहीं है। चीन के पास सुखोई 30 एमकेएम है। अब इस दोनो का फर्क समझिए। भारत के पास मौजूद एमआई एक साथ 30 निशाना लगा सकता है। जबकि, चीन के पास मौजूद एमकेएम एक साथ सिर्फ दो निशाना ही लगा सकता है। यानी भारत की सेना उतना कमजोर नहीं है। जितना की हमे बताया जा रहा है। यदि बड़े पैमाने पर युद्ध हो गया तब क्या होगा? ऐसे में मिशइल टेक्नोलॉजी पर गौर करना होगा। भारत ने ब्रह्मोस मिशाइल पर भरोसा जताया है। सम्भव है कि सबसे पहले इसका इस्तेमाल हो जाये। यह 952 मीटर प्रति सेकेण्ड की रफ्तार से चल कर चीन के रडारों को चकमा देने और सटीक निशाना लगाने में पूरी तरीके से सक्षम है। ब्रह्मोस का उत्पादन भारत में ही होता है। यानी युद्ध के दौरान इसके सप्लाई में कोई अरचन नहीं होगी। दूसरी ओर चीन के पास मौजूद बैलेस्टिक मिसाइल DF-11, DF-15 और  DF-21 बेहद ही शक्तिशाली मिशाइल है। फिलहाल भारत के पास इसका कोई तोड़ नहीं है। चीन की ये मिशाइलें भारत के किसी भी शहरों को तबाह कर सकता है। हालांकि इसके जवाब में भारत के पास मौजूद अग्नी मिशाइल बीजिंग से लेकर चीन के अधिकांश शहर को तबाह करने की क्षमता रखता है।

       समुद्री क्षेत्र में तैयार है भारत

    समुद्री क्षेत्र में भारत की स्थिति काफी मजबूत है। हिंद महासागर में भारतीय नौसेना ने यूरोप, मध्यपूर्व और अफ्रीका के साथ मिल कर चीन के रास्ते की नाकेबंदी करने का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया है। बतातें चलें कि चीन का कारीब 87 फीसदी कच्चा तेल इसी रास्ते से होकर आयात होता है। यदि भारत की यह रणनीति कारगर साबित हुआ तो चीन को घुटने के बल पर आना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त भारत के पास स्पेशल फ्रंटियर फोर्स नाम का एक बेहद ही खतरनाक लड़ाकू दस्ता है। यह तिब्बत में घुसकर चीन की रणनीति को बिगाड़ देने की माद्दा रखता है। कुल मिला कर कहा जा सकता है कि आंकड़ों में कमजोर दिखने के बावजूद भारत की स्थिति बेहद ही मजबूत है। भारत ने एक साथ दो मोर्चा पर युद्ध लड़ने की तैयारी पूरी कर ली है। क्योंकि, यह माना जा रहा है कि यदि चीन के साथ युद्ध हुआ तो पाकिस्तान चुप नहीं बैठेगा। भारत ने इसकी सभी तैयारी पूरी कर ली है। कहतें है कि युद्ध सिर्फ हथियारों से नहीं जीता जा सकता है। बल्कि, इसके लिए बुलंद हौसला और राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरुरत होता है। गलवान की झड़प के बाद भारतीय फौज का हौसला सातवें आसमान पर है। रही बात राजनीतिक इच्छाशक्ति की, तो भारत एक  प्रजातांत्रिक देश है और प्रजातंत्र में आरोप प्रत्यारोप से ही शासन सत्ता की शक्ति प्रखर होती है। लिहाजा, इस वक्त दोनो शक्ति हमारे पास है। ऐसे में परिणाम को लेकर बेवजह चिंता करने की कोई जरुरत नहीं है।

  • तानाशाह के लिए वरदान होता है वर्ग संघर्ष

    तानाशाह के लिए वरदान होता है वर्ग संघर्ष

    प्रजातंत्र में  शासन सत्ता को प्राप्त करने के लिए व्यवस्था पर चोट करने की परंपरा रही है। कालांतर में यही परंपराएं तनाव की वजह बनी और समाजिक तानाबाना की खाई चौड़ी होती चली गई। राजनीतिक नफा नुकसान की गणित में उलझे हमारे सियासतदान इस कदर मदहोश हो गए कि उन्हें भविष्य का खतरा कभी दिखाई नहीं पड़ा। नि:संदेह क्षणिक काल के लिए इसका लाभ मिला। पर, वह समाजिक समीकरण को चीर लम्बित नुकसान पहुंचा गये। जहां भी ऐसा हुआ वहां की समाज को इसकी खामियाजा भी भुगतनना पड़ा है। जाने अनजाने में हम भारतवंशी भी इसी खतरे के मुहाने पर आकर खड़ें हो गएं है। क्योंकि, चोट खाकर जख्मी हुई व्यवस्था कालांतर में खुद को कमजोर और असहाय बना लेती है। यहीं से जन्म होता है तानाशाही व्यवस्था की। इसका दुष्परिणाम लम्बे कालखंड को कैसे प्रभावित करता है? देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • चीन की चालबाजी का कैसे शिकार हो गया तिब्बत

    चीन की चालबाजी का कैसे शिकार हो गया तिब्बत

    सैन्य मदद के नाम पर तिब्बत में घुसा चीन

    KKN न्यूज ब्यूरो। कहतें हैं आदमी गलत हो, तो उसे अपना दोस्त नही बनाना चाहिए और नाही उससे कोई मदद ही स्वीकार करना चाहिए। क्योंकि, कालांतर में इससे आपका नुकसान हो जायेगा। इतिहास के पन्नो में झाके तो तिब्बत इसका ज्वलंत मिशाल के रूप में दिख जायेगा। बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि कभी तिब्बत ने, चीन से अपनी रक्षा के लिए सैन्य मदद मांगी थी। चीन ने मदद भी किया। लेकिन, बाद में धोखे से चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया। तिब्बत पर धोखे से कब्जा करने के बाद चालाक चीन की निगाहें अब भारत और नेपाल की सीमा पर लगी हुई है। चीन एक ऐसा देश है जो आज भी अपनी विस्तारवादी नीति पर काम कर रहा है। अब वह भारत के अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, भूटान और लद्दाख पर अपना दावा ठोकता रहा है। आने वाले दिनो में नेपाल का भी यहीं हश्र होने वाला है।

    दो की लड़ाई में तीसरे को लाभ

    दरअसल, हुआ यें कि 19वीं सदी के आरंभिक वर्षो में तिब्बत और नेपाल के बीच अक्सर युद्ध होने लगा था और हर बार युद्ध में तिब्बत को हार का सामना करना पड़ रहा था। लिहाजा, नेपाल ने हर्जाने के तौर पर तिब्बत को प्रत्येक वर्ष 5 हजार नेपाली रुपया बतौर जुर्माना देने की शर्त पर हस्ताक्षर करा लिया। इससे आहत होकर तिब्बत के शासक हर्जाने की अदायगी से बचने के लिए चीन से सैन्य सहायता की मांग कर दी। मौकापरस्त चीन ने मदद की भी। चीन की मदद के बाद तिब्बत को हर्जाने से छुटकारा तो मिल गया। लेकिन 1906-7 ईस्वी में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग, ग्याड्से समेत गरटोक में अपनी चौकियां स्थापित कर लीं। जानकार मानते है कि तिब्बत की अपनी ही गलती उसके गुलामी का कारण बन गया। कहतें हैं कि चीन की सेना ने यहां पर तिब्बती लोगों का शोषण शुरू कर दिया और आखिर में वहां के प्रशासक दलाई लामा को अपनी जान बचाकर तिब्बत से भागना पड़ा। जो, आज भारत में शरण लिए हुएं हैं।

    ऐसे हुआ चीन का कब्जा

    सन 1933 ईस्वी में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद आउटर तिब्बत धीरे-धीरे चीन के घेरे में आने लगा था। इस बीच 14वें दलाई लामा ने 1940 ईस्वी में शासन का भार सम्भाल लिया। वर्ष 1950 ईस्वी में पंछेण लामा के चुनाव को लेकर दोनों देशों में शक्ति प्रदर्शन की नौबत आ गई और चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। वर्ष 1951 की संधि के अनुसार साम्यवादी चीन के प्रशासन में इनर तिब्बत को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी थीं। यह आग वर्ष 1956 एवं 1959 ईस्वी में भड़क उठी। लेकिन बल प्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। चीन द्वारा चलाए गए दमन चक्र से बचकर किसी प्रकार दलाई लामा नेपाल से होते हुए भारत पहुंच गये और आज भी शरणार्थी बन कर भारत में रह रहे है। मौजूदा समय में सर्वतोभावेन पंछेण लामा तिब्बत में नाममात्र के प्रशासक हैं।

     

    गौरवशाली इतिहास

    कहतें हैं कि मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहां बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हो गया था। जानकार मानते हैं कि 1013 ई. में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई. में दीपंकर श्रीज्ञान तिब्बत पहुंचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। बहरहाल, हालात करबट ले चुका है और यदि किसी दिन तिब्बत हमेशा के लिए चीनियों का क्षेत्र बन गया तो यह केवल तिब्बत का अंत नही, बल्कि भारत के लिए भी एक स्थायी खतरा होगा। पिछले दिनों चीन ने तिब्बत में दुनिया के सबसे उँचे रेलमार्ग का निर्माण करके न केवल तिब्बत पर अपनी पकड मजबूत कर ली है। बल्कि, उसने तिब्बत के खनिज पदार्थो के दोहन का भरपूर अवसर भी अपने पक्ष में कर लिया है। इससे चीन की सामरिक शक्ति में वृद्वि होगी। यह भारत के लिए चिन्ता का कारण बन सकता है।

