श्रेणी: KKN Special

  • बिहार में एक बार फिर से होगी नील की खेती

    बिहार में एक बार फिर से होगी नील की खेती

    भारत में नील की खेती को गुलामी का प्रतीक माना जाता है

    भारत में गुलामी का प्रतीक बन चुकी नील खेती एक बार फिर से शुरू करने की तैयारी की जा रही है। वह भी बिहार के चंपारण में। दरअसल, चंपारण सत्याग्रह के करीब सौ साल बाद बिहार में नील की खेती लौट रही है। ब्रिटिश काल में यह खेती जुल्म व शोषण का प्रतीक बन गई थी। लेकिन बदले हालात में किसानों ने अधिक आमदनी की गरज से नील का खेती शुरू करने का निर्णय लिया है।

    दो किसानो ने किया आगाज
    बिहार के भोजपुर जिला अन्तर्गत शाहपुर प्रखंड में इस साल पहली बार दो किसानों ने एक-एक एकड़ में नील की खेती की हुई है। अप्रैल के पहले हफ्ते में बोए बीज से फसल तैयार होने के बाद करीब तीन माह पर इसकी पहली कटिंग की गई है। सरना गांव के किसानो की माने तो काफी कम लागत में बेहतर उत्पादन से वे बेहद खुश हैं। एक एकड़ में करीब सात क्विंटल सूखी पत्तियों का उत्पादन हुआ है। यह माल केरल की कंपनी ले जाएगी। किसानों ने नील उत्पादन से जुड़ी केरल की एक कंपनी से करार किया है। कंपनी ने ही किसानों को बीज उपलब्ध कराया था। उत्पादन के बाद करीब 60 रुपये किलो की दर से सूखी पत्तियां खरीदने का भरोसा दिया गया है।
    दुनिया के कई देशो में है नील की मांग
    नील की बढ़ती मांग के मद्देनजर भारत समेत विभिन्न देशों में नील की खेती फिर से शुरू होने के आसार है। जानकार बतातें हैं कि विश्व भर में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ती जा रही है। बाजार के इस रुझान ने ही किसानों को नील की खेती की ओर फिर से आकर्षित किया है। वहीं नील के पौधों के जड़ों की गांठों में रहने वाले बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को नाइट्रेट में बदलकर मिट्टी की उत्पादकता को संरक्षित करते हैं। किसान इसका उपयोग जैविक खाद के तौर पर भी कर सकते हैं।

  • धारा-377 के मौजू पर सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा

    धारा-377 के मौजू पर सुप्रीम कोर्ट की समीक्षा

    भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विवादित धारा 377 को लेकर गहन समीक्षा जारी है। दूसरी ओर पूरे देश में इसको लेकर बहस का दौर भी जारी है। दरअसल, 377 के तहत समलैंकिग संबंध को अपराध के दायरे में रखा हुआ है। दूसरी ओर ऐसे भी लोग है जो आपसी सहमति के आधार पर स्थापित समलैंकिग संबंध को अपराध नहीं मानते और इसे मौलिक अधिकार का दर्जा देने की मांग कर रहें है।

    सुप्रीमकोर्ट कर रहा है पुनर्विचार
    इस बीच सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को बरकरार रखने वाले अपने पहले के आदेश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है। इससे समलैंकिग संबंधो के लिए लड़ाई लड़ रहें लोगो में उत्साह बढ़ा है। बतातें चलें कि इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के फैसले के विरुद्ध फैसला सुनाया था। अब इस मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजते हुए न्यायालय ने कहा है कि जो किसी के लिए अप्राकृतिक है वह हो सकता है कि किसी अन्य के लिए अप्राकृतिक न हो। लिहाजा, इस पर बहस जरुरी है।
    दो वयस्क के बीच शारीरिक संबंध
    नाज फाउंडेशन के द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत बताई है। कोर्ट ने कहा कि इसमें संवैधानिक मुद्दे जुड़े हुए हैं। दो वयस्कों के बीच आपसी सहमति के आधार पर बनाए गये शारीरिक संबंध अपराध हैं या नहीं? इस पर बहस जरूरी है. अपनी इच्छा से किसी को चुनने वालों को भय के माहौल में नहीं रहना चाहिए। सभी को अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार के तहत कानून के दायरे में रहने का अधिकार है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट जानवरों के साथ संबंध बनाने के मामले की सुनवाई नहीं करेगा जो कि इसी धारा के तहत अपराध माना गया है।
    दिल्ली कोर्ट पहले ही दे चुका है निर्णय
    इस मामले में वर्ष 2009 में दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाने का फैसला दिया था। केंद्र सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। जिसके बाद दिसंबर 2013 में हाई कोर्ट के आदेश को पलटते हुए सुप्रीमकोर्ट ने समलैंगिकता को भारतीय दंड विधान संहिता की धारा 377 के तहत अपराध की श्रेणी में बरकरार रखा था।
    कया है धारा-377
    दरअसल, धारा-377 को वर्ष 1862 में ब्रिटिश हूकूमत के द्वारा भारत में लागू किया था। इस कानून के तहत अप्राकृतिक संबंध को गैरकानूनी बताते हुए इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। वर्तमान में यदि कोई स्‍त्री और पुरुष भी आपसी सहमति के आधार पर अप्राकृतिक तरीके से संबंध बनाते हैं तो इस धारा के तहत 10 साल की सजा व जुर्माने का प्रावधान है। किसी जानवर के साथ भी काम संबंध बनाने पर इस कानून के तहत उम्र कैद या 10 साल की सजा एवं जुर्माने का प्रावधान है। बतातें चलें कि मौजूदा समय में धारा-377 एक गैरजमानती अपराध है।

  • गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई बने युवाओं के आइकॉन

    गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई बने युवाओं के आइकॉन

    भारत के चेन्नई में वर्ष 1972 में जन्में पिचाई सुंदराजन को आज पूरी दुनिया सुंदर पिचाई के नाम से जानती है। पर, बहुत कम ही लोग है, जो पिचाई सुदराजन के सुंदर पिचाई बनने तक के सफर को ठीक से जानतें हैं। आज करोड़ो में खेलने वाला यह लड़का अपने करियर के आरंभिक दिनो में जबरदस्त आर्थिक तंगी झेल चुका है। बावजूद इसके संसाधन का अभाव इसके हौसलो की उड़ान को रोक नहीं सका और आज यह युवाओं का आइकॉन बन चुका है। जीहां, मैं बात कर रहा हूं कि दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई की। आपको शायद पता हो कि आर्थिक तंगी के कारण सुंदर पिचाई 1995 में स्टैनफोर्ड में बतौर पेइंग गेस्ट रहते थे। पैसे बचाने के लिए उन्होंने पुरानी चीजें इस्तेमाल की। किंतु, पढ़ाई से कभी समझौता नहीं किया। वे पीएचडी करना चाहते थे। लेकिन परिस्थितियां ऐसी बनीं कि उन्हें बतौर प्रोडक्ट मैनेजर अप्लायड मटीरियल्स इंक में नौकरी करनी पड़ी।

    ऐसे प्राप्त की शिक्षा

    सुंदर पिचाई ने अपनी बैचलर की डिग्री आईआईटी, खड़गपुर से ली है। इस मेधावी छात्र को अपने बैच में सिल्वर मेडल हासिल हुआ था। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने अमेरिका चला गया और अमेरिका के स्टैनडफोर्ड यूनिवर्सिटी से सुंदर ने एमएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद वॉर्टन यूनिवर्सिटी से एमबीए किया। पिचाई को पेन्सिलवानिया यूनिवर्सिटी में साइबेल स्कॉलर के नाम से जाना जाता था। इसी दौरान सुंदर पिचाई ने 2004 में गूगल ज्वाइन किया और फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखा।

    गूगल में रहते हुए निभाया बड़ी भूमिका

    कहतें हैं कि एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के डेवलपमेंट और 2008 में लांच हुए गूगल क्रोम में सुंदर पिचाई ने बड़ी भूमिका निभाई। यह बात तब की है, जब वह गूगल में प्रोडक्ट और इनोवेशन ऑफिसर हुआ करते थे। इसी दौरान उन्होंने गूगल का सीनियर वीपी यानी प्रोडक्ट चीफ बना कर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था। शुरआती दिनो में सुंदर पिचाई गूगल में सीनियर वाइस प्रेसीडेंट हुआ करते थे। कहतें है कि सुंदर का पहला प्रोजेक्ट प्रोडक्ट मैनेजमेंट और इनोवेशन शाखा में गूगल के सर्च टूलबार को बेहतर बनाकर दूसरे ब्रॉउजर के ट्रैफिक को गूगल पर लाना था। इसी दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि गूगल को अपना ब्राउजर लांच करना चाहिए। इसी एक आइडिया से वे गूगल के संस्थापक लैरी पेज की नजरों में आ गए।

    सुंदर की अन्य उपलब्धियां

    सुंदर ने ही गूगल ड्राइव, जीमेल ऐप और गूगल वीडियो कोडेक बनाए हैं। सुंदर द्वारा बनाए गए क्रोम ओएस और एंड्रॉइड एप ने उन्हें गूगल के शीर्ष पर पहुंचा दिया। पिछले साल एंड्रॉइड डिविजन उनके पास आया और उन्होंने गूगल के अन्य व्यवसाय को आगे बढ़ाने में भी अपना योगदान दिया। पिचाई की वजह से ही गूगल ने सैमसंग को साझेदार बनाया। सुंदर ने गूगल ज्वाइन करते ही इंटरनेट यूजर्स के लिए रिसर्च शुरू कर दिया। ताकि यूजर्स जो इन्स्टॉल करना चाहते हैं, वे जल्दी इन्स्टॉल हो जाए। हालांकि यह काम ज्यादा मजेदार नहीं था, फिर भी उन्होंने खुद को साबित करने के लिए अन्य कंपनियों से बेहतर संबंध बनाएं, ताकि टूलबार को बेहतर बनाया जाए। उन्हें प्रोडक्ट मैनेजमेंट का डायरेक्टर बना दिया गया।

