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  • बिहार में मौसम में बदलाव: अगले 24 घंटों में तापमान में गिरावट, बारिश और वज्रपात की संभावना

    बिहार में मौसम में बदलाव: अगले 24 घंटों में तापमान में गिरावट, बारिश और वज्रपात की संभावना

    KKN गुरुग्राम डेस्क |  बिहार में अगले 24 घंटों में मौसम में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। मौसम विभाग के अनुसार, 6 फरवरी तक बिहार में न्यूनतम तापमान में गिरावट दर्ज की जाएगी। इसके साथ ही पहाड़ी क्षेत्रों में वज्रपात और बारिश का असर बिहार में भी देखने को मिल सकता है। इस मौसम बदलाव के कारण ठंड में बढ़ोतरी हो सकती है। राज्य के कुछ हिस्सों में घना कोहरा छा सकता है, जिससे दृश्यता पर असर पड़ेगा और यातायात में दिक्कतें आ सकती हैं।

    बिहार में तापमान में गिरावट की संभावना

    मौसम विभाग ने अनुमान जताया है कि 5 और 6 फरवरी तक बिहार में न्यूनतम तापमान में 2 से 3 डिग्री की गिरावट हो सकती है। बिहार के अधिकांश हिस्सों में पच्छुआ हवा तेज गति से चलेगी, जिससे ठंड बढ़ने की संभावना है। हालांकि, इस दौरान बारिश की कोई विशेष चेतावनी जारी नहीं की गई है, लेकिन पहाड़ी इलाकों में वज्रपात और बारिश के असर से बिहार में मौसम में बदलाव आ सकता है।

    साथ ही, बिहार के उत्तर और मध्यम इलाकों में घना कोहरा छाए रहने की संभावना है, जिससे दृश्यता में कमी आ सकती है और यातायात में रुकावट आ सकती है। यह स्थिति विशेष रूप से सहरसामधुबनीगोपालगंजबक्सर और पटना जैसे जिलों में ज्यादा प्रभावी हो सकती है।

    पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव

    8 फरवरी से पश्चिमी विक्षोभ उत्तर-पश्चिम भारत में प्रभावी होगा, जिससे पहाड़ी इलाकों में वज्रपात और बारिश की संभावना है। हालांकि बिहार में इस संबंध में कोई चेतावनी जारी नहीं की गई है, लेकिन इन पहाड़ी इलाकों में होने वाले मौसम परिवर्तन का असर बिहार में भी दिख सकता है। विशेषकर हिमाचल प्रदेश और जम्मू कश्मीर में 5 फरवरी को वज्रपात और बारिश की संभावना जताई गई है, जिसका प्रभाव बिहार में महसूस किया जा सकता है।

    सहरसा में सबसे ज्यादा तापमान में गिरावट

    सहरसा जिले में इस मौसम परिवर्तन के दौरान सबसे ज्यादा न्यूनतम तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। अगवानपुर में न्यूनतम तापमान 7.1 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। यह गिरावट बिहार के अन्य हिस्सों की तुलना में ज्यादा है। इसके अलावा, मधुबनीगोपालगंजजीरादेई (सिवान)छपरावैशालीकिशनगंजबक्सरभोजपुरपटनाबेगूसरायमुंगेरभागलपुरकटिहारसासारामनालंदाशेखपुराबांकाडेहरी (रोहतास)औरंगाबाद, और गया जैसे जिलों में भी तापमान में 2.4 डिग्री तक गिरावट देखने को मिली है।

    यह तापमान गिरावट पच्छुआ हवाओं और ठंडे मौसम के कारण हो रही है, जिससे राज्य के विभिन्न हिस्सों में सर्दी बढ़ेगी। इसके अलावा, घना कोहरा भी इन क्षेत्रों में देखने को मिल सकता है, जिससे दिन के शुरुआती घंटों में मौसम और ठंडा महसूस होगा।