    आणविक कूड़ादान

    तिब्बत जैसा शांतिप्रिय देश आज चीन के सैन्यीकरण का मुख्य अडडा बन चुका है। जिस देश को दुनिया की उजली, स्वच्छ और सफेद छत माना जाता था, आज वह आणविक रेडियोधर्मी कचरा फेंकने वाला कूड़ा दान बन कर रह गया है। नतीजा, यहां से निकलने वाली नदियो का जल धीरे- धीरे भयानक रूप से दूषित होता जा रहा है। बतातें चलें कि ये नदियाँ आक्सस, सिन्धु, ब्रहमपुत्र, इरावदी आदि है, जो दक्षिणी एशिया के अनेक देशों में बहती है, जिनमें भारत और बांग्लादेश जैसे घनी आबादी वाले देश शामिल हैं। अगर हम अतीत में लौटते हैं तो कई रोचक जानकारियां सामने आती हैं। आपको शायद यह जानकारी नहीं होगी कि तिब्बत एक विशाल साम्राज्य हुआ करता था, जो सातवीं सदी में विकसित हुआ था। उन दिनों सेन गैम्पों तिब्बत का शासक हुआ करता था। यह साम्राज्य उत्तर में तुर्किस्तान से लेकर पश्चिम में मध्य एशिया तक फैला था। सन 763 ईसवी में तिब्बतियों ने चीन की तत्कालीन राजधानी चांग आन, जिसे आज सियान के नाम से जानतें हैं, इसको अपने अधीन कर लिया था। ढाई सौ वर्षो तक यही स्थिति बनी रही थी।

    मंगोल का कब्जा

    कहतें हैं कि दसवीं सदी में तिब्बत साम्राज्य का पतन हो गया और चीन ने अपना स्वतंत्र स्तित्व कायम कर ली। चीनियों का यह दावा कि तिब्बत हमेशा चीन का हिस्सा रहा है। दरअसल, यह उन थोड़े से वर्षो से निकाला गया है, जब दोनो देश मंगोल साम्राज्य का हिस्सा हुआ करतें थे। जानकार बतातें हैं कि बारहवीं सदी में मंगोलो ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया था। 1207 ईसवी में तिब्बत, मंगलो के अधीन हुआ और 1280 ईस्वी के आसपास मंगोलो ने चीन को अपने अधीन कर लिया। सिर्फ यही एक समय था, जब तिब्बत और चीन एक साथ मंगोल साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। अब अगर चीन इस आधार पर तिब्बत पर अपने अधिकार का दावा करता है। तो, क्या भारत को भी इसी नाते म्यंमार, आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड और हांगकांग पर अपना दावा करना चाहिए? क्योंकि ये सभी कभी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे?

    बुद्ध मठो को डायनामाइट से उड़ाया

    आपके लिए यह जानना जरुरी है कि चीनियों के आने के पहले 1950 ईसवी तक तिब्बत में 6 हजार मठ और मंदिर थे और इसमें करीब 6 लाख भिक्षु निवास करते थे। 1979 ईसवी में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि उनमें से अधिकाशं भिक्षु और भिक्षुणियां या तो मार दिए गये या वे लापता हो चुकें हैं। अब मात्र 60 मठ बचे है। उनमें से भी अधिकांश नष्ट होने के कगार पर है। चीनियों ने योजनाबद्व तरीके से मठ और मंदिरों को डायनामाइट के विस्फोट से नष्ट कर दिया है। किन्तु इसके पहले चीनियो ने मठों से बेशकीमती धार्मिक महत्व की कलाकृति, प्राचीन दुर्लभ पाण्डुलिपि, प्राचीन मूर्ति एवं अमूल्य प्राचीन थंका चित्रों को वहां से निकालकर अन्तरराष्ट्रीय बाजार में, अरबों डालर में बेच कर मोटी कमाई कर ली है।

    खनिज संपदा पर कब्जा

    चीन ने तिब्बत में पायी जानेवाली खनिज सम्पदा पर भी कब्जा कर लिया है। बतातें चलें कि यहां बोरेक्स, क्रोमियम, कोबाल्ट, कोयला, तांबा, हीरा, सोना, ग्रेफाइट, अयस्क, जेड पत्थर, र्लाड, मैग्नीशियम, पारा, निकल, प्राकृतिक गैस, तेल, आयोडिन, रेडियम, पेट्रोलियम, चाँदी, टगस्टन, टिटानियम, सूरेनियम और जस्ता इत्यादि प्रमुख रूप से पाया जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तरी तिब्बत में कास्य प्रचुर मात्रा में है। से सारे खनिज धरोहर पूरी दुनिया के ज्ञात स्त्रोतों से प्राप्त होंने वाले खनिजो पदार्थो का तकरीबन 50 प्रतिशत से भी ज्यादा बताया जा रहा है। इतना ही नही बल्कि, चीन ने तिब्बत के जंगलों की अंधाधुध कटाई करके अरबो डालर की कमाई कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार तिब्बत के 70 प्रतिशत जंगल काटे जा चुके है। चीनियो ने तिब्बत के कृषि प्रणाली को घ्वस्त कर दिया है। नतीजा, पिछले दशक में लगभग तीन लाख तिब्बती भूख से मर गये। चीनियों ने तिब्बत के लोपनोर इलाके में बड़े पैमाने पर आणविक परीक्षण किये है। इसके परिणामस्वरुप लोपनोर में रहने वाले अधिकांश लोग घातक रेडियशन की चपेट में आकर तड़प- तड़प कर मौत की आगोश में समा गये। वही अधिकांश लोगों जान बचा कर वहां से विस्थापित करने को विवश हो गयें हैं।

    क्या करे भारत

    अन्तराष्ट्रीय मामलो के जानकार मानतें हैं कि तिब्बत, चीन का दुखता हुआ नब्ज है और समय आ गया है कि भारत को इस नब्ज पर हाथ डाल देना चाहिए। जिस प्रकार से डोकलाम को लेकर पूर्व में हुए समझौते से चीन मुकर रहा है। ठीक उसी प्रकार भारत सरकार को भी तिब्बत नीति पर पुर्नविचार करने का वक्त आ गया है।

  • इंडो नेपाल सीमा विवाद की असली वजह

    इंडो नेपाल सीमा विवाद की असली वजह

    भारत और नेपाल के संबंधो को लेकर इन दिनो कुछ तल्खी आ गई है। इसकी वजह सीमा विवाद बताई जा रही है। बतादें कि नेपाल और भारत के बीच करीब 1850 किलोमीटर से अधिक लंबी और खुली सीमा है। एक देश से दूसरे देश में जाने के लिए पासपोर्ट की जरुरत नहीं है। दोनो देश के बीच सदियो से बेटी और रोटी का संबंध है। कभी सीमा को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ। अलबत्ता चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद होता रहा है। नेपाल के प्रधानमंत्री के बयान के बाद भारत और नेपाल के बीच चली आ रही सदियों पुराने संबंधो को लेकर समीक्षा शुरू हो गई है। यह कुछ हद तक स्वभाविक भी है। सवाल उठता है कि नेपाल के प्रधानमंत्री ने ऐसा बयान क्यों दिया? इसको समझने के लिए भारत और नेपाल के बीच चली आ रही सदियों पुराने संबंधो को समझना होगा। विवाद के कारणो को समझना होगा और चीन की चाल को भी समझना होगा।

  • प्रवासी मजदूरो का दर्दे दास्तान, कौन कर रहा है सौदा दर्द का

    प्रवासी मजदूरो का दर्दे दास्तान, कौन कर रहा है सौदा दर्द का

    मैले वस्त्र और बेतरतीब बिखरे बाल। माथे पर गट्ठर और पीठ पर बैग  लिए, नंगे पांव निकल पड़ा है, मिलो की सफर पर। कोई अपनी बूढ़ी मां को सहारा देने में लगा है तो किसी को अपने मासूम को धूप से बचाने की चिंता है। पांव में पड़े छाले हो या पेट में लगी भूख। हौसला ऐसा कि इन्हें रोक पाना मुश्किल है। यह नजारा है राष्ट्रीय राजमार्ग पर पैदल सफर करने वाले प्रवासी मजदूरो की। दरअसल, ये वहीं मजदूर है, जो इन दिनो अपने ही देश में प्रवासी होने का दंश झेल रहें है। यह कोरोना काल की सबसे बड़ी बिडम्बना है। देखिए, पूरी रिपोर्ट…