  • मौजूदा दौर में अपराध का एक और नया चेहरा

    मौजूदा दौर में अपराध का एक और नया चेहरा

    अपराध का मतलब हत्या, डकैती, चोरी या बलात्कार ही नहीं होता हैं। बल्कि, व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह को आहत करने वाला सभी कृत्य, अपराध की श्रेणी में आता है। एक कालखंड के कृत्यों को खंडित करके, दूसरे कालखंड में इरादतन प्रस्तुत करना और मौजूदा कालखंड के मूल्यों की कसौटी पर, बीते कालखंड के तथ्यों को हूबहू परखना भी एक अपराध ही तो है।

    जींजों को समग्रता में नहीं समझने की विवेकशुन्यता भी इसी अपराध की श्रेणी में आता है। दुर्भावनाओं से ग्रसित होकर मूल्यहीन तथ्यों को प्रचारित करने से उत्पन्न होने वाला तनाव भी किसी जधन्य अपराध से कम नहीं हैं। दुर्भाग्य से हम में से कई लोग ऐसे कृत्यों को अंजाम देते हुए, खुद में अपराधबोध का अहसास भी महसूस नहीं करतें हैं। इससे अपराध का समाजीकरण हो जाता है और इसका सर्वाधिक लाभ, असमाजिक तत्व उठा लें जातें हैं।
    कुंठा से अपराधीकरण तक
    दरअसल, आधी-अधूरी जानकारी के आधार पर खुद के ज्ञानी होने का स्वांग भरने वालों की बेजा हरकत से उत्पन्न कुंठा ने अपराध का समाजीकरण कर दिया है। नतीजा, हालिया वर्षो में अपराध के आंकड़ें खतरनाक रूप से विराट रूप धारण करने लगा है। यदि हम बात आंकड़ों की करें तो, भारत में प्रति पन्द्रह सेकेंड में कहीं न कहीं अपराधिक कृत्य का घटित होना भी अब किसी को चौकाता नहीं है? हालात ये हो गए है कि उन इलाको में भी अपराध पनपने लगा है, जहां पहले समाजिक सौहार्द का वातावरण होता था। अपराध और असमाजिक कृत्यों का विरोध करने वाले वर्ग को आज एक गहरे साजिश की बुनियादी पर, हासिए पर धकेल दिया गया है। नतीजा, गांव और कस्वा भी, अब इन्हीं अपराधियों की चंगूल में कराहने लगा है, या यूं कहें कि घूटन महसूस करने लगा है। इसे हमारे कालखंड की बिडंबना कह लें कि आज तथ्यों को तोड़-मरोर कर जाबांजी दिखाने वालों की फेहरिश्त लम्बी होती जा रही है। अब इस नवोदित अपराध का खामियाजा, आमलोग तो भुगतन ही रहें हैं। कथित बुद्धिजीवी भी इससे खुद को अछूता नहीं रख पा रहें हैं। इससे उत्पन्न होने वाला तनाव ही कालांतर में अपराध का रूप धारण कर लेता है।
    सक्रिय है एक नया गैंग
    दरअसल, तथ्यों की बाजीगरी दिखाने वालों का एक पूरा गैंग इन दिनो तेजी से सक्रिय हो गया है। ऐसे लोगो का मकसद मूल समस्या से ध्यान बाटने का होता है। यह गैंग फर्जी आंकड़ो की आर लेकर समस्या का जातिकरण करने में लगा हुआ है। चंद मिसालो की कूबत पर, पूरा चेहरा दिखाने में लगा हुआ है। ताकि, अपराध का समाजीकरण किया जा सके। इनका मकसद विकासवाद को दरकिनार करके वर्ग संघर्ष का स्वांग भरना मात्र रह गया है। इससे बचने का एक मात्रा रास्ता है कि आप खुद से तथ्यों का अध्ययन करें और किसी के बहकावे में आने से बचे। खुदसर ही तथ्यों को समग्रता में समझने की कोशिश करें। खुद में उत्पन्न होने वाले कुंठा से निकाल कर चित्त को सकारात्मकता की ओर अग्रसर करने की कोशिश करें। दोस्त को दुश्मन समझने की अज्ञानता से बचने की कोशिश करें और समाज की समरशता को नष्ट करके, उसे कुंठा की अन्तहीन दल-दल में धसने से बचाने की भी कोशिश करें।
    यह अपराध नहीं तो और क्या है
    दरअसल, जो लोग समाज का अपराधीकरण करने पर तुले हैं, वह नही चाहते कि हमारा आज का युवा और अर्द्ध युवा पीढ़ी राजनीति का समीकरणवादी चेहरा देखें। वह नहीं चाहते हैं कि आप अपने रहनुमाओं को आकंट भ्रष्टाचार में डूबा हुआ देखें। वह नहीं चाहतें कि आप लालफीताशाही की निरंकुश होती प्रवृत्ति को देखें। दरअसल, वह आपको वास्तविक समस्या से इतर ले जाने के मकसद से ही सक्रिय हुआ है। लिहाजा, वह आपको, अपनो से खिलाफत कराने को ही खुद की जीत समझता है। चंद मिशालो की कूबत पर पूरा तानबाना बनाने को ही जीत समझता है। दरअसल, वह आपको मानसिक तौर पर कमजोर करके आपकी सोच को खुद का गुलाम बनाने की स्वांग को ही अपना जीत समझता है। यह एक अपराध नहीं, तो और क्या है…?

  • मीनापुर में तबाही का कारण बना बूढ़ी गंडक का खुला तटबंध

    मीनापुर में तबाही का कारण बना बूढ़ी गंडक का खुला तटबंध

    बांध का निर्माण होने से टल सकता है खतरा

    मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर में बूढ़ी गंडक का खुला तटबंध बाढ़ की तबाही का सबसे बड़ा कारण बन चुका है। बावजूद इसपर न तो कोई जन प्रतिनिधि और न ही अधिकारी कोई ठोस पहल करना चाह रहे हैं। इसका नतीजा है कि साल दर साल यहां की बड़ी आबादी बूढ़ी गंडक के कहर को झेलने के लिए अभिशप्त है।

    जानकारी के मुताबिक मीनापुर से हरशेर तक बूढ़ी गंडक का वायां तटबंध करीब 11 किलोमीटर की दूरी में खुला छोड़ दिया गया है। इस कारण से बूढ़ी गंडक नदी में उफान आते ही बाढ़ का पानी मीनापुर के गांवों में फैलने लगता है और इससे जबरदस्त तबाही मच जाती है।
    बिहार सरकार के पूर्व मंत्री दिनेश प्रसाद का आरोप है कि शहर व दूसरे इलाके को बचाने के लिए जानबूझ कर यहां तटबंध का निर्माण नहीं कराया गया है। बहरहाल, बूढ़ी गंडक नदी का यह खुला तटबंध अब मीनापुर के लोगों को डराने लगा है। मीनापुर में बाढ़ का सबसे बड़ा कारण यह खुला बांध ही है। जुलाई माह आते ही मीनापुर के लोगों को बाढ़ का खतरा सताने लगता है। नदी के किनारे बसे लोग पलायन करने को मजबूर होते हैं। पिछले वर्ष आयी बाढ़ ने प्रखंड की एक पंचायत को छोड़ बाकी के सभी 27 पंचायतों में भारी तबाही मचाई थी। इस बार भी अगर जलस्तर खतरे के निशान को पार किया, तो इलाके में बाढ़ तबाही मचाएगी।
    तटबंध निर्माण नहीं होने से लोगों में आक्रोश
    मीनापुर में बूढ़ी गंडक का खुला तटबंध अब लोगों के आक्रोश का कारण बन सकता है। बाढ़ की तबाही झेल रहे रघई के मुखिया चन्देश्वर साह कहतें हैं कि यदि शीघ्र ही बूढ़ी गंडक के इस खुले तटबंध को बांधा नहीं गया तो यहां के बाढ़ पीड़ित जन आंदोलन शुरू कर देंगे। ग्रामीणों ने बताया कि बायां तटबंध खुला होने से बूढ़ी गंडक का पानी सीधे मीनापुर की 27 पंचायतों में प्रवेश कर तबाही मचाती है। बाढ़ से यहां करोड़ों की फसल क्षति ही नहीं बल्कि, बड़ी संख्या में जानमाल का भी नुकसान होता है। राहत के नाम पर प्रत्येक साल प्रशासनिक हलको में लूट मची रहती है। आखिरकार, आम लोगों को ही इसका खामियाजा उठना पड़ता है। पिछले वर्ष बाढ़ राहत को लेकर लंबे समय तक लोगों ने प्रखंड मुख्यालय पर धरना-प्रदर्शन किया था।
    टूट सकता है किसानो का सब्र
    मीनापुर में बूढ़ी गंडक के खुले तटबंध को शीघ्र बांधा नहीं गया तो किसानो का सब्र टूट जाएगा। प्रशासन की उदासीनता के कारण लोग बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं। लोग पलायन करने को मजबूर हैं। नीरज कुमार, समन्वयक किसान क्लब, अलीनेउरा
    बांध को तत्काल निर्माण
    सरकार और प्रशासन को समय रहते उपाय करना चाहिए। ताकि, मीनापुर के लोगों को बाढ़ की तबाही से बचाया जा सके। 11 किमी में बांध के निर्माण हो जाने से लाखों की आबादी बाढ़ के संकट से उबर जाएगी। राजकुमार साह, सहवाजपुर