    बिहार में आगामी मौसम की स्थिति

    बिहार में आने वाले दिनों में मौसम में और बदलाव हो सकता है। 5 और 6 फरवरी के बाद भी तापमान में और गिरावट हो सकती है, और घना कोहरा कई स्थानों पर बना रह सकता है। इस दौरान, मौसम विभाग ने कोहरा और ठंडी हवाओं को लेकर चेतावनी जारी की है। वहीं, 8 फरवरी से पश्चिमी विक्षोभ के असर से राज्य के मौसम में हलका उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है।

    इसकी वजह से, हिमाचल प्रदेशजम्मू-कश्मीर और पहाड़ी क्षेत्रों में भारी बारिश और वज्रपात हो सकता है। हालांकि, बिहार में इसका प्रभाव हल्का रहेगा, लेकिन तापमान में कमी और हल्की बारिश का असर हो सकता है।

    बिहार में यातायात और कृषि पर असर

    बिहार में इस मौसम बदलाव का असर यातायात और कृषि पर भी पड़ेगा। घने कोहरे और कम तापमान के कारण सड़क यातायात में रुकावट आ सकती है। खासकर सुबह के समय वाहन चालकों को कम दृश्यता के कारण सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी। ट्रेनों और विमानों के विलंब की भी संभावना हो सकती है, खासकर उन मार्गों पर जहां कोहरे का असर ज्यादा हो।

    कृषि पर भी असर पड़ सकता है, खासकर रबी फसलों पर। मौसम में अचानक गिरावट से खेतों में ठंढ का असर हो सकता है, जिससे फसलों को नुकसान पहुंच सकता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वे पारंपरिक उपाय अपनाएं और फसलों की सुरक्षा के लिए कदम उठाएं।

    बिहार में ठंड से बचने के उपाय

    बिहार में सर्दी बढ़ने की संभावना को देखते हुए, लोगों को स्वास्थ्य संबंधी उपाय अपनाने की सलाह दी जा रही है। विशेषकर वृद्धों और बच्चों को ठंड से बचाव के लिए अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होगी। घरों में हीटर का इस्तेमाल बढ़ सकता है, और गरम कपड़े पहनने की आवश्यकता होगी।

    इसके अलावा, सुबह और शाम के समय घने कोहरे से बचने के लिए सड़क पर चलने से बचना चाहिए। अगर जरूरी हो तो आवश्यक एतिहात बरतते हुए यात्रा करें।

    आगामी दिनों में मौसम की भविष्यवाणी

    बिहार में 11 फरवरी के आसपास मौसम में सुधार हो सकता है, और तापमान सामान्य स्थिति में लौट सकता है। हालांकि, 12 फरवरी तक हल्की बारिश और फिर से ठंड बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। राज्य में हवा के बदलाव के कारण तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हो सकती है, और कोहरा भी छंट सकता है।

    मौसम विभाग के अनुसार, आने वाले दिनों में तापमान में सुधार की संभावना है, लेकिन फिलहाल सर्दी और कोहरा जारी रहेगा। इसलिए, बिहार के निवासियों को ठंड से बचाव के उपायों के साथ मौसम के बदलाव पर ध्यान देना चाहिए और सुरक्षित रहना चाहिए।

    बिहार में आगामी दिनों में ठंडी हवाएं, घना कोहरा और तापमान में गिरावट जारी रहने की संभावना है। 6 फरवरी तक तापमान में गिरावट होने के बाद, ठंडी हवाओं और कोहरे से दिन और रात का तापमान और भी कम हो सकता है। राज्य के उत्तर और मध्य हिस्सों में सर्दी के साथ-साथ यातायात में बाधाएं भी उत्पन्न हो सकती हैं।

    यह मौसम बदलाव कृषियातायात, और स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है, और लोगों को अतिरिक्त सावधानी बरतने की आवश्यकता होगी। मौसम विभाग से नियमित अपडेट लेने की सलाह दी जाती है।

  • पटना हाईकोर्ट में 70वीं बीपीएससी पीटी परीक्षा दोबारा कराए जाने की याचिका पर सुनवाई टली, अब क्या होगा अगला कदम?

    पटना हाईकोर्ट में 70वीं बीपीएससी पीटी परीक्षा दोबारा कराए जाने की याचिका पर सुनवाई टली, अब क्या होगा अगला कदम?