  • कर्ज में डूबे फूल की खेती करने वाले किसान, अधिकारी से लगाई मदद की गुहार

    कर्ज में डूबे फूल की खेती करने वाले किसान, अधिकारी से लगाई मदद की गुहार

    तीन बच्चो का भविष्य अंधकार में डूबा

    कौशलेन्द्र झा। मीनापुर के वासुदेव छपरा गांव में तीन एकड़ जमीन पर खिला गेंदे का फूल लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया। किसान बीडीओ को पत्र लिख कर मदद की गुहार लगा रहे हैं और मदद नहीं मिलने पर बच्चों समेत आत्महत्या करने की लिखित में धमकी दे रहें हैं। बावजूद इसके कोई सुनने को तैयार नहीं है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला का यह मामला है। दरअसल, अपने तीन बच्चों की मदद से खेतों में खिले गेंदा का फूल तोड़कर गड्ढे में फेंक रहे किसान फूलदेव भगत बहुत परेसान है। पूछने पर कहते हैं कि महाजन से चार लाख रुपये कर्ज लेकर फूल की खेती की थीं। फूल तो खिला, पर लॉकडाउन की वजह से इसकी खपत नहीं हुई। नतीजा, अब फूल तोड़ कर गड्ढे में फेंकना पड़ रहा है। क्योंकि, फूल को समय पर तोड़ा नहीं गया तो, फूल का पेंड़ सूख जायेगा।
    लॉकडाउन की वजह से फूल का कारोबार ठप है और फूल की खेती करने वाले किसान भुखमरी के कगार पर आ गयें हैं। फूलदेव कहते है कि महाजन से पांच रुपये सैकड़ा ब्याज पर चार लाख रुपये कर्ज लेकर खेती की थीं। खेती के लिए पांच एकड़ जमीन लीज पर है। भूस्वामी को सालाना 80 हजार रुपये देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त एक लाख रुपये की पगड़ी जमा है, वह अलग। कहतें हैं कि बच्चों की पढ़ाई तो पहले से बंद है। अब घर में भोजन के लाले पड़ गए हैं।
    यहां आपको बताना जरुरी है कि फूलदेव भगत मूलरूप से देवरिया थाना के बुद्धिमानपुर गांव का रहने वाला है। वर्ष 2011 में मीनापुर के राघोपुर गांव की रिंकू देवी से उसका विवाह हुआ और तब से वह यही अपने ससुराल में रह गया। पांच साल पहले समीप के ही वासुदेव छपरा गांव में फूलदेव ने पांच एकड़ जमीन लीज पर लिया और फूल की खेती करने लगा। बहरहाल, फूलदेव पर लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी कि अब उसको सहारा देने वाला भी कोई नहीं है। घर में खाने के लिए अन्न का एक भी दाना नहीं है और पहले से कर्ज में डूबे इस किसान को अब और कर्ज देने को कोई तैयार नहीं है।

    इन फूलो की खेती करता है फूलदेव

    कोलकाता से बीज लाकर फूलदेव अपने खेतो में गेंदा के अतिरिक्त गुलाब, चीना, चेरी, गुल मखमल, रीता, डालिया और जरबेरा की खेती करता है। वह बताता है कि प्रति एकड़ 50 हजार रुपये की लागत खर्च से फूल की खेती से प्रति एकड़ 80 हजार से एक लाख रुपये तक की कमाई हो जाती थी। वह कहता है कि पीक सीजन में लॉकडाउन होने से इस वर्ष लाखों रुपये का नुकसान हो गया। फूलदेव विकलांग है और वर्ष 2018 में उसकी पत्नी रिंकू देवी की मौत हो चुकी है। उसके तीन छोटे बच्चे है। शिवानी कुमारी, वर्षा कुमारी और चांदनी कुमारी।

  • क्वारंटाइन सेंटर: अधिकारी का दावा और ग्रामीणो की आंखों देखी

    क्वारंटाइन सेंटर: अधिकारी का दावा और ग्रामीणो की आंखों देखी

    बिहार के मीनापुर में केकेएन की ऑनलाइन पड़ताल

    KKN न्यूज ब्यूरो। हेलो सर… तुर्की हाईस्कूल में प्रखंड क्वारंटाइन सेंटर है। पर, यहां पेयजल की सुविधा नहीं है। जिस कमरे में मजदूरो को रखा गया है, उसमें दरबाजा नहीं है। अधिकारी फोन नहीं उठा रहें है और संक्रमण फैलने की आशंका से लोग दहशत में है। तुर्की के रमानन्द राय एक ही सांस में पूरी बात कह गये। अब एक मिशाल और देखिए। टेंगरारी क्वारंटाइन सेंटर पर गुरुवार को 10 प्रवासी मजदूर आये। करीब 24 घंटे बितने के बाद भी शुक्रवार को उनके लिए प्रशासन की ओर से भोजन की व्यवस्था नहीं हो सकी। भूखे मजदूरो को स्थानीय मुखिया नीलम कुमारी ने अपने घर से खाना बना कर खिलाया। यही हाल गोरीगामा क्वारंटाइन सेंटर की है। शुक्रवार को मुखिया अनामिका बताती है कि पिछले दो रोज से 10 मजदूरो को वह अपने घर से खाना दे रही है। हरका के मुखिया रेणु सिंह का दावा है कि उन्होंने पंचायत के क्वारंटाइन सेंटर पर रहने वाले 22 मजदूरो को अपने घर से खाना खिलाया है।

    ये सभी मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर प्रखंड से ताल्लुक रखते हैं और इनका दावा है कि सरकार ने पंचम वित्त आयोग की राशि से पंचायत के क्वारंटीन सेंटर पर मजदूरो के रहने और सैनिटाइजेशन की व्यवस्था करने का आदेश दिया हुआ है। यहां रहने वाले मजदूरो को भोजन और वर्तन आदि की व्यवस्था अंचल प्रशासन को करनी है। अब सवाल ये कि जब भोजन अंचल प्रशासन को देनी है, तो क्वारंटाइन सेंटर पर मजदूरो को भेजने के बाद अधिकारी भोजन की व्यवस्था तत्काल ही क्यों नहीं करतें है? मीनापुर के अंचलाधिकारी से जब हमारे रिपोर्टर ने यही सवाल पूछा तो उनका रटा-रटाया जवाब आया। अंचलाधिकारी ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव का कहना था कि पंचायतो में बने सभी क्वारंटीन सेंटर पर रहने वाले प्रवासी मजदूरो को भोजन सहित सरकार के द्वारा निर्धारित सभी सुविधएं दी जा रही है। अधिकारी ने दावा किया है कि जो लोग खुद से लौट कर घर आ रहे है, उनको भी ढूंढ़ कर क्वारंटीन किया जा रहा है। बड़ा सवाल ये कि कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ?
    छात्र राजद के मुजफ्फरपुर जिला अध्यक्ष अमरेन्द्र कुमार से जब इस संबंध में पूछा गया तो उन्होंने अधिकारी पर कई गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिये। छात्र नेता का कहना था कि अक्सर मीनापुर के अंचलाधिकारी फोन नहीं उठाते है। छात्र नेता ने बताया कि पिछले रविवार को अलीनेउरा के क्वारंटाइन सेंटर से इलाज कराने सदर अस्पताल गया एक मजदूर लौट कर सीधे अपने गांव मदारीपुर चला आया। बार-बार रिंग होने के बाद भी अंचलाधिकारी ने फोन नहीं उठाया और वह तीन रोज तक अपने घर पर ही रहा। गांव के लोग दहशत में थे और अधिकारी फोन नहीं उठा रहे थे। इधर, गोरीगामा के क्वारंटाइन सेंटर पर तैनात शिक्षक विवेक कुमार भी मानते है कि अधिकारी से फोन पर बात करना आसान नहीं है। कहतें है कि मीनापुर के बीडीओ तो कभी-कभी फोन उठा भी लेंते है। पर, सीओ साहेब अक्सर फोन नहीं उठाते है। मुखिया संघ की अध्यक्ष नीलम कुमारी की माने तो स्थिति बेहद ही खतरनाक है। कोई किसी का सुनने को तैयार नहीं है। गौरकरने वाली बात ये है कि अभी तो मात्र दो हजार प्रवासी मजदूर लौटे है और सिस्टम हाफ रहा है। अधिकारी की माने तो अकेले मीनापुर में करीब छह हजार प्रवासी मजदूर लौटने की प्रत्याशा में है। जबकि, गैर सरकारी आंकड़ों के मुताबिक करीब 15 हजार प्रवासी मजदूर है और ये सभी लौट गये, तो क्या होगा?

  • बिहार के गांवों में उमरा कामगारो का सैलाव, हाफ रहा है सिस्टम

    बिहार के गांवों में उमरा कामगारो का सैलाव, हाफ रहा है सिस्टम

    विधि व्यवस्था को सम्भाल पाना बड़ी चुनौती

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के गांवो में बनी अधिकांश क्वारंटीन सेंटर पर सुविधओं का अभाव है और अधिकारी सुन नहीं रहें हैं। इन दिनो इस प्रकार की खबरो का सोशल मीडिया पर भरमार है। वेशक, यह एक हकीकत भी है। पर, एक हकीकत और भी है… और वह ये कि सिस्टम ओवरलोड हो चुका है। आने वाले दिनो में यह ध्वस्त हो जायेगा। कहने वाले इतना कहेंगे कि सुनने वाला कोई नहीं होगा। नतीजा, अराजकता और अफरा-तफरी के बीच समस्या सिर्फ कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने का नहीं है। स्वास्थ्य सुविधा के ध्वस्त होने का भी नहीं है। बल्कि, असली समस्या तो विधि-व्यवस्था को सम्भाल पाने की होगी। दुनिया की कई देश इस तरह की समस्या पहले से झेल रहें हैं। अब बारी हमारी है। राजनीतिक नफा-नुकसान हेतु हमने स्वयं ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने का रास्ता खोल दिया है और विधि व्यवस्था के समक्ष भी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।