  • मीनापुर में बाढ़ की तबाही से निपटने का कोई इंतजाम नही

    मीनापुर में बाढ़ की तबाही से निपटने का कोई इंतजाम नही

    कौशलेन्द्र झा
    मुजफ्फरपुर। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत बाढ़ प्रभावित मीनापुर में बाढ़ का खतरा एक बार फिर से लोगो के सिर पर मंडराने लगा है और इससे निपटने की प्रशासनिक तैयारी सिफर है।

    जाहिर है कि बाढ़ आई तो एक बार फिर से हाय-तौबा मचना लाजमी है। नेता हो या अधिकारी, समय रहते इससे निपटने के लिए कोई भी गंभीर कयों नही है? आम लोगो के जेहन में अब यह सवाल कौधने लगा है।
    स्मरण रहें कि गत वर्ष 15 जुलाई के बाद बूढ़ी गंडक नदी के उफान की चपेट में आने से मीनापुर के 28 में 27 पंचायतो में जबरदस्त तबाही मची थी। सैकड़ो गांवों का प्रखंड मुख्यालय से सड़क संपर्क टूट गया था और दस हजार से अधिक परिवार विस्थापित हुए थे। इस दौरान करोड़ो का फसल नष्ट हो गया था और बड़ी संख्या में सरकारी व गैर सरकारी संपत्ति को भी नुकसान हुआ था। दो दर्जन लोगो को अपनी जान भी गवांनी पड़ी थी। बावजूद इसके प्रशासन ने इससे कोई सबक नही लिया और जून का प्रथम पखबारा बीत जाने के बाद भी आज तक बाढ़ जैसे आपदा से निपटने के लिए यहां कोई भी पुख्ता इंतजाम का नही होना चौका देता है।
    सीओ ने डीएम को भेजा त्राहिमाम संदेश
    मीनापुर के अंचलाधिकारी ने पिछले दिनो जिलाधिकारी को पत्र लिख कर जो जानकारी दी है। दरअसल, वह प्रशासनिक तैयारी की पोल खोलने के लिए प्रयाप्त है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मीनापुर में एक भी सरकारी नौका उपलब्ध नही है। इतना ही नही बल्कि, बाढ़ के दौरान हाय तौबा करने वाली प्रशासन के पास आज एक भी मोटरवोट, लाइफ जैकेट आदि कुछ भी उपलब्ध नही है। यानी बाढ़ आई तो एक बार फिर से लोगो को अपने किश्मत पर खुद रोना होगा। हालांकि, अंचलाधिकारी ने 20 निजी नौका मालिक के साथ एकरारनामा करने की बात कही है। ताज्जुब की बात है कि ढ़ाई लाख से अधिक की आबादी को बाढ़ से निकालने के लिए 20 निजी नौका, उंट के मुंह में जीरा का फोरन नही तो और क्या है?
    अधिकारी सुनने को तैयार नही
    मैंने समय रहते जिला प्रशासन को बाढ़ की समस्या से अवगत कराया है। तैयारी नही रहने से होने वाले नुकसान को भी बताया है। बावजूद इसके कोई भी अधिकारी सुनने को तैयार नही है और आम लोगो को उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है। चन्देश्वर साह, मुखिया, रघई, मीनापुर।
    बाढ़ बना बेहतर कमाई का जरिया
    जनता की किसी को फिकर नही है। अधिकारी हो या नेता, बाढ़ आने पर मदद की आर लेकर खुद का चेहरा चमकाने वाले कोई भी आज गंभीर नही है। क्योंकि, कुछ लोगो के लिए बाढ़ बेहतर कमाई का जरिया बन जाता है। लिहाजा, घड़ियाली आंसू बहाने वाले आज चुप है।  बिन्देशर प्रसाद, किसान, बहवल बाजार, मीनापुर।

  • 624 ईस्वी में पहली बार मनाया गया था ईद

    624 ईस्वी में पहली बार मनाया गया था ईद

    नई दिल्ली। गूगल सर्च इंजन पर इस वक्त सबसे ज्यादे सर्च होने वाले शब्दो में से एक शब्द ईद है। सर्च सर्वे के मुताबिक ईद आज तीसरा सबसे अधिक सर्च होने वाला शब्द बन चुका है।

    लोग ईद के बारे में जानकारियां चाहते हैं। तो आइए हम आपको ईद से जुड़ी कुछ रोचक तथ्यों से अवगत कराते है। दरअसल, इस्लामिक कैलेंडर या हिजरी में रमजान के महीने को साल का नौवां महीना माना गया है, जो बहुत ही पाक यानी पवित्र महीना होता है। इस पूरे महीने में दीनवाले लोग रोजा रखते हैं और रमजान के आखिरी दिन यानी आखिरी रोजा चांद को देखकर खत्म किया जाता है। शाम को चांद दिखने पर अगले दिन ईद का त्यौहार मनाने की परंपरा रही है। ईद को ईद-उल-फितर के नाम से भी जाना जाता हैं। लेकिन यह परंपरा कैसे शुरू हुई इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है।
    कहा जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में शानदार विजय हासिल की थी। इसी युद्ध को जीतने की खुशी में लोगों ने ईद का त्योहार मनाना शुरू कर दिया था। 624 ईस्वी में पहली बार ईद उल फित्र मनाया गया था। पाक माह रमजान का आखिरी रोजा ईद का चांद देखने के बाद शुरू होता है। इसके बाद ईद उल फित्र का उत्सव पूरे हर्षोल्लास के साथ देशभर में मनाया जाएगा।

  • ट्रंप-किम के बीच हुआ समझौता, उम्‍मीद से बेहतर

    ट्रंप-किम के बीच हुआ समझौता, उम्‍मीद से बेहतर

    पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण पर बनी सहमति
    सिंगापुर। सिंगापुर के लोकप्रिय पर्यटन स्थल सेंटोसा के एक होटल में ट्रंप और किम की ऐतिहासिक शिखर वार्ता खत्‍म हो चुकी है। इस बैठक का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाना और कोरियाई प्रायद्वीप को पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण करना है।

    मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति और एक उत्तर कोरियाई नेता के बीच हो रही यह पहली शिखर वार्ता ट्रंप और किम के बीच कभी बेहद तल्ख रहे रिश्तों को भी बदलने वाली साबित होगी। बैठक के बाद अमेरिकी राष्‍ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि बातचीत उम्मीद से कहीं बेहतर हुई है।
    अमेरिका को परमाणु युद्ध की धमकी देने वाला किम जोंग अब परमाणु हथियार छोड़ने के लिए राजी हो गया है। वहीं, ट्रंप ने कहा कि जल्द ही उत्तर कोरिया में परमाणु निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया पर काम शुरू हो जाएगा। जानकारी के मुताबिक किम ने जहां पूर्णतः परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए प्रतबिद्धता जताई है, तो वहीं बदले में अमेरिका ने प्योंगयांग को सुरक्षा की गारंटी दी है। साझा दस्तावेज के मुताबिक अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच अब रिश्तों का नया अध्याय शुरू होगा। ऐसे की उम्मीद जताई जा रही है कि ये नया रिश्ता कारगर साबित होगा।
    जिस तरह सिंगापुर में पुरानी तल्खी भूलकर ट्रंप और किम मुस्कुराकर एक-दूसरे से गर्मजोशी से मिले, उसने उम्मीदें और बढ़ा दी हैं। वार्ता के बाद ट्रंप भी काफी उत्साहित होकर कहते नजर आए कि मुलाकात बहुत-बहुत अच्छी रही, वहीं किम भी ट्रंप से मिलकर काफी खुश नजर आए। बता दें कि दोनों नेताओं के बीच दो दौर की वार्ता हुई। सुबह करीब 11:10 बजे किम और ट्रंप ने समझौतों के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। वहीं, सवा 11 बजे संयुक्त बयान जारी करते हुए दोनों नेताओं ने कहा कि यह काफी व्यापक और महत्वपूर्ण दस्तावेज है, दुनिया एक बड़ा बदलाव देखेगी। इस बीच किम के साथ बातचीत को लेकर ट्रंप ने कहा किसी ने जितनी उम्मीद की होगी, यह उससे अच्छी रही।
    बैठक खत्म होने के बाद ट्रंप ने कहा कि जल्द ही परमाणु निरस्त्रीकरण की प्रक्रिया पर काम शुरू हो जाएगा। एक ओर ट्रंप ने जहां किम से मिलने पर खुशी जाहिर की तो वहीं किम ने भी इस मुलाकात को सराहते हुए बीते कल को भूलने का वादा किया। बता दें कि भारतीय समयानुसार सुबह करीब साढ़े सात बजे दोनों शीर्ष नेताओं की बीच ऐतिहासिक शिखर वार्ता खत्म हुई। दोनों नेताओं के बीच करीब 50 मिनट तक बातचीत हुई। मीटिंग खत्म कर बाहर निकलते हुए ट्रंप और किम मुस्कुराते नजर आए। इस दौरान ट्रंप ने कहा कि मीटिंग बहुत ही अच्छी रही। वहीं, किम जोंग ने कहा कि मुझे लगता है कि पूरी दुनिया इस पल को देख रही है। दुनिया के कई लोग इसे सपना समझ रहे होंगे या फिर किसी फिल्म का दृश्य।