    KKN  गुरुग्राम डेस्क |  70वीं बीपीएससी (बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन) की प्रारंभिक परीक्षा को दोबारा कराए जाने की याचिका पर पटना हाईकोर्ट में आज (4 फरवरी 2025) सुनवाई फिर से टल गई। जानकारी के अनुसार, सुनवाई के लिए जज के न बैठने के कारण यह सुनवाई अब अगले समय के लिए स्थगित कर दी गई है। इस याचिका में बीपीएससी की परीक्षा को रद्द कराकर फिर से परीक्षा आयोजित करने की मांग की गई थी, जिसे लेकर पटना हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी।

    70वीं बीपीएससी प्रारंभिक परीक्षा पर उठे विवाद

    70वीं बीपीएससी परीक्षा के परिणामों के बाद से बीपीएससी अभ्यर्थियों ने कई गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें धांधली और घोटाले के आरोप प्रमुख हैं। याचिका में बीपीएससी द्वारा परीक्षा के दौरान प्रश्नपत्रों में गड़बड़ी, उत्तर कुंजी में दोष, और पुलिस द्वारा दबाव डालने जैसे आरोप लगाए गए हैं। उम्मीदवारों ने यह आरोप भी लगाया कि कुछ छात्रों को नियमों के उल्लंघन के बावजूद बढ़त देने के लिए गलत तरीके से सहायता की गई थी।

    याचिका में उठाए गए प्रमुख मुद्दे

    याचिका में इस परीक्षा को लेकर कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

    1. प्रश्नपत्र में गड़बड़ी:
      याचिका में आरोप लगाया गया है कि परीक्षा के प्रश्नपत्र में अस्पष्टता और गलत सवाल थे, जिससे उम्मीदवारों को सही तरीके से अपनी क्षमता साबित करने का अवसर नहीं मिल सका। बीपीएससी की उत्तर कुंजी के खिलाफ भी कई आपत्तियां उठाई गई हैं, क्योंकि कई प्रश्नों के उत्तर सही नहीं थे।
    2. पुलिस और अधिकारियों द्वारा घोटाले:
      याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ उम्मीदवारों को गैरकानूनी तरीके से प्रश्नपत्र के बारे में जानकारी दी गई, जिससे उन्हें अतिरिक्त लाभ मिला। इसके अलावा, बीपीएससी और कुछ पुलिस अधिकारियों के बीच मिलकर कुछ उम्मीदवारों को अत्यधिक अंकों के जरिए फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया गया है।
    3. सुरक्षा और पारदर्शिता की कमी:
      याचिका में यह भी दावा किया गया है कि बीपीएससी परीक्षा में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए गए, और यह पारदर्शिता के स्तर पर भी असफल रही। इससे यह सवाल उठता है कि क्या पूरे चयन प्रक्रिया में न्यायपूर्ण और निष्पक्ष तरीके से काम हुआ है या नहीं।

    पटना हाईकोर्ट की सुनवाई में आई देरी

    पटना हाईकोर्ट में 31 जनवरी को होने वाली सुनवाई पहले ही बेंच के न बैठने के कारण टल गई थी। इसके बाद 4 फरवरी को एक बार फिर से इस मामले की सुनवाई होनी थी, लेकिन जज के अनुपस्थित होने के कारण यह सुनवाई एक बार फिर स्थगित कर दी गई। इससे बीपीएससी के अभ्यर्थी और संबंधित पक्ष काफी निराश हुए, क्योंकि वे इस महत्वपूर्ण सुनवाई का इंतजार कर रहे थे, ताकि मामले में आगे की कार्रवाई का मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सके।

    अंततः, अब यह देखना होगा कि पटना हाईकोर्ट इस मामले में आगे किस दिशा में कदम उठाता है, और क्या बीपीएससी को अपनी पीटी परीक्षा को रद्द कर फिर से आयोजित करने का आदेश दिया जाता है।

    अभ्यर्थियों के लिए यह मामला क्यों महत्वपूर्ण है?

