KKN ब्यूरो। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अब सिर्फ मैदानी सभा और नारों तक सीमित नहीं रहेगा। इस बार लड़ाई डिजिटल होगी – स्मार्टफोन, डेटा पैक और सोशल मीडिया के ज़रिए, मैदान फतह करने की तेयारी शुरू हो चुकी है। 2020 के चुनावों में जहां सोशल मीडिया की भूमिका उभर रही थी। वहीं 2025 में यह पूरी तरह से चुनावी रणनीति का केंद्र बिंदु बन सकता है।
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सोशल मीडिया का उदय: आंकड़ों की जुबानी
- बिहार में 2023 तक करीब 4.2 करोड़ इंटरनेट यूज़र्स थे, जिनमें से 75% ग्रामीण क्षेत्रों से आते हैं।
- फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और WhatsApp का प्रयोग तेजी से बढ़ा है।
- राज्य में लगभग 1.6 करोड़ स्मार्टफोन उपयोगकर्ता सक्रिय हैं, जो चुनावी सामग्री के प्रमुख उपभोक्ता हैं।
राजनीतिक दलों की डिजिटल तैयारी
भाजपा (BJP)
- 10,000+ सोशल मीडिया वॉरियर्स की एक बूथ-लेवल टीम तैयार की गई है।
- व्हाट्सएप ग्रुप्स के माध्यम से हर मंडल, पंचायत और बूथ तक संदेश पहुंचाया जा रहा है।
- ग्राफिक्स, एनिमेशन और शॉर्ट वीडियो की टीम केंद्र और राज्य दोनों स्तर पर सक्रिय।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद)
- तेजस्वी यादव की सोशल मीडिया मौजूदगी युवा मतदाताओं के बीच मज़बूत होती जा रही है।
- टिकटॉक (बैन से पहले), इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब पर “ग्राउंड रियलिटी” दिखाने की कोशिशें जारी हैं।
- पार्टी ने कंटेंट क्रिएटर और सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स को साथ जोड़ने का अभियान शुरू किया है।
जदयू (JDU)
- नीतीश कुमार की सरकार के विकास कार्यों को Facebook Live, डॉक्यूमेंट्री और रील्स के माध्यम से प्रस्तुत किया जा रहा है।
- “सुशासन बाबू” की छवि को फिर से गढ़ने की कोशिश डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर हो रही है।
सरकारी नियमावली: सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के लिए नई दिशा
2024 में बिहार सरकार ने एक नई नीति लागू की है, जिसके तहत:
- 1 लाख+ फॉलोअर्स/सब्सक्राइबर्स वाले सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को सरकार विज्ञापन दे सकती है।
- न्यूनतम 50,000 मासिक यूनिक व्यूअरशिप की शर्त रखी गई है।
- इसका उद्देश्य सरकारी योजनाओं को युवाओं और ऑनलाइन दर्शकों तक पहुँचाना है।
यह नीति अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव पूर्व माहौल में “सरकारी विज्ञापनों की आड़ में प्रचार” का एक साधन बन सकती है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि सोशल मीडिया पर भड़काऊ भाषण, धार्मिक उकसावे या जातीय टिप्पणियों पर सख्त कार्रवाई होगी।
डिजिटल युद्ध की तैयारी
2025 का चुनाव मैदान अब “डिजिटल वॉररूम” बन चुका है। हर पार्टी के पास:
- कंटेंट कैलेण्डर
- रिल्स/शॉर्ट्स प्रोडक्शन टीम
- बॉट्स व ऑटोमैटेड पोस्टिंग टूल्स
- आईटी सेल और डेटा एनालिटिक्स यूनिट है
इन टूल्स की मदद से पार्टियां अपने विरोधियों पर डिजिटल हमले कर रही हैं और अपने पक्ष में नैरेटिव गढ़ रही हैं।
सोशल मीडिया चुनाव परिणामों को कैसे प्रभावित कर सकता है?
- युवाओं का वोट बैंक (18-35 आयु वर्ग): बिहार की जनसंख्या में लगभग 45% युवा हैं, जो सोशल मीडिया से प्रभावित होते हैं।
- “वायरल कंटेंट” की ताकत: एक वायरल वीडियो कभी-कभी पूरे चुनावी विमर्श को मोड़ सकता है।
- प्री-पोल सर्वे और ट्विटर पोल्स अब जनमत का ऑनलाइन प्रतिबिंब बनते जा रहे हैं, भले ही वे पूरी तरह सटीक न हों।
सोशल मीडिया बनेगा डिजिटल हथियार
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में सोशल मीडिया एक साधारण प्रचार माध्यम नहीं बल्कि एक डिजिटल हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। राजनीतिक दलों के लिए यह अवसर भी है और चुनौती भी — सही समय पर, सही मैसेज के साथ, सही प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल ही निर्णायक साबित होगा।
जनता को भी अब पारंपरिक प्रचार से ज़्यादा भरोसा व्हाट्सएप फॉरवर्ड, इंस्टा रील्स और ट्विटर स्पेस पर होने लगी है।
चुनाव 2025 में कौन जीतेगा, यह तय तो जनता करेगी — लेकिन वोटर को मनाने के लिए लड़ाई अब कीबोर्ड और कैमरे की हो गई है।