    हाफ रहा है सिस्टम

    ताज्जुब की बात है कि इटली और अमेरिका जैसी विकसित देशो से हम सीख नहीं पाये और राजनीतिक कारणो से हमारे सियासतदानो ने पूरे बिहार को संक्रमण के उस दावानल में झोंक दिया है, जहां से निकल पाना, शायद अब मुश्किल होगा। गौर करने वाली बात ये है कि अभी तो महज दो से ढ़ाई लाख प्रवासी कामगार बिहार लौटे है और सिस्टम हाफने लगा है। अगले दो सप्ताह में 15 लाख और लौटेंगे, तब क्या होगा? बेशक, इस सियासत से किसी का नुकसान होगा और किसी को लाभ मिल जायेगा। पर, जो संक्रमण की भेंट चढ़ जायेंगे… उनका क्या होगा? जो, पैदल, साइकिल से या किराया के गाड़ी से ऑफ द रिकार्ड लौट रहें हैं… उनका क्या होगा? ट्रेन के आउटर सिग्नल से भाग कर सीधे घर पहुंच रहें हैं … उनका क्या होगा? ऐसे दर्जनो सवाल है, जिसका जवाब भविष्य के गर्भ में छिपा है।

    गांव में है अफरा-तफरी का माहौल

    बिहार के गांवों में अफरा-तफरी मची है। कोई क्वारंटाइन सेंटर से निकल कर रात में अपने घर चला जाता है और कोई चौक-चौराहे पर घुमने पहुंच जाता है। अधिकारी चाहे जो दावा करलें। पर, यह भी सच है कि कई लोग क्वारंटाइन सेंटर से निकल कर घर पर रह रहें है। ऐसा नहीं है कि गांव के लोग, अधिकारी को इसकी सूचना नहीं देते है। उल्टा दर्जनो वार फोन करने पर भी अधिकारी संज्ञान लेने को तैयार नहीं है। आम तो आम… खास की बातो को भी तबज्जो नहीं दी जा रही है। दरअसल, सिस्टम के पास मौजूद संसाधन फुल हो चुका है। कर्मियों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है। अब सवाल उठता है कि क्या यह बात पहले से पता नहीं था? बड़ा सवाल ये कि बिहार के गांवों में मची इस अफरा-तफरी के लिए जिम्मेदार कौन है? दूसरी ओर क्वारंटाइन सेंटर में रहने वालों की अपनी अलग दास्तन है। रहने के लिए विस्तर और खाने के लिए भोजन, जैसे-तैसे मिल भी जाये। पर, शौचालय और पेयजल का अभाव खटक रहा है। कई सेंटरो पर रौशनी का अभाव है। मच्छरदानी के बिना रात में सो-पाना दुष्कर हो रहा है। यह आलम तब है, जब महज दस फीसदी कामगार बिहार लौटे है। सोचिए बाकी के 90 फीसदी भी आ गये तो क्या होगा? साधन सीमित है और कामगारो का सैलाव रोज व रोज बढ़ता चला जा रहा है। यानी आने वाले दिनो में क्या होगा? यह सोच कर सिहरन होना स्वभाविक है।

  • किसानो के अरमान को जंगली जानवरों ने रौंदा

    किसानो के अरमान को जंगली जानवरों ने रौंदा

    मुसीबत में फंसे किसान

    मक्का की खेती

    KKN न्यूज ब्यूरो। उत्तर बिहार के किसान मुसीबत में है। लॉकडाउन और बारिश की वजह से गेंहूं और सब्जी की खेती से निराश हो चुके किसानो की आखरी उम्मीद मक्का की खेती से था। किंतु, जंगली जानवरो ने फसल को अपने पैरों से रौंद कर उम्मीद पर पानी फेर दिया है। जंगली जानवर का आतंक कमोवेश बिहार के सभी जिलों में है। किंतु, मुजफ्फरपुर जिला का ग्रामीण इलाक तो त्राहिमाम कर रहा है। मीनापुर के किसान नीरज कुमार बतातें है कि मक्के की खेतों में जंगली जानवरों ने धावा बोल दिया है। सैकड़ों की संख्या में अलग-अलग झुंड बना कर जंगली सुअर, वन बकड़ा और घोड़परास के दौड़ लगाने से मक्के की खड़ी फसल को जबरदस्त नुकसान हुआ है। किसानो ने बताया कि अकेले अलीनेउरा के खेतों में 30 प्रतिशत मक्के की खड़ी फसल को जंगली जानवरों ने रौंद दिया है। कमोवेश पूरे मीनापुर का यही हाल है।

    मक्का से बची थीं आखरी उम्मीद

    नीरज कुमार आगे बताते हैं कि लॉकडाउन और बारिश के बीच गेहूं, टमाटर, लीची और अन्य सब्जी की फसल से किसान पहले ही निराश हो चुके थे। हालांकि, मक्के की खेती से किसानो की आखरी उम्मीद बची थी। लेकिन जंगली जानवरों ने मक्के की फसल पर जिस तरह से धावा बोला है। इससे किसान हताश होने लगें हैं। गांव में बड़े पैमाने पर भूखमरी की समस्या दस्तक देने लगी है। नेउरा के किसान राजनारायण प्रसाद और वरुण प्रसाद बतातें हैं कि जंगली जानवर अब केला की फसल को भी निशाना बनाने लगे हैं। सत्यनारायण प्रसाद बताते हैं कि खेतों को बास-बल्ला से घेरने के बाद भी जंगली जानवर घेरे को फांद कर फसल को रौद रहा हैं और बार-बार गुहार लगाने के बाद भी जिला प्रशासन इसे गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है।

    झुंड बना कर रौद देता है फसल को

    मक्का की बाली

    लॉकडाउन में टमाटर, भिंडी, करैला, कद्दू और बैंगन समेत सब्जी की अन्य फसल से किसानो को पहले ही जबरदस्त नुकसान हो चुका है। ऐसे में मीनापुर की करीब दो हजार हेक्टेयर में खड़ी मक्के की फसल से यहां के किसानों को बड़ी उम्मीद थी। इसी प्रकार केला से उम्मीद पाले किसान भी अब निराश होने लगें हैं। युवा किसान चंदन कुमार की माने तो जंगली सुअर, वन बकड़ा और घोड़परास की संख्या सैकड़ो में है और यह अलग अलग झुंड बना कर निकलता है। किसानो ने बताया कि जंगली जानवर अपना पेट भरने के लिए फसल का जितना नुकसान नहीं करता है। उससे कई गुणा अधिक नुकसान खेतो में इसके दौर लगाने से हो जाता है।

  • लॉकडाउन की वजह से लाल टमाटर का खेतो में लगा अंबार

    लॉकडाउन की वजह से लाल टमाटर का खेतो में लगा अंबार

    नहीं मिल रहा है खरीददार

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से करीब 25 किलोमीटर दूर मीनापुर के सहजपुर गांव से सटे अपने खेत में टमाटर की लाली को निहारते हुए किसान ज्वाला प्रसाद कहतें है “सब बर्बाद हो गया…”। खेत में चारो ओर लाल-लाल टमाटर का अंबार लगा है। पर, लॉकडाउन की वजह से कोई खरीदार नहीं है। गांव के लोगो ने बताया कि अकेले टमाटर से यहां के किसानो को लाखो रुपये का नुकसान हो गया है। पूछने पर ज्वाला प्रसाद कहतें है कि बैंक से 4 लाख रुपये कर्ज लेकर तीन एकड़ जमीन पर टमाटर की खेती किये थे। इस वर्ष फसल अच्छा था और मार्च के दूसरे सप्ताह से पैदावार निकला भी शुरू हो गया। इस वर्ष करीब 8 से 10 लाख रुपये आमदनी की उम्मीद में पूरा परिवार खुश था।

    लॉकडाउन  ने बिगाड़ा खेल

    चीन से निकला कोरोना भारत में पहुंच गया और सरकार ने 22 मार्च को जनताकर्फ्यू और फिर लॉकडाउन की घोषणा कर दी। बाहर के व्यापारी का आना बंद हो गया। नजीता, 400 रुपये प्रति कैरेट बिकने बाला टमाटर 40 रुपये प्रति कैरेट बेचना पड़ रहा है। इसका भी खरीददार नहीं मिल रहा है। इसमें प्रति कैरेट 12 रुपये का मजदूरी खर्च काट दें, तो किसानो का पूंजी निकलना मुश्किल हो गया है। बतातें चलें कि एक कैरेट में 23 किलो टमाटर रखा जाता है। यानी सिर्फ तीन एकड़ में किसानो को करीब 7 लाख रुपये का नुकसान होना तय माना जा रहा है।

    सब्जी उत्पादक जोन में आर्थिक तंगी

    मीनापुर का यह इलाका जिले में सब्जी उत्पादक जोन के रूप में जाना जाता है। यहां करीब 50 एकड़ जमीन पर टमाटर खेती होती है और मीनापुर का टमाटर मुजफ्पुरपुर सहित पूरे उत्तर बिहार में जाता है। इसके अतिरिक्त राजधानी पटना और पड़ोसी देश नेपाल में भी मीनापुर से टमाटर की सप्लाई होती रही है। किंतु, लॉकडाउन की वजह से टमाटर उत्पादक किसान मुश्किल में फंस गयें हैं। क्योंकि, टमाटर से यहां की सैकड़ो किसान परिवार की उम्मिदें जुड़ी होती है। बहरहाल, कमोवेश सभी किसानो का यहीं हाल है। किसान नीरज कुमार और राजनरायण प्रसाद सहित कई लोगो ने बताया कि लॉकडाउन की वजह से टमाटर के अतिरिक्त, भिंडी, बैगन और करैला की खरीददार नहीं मिल रहा है। जाहिर है किसान दोहरी चिंता में है। इधर, तैयार फसल बिक नहीं रहा है और उधर, समय पर बैंक का कर्जा नहीं चुकाया तो आगे की फसल के लिए कर्ज मिलना मुश्किल हो जायेगा।