    बीपीएससी परीक्षा बिहार राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिस्पर्धी परीक्षा मानी जाती है। 70वीं बीपीएससी पीटी परीक्षा में हजारों उम्मीदवारों ने भाग लिया था, और कई उम्मीदवारों ने आरोप लगाया कि परीक्षा के दौरान कुछ गंभीर समस्याएं आईं, जिनके कारण उनकी मेहनत पर प्रश्न उठने लगे।

    बीपीएससी के लिए बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने वर्षों तक कठिन परिश्रम किया था, और अब परीक्षा के परिणाम पर उठे विवादों के कारण उनकी मेहनत पर पानी फिरने की आशंका पैदा हो गई है। यह न केवल उन अभ्यर्थियों के लिए एक व्यक्तिगत मुद्दा है, बल्कि यह बिहार के शासनिक प्रक्रिया और परीक्षाओं की पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल उठाता है।

    अगला कदम क्या हो सकता है?

    यद्यपि पटना हाईकोर्ट में सुनवाई स्थगित हो गई, यह संभव है कि नई तारीख पर सुनवाई शुरू हो, जिससे मामले का हल निकाला जा सके। इसके बाद, अगर बीपीएससी पर आरोप सिद्ध होते हैं, तो पटना हाईकोर्ट की निर्णायक कार्रवाई से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि परीक्षा में पारदर्शिता और न्यायपूर्ण प्रक्रिया को बरकरार रखा जाए।

    यदि अदालत पुनः परीक्षा कराने का आदेश देती है, तो बीपीएससी को अपनी प्रारंभिक परीक्षा को रद्द करने और नए सिरे से परीक्षा आयोजित करने के लिए कदम उठाने होंगे। इससे अभ्यर्थियों को एक निष्पक्ष अवसर मिलेगा और नौकरी के लिए सही चयन हो सकेगा।

    बीपीएससी और भविष्य की परीक्षा प्रणाली पर असर

    इस मामले ने बीपीएससी परीक्षा प्रणाली की पारदर्शिता और विश्वसनीयता को एक चुनौती दी है। यदि इस मामले में पुनः परीक्षा का आदेश मिलता है, तो यह बिहार में भविष्य की परीक्षाओं के संचालन पर भी प्रभाव डालेगा। यह समय की आवश्यकता है कि बीपीएससी को अपनी परीक्षा प्रक्रिया को और भी अधिक पारदर्शी और कठोर बनाना चाहिए, ताकि भविष्य में ऐसे विवादों की पुनरावृत्ति न हो।

    अभ्यर्थियों की चिंता शासन और कार्यवाही में सुधार के प्रति है, और यह अपेक्षित है कि बिहार सरकार और बीपीएससी इस पर कड़ी नजर रखते हुए परीक्षा प्रणाली में सुधार करें।

    70वीं बीपीएससी पीटी परीक्षा से जुड़ी यह कानूनी लड़ाई बिहार के सरकारी नौकरियों के चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता के लिए एक महत्वपूर्ण पल साबित हो सकती है। पटना हाईकोर्ट द्वारा जल्द से जल्द न्यायिक फैसला दिया जाना चाहिए, ताकि इस मुद्दे का हल निकाला जा सके और बीपीएससी अभ्यर्थियों को एक न्यायपूर्ण और निष्पक्ष मौका मिले।

    बीपीएससी और बिहार सरकार को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए परीक्षा के संचालन में सुधार की दिशा में काम करना चाहिए। केवल तभी परीक्षाओं में उम्मीदवारों का विश्वास और बिहार सरकार की नौकरी चयन प्रक्रिया की प्रतिष्ठा सुरक्षित रह सकती है।

  • मुजफ्फरपुर: अखाड़ाघाट पुल पर स्ट्रीट लाइट पोल गिरा, सुरक्षा को लेकर बढ़ी चिंताएं

    मुजफ्फरपुर: अखाड़ाघाट पुल पर स्ट्रीट लाइट पोल गिरा, सुरक्षा को लेकर बढ़ी चिंताएं

     

     