  • तो क्या इतिहास के पन्नो में गुम हो जाएगी चीन की चालबाजी

    तो क्या इतिहास के पन्नो में गुम हो जाएगी चीन की चालबाजी

    भारत ।  चीन भारत का पड़ोसी है, पर वह बेहद चालबाज है। चीन हमेशा से विस्तारवाद का पोषक रहा है और उसके मूल नीति को समझे बिना चीन से दोस्ती करना भारत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। हमें कभी नही भूलना चाहिए हिन्दी- चीनी भाई- भाई का नारा जिस वक्त अपने पराकाष्टा पर था, ठीक उसी वक्त चीन की रेडआर्मी ने हमारे टेरोटियल पर हमला करके एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया था। आज भी चीन की पैनी नजर न सिर्फ डोकालाम पर है। बल्कि, वह हमारे अरूणाचल प्रदेश, सिक्किम, भूटान और लद्दाख को भी ललचाई भरी नजरो से देखता है।

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    चीन के धोखेबाजी का मिशाल बना तिब्बत

    इतिहास के पन्नो में झांके तो चीन के चालबाजी का ज्वलंत मिशाल है तिब्बत। बहुत कम लोग इस बात से वाकिफ हैं कि कभी तिब्बत ने, चीन से अपनी रक्षा के लिए सैन्य मदद मांगी थी। चीन ने मदद भी किया। लेकिन, बाद में धोखे से उस पर कब्जा कर लिया। तिब्बत पर धोखे से कब्जा करने के बाद चालाक चीन की निगाहें अब भारत की सीमा पर लगी हुई है। चीन एक ऐसा देश है जो आज भी अपनी विस्तारवादी नीति पर ही काम कर रहा है।

    चीन ने कैसे किया तिब्बत पर कब्जा

    दरअसल, हुआ ये कि 19वीं सदी के आरंभिक वर्षो में तिब्बत और नेपाल के बीच अक्सर युद्ध होने लगा था। युद्ध में तिब्बत को अक्सर हार का सामना करना पड़ रहा था। लिहाजा, नेपाल ने हर्जाने के तौर पर तिब्बत को प्रत्येक वर्ष 5 हजार नेपाली रुपया, बतौर जुर्माना देने की शर्त पर हस्ताक्षर करवा लिए। इससे तिब्बत के शासक काफी दुखी हो गये और हर्जाने की अदायगी से बचने के लिए चीन से सैन्य सहायता की मांग कर दी। चीन की मदद के बाद तिब्बत को हर्जाने से छुटकारा तो मिल गया। लेकिन 1906-7 ई. में तिब्बत पर चीन ने अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग, ग्याड्से समेत गरटोक में अपनी चौकियां स्थापित कर लीं। जानकार मानते है कि तिब्बत की अपनी ही गलती, उसके गुलामी का कारण बन गया। कहते हैं कि चीन की सेना ने यहां पर तिब्बती लोगों का शोषण किया और आखिर में वहां के प्रशासक दलाई लामा को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। जो, आज भी भारत में शरण लिए हुएं हैं।

    चीन ने रची एक और साजिश

    सन 1933 ईस्वी में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद आउटर तिब्बत धीरे-धीरे चीन के घेरे में आने लगा था। 14वें दलाई लामा ने 1940 ईस्वी में शासन भार संभाला। 1950 ईस्वी में पंछेण लामा के चुनाव को लेकर दोनों देशों में शक्ति प्रदर्शन की नौबत आ गई और चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। इसके बाद 1951 की संधि के अनुसार साम्यवादी चीन के प्रशासन में इनर तिब्बत को एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो 1956 एवं 1959 ईस्वी में और भड़क उठी। लेकिन बल प्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। चीन द्वारा चलाए गए दमन चक्र से बचकर किसी प्रकार दलाई लामा नेपाल होते हुए भारत पहुंचे। मौजूदा समय में सर्वतोभावेन पंछेण लामा यहां के नाममात्र के प्रशासक बन कर रह गये हैं।

    तिब्बत का बौद्ध धर्म से गहरा लगाव

    कहते हैं कि मध्य एशिया की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के मध्य स्थित 16 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित तिब्बत का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7वीं शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रांरभ हो गया था। जानकार मानते हैं कि 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया।

    चीन की मौजूदगी भारत के लिए खतरा

    बहरहाल, हालत काफी करवट ले चुका है और यदि किसी दिन तिब्बत हमेशा के लिए चीनियों का क्षेत्र बन गया तो यह केवल तिब्बत का अंत नही बल्कि, भारत के लिए भी एक स्थायी खतरा बन जायेगा। पिछले दिनों चीन ने तिब्बत में दुनिया के सबसे उँचे रेलमार्ग का निर्माण करके न केवल तिब्बत पर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। बल्कि, उसने तिब्बत के खनिज पदार्थो के दोहन का भरपूर अवसर भी अपने पक्ष में कर लिया है। इससे चीन की सामरिक शक्ति में वृद्वि होगी जो भारत के लिए चिन्ता का कारण बन सकता है।

    नदियों की आर में कचरा छोड़ रहा है चीन

    तिब्बत चीन के सैन्यीकरण का मुख्य अड्डा बन चुका है। वह चीन के आणविक रेडियोधर्मी कचरा फेंकने वाला कूड़ा दान बन कर रह गया है। नतीजा, यहां से निकलने वाली नदियो का जल धीरे- धीरे भयानक रूप से दूषित होता जा रहा है। बताते चलें कि ये नदियाँ आक्सस, सिन्धु, ब्रम्ह्पुत्र, इरावदी आदि है, जो दक्षिणी एशिया के अनेक देशों में बहती है, जिनमें भारत और बांग्लादेश जैसे घनी आबादी वाले देश शामिल हैं।

    खनिज सम्पदा पर चीन का कब्जा

    चीन ने तिब्बत में पायी जानेवाली खनिज सम्पदा पर भी कब्जा कर लिया है। बताते चलें कि यहां बोरेक्स, क्रोमियम, कोबाल्ट, कोयला, तांबा, हीरा, सोना, ग्रेफाइट, अयस्क, जेड पत्थर, लेड, मैग्नीशियम, पारा, निकेल, प्राकृतिक गैस, तेल, आयोडिन, रेडियम, पेट्रोलियम, चाँदी, टंगस्टन ,टाइटेनियम, युरेनियम और जस्ता इत्यादि प्रमुख रूप से पाया जाता है। इसके अतिरिक्त उत्तरी तिब्बत में कांस्य प्रचुर मात्रा में है। ये सारे खनिज धरोहर पूरी दुनिया के ज्ञात स्रोतों से प्राप्त होंने वाले खनिज पदार्थो का तकरीबन 50 प्रतिशत से भी ज्यादा बताया जा रहा है।

    जंगलो को काट कर पैसा कमा रहा है चीन

    इतना ही नही बल्कि, चीन ने तिब्बत के जंगलों की अंधाधुध कटाई करके अरबो डॉलर की कमाई कर रहा है। एक अनुमान के अनुसार तिब्बत के 70 प्रतिशत जंगल काटे जा चुके है। चीनियो ने तिब्बत के कृषि प्रणाली को ध्वस्त कर दिया है। नतीजा, पिछले दशक में लगभग तीन लाख तिब्बती भूख से मर गये। चीनियों ने तिब्बत के लोपनोर इलाके में बड़े पैमाने पर आणविक परीक्षण किये है। इसके परिणामस्वरुप लोपनोर में रहने वाले अधिकांश लोग घातक रेडिएशन की चपेट में आकर तड़प-तड़प कर मौत की आगोश में समा गये। वही अधिकांश लोगों जान बचा कर वहां से विस्थापित करने को विवश हो गयें हैं।

    चीन के इसी दुखते नब्ज पर हाथ डालने का वक्त

    अन्तराष्ट्रीय मामलो के जानकार मानतें हैं कि तिब्बत, चीन का दुखता हुआ नब्ज है और समय आ गया है कि भारत को इस नब्ज पर हाथ डाल देना चाहिए। जिस प्रकार से डोकलाम को लेकर पूर्व में हुए समझौते से चीन मुकर रहा है। ठीक उसी प्रकार भारत सरकार को भी तिब्बत नीति पर पुनर्विचार करने का वक्त आ गया है……।

    KKN Live की यह रिपोर्ट आपको कैसी लगी? मुझे आपके जवाब का इंतजार रहेगा। आप इस पोस्ट को लाइक व शेयर करके हमारा हौसला बढ़ा सकतें हैं। इस तरह की रिपोर्ट को नियमित रूप से पढ़ने के लिए आप हमारे पेज को फॉलो कर सकतें हैं।

  • सिंगापुर में ट्रंप-किम बैठक पर टिकी है दुनिया की निगाहें

    सिंगापुर में ट्रंप-किम बैठक पर टिकी है दुनिया की निगाहें

    सिंगापुर। कहने को यह महज दो देश के राष्टाध्यक्षो की मुलाकात है। बावजूद इसके इस मुलाकात पर पूरी दुनिया की नजरें टिकी है। हो, भी क्यों नहीं? क्योंकि, वार्ता सफल हुआ तो ठीक। वर्ना, तीसरा विश्वयुद्ध या यूं कहें कि परमाणु युद्ध का खतरा…। कमोवेश इसका नुकसान पूरी दुनिया को भुगतना पड़ सकता है।

    जीहां, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के सिंगापुर में होने वाली शिखर वार्ता पर इस वक्त पूरी दुनिया की नजरें गड़ी है। बतातें चलें कि दोनो शीर्ष नेता वार्ता के लिए सिंगापुर पहुंच चुकें हैं। हालांकि, दोनो के बीच मंगलवार को आमने-सामने की वार्ता होनी है। इसे दोनो के बीच संबंधों के नए युग के आगाज के तौर पर भी देखा जा रहा है। मुलाकात के दौरान परमाणु निरस्त्रीकरण पर चर्चा होने की बात कही जा रही है।
    समाचार एजेंसी एफे ने कोरियन सेंट्रल न्यूज़ एजेंसी के हवाले से जानकारी दी है कि सिंगापुर में दोनों नेता नए सिरे से संबंधों को स्थापित करने की कोशिश करेंगे। इसके अतिरिक्त कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को पूरा करने और क्षेत्र में स्थाई शांति बनाए रखने के तंत्र निमार्ण की कोशिश होनी है। यदि ऐसा हुआ तो इससे नए युग की जरूरत को पूरा करने का मार्ग खुल जायेगा।

  • क्या भारत के सियासी आग को फिर भड़कायेगी पेट्रोल?