  • मुजफ्फरपुर की जलवायु लीची के लिए बन गया वरदान

    मुजफ्फरपुर की जलवायु लीची के लिए बन गया वरदान

    कौशलेन्द्र झाबिहार का एक प्रमुख शहर है मुजफ्फरपुर। इसको उत्तर बिहार की अघोषित राजधानी भी कहा जाता है। हालांकि, देश- दुनिया में मुजफ्फरपुर की पहचान लीची जोन के रूप में बन चुका है। मुजफ्फरपुर और इसके निकटवर्ती क्षेत्र की भूमि और जलवायु लीची के लिए बेहद ही उपयुक्त माना गया है। यही कारण है कि आज समूचे भारत में लीची उत्पादन का 90 प्रतिशत पैदावार पर उत्तर बिहार का एकाधार है और इसमें 80 प्रतिशत लीची का उत्पादन अकेले मुजफ्फरपुर में होता है। बिहार में मुजफ्फरपुर के अतिरिक्त चंपारण, सीतामढ़ी, समस्तीतपुर, वैशाली और भागलपुर में भी लीची की खेती की जाती है।

    इन जगहो पर होती है खेती

    लीची एक ऐसा फसल है, जिसका उत्पादन कमोवेश पूरी दुनिया में की जाती है। बिहार के अतिरिक्त भारत के पश्चिम बंगाल के मालदा, उत्तराखंड के देहरादून और सहारनपुर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों  में भी लीची का थोड़ा-बहुत उत्पादन होता है। अध्ययन से पता चला है कि पहली शताब्दी में सर्व प्रथम दक्षिण चीन में लीची की खेती की गई थी। कालांतर में इसका क्षेत्र विस्तार हुआ और आज उत्तर भारत के अतिरिक्त थाइलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, और फ्लोरिडा तक इसके खेती का फैलाव हो चुका है। पिछले दो दशक में पाकिस्तान, दक्षिण ताइवान, उत्तरी वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका में भी लीची की खेती शुरू हो चुकी है।

     घाटे में है  लीची का पैदावार

    कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 70 के दशक में मुजफ्फरपुर के करीब 1,330 हैक्टेयर जमीन पर लीची का बगान था। जो, आज बढ़ कर 12,667 हैक्टेयर तक पहुंच चुका है। जानकार बतातें हैं कि 70 के दशक में जहां तकरीबन 5,320 मिट्रिक टन सालाना लीची का उत्पादन होता था। वही, चालू दशक में यह बढ़ कर  एक लाख 50 हजार मिट्रिक टन तक पहुंच चुका है। बावजूद इसके लीची उत्पादक किसान लगातार घाटे में है। बतातें है कि 90 के दशक में मुजफ्फरपुर से लीची का विदेशो में निर्यात शुरू हुआ था। इस क्रम में यहां की लीची इंगलैंड, नीदरलैंड, फ्रांस, स्पेन, दुबई व अन्य कई गल्फ कंट्री सहित पड़ोसी देश नेपाल को भेजी जाती थी। किंतु, हालिया वर्षो में कतिपय कारणो से इसमें कमी आई है और अब विदेश के नाम पर नेपाल और बंगनादेश तक ही मुजफ्फरपुर की लीची सीमट कर रह चुकी है।

    लीची पर आधारित उद्दोग

    बात उत्तर बिहार की करें तो विगत तीन दशक में यहां लीची के उत्पादन में करीब डेढ़ गुणा की वृद्धि हुई है। लीची की अनेक किस्मे हैं। अकेले मुजफ्फरपुर में रोज सेंटेड, शाही, चाइना और बेदाना किस्म की लीची मिलता हैं। व्यांपारिक दृष्टि से लीची की बागवानी बहुत ही लाभप्रद है। जानकार बतातें हैं कि लीची के बगिचो से किसान को प्रति हेक्टेयर बीस हजार रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है। किंतु, प्रकृतिक आपदा की वजह से ऐसा हो नहीं पाता है। दूसरा ये कि लीची पर आधारित कोई उद्योग नहीं होने से यहां के लीची उत्पादक किसान आर्थिक बदहाली का सामना कर रहें है। लीची के उत्पादन पर करीब 90 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला मुजफ्फरपुर में लीची के स्टोरेज और ट्रांसपोटेशन की अभी तक कोई कारगर व्यवस्था बहाल नहीं हो सकी है। सरकार की बेरूखी से लीची उत्पादक किसान हतोत्साह होने लगें हैं। मुजफ्फरपुर के एक लीची किसान नीरज कुमार बतातें हैं कि सरकार लीची से जूस बनाने का उद्दोग लगा दे, तो किसानो को इसका लाभ मिलने लगेगा। इसी प्रकार लीची के लिए कोल्डस्टोर और लीची के ट्रांसपोटेशन के लिए एसी कोच की व्यवस्था कर दे, तो आमदनी दोगुणी हो सकती है।

    लीची में मौजूद है पौष्टिक तत्व

    लीची की खेती सिर्फ कमाई का जरिया नहीं है। बल्कि, इसे सेहत का वरदान भी कहा जाता है। लीची में पौष्टिक तत्वों का भंडार माना जाता है। इसमें भरपूर विटामिन सी, पोटेशियम और प्राकृतिक शक्कर पाया जाता है। साथ ही इसमें पानी की मात्रा भी पर्याप्त होती है। गरमी में खाने से यह शरीर में पानी के अनुपात को संतुलित रखने में मददगार साबित होता है। कहा जाता है कि मात्र दस लीची खाने से करीब 6.5 कैलोरी उर्जा मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त लीची में कैल्शियम, फोस्फोरस व मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स पाये जातें हैं। यह हमारे शरीर की हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक माना गया हैं। लीची में प्रमुख पोषक तत्व कार्बोहाइट्रेट है। लीची के पके फलो का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि इसमें औसतन 15.3 प्रतिशत शक्कर, 1.15 प्रतिशत प्रोटीन और 16 प्रतिशत अम्ल पाया जाता है। लीची का फल फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा, खनिज-लवण और विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्त्रोत होता है। लीची में जल की मात्रा अत्यशधिक होती है। इसके एक फल में 77.30 प्रतिशत गुद्दा और गूद्दे में 30. 94 प्रतिशत जल पाया जाता है। लीची में विटामिन C अधिक पाया जाता है, जो हमारे त्वचा और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करता है। इतना ही नही बल्कि लीची खाने से शरीर का रक्त बिकार कम होने लगता है। रीसर्च से पता चला है कि लीची में ब्रेस्ट कैंसर को रोकने की विशेषता पाई जाती है। लीची में डाएट्री फाइबर पाया जाता हैं, जो हमारे पाचनतंत्र को मजबूत करता है। लीची एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेट भी हैं, जो हमारे शरीर को बिमार होने से रोकता है। लीची खाने से शरीर का ब्लड प्रेशर स्थिर रहता है। लीची ह्रदय की धड़कन को मजबूती देता है।

    सैपिडेंसी परिवार का है लीची

    वनस्पती शास्त्र में लीची को सैपिडेंसी परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य बताया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम चाइ नेन्सिस है। इसकी उत्पत्ति चीन से हुई माना जाता है। जानकार बतातें है कि लीची की खेती सर्वप्रथम दक्षिण चीन में,  पहली शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी। सर्व प्रथम चीन के लूचू द्वीप पर इसका उत्पादन शुरू हुआ था। लूचू से ही इस फल का नाम लीची पड़ा होगा, ऐसी मान्यता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 4 से 12 मीटर तक होती है। फरवरी में पेड़ पर मंजर निकलने लगता है और मार्च में दाना बनना शुरू हो जाता है। वैसे यह रस भरी लीची 15 मई तक पकना शुरू हो जाता हैं। इसका पेंड़ उष्ण कटिबन्धों में पाया जाता हैं। चीन में लीची का शर्बत, फ्रूट सलाद और आइसक्रीम के साथ खाने का रिवाज़ रहा है। चीन में इसे मांसाहारी व्यंजनों के साथ भी सम्मिलित किया जाता है। चीनी संस्कृति में लीची का महत्वपूर्ण स्थान है। चीन में यह घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की प्रतीक के रूप में माना जाता है।

  • बिहार के गांव में लॉकडाउन का बना मजाक

    बिहार के गांव में लॉकडाउन का बना मजाक

    हाट-बाजार में जुट रही है भीड़

    हाट-बाजार

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार सरकार के सख्ती के बाद भी ग्रामीण इलाका में लॉकडाउन का ठीक से पालन नहीं हो रहा है। गांव के हाट-बाजार पर जुटी भीड़ कई बार सोशल डिस्टेंशिंग की धज्जियां उड़ा रही है। अनजाने में ही सही, पर हमारा ग्रामीण समाज खुद के लिए बड़ी मुसीबत को न्यौता देने लगा है। इस बीच सरकारी योजनाओं को लेकर रह-रह कर फैल रही अफवाह के बीच गांव में कई बार लॉकडाउन बेमानी हो जाता है। ऐसे में समय रहते ग्रामीण इलाको में कड़ाई नहीं हुई तो बिहार के गांवों में हालात विस्फोटक रूप ले सकता है।