  • पटना में कांग्रेस नेता शकील अहमद के बेटे ने की आत्महत्या, परिवार में शोक की लहर

    पटना में कांग्रेस नेता शकील अहमद के बेटे ने की आत्महत्या, परिवार में शोक की लहर

    KKN गुरुग्राम डेस्क |  बिहार की राजधानी पटना से एक दिल दहला देने वाली खबर आ रही है। कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद के इकलौते बेटे ने आत्महत्या कर ली है। यह घटना पटना स्थित उनके सरकारी आवास पर घटी, जहां परिजनों ने सुबह उनके बेटे का शव पंखे से लटका हुआ पाया। यह दुखद घटना पूरे परिवार और कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा आघात साबित हुई है।

    शकील अहमद के बेटे की आत्महत्या की घटना

    मिली जानकारी के अनुसार, शकील अहमद अपने परिवार के साथ पटना के सरकारी आवास पर रहते हैं। रविवार (2 फरवरी) की रात परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन करने के बाद अपने-अपने कमरे में सोने चले गए थे। इसी बीच, शकील अहमद का बेटा भी अपने कमरे में चला गया था। अगले दिन सुबह जब परिवार के सदस्य सोकर उठे, तो बेटे का शव उनके कमरे में पंखे से लटका हुआ पाया गया।

    इस घटना ने पूरे घर में कोहराम मचा दिया। परिवार के सदस्य और पास-पड़ोस के लोग इस असमय मृत्यु को देखकर स्तब्ध रह गए। घटनास्थल पर पहुंची पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लिया और मामले की जांच शुरू कर दी है। पुलिस के अनुसार, मामले में आत्महत्या का शक जताया जा रहा है, लेकिन जांच पूरी होने तक किसी भी कारण को स्पष्ट नहीं किया जा सकता है।

    पुलिस की जांच और स्थिति

    घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि आत्महत्या के कारणों का पता लगाने के लिए हर पहलू की जांच की जाएगी। फिलहाल, किसी प्रकार की बाहरी ताकतों या दबाव का संकेत नहीं मिला है, लेकिन परिवार के बयान और अन्य संदर्भों के आधार पर जांच आगे बढ़ाई जाएगी।

    पुलिस इस बात की भी जांच कर रही है कि क्या युवक के आत्महत्या के पीछे कोई मानसिक दबाव या निजी समस्याएं थीं, जिनका उसने इस तरह का खतरनाक कदम उठाया। हालांकि, फिलहाल किसी भी प्रकार के नोट या कोई अन्य संकेत नहीं मिला है, जो आत्महत्या के कारण को स्पष्ट कर सके।

    कांग्रेस पार्टी में शोक की लहर

    इस दुखद घटना ने कांग्रेस पार्टी में शोक की लहर पैदा कर दी है। शकील अहमद को कांग्रेस पार्टी में एक प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता है, और उनकी व्यक्तिगत त्रासदी से पार्टी के सभी सदस्य गहरे सदमे में हैं। पार्टी के अन्य नेताओं ने शकील अहमद और उनके परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त की हैं और दुख की इस घड़ी में उनके साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया है।

    कांग्रेस के राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नेताओं ने इस घटना पर दुख व्यक्त किया और शकील अहमद के परिवार को प्रार्थनाओं और समर्थन का संदेश भेजा। एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “यह एक अपूरणीय क्षति है। हम शकील अहमद के साथ हैं और इस दुखद समय में उनके परिवार के लिए हमारी संवेदनाएं हैं।”

    आत्महत्या के कारणों पर विचार

    वर्तमान में, शकील अहमद के बेटे की आत्महत्या के कारणों पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल पाई है। हालांकि, घटनाओं के सिलसिले में कुछ अटकलें लगाई जा रही हैं, लेकिन पुलिस ने स्पष्ट किया है कि जांच जारी है और किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी तथ्यों की गहनता से समीक्षा की जाएगी।

    भारत में युवा आत्महत्याओं का बढ़ता मामला एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। विशेष रूप से शहरी क्षेत्रों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं बहुत ही सामान्य हो गई हैं, जहां युवाओं पर परिवार और समाज से बहुत अधिक दबाव होता है।