    क्या भारत के सियासी आग को फिर भड़कायेगी पेट्रोल?

    “देश, दुनिया की सभी खबरो का अपडेट पढ़ने के लिए प्लेस्टोर से KKN Live का न्यूज एप डाउनलोड कर सकतें हैं…”

    भारत। पेट्रोल की बढ़ती कीमत भारत के सियासी को आग को एक बार फिर से भड़का दे, तो किसी को आश्चर्य नही होगा। बतातें चलें कि देश में इस वक्त पेट्रोल और डीजल की कीमतें सातवें आसामान पर पहुंच गई हैं।

    मशलन, दिल्ली में बुधवार को पेट्रोल की कीमत 77.17 रुपये प्रति लीटर हो गई, वहीं देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में पेट्रोल की कीमत 84.99 रुपये के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। बताया जा रहा है कि इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों और डॉलर के मुकाबले रुपये में आई कमजोरी से पेट्रोल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं।
    पड़ोसी देशो में सस्ता है पेट्रोल
    भारत में लगातार बढ़ रही पेट्रोल की कीमतों के बीच अब पड़ोसी देशो में इसके कम कीमत को लेकर भी इन दिनो सोशल मीडिया में चर्चा जोरो पर है। कहा ये जा रहा है कि भारत से गरीब देश जब सस्ती कीमत पर पेट्रोल बेच सकते हैं तो भारत में ऐसा संभव क्यों नहीं है? सवाल में दम है। बतातें चलें कि 21 मई के एक आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमत 51.70 रुपये, नेपाल में 69 रुपये, श्रीलंका में 64 रुपये, भूटान में 57 रुपये और बांग्लादेश में 71 रुपये प्रति लीटर बताया जा रहा हैं।
    ऐसे भी देश है, जाहां महंगा है पेट्रोल
    ऐसा नही है कि दुनिया का सबसे महंगा पेट्रोल भारत में ही बिकता है। बल्कि, दुनिया का सबसे महंगा पेट्रोल आइसलैंड और हांगकांग में है। यहां पर एक लीटर पेट्रोल के लिए 144 रुपये खर्च करने होते हैं। दूसरे नंबंर पर नार्वे का नाम है। यहां एक लीटर पेट्रोल के लिए 140 रुपये देने होते हैं।
    पेट्रोल में टैक्स का खेल
    पेट्रोल और डीजल की कीमतों के निर्धारण में केन्द्र और राज्य सरकार की तरफ से लगाए जाने वाले टैक्स की अहम भूमिका को समझना होगा। दरअसल, पेट्रोल को अभी तक जीएसटी में शामिल नही किया गया है। लिहाजा, इस पर केन्द्र और राज्य की सरकारें अलग अलग टैक्स लगाती है और इसके अतिरिक्त उपभोक्ता को उत्पाद कर, वैट, चुंगी और सेस भी देना पड़ता है। यदि इसको जीएसटी में शामिल कर दिया जाए तो आज की तारीख में पेट्रोल की कीमत घट कर 41 रुपये हो जायेगी।
    पेट्रोल के जीएसटी में शामिल होने के नही है आसार
    जानकारों का मानना है कि किसी भी राज्य की सरकार पेट्रोल और डीजल से मिलने वाले राजस्व में कटौती नहीं करना चाहती। आपको बतादें कि पेट्रोल और डीजल से राज्य सरकारों को राजस्व का अच्छा खासा हिस्सा मिलता है। इसके कम होने का सीधा असर उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ेगा। यहां आपको बताना जरुरी है कि जीएसटी कॉउंसिल में राज्य की सर्वाधिक प्रतिनिधि होता है। लिहाजा, निकट भविष्य में पेट्रोल को जीएसटी के दायरे में लाना लगभग मुश्किल है।
    थोथी दलीलो के बीच महंगे पेट्रोल खरीदने की मजबूरी
    पेट्रोल की बढ़ती कीमतो के बीच भाजपा और कॉग्रेस के समर्थको में ठन गई है। कॉग्रेस के समर्थक जहां पेट्रोल की आग में मोदी सरकार की विदाई तय मान कर चल रहें हैं। वही, भाजपा समर्थको ने इसका भी काट खोज निकाला है। भाजपा समर्थको का कहना है कि वर्ष 2004 के मई में पेट्रोल की कीमत 38.69 रुपये थी, जो वर्ष 2014 के मई में बढ़ कर 79.26 रुपये हो गई। यानी की दस वर्षो में 40.57 रुपये की बढ़ोतरी हुई। जबकि, भाजपा के शासनकाल में इस हिसाब से देखें तो पेट्रोल की कीमत अभी बढ़ी नही है। रिपोर्ट का लब्बोलुआब ये कि आपको पेट्रोल की मौजूदा कीमत को अंगीकार करने की आदत डाल लेनी चाहिए।

  • इंडो पाक वॉर्डर पर मंडराया युद्ध का खतरा

    इंडो पाक वॉर्डर पर मंडराया युद्ध का खतरा

    जम्मू कश्मीर। आरएसपुरा, सांबा, अरनिया, रामगढ़, परगवाल और कनाचक सेक्टर में इंडो पाक वॉर्डर से सटे करीब पांच किलो मीटर के पूरे इलाका में 15 मई के बाद से रुक रुक कर गोलिया बरस रही है। मोटर्रार से गोले दागे जा रहे है। रॉकेट से तारगेट को निशाना बनाया जा रहा है। पाक रेंजर के हैवी सेलिंग की चपेट में आने के बाद आरएसपुरा और अरनिया शहर को खाली करा लिया गया है और बाकी जगहो से भी लोगो को सुरक्षित स्थानो पर पहुंचाया जा रहा है। सैकड़ो घर तबाह हो चुका है। खेत, खलिहान और फसल को जबरदस्त नुकसान हुआ है। गोली लगने से दर्जनो मवेशियों की मौत हो चुकी है। दो जवान समेत एक दर्जन लोगो को भी अपनी जाने गवांनी पड़ी है। घायालो की संख्या सैकड़ो में है। ऐसे में देश के लोग अब यह जानना चाहतें हैं कि क्या यहीं है मुंहतोड़ जवाब?

    हमें बताया जा रहा है कि पिछले एक सप्ताह से पाक रेंजर संघर्षविराम का उल्लंघन कर रहा है। यह भी बताया जा रहा है कि हमारे जवान मुंहतोड़ जवाब दे रहें हैं। दूसरी ओर वॉर्डर से पांच किलोमीटर दूर गिर रहे मोटर्रार के गोले और दोनो ओर के पोस्ट से निकल रही धुआं, कुछ और ही कहानी बयां कर रहा है। सवाल यह भी क्या पाक रेंजर इतना हैवी सैलिंग कर सकता है? सवाल यह भी कि कही रेंजर की आर लेकर पाक फौज ने तो मोर्चा सम्भाल नही रखा है? हालांकि, हमारे बीएसएफ जवानो के द्वारा की गई जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी रेंजर्स की लगभग दो दर्जन चौकियां भी नष्ट हुई है। बेशक, तवाही का आलम वॉर्डर के उस पार भी है। उधर, भी रिहायसी इलाको को खाली कराया जा रहा है।
    लिहाजा, यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या भारत पाक वॉर्डर पर युद्ध शुरू हो चुका है? सवाल यह भी कि क्या रिहायसी इलाको को पूरी तरीके से खाली कराने के बाद जंग शुरू हो जायेगा? मीडिया रिपोर्ट की माने तो पिछले एक सप्ताह के कथित संघर्षविराम उल्लंघन के दौरान भारत का नुकसान अधिक हुआ है। यदि ये सच है तो मुंहतोड़ जवाब सवालो के घेरे में आ जायेगा। केन्द्रीय गृहमंत्री का यह कहना कि जवानो को खुली छूट दे दी गई है, यह भी सवालो के घेरे में आ जायेगा और सबसे बढ़ कर माननीय पीएम श्रीमान मोदीजी के फौलादी सीने की साख पर भी सवाल उठने शुरू हो जायेंगे।

  • कर्नाटक: किसकी जीत और किसकी हत्या?