    गैस एजेंसी में जुटी हजारो की भीड़

    बात 5 अप्रैल की है। मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर गैस एजेंसी में अचानक उमड़ी भीड़ ने लॉकडाउन की धज्जियां उड़ा कर रख दिया। किसी ने अफवाह फैला दिया था कि उज्जवला का लाभ लेने के लिए रजिस्टेशन कराना होगा। नतीजा, भीड़ उमड़ पड़ी और एजेंसी में अफरा-तफरी का माहौल बन गया। बाद में पुलिस को बुलानी पड़ गई। भीड़ में शामिल पुरैनिया की पार्वती देवी और तालीमपुर की रुपा देवी सहित कई अन्य महिलाओं ने बताया कि आज रजिस्टेशन नहीं हुआ तो योजना का लाभ नहीं मिलेगा। इधर, मीनापुर संजय इंण्डेन के प्रबंधक रोहित कुमार ने बताया कि सभी को सरकारी घोषणा के मुताबिक लाभ मिलना है। स्मरण रहें कि मीनापुर में उज्जवला के करीब 20 हजार उपभोक्ता है। कारण जो हो, पर सच यही है कि एक अफवाह ने पल भर में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ा कर रख दिया।

    हाट-बजार में सोशल डिस्टेंशिंग नहीं

    ग्रामीण हाट बाजारो में सोशल डिस्टेंशिंग का खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। लॉकडाउन के बाद भी लोगो की भीड़ कोरोना वायरस का वाहक बनने को उताबली हो रही है। लिहाजा, एक चिंगारी, यदि दावानल का रुप ले ले तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। मीनापुर का नेउरा बाजार, मुस्तफागंज बाजार, मझौलिया बाजार, बलुआ बजार, टेंगरारी बाजार और तुर्की बाजार सहित कई अन्य बाजारो से अक्सर खतरे को दावत देने वाली तस्वीरे आ रही है। गांव के चाय-पान की दुकान पर भी बेवजह बैठे लोग अनजाने में ही कोरोना वायरस के वाहक बनने को बेताब हो रहें है। गाहे-बेगाहे पुलिस की सख्ती भी दिखाई पड़ती है। थाना अध्यक्ष राज कुमार ने बताया कि गांव के भीतर कई बार पुलिस ने कड़ाई की है। फिर भी लोग खतरे की गंभीरता को समझने को तैयार नही है।

    जितने लोग उतनी कहानी

    लॉकडाउन को तोड़ने का गांव में सभी के पास अपनी-अपनी दास्तान है। सब्जी उत्पादक किसानो को बाजार पहुंच कर अपना उत्पाद बेचने की विवशता है। मजदूर कहता है कि कमायेंगे नहीं तो खायेंगे कैसे? बहुत सारे लोगो को जरुरी का समान खरीदने के लिए बाजार जाने की विवशता है। कई लोगो को दवा की खरीद करना है। ऐसे भी लोग है, जो जरुरतमंदो की मदद करने के लिए बाहर जाना चाहतें हैं। चाय की दुकान पर बैठे लोगो ने बताया कि दिन भर घर में ही थे। मन बहलाने हेतु थोड़ी देर के लिए चलें आये है। यानी, जितने लोग उतनी बहाना। शायद इन्हें यह नहीं मालुम है कि इनकी एक गलती से पल भर में पूरा का पूरा लॉकडाउन फेल हो सकता है। अमेरिका और इटली ने यही गलती की और आज वहां लाश उठाने वाला नहीं मिल रहा है।

  • बिहार के गांवो में क्वारेंटाइन सेंटर की हकीकत

    बिहार के गांवो में क्वारेंटाइन सेंटर की हकीकत

    सेंटर पर पसरा है सन्नाटा

    प्रवासी मजदूर

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के गांवो में क्वारेंटाइन सेंटर की हकीकत चौकाने वाला है। सरकारी आदेश के बाद प्रत्येक पंचायत के एक सरकारी स्कूल को आइसोलेट करके क्वारेंटाइन सेंटर बना दिया गया है। पर, यहां कोई रहने को तैयार नहीं है। दूसरे प्रदेश से बिहार आये प्रवासी मजदूर सीधे अपने घर जाते है और परिवार वालो के साथ खुलेआम रहते है। यह सच है कि स्वास्थ्य विभाग की टीम इनमें से अधिकांश मजदूरो की मॉनिटरिंग करके उन्हें क्वारेंटाइन सेंटर में रहने का सुझाव दे चुकी है। पर, यह भी सच है कि इस तरह के सभी सुझाव कागजो पर है और गांव में अमूमन इसका पालन नहीं हो रहा है।

    कोइली का क्वारेंटाइन सेंटर

    मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर थाना के कोइली क्वारेंटाइन सेंटर पर सन्नाटा पसरा हुआ है। बाहर से लौटने वालों के रहने के लिए यहां सारी व्यवस्थाएं की गई हैं। पंचायत की ओर से कोइली स्कूल में साफ-सफाई कराकर यहां दरी बिछा दी गई थी। पेयजल और शौचालय की व्यवस्था पहले से है। हाथ धोने के लिए साबुन उपलब्ध है। बावजूद इसके यहां एक भी प्रवासी नहीं दिखा और यहां पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है। पंचायत के मुखिया अजय कुमार ने बताया कि कोइली पंचायत में दूसरे प्रदेश से आने वाले 45 मजदूरों की पहचान हो गई है। स्वास्थ्य विभाग ने पंचायत के चैनपुर गांव में 27 मार्च, 29 मार्च और एक अप्रैल को शिविर लगाकर सभी प्रवासी मजदूरों की मॉनिटरिंग करने के बाद उन्हें क्वारेंटाइन सेंटर में रहने को कहा था। किंतु, सभी अपने-अपने घरों में रह रहे हैं और क्वारेंटाइन सेंटर में जाने को कोई कोई तैयार नहीं है।

    क्वारेंटाइन सेंटर पर रहने से इनकार

    सैनिटाइजर

    कमोवेश यही हाल जिले के अन्य क्वारेंटाइन सेंटर की है। ग्रामीण इलाके में रहने वाले कई लोग अभी भी कोरोना वायरस के खतरे को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है। मीनापुर के बीडीओ अमरेंद्र कुमार बतातें है कि अकेले मीनापुर में 902 प्रवासी मजदूरों की पहचान की गई है। इनमें से करीब 400 की मॉनिटरिंग करके उन्हें क्वारेंटाइन सेंटर में रहने को कहा गया है। प्रशासन की सख्ती के बाद 31 मार्च को मधुबन कांटी के मध्य विद्यालय में आठ और हरका हाई स्कूल के क्वारेंटाइन सेंटर में एक प्रवासी मजदूर को भर्ती कर लिया गया। किंतु, चंद घंटो बाद रात होते ही सभी भाग कर अपने घर चले गये और अब वहीं रह रहें हैं।

    सरकारी फरमान बना मुखिया के गले की फांस

    बिहार सरकार की तुगलगी फरमान अब पंचायत के मुखिया के गले की फांस बनने लगा है। पंचम वित्त आयोग की राशि से सैनिटाइजर, मास्क और डीडीटी पाउडर की खरीद करने का सरकार ने पंचायत को आदेश जारी कर दिया है। इधर, मुखिया ने बताया कि बाजार में इस वक्त डीडीटी के 25 किलो का बैग 1,250 रुपये में बिक रहा है। जबकि, इसका सरकारी रेट मात्र 850 रुपये है। इसी प्रकार 7 रुपये का मास्क 70 रुपये में और 60 रुपये का सैनिटाइजर 600 रुपये में भी उपलब्ध नहीं है। इधर, सरकारी ऐलान के बाद गांव के लोग मास्क और सैनिटाइजर के लिए मुखिया पर दबाव बना रहें हैं। नतीजा, गांव में विधि व्यवस्था की समस्या उत्पन्न होने का खतरा मंडराने लगा है।

  • साहूकार का कर्ज और परिवार चलाने की चिंता

    साहूकार का कर्ज और परिवार चलाने की चिंता

    बर्बाद हो रही है तैयार फसल

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के किसान लॉकडाउन से पेशोपेश में है। गेंहू की फसल तैयार है और मजदूर नही मिल रहा है। सब्जी उत्पादक किसान की मुश्किले इससे भी बड़ी है। खेत में फसल तैयार है और खरीदार नहीं है। बाजार लग भी जाये तो बाहर के व्यापारी यहां तक पहुंच नहीं रहें है। लिहाजा, बैगन, टमाटर और कद्दू को औने-पौने की मोल बेच कर किसान नाउम्मीद हो रहें है।

    कर्ज में डूबे किसान

    बैगन की खेती

    मुजफ्फरपुर के सिवाईपट्टी थाना के रामनगर गांव में साहूकार से 50 हजार रुपये कर्ज लेकर बैगन की खेती करने वाला किसान रामजी राम की तैयार हो चुकी बैगन की फसल लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया है। रामजी के मेहनत से इस समय 16 कट्ठा जमीन पर बैगन की फसल लहलहा रही है। पर खरीदार नहीं है। अमूमन 20 रुपये प्रति किलो बिकने वाला बैगन, इस वक्त बमुश्किल से 2 रुपये प्रति किलो में भी बिक नहीं रहा है। बाजार में कोई खरीदार नहीं मिल रहा है। नतीजा, भारी मात्रा में तैयार बैगन अब खेतो में ही सड़ने लगा है।