    मानसिक स्वास्थ्य: एक बढ़ती हुई चिंता

    यह घटना मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को एक बार फिर से उजागर करती है, जो हाल के वर्षों में देश भर में बढ़ती जा रही है। युवा वर्ग में बढ़ते मानसिक दबाव, शिक्षा और करियर की चिंता, और व्यक्तिगत समस्याओं के कारण आत्महत्या जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर अभी भी जागरूकता की कमी है और लोगों के पास परामर्श या मदद लेने के लिए सुविधाएं सीमित हैं।

    विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या के मामलों में बढ़ोतरी का कारण समाज में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता की कमी है। परिवार और समाज से मिलने वाला मानसिक दबाव, नौकरी की तलाश, करियर की चिंता, और व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं अक्सर युवाओं के लिए भारी हो जाती हैं। ऐसे में मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत और भी बढ़ गई है।

    मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की आवश्यकता

    इस दुखद घटना ने फिर से यह बात साबित कर दी है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को समझने की आवश्यकता है। अगर समय रहते मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का समाधान न किया जाए, तो स्थिति और गंभीर हो सकती है। समाज, सरकार, और परिवारों को इस दिशा में मिलकर काम करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियों को इससे न जूझना पड़े।

    शकील अहमद के बेटे की आत्महत्या एक अत्यंत दुखद घटना है, जो न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि उनके समर्थकों और कांग्रेस पार्टी के लिए भी एक कठिन समय है। इस अपूरणीय क्षति से पार्टी को गहरा आघात पहुंचा है। अब तक, शकील अहमद और उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त की जा रही हैं, और इस समय में उन्हें मानसिक और भावनात्मक समर्थन की आवश्यकता है।

    हमारे विचार शकील अहमद और उनके परिवार के साथ हैं, और हम प्रार्थना करते हैं कि उन्हें इस कठिन घड़ी में शक्ति मिले। यह घटना हमें मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता की याद दिलाती है, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियां रोकी जा सकें।

  • बिहार सरकार का नया अवकाश नियम: सरकारी कर्मचारियों को अब 7 दिन पहले देना होगा आवेदन

    बिहार सरकार का नया अवकाश नियम: सरकारी कर्मचारियों को अब 7 दिन पहले देना होगा आवेदन

    KKN गुरुग्राम डेस्क |  बिहार सरकार ने राज्य के सरकारी कर्मचारियों के लिए नया अवकाश नियम लागू कर दिया है। अब सभी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी लेने के लिए कम से कम 7 दिन पहले आवेदन देना अनिवार्य होगा। यह नियम लगभग 6 लाख सरकारी कर्मचारियों पर लागू होगा।

    सामान्य प्रशासन विभाग (General Administration Department – GAD) ने इस संबंध में आदेश जारी किया है और सभी विभागाध्यक्षों, प्रमंडलीय आयुक्तों और जिलाधिकारियों को इसका सख्ती से पालन कराने के निर्देश दिए गए हैं।

    इस नए नियम से सरकारी कर्मचारियों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं, क्योंकि पहले वे केवल 2-3 दिन पहले ही छुट्टी का आवेदन दे सकते थे। सरकार का कहना है कि देर से छुट्टी आवेदन मिलने के कारण कार्यालयों में कामकाज प्रभावित हो रहा था और प्रशासन को समय पर निर्णय लेने में कठिनाई होती थी। इसलिए, यह नियम लागू किया गया है ताकि कार्यक्षमता बनी रहे और सरकारी कार्यालयों में सुचारू रूप से काम हो सके

    सरकार ने 7 दिन पहले अवकाश आवेदन की शर्त क्यों लगाई?

