भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है, और इस बार सैम पित्रोदा, भारतीय प्रवासी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष, ने इस मुद्दे पर अपनी राय व्यक्त की। पित्रोदा ने कहा कि भारत-चीन के बीच चल रहे विवाद को अक्सर बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है, और भारत की नीति को ज्यादा टकरावपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि चीन को शुरू से ही दुश्मन मानना अनुचित है और यह दृष्टिकोण दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ाता है। पित्रोदा ने इस मुद्दे पर सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया, न कि टकराव की।
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भारत-चीन संबंधों पर पित्रोदा का दृष्टिकोण
सैम पित्रोदा ने हाल ही में भारतीय और चीनी सीमा विवाद पर बयान देते हुए कहा कि दोनों देशों के बीच की स्थिति अक्सर अतिरंजित होती है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत की नीति शुरू से ही अधिक टकरावपूर्ण रही है, जिससे तनाव बढ़ा है। उनका मानना है कि चीन को हमेशा दुश्मन के रूप में देखना गलत है।
पित्रोदा ने कहा, “मुझे चीन से खतरे की कोई समझ नहीं है। मुझे लगता है कि इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है, क्योंकि अमेरिका का यह रुझान है कि वे एक दुश्मन को परिभाषित करें।” उनका मानना है कि जब तक हम इसे टकराव के दृष्टिकोण से देखेंगे, तब तक इसे हल नहीं किया जा सकता।
टकराव से सहयोग की ओर बदलाव
पित्रोदा ने अपने बयान में यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि देशों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए, न कि टकराव। उन्होंने बताया कि भारत की नीति शुरू से ही टकरावपूर्ण रही है, और इस मानसिकता ने देश में समर्थन जुटाने का काम किया है, लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समस्याएँ और बढ़ सकती हैं।
“समय आ गया है कि हम सहयोग के रास्ते पर चलें, न कि टकराव के। हमारे दृष्टिकोण में बदलाव जरूरी है। जब हम शुरू से ही किसी देश को दुश्मन मान लेते हैं, तो यह न सिर्फ उस देश के लिए गलत है, बल्कि हमारे लिए भी ठीक नहीं है,” पित्रोदा ने कहा।
चीन को दुश्मन के रूप में नहीं देखना
पित्रोदा ने यह भी कहा कि भारत को चीन को शुरू से ही दुश्मन के रूप में नहीं देखना चाहिए। उनका मानना है कि यह मानसिकता न सिर्फ चीन के साथ, बल्कि भारत के अन्य देशों के साथ भी रिश्तों को प्रभावित करती है। “हमें यह मानसिकता बदलनी होगी कि चीन से हम हमेशा दुश्मन के रूप में ही व्यवहार करेंगे। यह न सिर्फ चीन के लिए, बल्कि सभी के लिए गलत है,” पित्रोदा ने कहा।
उनका यह संदेश विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चला आ रहा है। अगर भारत चीन के साथ अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाता है, तो यह दोनों देशों के रिश्तों में सुधार ला सकता है और वैश्विक मंच पर शांति को बढ़ावा दे सकता है।
अमेरिका की मध्यस्थता पर सवाल
यह बयान उस समय सामने आया है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत-चीन सीमा विवाद में मध्यस्थता करने की पेशकश की है। हालांकि, भारत ने हमेशा तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को नकारा किया है और इस मुद्दे को द्विपक्षीय आधार पर हल करने की बात की है।
पित्रोदा ने हालांकि इस विशेष प्रस्ताव पर सीधे प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन उनके बयान से यह स्पष्ट होता है कि वे वैश्विक सहयोग के पक्षधर हैं, बशर्ते वह भारत के राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हो। उनका मानना है कि विवादों को हल करने के लिए द्विपक्षीय संवाद और सहयोग की आवश्यकता है, न कि किसी बाहरी देश की मध्यस्थता।
बीजेपी की प्रतिक्रिया
पित्रोदा के बयान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। बीजेपी प्रवक्ता तुहिन सिन्हा ने सोशल मीडिया पर पित्रोदा के विचारों पर सवाल उठाते हुए लिखा, “जिन्होंने हमारे 40,000 वर्ग किमी का इलाका चीन को दे दिया, वे अब भी ड्रैगन से खतरा नहीं देखते।”
सिन्हा का यह बयान 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध और उसके बाद के सीमा विवादों का संदर्भ देता है। बीजेपी ने हमेशा भारतीय सीमाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है और टकराव से सुरक्षा की ओर अधिक ध्यान दिया है। पार्टी का मानना है कि किसी भी विवाद में भारत को अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखना चाहिए।
राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति: एक संवेदनशील संतुलन
भारत-चीन सीमा विवाद पर जारी बहस से यह स्पष्ट होता है कि भारत की विदेश नीति में टकराव और सहयोग के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है। पित्रोदा की अपील अधिक सहयोगात्मक दृष्टिकोण की ओर है, जबकि बीजेपी और अन्य राजनीतिक दल राष्ट्रीय सुरक्षा और संप्रभुता पर जोर दे रहे हैं।
भारत के लिए यह एक संवेदनशील मुद्दा है, क्योंकि चीन के साथ सीमा विवाद सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। हालांकि, पित्रोदा की टिप्पणी यह सुझाव देती है कि विदेश नीति में लचीलेपन और बातचीत की आवश्यकता हो सकती है, ताकि स्थिरता और शांति सुनिश्चित की जा सके।
भारत की कूटनीति में परिवर्तन की आवश्यकता
पित्रोदा के विचारों में यह महत्वपूर्ण संदेश छिपा है कि वैश्विक कूटनीति तेजी से बदल रही है, और भारत को अपने विदेश नीति दृष्टिकोण में सुधार की आवश्यकता है। चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, भारत को अपने राष्ट्रीय हितों को बनाए रखते हुए कूटनीति में परिवर्तन करना होगा।
पित्रोदा का यह कहना कि भारत को अपनी नीति में लचीलापन और समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए, इसका अर्थ है कि भारत को चीन के साथ सहयोग और संवाद का रास्ता अपनाने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह वैश्विक मंच पर भारत को एक मजबूत और जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करेगा।
भारत-चीन सीमा विवाद एक ऐसा मुद्दा है, जो देश के लिए महत्वपूर्ण है। सैम पित्रोदा की यह राय कि हमें चीन को दुश्मन के रूप में नहीं देखना चाहिए, और टकराव से बचते हुए सहयोग पर जोर देना चाहिए, एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है। यह मुद्दा न केवल भारत-चीन के रिश्तों को प्रभावित करता है, बल्कि वैश्विक कूटनीति में भी भारत के स्थान को महत्वपूर्ण बनाता है।
भारत को अपनी सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए, एक संतुलित और वास्तविक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। चाहे पित्रोदा का दृष्टिकोण स्वीकार हो या नहीं, यह साफ है कि भविष्य में कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता होगी, ताकि देश को सुरक्षित रखा जा सके और साथ ही वैश्विक सहयोग के अवसरों को भी अपनाया जा सके।