    उम्मीदो पर फिरा पानी

    रामजी को उम्मीद था कि बैगन बेच कर साहूकार का कर्ज चुका देंगे। साथ ही अपने तीन बच्चो को अच्छे स्कूल में दाखिला कराने का रामजी ने सपना देखा था। किंतु, कोरोना वायरस की वजह से की गई लॉकडाउन में उसके सभी अरमान धरे के धरे रह गये। बतातें चलें कि मार्च और अप्रैल के महीने में बैगन का फसल होता है। ठीक इसी समय लॉकडाउन हो जाने से किसानो की कमर टूट गई है। नतीजा, रामजी का पूरा परिवार आर्थिक संकट में फंस चुका है। साहूकार का कर्ज बढ़ रहा है और तैयार फसल का कोई खरीदार नही है।

    बर्बाद होने की कगार पर है टमाटर

    टमाटर की खेती

    मुजफ्फरपुर जिला के ही मीनापुर थाना के सहजपुर गांव के किसान नीरज कुमार बतातें हैं कि एक एकड़ जमीन पर टमाटर की खेती की थी। फसल तैयार है। पर, कोई खरीदार नहीं है। अब टमाटर खेतो में ही खराब होने लगा है। नीरज बतातें हैं कि मीनापुर के टमाटर की मांग पूरे उत्तर बिहार में है। यहां के किसान बड़े पैमाने पर टमाटर की खेती करते है। किंतु, लॉकडउाउन की वजह से बाजार में बाहर से व्यपारी के नहीं आने से टमाटर का कोई खरीदार नही मिल रहा है। यहीं हाल कद्दू उत्पादक किसानो की है।

    गांव की आर्थिक व्यवस्था पर संकट

    सिवाईपट्टी के किसान रामजी और मीनापुर के किसान नीरज तो महज एक बानगी है। ऐसे और हजारो किसान है, जो कर्ज लेकर सब्जी की खेती करते है। बैगन के अतिरिक्त टमाटर और कद्दू सहित कई अन्य सब्जी की खेती करते है। सब्जी की यह फसल मार्च और अप्रैल के महीने में तैयार होता है और किसानो को इससे बहुत उम्मीद लीगी रहती है। स्मरण रहें कि मीनापुर सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में जिले में अव्वल है और यहां से तैयार सब्जी उत्तर बिहार के कई जिलो की जरुरतो को पूरा करता रहा है। किंतु, लॉकडाउन की वजह से बाहर के व्यापारी के नहीं आने से सब्जी उत्पादक किसानो के समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न होने का खतरा मंडराने लगा है।

  • KKN लाइव..सफर तीन साल का, एक नजर में

    KKN लाइव..सफर तीन साल का, एक नजर में

    KKN लाइव ने आज अपना शानदार तीन वर्ष पूरा कर लिया है। आज ही के दिन यानी 2 अप्रैल 2017 को KKN लाइव वेब पोर्टल लॉच हुआ था। दोस्तो, इन तीन वर्षो में एक लाख 20 हजार से अधिक लोगो का साथ मिला और यह संख्या निरंतर बढ़ रही है। ये वो लोग है, जिनकी मदद से 75 लाख लोगो तक KKN लाइव ने दस्तक दे दी है। इसमें बड़ी संख्या में भारत के लोग है। भारत के सभी राज्य और प्रमुख शहरो तक KKN लाइव ने अपनी पहुंच बना लिया है। आपको बतातें हुए बहुत खुशी हो रही है कि KKN लाइव को भारत के बाहर, यानी दुसरे देशो में भी पसंद किया जाता है। इस वक्त करीब 55 देशो में KKN लाइव के दर्शक और पाठक मौजूद है। देखिए, इसकी एक झलक…

  • नींद तो खुली… पर बिलम्ब हो गया

    नींद तो खुली… पर बिलम्ब हो गया

    खुलेआम घूम रहें हैं संदिग्ध

    KKN न्यूज ब्यूरो। मंसूख लाल (काल्पनिक नाम)… एक सप्ताह पहले महाराष्ट्र से लौटा है। वह द‍िहाड़ी मजदूर है और मुंबई में रह कर मजदूरी करता था। यहां गांव में लोग उसको शक की नजरो से देखते है। लोगो को डर हे कि मंसूख को कोरोना हुआ तो क्या होगा? फिलहाल, मंसूख में बीमारी के कोई लक्षण नहीं है और वह लोगो से मिलजुल रहा है। गांव के हाट बजार भी जा रहा है। सवाल उठता है कि बाद में यदि मंसूख में कोरोना के लक्षण मिल गए… तो क्या होगा? बिहार के गांवों में मंसूख अकेला नहीं है। बल्कि, उत्तर बिहार के गांवों में ऐसे दर्जनो मंसूख है, जो इसी तरह से घूम-फिर रहें है।

    गंभीर हुई सरकार

    यह सच है कि सरकार प्रवासी मजदूरो को लेकर गंभीर हो गई है। मेडिकल की टीम प्रवासी मजदूरो तक पहुंच भी रही है। पंचायत प्रतिनिधियों को भी सर्तक रहने को कह दिया गया है। जरुरत पड़ने पर ऐसे लोगो को समीप के सरकारी स्कूल में कोरंटाइन करने का आदेश जारी है। इधर, गौरकरने वाली बात ये है कि मेडिकल की टीम ऐसे प्रवासी मजदूरो से मिल कर उनका केश हिस्ट्री नोट करके लौट रही है। डॉक्टर के लौटते ही गांव में खबर फैलती है कि जांच हो गया और मंसूख ठीक है। इसी के साथ बाकि के सभी एक दर्जन मजदूरो की भी जांच हो गई और सभी ठीक है। जबकि, सच ये कि जांच नहीं हुई और सिर्फ केश हिस्ट्री ली गई है।

    पॉजिटिव निकला तो…

    मोटे अनुमान के मुताबिक बिहार के गांवो में इस वक्त करीब पांच हजार मंसूख है और इसमें से पांच भी पॉजिटिव निकला तो क्या होगा? पिछले एक सप्ताह में वह पांच… और कितने से मिले होंगे और फिर वह और कितने से मिले होंगे? पता लागाना आसान नहीं होगा। तुर्रा ये कि पिछले दिनो मंसूख गांव के हाट भी गया था। हाट में आधा दर्जन गांव के दो हजार लोग थे। पिछले एक सप्ताह में उत्तर बिहार के सैकड़ो हाट में घूम रहे ऐसे दर्जनो मंसूख… जाने अनजाने में कितने लोगो के संपर्क में आये होंगे… चाय-नाश्ते की दुकान पर टेबुल, बेंच और ग्लाश के संपर्क में आया होगा। यानी, सीधे तौर पर मंसूख के संपर्क में नहीं आने वाले भी संक्रमण के शिकार हो सकते है। अब कैसे मालुम चलेगा कि वह कौन थे ? अच्छी बात ये कि देश लॉकडाउन में है। बर्ना, अभी तक हममें से कितने लोग मंसूख बन चुके होते!

    बुरा मान जातें है लोग

    करीब आकर बात करने की परंपरा इन दिनो बिहार के गांवो में मुश्किलें पैदा कर रही है। दूर रहने को कहिए, तो लोग भड़क जातें है। इसे अन्यथा ले लिया जाता है। हालांकि, अधिकांश लोग ऐसा नहीं करते। पर, हाट और बाजार में जुट रही भीड़ अभी भी बेकाबू है। यहां संक्रमण फैलने का जबरदस्त खतरा है। बेशक कड़ाई होगा। पर, तबतक लेट हो चुका होगा।

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  • बहादुरी नहीं, समझदारी दिखाएं

    बहादुरी नहीं, समझदारी दिखाएं

    भीड़ में जाने से बचना बहुत जरुरी

    KKN न्यूज ब्यूरो। देखा जा रहा है कि शहर की तुलना में गांव के लोग, इन दिनो अधिक बहादुरी दिखाने में जुट गये हैं। हाथ साफ करने वालों को डरपोक समझा जाता है। हाट, बजार और चाय- नाश्ते की दुकान पर एक साथ बैठे कई लोग, कोरोना पर प्रवचन देते अक्सर मिल जायेंगे। ताज्जुब तो तब हुई, जब सैकड़ो लोगो को एक साथ बैठा कर नेताजी सोशल डिस्टेंश मेंटेन करने का प्रवचन देने लगे। यानी, लोग मानते है कि खतरा है। एक दुसरे को बचने का उपाय भी बता रहें है। पर, खुद को सुरक्षित मान कर, भीड़ में जाने से इन्हें कोई गुरेज नहीं है।

    अफवाह से बचें

    कोरोना

    चौक चौराहे की दुकान में लगी बेंच पर एक साथ बैठे कई लोग चाय की चुश्की के साथ ज्ञान और विज्ञान पर जोरदार प्रवचन देते अक्सर मिल जायेंगे। अपनी धारदार थ्योरी से पीएम और सीएम तक को पलभर में कटघरे तक पहुंचा रहें हैं। इश्वर, अल्लाह… मंदिर और मस्जिद… यहां तक की मीडिया भी इनके निशाने पर होता है। कोरोना के वाहक ये हो या नहीं हो… पर, अफवाह के इन वाहको पर रोक लगना बहुत जरुरी हो गया है। कुतर्क ऐसा कि हकीकत भी शर्मसार हो जाये। सवाल उठता है कि ऐसे लोगो को कौन समझाए?