    बिहार सरकार ने यह नया अवकाश नियम प्रशासनिक सुधार के लिए लागू किया है। आखिरी समय में छुट्टी आवेदन देने की प्रवृत्ति के कारण सरकारी कार्यालयों में कई तरह की दिक्कतें हो रही थीं।

    मुख्य कारण जो इस नियम को लागू करने के लिए मजबूर कर रहे थे:

    📌 कामकाज में बाधा: अंतिम समय में अवकाश आवेदन मिलने से कार्यक्रमों और योजनाओं के संचालन में देरी हो रही थी
    📌 निर्णय लेने में कठिनाई: अधिकारियों को समय पर अवकाश स्वीकृत करने में परेशानी होती थी।
    📌 कार्यालयों में कार्यभार प्रबंधन की समस्या: बिना पूर्व सूचना के कर्मचारी के छुट्टी पर जाने से अन्य कर्मचारियों पर अतिरिक्त भार पड़ता था।
    📌 प्रशासनिक सुधार: सरकार ने निर्णय लिया कि सभी सरकारी कार्य सुचारू रूप से चल सकें, इसलिए यह नियम लागू किया गया

    अब सभी सरकारी कर्मचारियों को छुट्टी से कम से कम 7 दिन पहले आवेदन देना अनिवार्य होगा, जिससे कार्यालयों में कार्य प्रबंधन बेहतर किया जा सकेगा

    किन कर्मचारियों पर लागू होगा यह नया नियम?

    बिहार सरकार के इस नए नियम के दायरे में सभी सरकारी कार्यालय और कर्मचारी आएंगे।

    ✅ राज्य सरकार के सभी विभागों के अधिकारी एवं कर्मचारी
    ✅ जिलाधिकारी, प्रमंडलीय आयुक्त, और सरकारी कार्यालयों के अन्य कर्मचारी
    ✅ बिहार सरकार द्वारा संचालित सार्वजनिक उपक्रम (PSUs) के कर्मचारी

    सरकार ने आदेश जारी कर सभी विभागाध्यक्षों से कहा है कि वे इस नियम का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करें। जो कर्मचारी इस नियम का पालन नहीं करेंगे, उनकी छुट्टी स्वीकृत नहीं की जा सकती

    अंतिम समय में छुट्टी आवेदन देने से होने वाली समस्याएं

    इससे पहले, कर्मचारी अक्सर 2-3 दिन पहले ही छुट्टी के लिए आवेदन देते थे, जिससे अधिकारियों को अवकाश स्वीकृत करने में कठिनाई होती थी

    🔴 अधिकारियों को कम समय में निर्णय लेना मुश्किल हो जाता था।
    🔴 कार्यालयों में कामकाज बाधित होता था और अन्य कर्मचारियों पर अधिक दबाव बढ़ता था।
    🔴 महत्वपूर्ण सरकारी योजनाओं और सेवाओं में देरी होती थी।
    🔴 समय पर अवकाश के अनुमोदन की प्रक्रिया जटिल हो जाती थी।

    इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, बिहार सरकार ने 7 दिन पहले आवेदन देने का नया नियम लागू किया है, जिससे सरकारी विभागों में कामकाज सुचारू रूप से चलता रहे

    कैसे लागू होगा नया अवकाश नियम?

    बिहार के सामान्य प्रशासन विभाग (GAD) ने इस नीति को सभी सरकारी कार्यालयों में अनिवार्य रूप से लागू करने के निर्देश दिए हैं

    📢 नए नियम के तहत प्रमुख दिशानिर्देश:
    🔹 अब कर्मचारियों को अवकाश लेने से कम से कम 7 दिन पहले आवेदन देना होगा।
    🔹 आखिरी समय में आवेदन देने पर अवकाश स्वीकृत नहीं किया जाएगा, सिवाय कुछ विशेष परिस्थितियों के।
    🔹 विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ अधिकारी इस नियम के पालन को सुनिश्चित करेंगे।
    🔹 जो कर्मचारी इस नियम का पालन नहीं करेंगे, उनकी छुट्टी स्वीकृत नहीं होगी या फिर वे अनुशासनात्मक कार्रवाई के पात्र हो सकते हैं।

    सरकार का मानना है कि इस नए अवकाश नियम से सरकारी कार्यालयों में अधिक अनुशासन और प्रभावी प्रशासन सुनिश्चित किया जा सकेगा