    आखिरकार राजनीति में और कितना गिरेंगे हम

    कौशलेन्द्र झा
    कर्नाटक। कर्नाटक में आज सुबह बीएस येदयुरप्पा ने 25वें मुख्यमंत्री की शपथ ले ली। भाजपा समर्थको में खुशी की लहर है। वही, कॉग्रेस ने इसको लोकतंत्र की हत्या बताते हुए कर्नाटक विधानसभा के परिसर में स्थित गांधी प्रतिमा के समक्ष धरना पर बैठ गई है।

    इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में पूरी रात इस मामले की सुनवाई चली। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट अभी यह तय नही कर सकी है कि यह लोकतंत्र की जीत है या हत्या? बहरहाल, सुनवाई जारी है। अब आम लोगो के जेहन में सवाल उठने लगा है कि हम जिस संविधान की लगातार दुहाई देते रहते है। क्या, वास्तव में हमारा संविधान इतना कमजोर है कि आज हमारा लोकतंत्र निर्णय करने की स्थिति में नही रहा या हम इतने कमजोर हो गए है कि हम अपने ही संविधान के प्रावधानो को समझ नही पाते? क्यों अंतिम निर्णय के लिए हमे बार- बार अदालत की शरण में जाना पड़ता है? सवाल ये भी कि हमारे देश में विधायिका सर्वोच्च है या न्यायपालिका? आज यह एक बड़ा सवाल बन गया है।
    विवाद का कारण है, विशेषाधिकार
    हमारे संविधन में प्रावधान है कि सबसे बड़ी पार्टी या सबसे बड़ी गठबंधन को राज्यपाल सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सकतें हैं। यहां राज्यपाल को अपने विवेक से तय करना है कि राज्य में सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन स्थायी सरकार दे सकती है? दरअसल, राज्यपाल का यही विवेक अक्सर विवाद का कारण बनता रहा है। समय- समय पर कतिपय राजनीतिक पार्टिया अपने खास एजेंडा के तहत इस लड़ाई को अदालत में लाकर विधायिका का माखौल बनाते रहतें हैं। याद करीय, इस काम में कोई किसी से पीछे नही है। कॉग्रेस हो या बीजेपी, हमाम में सभी नंगे है। हमारी मुश्किल ये है कि हम पार्टी लाइन से हट कर समस्या का समाधान तलाशने की कोशिश नही करते। सोशल मीडिया पर ताल ठोकने वाले लोग सोशल समस्या को लेकर गंभीर नही होते है और हमारे रहनुमा, इसी का बेजा लाभ लेने के लिए मामलो को उलझा कर हमे आपस में लड़ा कर इसका राजनीतिक लाभ लेते रहतें हैं।
    स्पष्ट प्रावधान की उठनी चाहिए मांग
    आजादी के सात दशक बाद भी हम अपने ही संविधान को समझ नही पा रहें हैं और प्रावधान की उलझनो को समझने के लिए न्यायालय की शरण में चले जाते है। ऐसे में सभी पार्टी आपस में मिल कर इन प्रावधानो को स्पष्ट क्यों नही करती? क्यों नही इसके लिए एक और संविधान संसोधन होता है? दरअसल, ये राजनीतिक पार्टिया इन मुद्दो को जानबूझ कर उलझा कर रखना चाहती है, ताकि अपने हिसाब से इसकी व्याख्या करके लोगो को गुमराह किया जा सके। राजनीतिक ड्रामा किया जा सके और लोगो को बांटा जा सके।
    मौजूदा राजनीति को समझने की जरुरत
    याद रखिए, ये भड़काउ बयान दे सकते हैं। टीवी पर बैठ कर इसको लोकतंत्र की हत्या बता सकते हैं। पूरा दिन या कई- कई रोज तक धरना पर बैठ सकते हैं। अदालत में लम्बी लड़ाई भी लड़ सकते हैं। किंतु, संसद में बैठ कर संविधान का संसोधन नही कर सकते। कानून के प्रावधानो को स्पष्ट नही कर सकते। आज कॉग्रेस न्याय मांग रही है। कल भाजपा न्याय मांगेगी या मांगती रही है। किंतु, ये लोग संविधान में संसोधन करके प्रावधानो को स्पष्ट नही कर सकते। इस राजनीति को समझने का वक्त आ गया है।

  • कर्नाटक में भाजपा बहुमत से पीछे

    कर्नाटक में भाजपा बहुमत से पीछे

    कर्नाटक। कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में दोपहर बाद करीब एक बजे भाजपा बहुमत से पीछे छूट रही है। कर्नाटक में जेडीएस किंग मेकर की भूमिका में आ गई है। भाजपा इस वक्त 108 सीटो पर बढ़त बनाए हुये है। जबकि, कॉग्रेस ने 72 सीटो पर बढ़त बना लिया है। वही, जेडीएस 41 और अन्य 2 सीटो पर आगे चल रहें हैं। बतातें चलें कि कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए 113 विधायको की आवश्यकता पड़ेगी।

  • 14 वर्षो के “वनवास” में भी मिल रही मां की ममता

    14 वर्षो के “वनवास” में भी मिल रही मां की ममता

    कुदरत लेता रहा परीक्षा और उतीर्ण होती रही सुनिता/ सात रोज तक भूखे प्यासे रह कर दूसरे के घर लिया शरण/ बच्चो के खुशी मे भूल गया अपना दर्द/ 14 साल तक दूसरे के मकान मे शरण लेकर किया गुजर बसर/ उड़द का बरी बेचकर बच्चे को बनाया ग्रेजुएट

    संतोष कुमार गुप्ता

    मीनापुर। माई के दूधवा अइसन केहूं के मीठाई ना होई.जे अभागा होई हे उनका घर मे माई ना होई।  आज मदर्स डे है। ग्रामीण इलाको मे आज भी मां की ममता की कोई सानी नही है। लेकिन टेंगरारी गांव के सुनिता देवी की जिंदगी की कहानी सुनकर आपके रोगंटे खड़े हो जायेंगे।

    सुनिता के ममता का कुदरत लगातार परीक्षा ले रहा था। वह इस परीक्षा मे पास होती रही। सुनिता देवी अब खुशी सीएलएफ से जुड़कर दीपक जीविका ग्राम संगठन के अंतर्गत नारायण स्वंय सहायता समूह के सदस्य के रूप मे महिलाओ के लिए नजीर बन गयी है। अब वह दुखो के पहाड़ से निकल चुकी है। घर से निकाले जाने के बाद वह 14 साल दूसरे के मकान मे रहने के बाद उसने पांच लाख रूपये की लागत से नया आशियाना तैयार कर लिया है।  बस गृहप्रवेश करना बाकी है। खराब समय को झेलते हुए उसने बड़ी बेटी प्रियंका को स्नातक फाइनल करा लिया है। दूसरी बेटी प्रिया इंटर द्वितिय वर्ष की छात्रा है। गोलू दसम व सुप्रिया सातंवा वर्ग मे पढती है। वह खुद कष्ट काट कर बच्चे को उंचे ओहदे तक पहुंचाना चाहती है।

     बेटे के इलाज मे हो गयी कंगाल

    सुनिता की शादी वर्ष 1990 मे टेंगरारी के राजेंद्र साह से हुई थी। सुनिता के जेठ नेपाल व देवर अन्य प्रदेशो मे रहते थे। सुनिता को  एक लड़की के जन्म के दो साल बाद मायके वैशाली के महुआ मे लड़का का जन्म हुआ। सुनिता के दुख के कहानी यहीं से शुरूआत होती है। उसके तबियत खराब होने के कारण सुनिता का मायके से ससुराल आना जाना लगा रहा। छह महिना का जब लड़का हो गया तो वह ससुराल आ गयी। घर वाले के लापरवाही के कारण वह बच्चा सड़क किनारे गिर कर जख्मी हो गया। सुनिता ने गांव से लेकर शहर तक इलाज करवाया। कर्ज पर कर्ज लेता रहा किंतु कोई सुधार नही हुआ। आइजीएमएस पटना से दिल्ली एम्स रेफर कर दिया गया.सुनिता को दिल्ली जाने के लिए फूटी कौड़ी नही थे। ससुराल मे उसके शरीर के गहने बेचने पर रोक लगा दी गयी। हालांकि पति ने सुनिता को भरपूर साथ दिया। सुनिता के मायके के रिश्तेदारो ने पचास हजार रूपया का व्यवस्था कर भिजवाया। इसके बाद वह दिल्ली गयी। दिल्ली मे पैसा भी खर्च हो गया,किंतु सुधार नही हुआ।गांव मे आभूषण गिरवी रखने के बदले पांच हजार रूपया दे रहा था। बाद मे सुनिता बेटे चंदन को लेकर घर आ गयी। बाद मे मोतीझील मे आयुर्वेदिक इलाज से सुधार हो गया। दिल्ली मे सफर के दौरान सुनिता बस से गिर गयी। लालबत्ती जलने के बाद वह किसी तरह अपनी जान बचायी। शादी के 14 साल बाद वर्ष 2004 मे उसको घर से निकाल दिया गया। पड़ोस के जानकी साह ने सुनिता को अपने घर मे पनाह दिया। सुनिता बच्चो के साथ सात दिन और सात रोज तक भूखे प्यासे रही। घर मे ना ही अन्न थे ना ही दाना.सात रोज बाद सुनिता ने गांव से ही पांच किलो दाल उधारी लेकर बरी(मेथौड़ी) तैयार किया। पहले दिन बड़ी बेटी के माध्यम से बाजार मे भेजा। एक किलो बिकने के बाद डेढ सौ रूपया आया। उस पैसे से सुनिता ने पांच दिन के भोजन व बेटी के ट्युशन के एक माह का फीस निकाला। उसके बाद सुनिता ने सिलाई ट्रेनिंग सेंटर खोला। सुनिता मायके से ही सिलाई कटाई मे पारंगत है। पहले दिन छह लड़की आयी सिलाई सिखने। दूसरे दिन संख्या-12 हो गयी.एक महिना मे 12 हजार रूपया सिलाई से आमद आने लगा। जीविका से जुड़ने के बाद सुनिता ने गांव मे दुसरा सिलाई सेंटर भी खोल लिया है। अब वह दो शिफ्टो मे काम करती है। पति नेपाल मे काम शुरू कर दिये है। अब सुनिता ने बच्चो को अच्छी शिक्षा देना शुरू कर दिया है। सुनिता ने अपने हिस्से की जमीन मे बेहतर तरीके से पांच लाख की लागत से मकान बनाया है। गृहप्रवेश के लिए शुभ तिथि का इंतजार है। सुनिता ने जीविका से जुड़ने के बाद सीआरपी का काम भी शुरू कर दिया है। उसने राजस्थान,चितौड़गढ व साहेबगंज मे जीविका का काम कर बढिया पैसा कमाया है। अब वह खराब दिनो से बाहर निकल गयी है। जीविका के क्षेत्रिय समन्वयक कौशल किशोर प्रसाद बताते है कि सुनिता की ममता बेमिशाल है। वह महिला सशक्तिकरण की जीता जागता उदाहरण है।

  • क्या आप जानतें है कि तेज आवाज का शरीर पर कैसे होता है असर?