    घर लौटने वालों की स्क्रिंनिंग जरुरी

    बात यहीं खत्म नहीं होती है। चीन, अमेरिका और इटली आदि देशो से घर लौटने वालों की एयरपोर्ट पर ही थर्मोस्क्रिनिंग हो रही है। अलबत्ता कुछ लोग इससे बच कर निकल भी रहें हैं। बावजूद इसके सभी कुछ ठीक रहने के बाद भी स्वास्थ्य विभाग 14 रोज तक उनपर नजर रखती है। जरुरी नहीं कि कोरोना हो ही… पर, बताया जा रहा है कि ऐतिहात जरुरी है। ऐसे में बड़ा सवाल ये कि महाराष्ट्र और दिल्ली से बड़ी संख्या में बिहार लौट रहे लोगो के लिए स्थानीय प्रशासन कितना तैयार है? गौर करने वाली बात ये है कि इनमें से अधिकांश लोग गांव से जुड़ें हैं। जिनका सरकार के पास कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।

    काम आ सकता है डेटा

    विदेश से लौट रहे लोगो का पूरा डेटा सरकार के पास उपलब्ध होता है। उसका नाम और पता मालुम होता है। लिहाजा, यदि कोई जांच में छूट गया, तो उसकी तलाश कर लेना मुश्किल नहीं है। किंतु, महाराष्ट्र से लौटने वाले ज्यादेतर मजदूर है और ग्रामीण इलाको से है। इनका कोई डेटा भी उपलब्ध नहीं है। ऐसे लोग रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड से एक बार बाहर निकल गए, तो मालुम करना मुश्किल हो जायेगा कि ये कहां गए? यदि इनमें से कोई एक भी कोरोना पॉजिटिव हुआ, तो गांव के हालात को सम्भाल पाना बेहद मुश्किल हो जायेगा।

    कोरंटाइन का हो सख्ती से पालन

    यदि बाहर से लौटने वाले खुद को अपने ही घर में 14 रोज के लिए कोरंटाइन करें। यानी, सभी से खुद को अलग रखे। तब भी खतरा कम नहीं होगा। क्योंकि, गांव की हकीकत ये है कि पक्का मकान वाले घरो में भी दो या तीन कमरे में कई लोगो के एक साथ रहतें है। पूरा परिवार एक ही शौचालय और चापाकल का इस्तेमाल करता है। जाहिर है कि गांव में किसी को उसके खुद के परिवार के संपर्क में आने से नहीं रोका जा सकता है। ऐसे में परिवार के दूसरे लोग गांव के अन्य लोगो के संपर्क में आयेंगे, तो क्या होगा? जाहिर है कि आपकी सभी तैयारी धरी की धरी रह जायेगी। स्थिति बेकाबू हुई, तो शहर की तुलना में गांव को सम्भाल पाना मुश्किल हो जायेगा।

    जागरुकता अभियान

    मो. सदरुल

    खतरा बड़ा है… तैयारी समझदारी के साथ करनी होगी। विधिक जागरुकता प्राधिकार के लोग गांववालों को इसके लिए तैयार करने में जुट गए हैं। प्रचार वाहनो को गांव में भेजा जाने लगा है। स्वास्थ्यकर्मी लोगो को सुरक्षा के उपाये बता रहें हैं। मीनापुर के समाजिक कार्यकर्ता मो. सदरुल खां जैसे दर्जनो लोग घर-घर जा कर लोगो को समझा रहें हैं। आईडीएफ के लोग भी खुद को खतरे में डाल कर लोगो को जागरुक करने के लिए गांव में निकल पड़े हैं।

    मिल कर लड़ना होगा

    पीएम ने आह्वान किया है कि रविवार को अपने घरो से नहीं निकलें। ऐसे में बहादुर बनने से अच्छा है, समझदार बनें। खुद के ज्ञान पर स्वांग भरने से बेहतर होगा कि एक्सपर्ट जो कहता है, उसका पालन करें। लापरवाही का अंजाम, चीन में देख चुकें हैं। इटली में देख रहें है। कोरोना के सामने सुपरपावर अमेरिका कुछ नहीं कर पा रहा है। यदि भारत में कोरोना ने विराट रुप धारण किया, तो क्या होगा? ऐसे में जरुरी हो गया है कि सभी मतभेद को भुला कर इसके खिलाफ एकजुट हो जाएं। सोशल डिस्टेंश और हाथो की सफाई जैसे मामुली सर्तकता के साथ हम मिल कर कोरोना को हरा सकतें हैं और उम्मीद है कि इस वक्त हमारी चट्टानी एकता… कोरोना पर भारी पड़ेगा।

  • एंटिटैंक गाइडेड मिसाइल से पाकिस्तान के सैनिक ठिकने पर हमला

    एंटिटैंक गाइडेड मिसाइल से पाकिस्तान के सैनिक ठिकने पर हमला

    भारत ने दिया सीजफायर का मुंहतोड़ जवाब

    KKN न्यूज ब्यूरो। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के द्वारा लगातार की जा रही सीजफायर उल्लंघन का करारा जवाब दे दिया है। भारतीय सेना ने एंटिटैंक गाइडेड मिसाइल और तोप के गोले का इस्तेमाल करके गुरुवार को पाकिस्तान के सैनिक ठिकाने को तबाह कर दिया है। इसके बाद पाकिस्तान सेना में खलबली मच गई है। सेना की यह कारवाई कुपवाड़ा सेक्टर के ठीक सामने पाकिस्तानी सैनिक ठिकाने पर हुआ। पाकिस्तानी सेना द्वारा लगातार जम्मू-कश्मीर में सीजफायर उल्लंघन के जवाब में यह कारवाई हुई है।

    पाकिस्तान कर था संघर्ष विराम का उल्लंघन

    पाकिस्तानी सेना ने फरवरी महीने में आठ तारीख को अकारण ही संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए नियंत्रण रेखा पर जम्मू कश्मीर के पुंछ जिले में छोटे हथियारों से गोलीबारी की थी। इस दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा मोर्टार भी दागा गया था, जिसमें भारत के एक सैनिक शहीद हो गया और तीन अन्य घायल हो गए थे। इससे पहले फरवरी में ही चार तारीख को पाकिस्तानी सेना ने पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पर सीजफायर का उल्लंघन किया था। बिना उकसावे के गोलाबारी की गई थी। हालांकि, भारतीय सेना ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया था।

    आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की थीं कोशिश

    पाकिस्तान सेना सीजफायर की आर लेकर कश्मीर घाटी में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की कोशिश कर रहा था। सूत्रो से मिली जानकारी के बाद पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बड़ी संख्या में आतंकवादी भारतीय सीमा में घुसपैठ करने की फिराक में बैठे हुएं हैं। पाकिस्तान इन आतंकियों को भारत में प्रवेस कराके कश्मीर घाटी में उपद्रव फैलाने की पूरी तैयारी कर चुका है। आपको याद ही होगा जब हाल ही में भारतीय सेना के शीर्ष अधिकारियों ने सीमा का दौरा किया था। अधिकारियों ने कहा था कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में फिर से आतंकवादियों के लॉन्चिंग पैड पनप गए हैं।

  • नए साल में नई सोच का संकल्प…

    नए साल में नई सोच का संकल्प…

    वर्ष का कैलेंडर बदलते ही अक्सर लोग नये साल का बड़े उल्लास से स्वागत करते हैं। एक दूसरे को शुभकामनाएं देतें हैं और ढेर सारी शुभकामनाएं लेतें भी हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि हमें जितनी भी शुभकामनाएं मिलती हैं, उनमें से कितनों को अपने जीवन में सच करके दिखाया है? दरअसल, सपने स्वयं सच नहीं होते, उन्हें सच करना पड़ता है। दुनिया की बड़ी आबादी के लिए एक जनवरी ही नया वर्ष होता है। ऐसे में यदि सचमुच नये साल को सार्थक करना है, तो जरूरी है कि कुछ तो ऐसा नया शुरूआत करें कि पूरा साल अपने पिछले साल की तुलना में नया बनकर हमारे जीवन में कुछ नया जोड़े दे।

  • बिलुप्त होने के कगार पर है दुनिया की ढ़ाई हजार भाषाएँ…

    बिलुप्त होने के कगार पर है दुनिया की ढ़ाई हजार भाषाएँ…

    क्या आपने कभी सोचा है कि धरती की अन्य जीवो की तुलना में इंसान सबसे अधिक शक्तिशाली कैसे बन गया। कैसे ज्ञान अर्जित करके सभ्यता का निर्माण किया और धरती पर अपनी सत्ता कायम कर ली। जाहिर है इसके कई आयाम हो सकतें है। पर, इसमें सबसे महत्वपूर्ण है, इंसानी विचारो का सम्प्रेषण। जिसके लिए इंसान ने खुद के लिए भाषा का विकास किया। दरअसल, इसी भाषा की कूबत पर एक इंसान दूसरे इंसान के मजबूत संपर्क में आया और इसी भाषा की वजह से उसने ज्ञान अर्जित करके सभ्यता का निर्माण कर डाला। पर, क्या आप जानतें हैं कि आज हमारी कई भाषाएं बिलुप्त होने के कगार पर है। या यू कहें कि वह अपना स्तित्व खोने की कगार पर है। हकीकत इतना खतरनाक है कि आपको जान कर हैरानी होगी। ‘खबरो की खबर’ के इस सेगमेंट में आज हम इसी भाषा की पड़ताल करेंगे। देखिए, इस रिपोर्ट में…