    विवाह समारोह हो या अन्य कोई समारोह…। डीजे से निकलने वाली तेज आवाज से हर कोई परेशान है। दिन भर की भागमदौर और तीब्र आवाज के बीच रात में सोने की जद्दोजहद करते लोग…।

    यह तस्वीर किसी शहर की नही… बल्कि, गांव की है। जानकार मानते है कि आज के गांव में ध्वनि प्रदूषण खतरनाक रूप लेने लगा है। बच्चो की पढ़ाई बाधित है और मोबाइल पर बात करना मुश्किल होने लगा है। सबसे अधिक परेशानी तो बीमार और बुजुर्ग लोगो को झेलनी पड़ रही है। रोजमर्रा के काम पर भी इसका कुप्रभाव पड़ने लगा है। बावजूद इसके किसी में भी इसके बिरुद्ध आवाज बुलंद करने की साहस नही है। क्योंकि, लम्बे समय से चली आ रही परंपरा आरे आ जाती है। चुप रहने का सबसे बड़ा कारण ये भी कि तेज आवाज से शरीर को होने वाले नुकसान की किसी को ठीक से जानकारी भी नही है।
    आपको बतातें चलें कि मनुष्य की अधिकतम श्रवण क्षमता 80 डेसिबल तक की होती है। इससे अधिक आवाज मनुष्य बर्दास्त नहीं कर सकता है। जानकार बतातें हैं कि 25 डेसिबल तक की आवाज को मनुष्य आसानी से बर्दाश्त कर लेता है। किंतु, इससे अधिक तीब्रता की ध्वनि कान में पड़े तो बेचैनी का महसूस होना स्वाभाविक है और आदमी धीरे धीरे बीमार होने लगता है।
    तेज घ्वनि के बीच अधिक देर तक रहने पर जल्दी थकान महसूस होने लगता है। कई लोगो को सिरदर्द भी होने लगता है। लगातार तेज आवाज के बीच रहने वालों की श्रवण क्षमता में कमी हो जाना, स्वभाव में चिड़चिड़ापन का होना और उत्तेजना में बृद्धि होना आम शिकायत है। लिहाजा तेज ध्वनि से ब्लड प्रेसर जैसी खतरनाक बीमारी होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।
    किंतु, इससे भी अधिक खतरनाक बात ये है कि तेज ध्वनि के बीच अधिक देर रहने से मनुष्य मेटाबॉलिक डिसऑडर का शिकार होने लगता है। शोध से पता चला है कि ध्वनि की तीब्रता से शरीर में एड्रीनलहार्मोन का स्राव बढ़ जाता है और धमनियों में कोलेस्ट्रोल का जमाव होने लगता है। लिहाजा, हर्टअटैक का खतरा कई गुणा तक बढ़ जाता है। जो पहले से इस बीमारी से गसित है, उनमें अटैक आने का खतरा कई गुणा तक बढ़ जाता है। इससे जनन क्षमता भी कमजोर हो जाती है। यानी पुरुषो में नपुंसक होने का खतरा बढ़ जाता है। जानकार मानते है कि समय रहते तेज ध्वनि को रोका नही गया तो बहुत बड़ी आबादी ब्लड प्रेसर सहित कई खतरनाक रोग की चपेट में आ जायेगा।

  • मठ के नाम पर जारी हो गया कॉलेज की जमीन का बासगीत पर्चा

    बकुलहर मठ की विवादित जमीन के मामले में आया नया मोड़

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    मुजफ्फरपुर। सिवाईपट्टी थाना क्षेत्र के खेमकरण गांव स्थित बकुलहर मठ की विवादित जमीन के मामले में अब एक और नया मोड़ आ गया है। पूर्व विधायक जनकधारी प्रसाद कुशवाहा ने इसमें से 85 डिसमिल जमीन को अपना बताया है।

    कहा है कि उन्होंने इस जमीन को बकुलहर के हरिहर संस्कृत कॉलेज के सचिव महंथ रामानंद गिरि से अपनी पत्नी के नाम पर खरीदी थी और प्रशासन ने साजिश के तरत इसे बकुलहर मठ की जमीन बता कर इसका बासगीत पर्चा जारी कर दिया है। बतातें चलें कि बेतिया जिला अन्तर्गत चनपटिया थाना के बकुलहर गांव में मठ और संस्कृति कॉलेज स्थित है।
    मुस्तफागंज बाजार पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि यह जमीन संस्कृत कॉलेज की है। न की मठ की। कॉलेज की कुल जमीन में से 85 डिसमील जमीन उन्होंने 23 जून 1981 को खरीदी थी। कॉलेज की प्रबंधकारिणी समिति ने प्रस्ताव पारित कर कॉलेज भवन की मरम्मत के लिए जमीन बेचने का अनुमोदन भी किया हुआ है। इसके आधार पर पश्चिम चंपारण की न्यायालय ने 14 मई 2005 को उनके पक्ष में फैसला दिया था। इसके बाद उनकी पत्नी के नाम पर जमीन का दाखिल खारिज हुआ था और रसीद काटी गई।
    बयान
    पूर्व विधायक ने मौजूदा विवाद के लिए सिवाईपट्टी के थानाध्यक्ष व मीनापुर के सीआई पर साजिश रचने का आरोप लगाया है। वहीं, सीओ सह प्रशिक्षु आईएएस वर्षा सिंह ने बताया कि मामला उनकी कोर्ट में विचाराधीन है। शीघ्र ही निर्णय लिया जाएगा।
    यह है विवाद का कारण
    वर्ष 2006 में मीनापुर अंचल प्रशासन ने बकुलहर मठ के 22 एकड़ जमीन पर 53 लोगों के नाम बासगीत पर्चा जारी किया था। पिछले दिनो पर्चाधारियों ने उक्त जमीन पर अपना तंबू खड़ा करके जमीन पर कब्जा कर लिया है। इसके बाद से दोनों पक्ष में तनाव बना हुआ है। तनाव को देखते हुए सिवाईपट्टी पुलिस ने विवादित जमीन पर एक चौकीदार को तैनात कर दिया है।

  • बिहार में नमामी गंगे, फंसाना बना हकीकत

    बिहार में नमामी गंगे, फंसाना बना हकीकत

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    संजय कुमार सिंह
    पहलेजा घाट। बिहार के छपरा जिला अन्तर्गत आस्था का प्रतीक, पहलेजा घाट…। प्रधानमंत्री के नमानी गंगे प्रोजेक्ट की हकीकत को वयां करने के लिए प्रयाप्त है। दरअसल, मां गंगा के पावन स्थली पहलेजा घाट सदीयों से बिहार वासियों के लिए आस्था का केंद्र रही है।

    यहां रोज हजारो लोग मां गंगा के निर्मल धारा में डुबकी लगाकर अपने को पुण्य के भागी समझते रहें हैं। किन्तु, पहलेजा घाट स्थित गंगा मां का तट, वर्तमान में गंदगी के अंबार को अपने में समेटे, पीएम की ड्रिम प्रोजेक्ट को मुंह चिढ़ा रही है। यहां सरकार की उदासीनता स्पष्ट झलक जाएगी। कुरे कचरे व गंदगियो से पटा परा गंगा का तट, यहां आने वाले वालों से मानो कह रही है कि मुझे इस गंदगी से बाहर निकालो। घाट पर कुछ लोग पूजा की सामग्रियों का दुकान खोल रखे हैं। वही लोग कुछ जगहों में घाट की सफाई कराते रहते हैं। दुकानदारों ने बताया कि एक समय यह घाट बालू माफियाओं के कब्जे में रहा करता था। घाट का नामो निशान तक नही है।
    जैसे तैसे गंगा स्नान को आए श्रध्दालु स्नान कर पूजा अर्चना करके लौट जाते हैं। स्नान को आए श्रध्दालुओं ने कहा की जब एनडीए की नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी तो गंगा की सफाई और सौंदर्यीकरण की आस जगी। नमामी गंगे के नाम से कई योजनाएं चलाई गई। सरकार इसके लिए विशेष मंत्रालय का गठन भी की और गंगा की साफ सफाई के लिए कई बड़े कदम भी उठाए गए। जिसका बड़ा उदाहरण वाराणसी काशी स्थित वहां के सैकड़ों घाटों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है। पहलेजा घाट बिहार में कितना प्रसिद्ध है, इसका आकलन सावन में कांवरियों की उमड़ी जन सैलाब को देखकर आंकी जा सकती है। बहरहाल, लोग अब राज्य और केन्द्र की सरकार से सवाल पूछने लगे है कि बिहार में नमामी गंगे कितना सफल हुआ?

  • मुजफ्फरपुर के एसएसपी विजिलेंस की चपेट में

    मुजफ्फरपुर के एसएसपी विजिलेंस की चपेट में

    छापेमारी में मिले कई विवादित दस्तावेज, तबादले की खबर

    मुजफ्फरपुर। बिहार के स्पेशल विजिलेंस की टीम ने सोमवार को बड़ी कारवाई करते हुए मुजफ्फरपुर के एसएसपी विवेक कुमार के कार्यालय, एसएसपी आवास और यूपी स्थित उनके घर पर एक साथ छापामारी की है। इसके बाद मुजफ्फरपुर के पुलिस और प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया। इस बीच खबर है कि राज्य सरकार ने मुजफ्फरपुर के एसएसपी का तबादला कर दिया है।

    बताया जा रहा है कि यह छापामारी एसएसपी के आय से अधिक संपत्ति के मामले में हुई है। एसएसपी पर शराब माफियाओं से साठगांठ रखने का भी आरोप लगते रहे। हालांकि, आधिकारिक तौर पर अभी इसकी पुष्टि होना बाकी है। राज्य सरकार की स्पेशल विजिलेंस टीम मुजफ्फरपुर के एसएसपी विवेक कुमार के आवास पर सोमवार को लगभग साढ़े बारह बजे पहुंची। मुख्यालय से निगरानी एसपी समेत एक दर्जन बड़े पुलिस अफसरों की टीम एसएसपी आवास पर धावा बोल कर जांच शुरू कर दिया है।
    छामापारी करने आई विजिलेंस की टीम ने सबसे पहले वहां मौजूद सभी सुरक्षाकर्मियो को अलग कर उनके मोबाइल बंद करवा दिए। साथ ही पूरे आवास को अपने सुरक्षा घेरे में लेकर छापेमारी शुरू कर दी। इससे पहले, विशेष विजिलेंस टीम की इस कार्रवाई की भनक किसी को नहीं लगी। सोमवार को लगभग साढ़े बारह बजे तीन गाड़ियां अचानक एसएसपी आवास पर आकर रुकी। टीम के साथ बीएमपी के लगभग तीन दर्जन गोरखा जवान भी थे। मिनटों में निगरानी की टीम ने पूरे आवास को कब्जे में ले लिया।
    गेट से लेकर आवास के चप्पे-चप्पे में गोरखा जवानो ने मोर्चा संभाल लिया और अधिकारियों की टीम अंदर पहुंच गई। छापेमारी के दौरान अधिकारियों की टीम ने बड़ी संख्या में दस्तावेज जब्त किए हैं। हालांकि अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि होना बाकी है। लगभग साढ़े चार बजे एक गाड़ी में पांच अधिकारी एसएसपी आवास से बाहर निकल गए। छापेमारी कर रहे अधिकारियों में से किसी ने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया है। जानकारी है कि पूरे मामले को स्पेशल विजिलेंस यूनिट के आईजी रत्न संजय स्वयं देख रहे हैं।
    सूत्रो से मिल रही खबर के मुताबिक मुजफ्फरपुर के अलावा यूपी और हरियाणा के कई स्थानों पर एक साथ छापेमारी की चर्चा पुलिस महकमे में चल रही है। बतातें चलें कि एसएसपी विवेक कुमार इसके पहले भागलपुर, सीतामढ़ी और सीवान में भी एसपी रह चुके हैं।

  • पेंशन के पैसे से बहू के लिए बनवाया शौचालय

    पेंशन के पैसे से बहू के लिए बनवाया शौचालय

    ​समाजिक बिरादरी की धमकी को किया नजरअंदाज/ बिजली काटने और हुक्का पानी बंद करने की दी थी चेतावनी/ मुखिया और जीविका से प्रेरित होकर बनवाया शौचालय/ हरपुर बक्श मुशहर बस्ती की कहानी चौकाने वाली/ शौचालय बनाने वाले तीन लोगो को डीएम ने दिया प्रशस्ती पत्र

    संतोष कुमार गुप्ता

    मीनापुर। गरीबी का दंश का क्या होता है कोई हरपुर बक्श मुशहर बस्ती मे जाकर देखे। आज भी इनकी बस्ती मे विकास की रौनक दिखायी नही देती। जब पुरा रघई पंचायत ओडीएफ हो रहा था। वही हरपुर बक्श गांव के तीन मुशहर परिवार के लोग बड़ी मुशकिल से डीएम के सामने पहुंचे थे। इन्हे समाजिक धमकी का डर तो था ही,किंतु इस बात का भी फख्र था कि अब उसके बेटी बहू खुले मे शौच नही जायेगी।

    गांव के शत्रुघ्न माझी ने सरकार के लोहिया स्वच्छता मिशन के तहत जब शौचालय बनवाने की ठानी तो समाजिक स्तर पर उसका विरोध शुरू हो गया। स्थानिय मुखिया चंदेश्वर प्रसाद व जीविका के क्षेत्रिय समन्वयक कौशल किशोर प्रसाद की मौजूदगी मे उसकी बिरादरी के लोगो ने बिजली काट देने,हुक्का पानी बंद करने तथा समाज से अलग थलग कर देने की चेतावनी दे डाली। शत्रुघ्न के पास दो संकट आ गया। एक बिरादरी का डर और दुसरा शौचालय के लिए पैसा कहां से आयेगा। उसकी पत्नी ने सास डंगरी देवी से कहा कि मां जी आज तक तो आप से कुछ नही मांगे लेकिन आज हम आप से कुछ मांग रहे है।  मां जी ऐ बताइये हम कब तक खुले मे जाते रहेंगे।  सत्तर वर्ष की डंगरी ने अपनी बहू के लिए वृदावस्था पेंशन के दो हजार रूपया निकाल कर दिया। सास ने कहा कि ये लो पैसे और कुछ उधारी कर के शौचालय बनवा लो,अगर और पैसे पेंशन के मिलेंगे तो हम कर्ज चुका देंगे।  शत्रुघ्न ने वृदावस्था के पैसे और कुछ उधारी लेकर शत्रुघ्न ने शौचालय बनवा दिया। अब उसके दो पुत्र व दो पुत्री को खुले मे जाने की जरूरत नही है। गांव के ही कृृष्णनंदन माझी के पिता जयलाल मांझी व मां कुसुमी देवी ने वृदावस्था पेंशन व बचत के पैसे से बहू व पोता पोती के लिए शौचालय बनवाया है। जयलाल मांझी मानर बजाने का काम करते है।

    पोती की शादी के लिए जमा पैसे से बनवाया शौचालय

    हरपुर बक्श गांव के ही शंकर माझी के घर मे शौचालय नही है। पत्नी चुनरी देवी ने सास व पति से कहा कि बेटी अब जवान हो गयी है। क्या वह खुले मे जाती है तो अच्छा लगता है। इस पर उसका पति ने कहा कि उसकी शादी के लिए पैसे इकट्ठा तो कर रहा हू। समाजिक बिरादरी के लोग धमकी दे रहे है कि तुम लोग शौचालय बनवा लेगा तो ठीक नही होगा। हमलोगो को सरकारी हक से वंचित कर दिया जायेगा। हमलोग गरीब है और तुम्हारे शौचालय बनवा लेने से हमलोग अपने हक से वंचित हो जायेंगे। इसके बाद शंकर की मां कुसुमी देवी ने कहा कि शौचालय हर हाल मे बनेगा। उसने वृदावस्था पेंशन के पैसे लाकर दिया। पति ने भी बेटी की शादी के लिए इकट्ठा किये गये पैसे मे से लेकर शौचालय बनवा दिया। कुसुमी देवी ने कहा कि बहुत दिन कष्ट सहे है। अब हम किसी को कष्ट नही सहने देंगे। शौच के लिए भोर मे ही बिछावन छोड़ना पड़ता था। रात का इंतजार करना पड़ता था। प्रेरक की भूमिका निभाने वाले इंदल शर्मा बताते है कि मुशहर बस्ती के लोग उनलोगो के लिए नजीर है जो अब तक शौचालय नही बनवाये है। बूढापे की सहारे की राशि को भी इस कार्य मे लगा दिया। जीविका के क्षेत्रिय समन्वयक कौशल किशोर प्रसाद ने बताया कि मेरे सामने ही बिरादरी के लोगो ने बिजली काट देने की धमकी दी थी। किंतु इनलोगो ने कहा कि अंधेरा मे रह लेंगे,किंतु खुले मे शौच नही जायेंगे। डीएम ने तीनो को प्रशस्ती पत्र देकर सम्मानित किया है।

    क्यों बनवाया शौचालय

    मुशहर बस्ती के चारो ओर जंगल है.खुले मे शौच जाने से गंदगी का अम्बार लगा रहता है। यहां तक की मुख्य मार्ग मे भी सड़क किनारे लोग शौच कर देते है। नतिजतन गरमी के दिनो मे इस इलाके मे बिमारियो का प्रकोप बढ जाता है। एइएस को लेकर यह इलाका डेंजर जोन मे है। एइएस को लेकर यहां पर तत्कालिन स्वास्थ्य मंत्री आश्विनी चौबे भी यहां आ चुके है। स्वास्थ्य व स्वच्छता के दृष्टीकोण से लोगो ने शौचालय बनवाया।

       वर्जन-

    जब हम महादलित बस्ती मे मोटीवेट करने पहुंचे तो शत्रुघ्न को बिरादरी के लोगो ने बिजली काटने व हुक्का पानी बंद करने की चेतावनी दे डाली। वावजूद उसने कुछ और लोगो को प्रेरित कर शौचालय बनवाया। उम्र के अंतिम पड़ाव मे चल रही उसकी मां ने उसको दो हजार रूपया लाकर पतोहू को दिया। मुशहर बस्ती के लोग कह रहे थे कि सरकार उन्हे शौचालय बनवा कर देगा। जबकि नियम यह है कि शौचालय बनवाने पर 12 हजार रूपया सरकारी अनुदान मिलता है।

    चंदेश्वर प्रसाद,मुखिया ग्राम पंचायत राज,रघई