    सरकारी कर्मचारियों की प्रतिक्रिया

    इस नए अवकाश नियम को लेकर सरकारी कर्मचारियों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं।

    🗣️ कर्मचारियों का कहना है:
    “हर परिस्थिति पहले से तय नहीं की जा सकती। कुछ निजी आवश्यकताएं अचानक सामने आती हैं, ऐसे में 7 दिन पहले आवेदन करना संभव नहीं है।”

    🗣️ अधिकारियों का तर्क:
    “यह नियम प्रशासनिक सुधार और सरकारी योजनाओं के प्रभावी संचालन के लिए जरूरी है।”

    हालांकि कर्मचारियों को इस नए नियम की आदत डालनी होगी, लेकिन सरकार इसे जरूरी सुधार मान रही है

    बिहार सरकार के नए अवकाश नियम के संभावित लाभ

    यह नया नियम लागू होने से सरकारी कार्यालयों में कई सुधार देखे जा सकते हैं:

    ✔️ बेहतर प्रशासन: अधिकारियों को कामकाज का सही योजना बनाना आसान होगा
    ✔️ कार्यालय में व्यवस्थित कामकाज: महत्वपूर्ण कार्यों में रुकावट नहीं आएगी
    ✔️ अन्य कर्मचारियों पर दबाव कम होगा: कार्यों का सही तरीके से विभाजन किया जा सकेगा
    ✔️ छुट्टी का दुरुपयोग रुकेगा: अनावश्यक छुट्टी लेने की प्रवृत्ति पर नियंत्रण होगा

    सरकार को उम्मीद है कि इस नए नियम से सार्वजनिक सेवा की गुणवत्ता में सुधार होगा और सरकारी कार्यों की गति तेज होगी

    क्या इस नियम में कोई छूट मिलेगी?

    हालांकि यह नियम सभी सरकारी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य किया गया है, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में छूट दी जा सकती है, जैसे:

    🔹 स्वास्थ्य संबंधी आपातकाल (मेडिकल इमरजेंसी)
    🔹 अचानक आने वाली पारिवारिक समस्याएं
    🔹 सरकार द्वारा पूर्व-स्वीकृत विशेष मामले

    ऐसे मामलों में कर्मचारियों को प्रमाणिक दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे और तभी उनकी आपातकालीन छुट्टी स्वीकृत की जाएगी

    बिहार सरकार द्वारा लागू किया गया यह नया अवकाश नियम प्रशासनिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि, यह कर्मचारियों के लिए थोड़ा सख्त लग सकता है, लेकिन दीर्घकालिक रूप से यह सरकारी कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी और अनुशासित बनाएगा

    सरकार का मानना है कि यह नीति सरकारी विभागों में कार्यकुशलता बढ़ाने और बेहतर प्रशासनिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है

    📢 बिहार सरकार के नए नियमों और सरकारी नीतियों की ताजा जानकारी के लिए जुड़े रहें KKNLive.com से! 🚀

  • बिहार के सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील मेन्यू में बदलाव, 15 फरवरी से नया भोजन कार्यक्रम लागू

    बिहार के सरकारी स्कूलों में मिड-डे मील मेन्यू में बदलाव, 15 फरवरी से नया भोजन कार्यक्रम लागू

    KKN गुरुग्राम डेस्क |  बिहार सरकार ने मिड-डे मील (Mid-Day Meal – MDM) योजना के तहत 71,863 प्रारंभिक विद्यालयों के लिए भोजन मेन्यू में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। नया मेन्यू 15 फरवरी 2025 से लागू होगा और इसका उद्देश्य बच्चों को अधिक पौष्टिक और संतुलित आहार प्रदान करना है।

    सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब खिचड़ी केवल शनिवार को ही दी जाएगी, जबकि पहले इसे दो बार (बुधवार और शनिवार) परोसा जाता था।

    बिहार के स्कूलों में नया मिड-डे मील मेन्यू

    बच्चों को अधिक पौष्टिक आहार देने के लिए सरकार ने साप्ताहिक भोजन योजना में बदलाव किए हैं। अब विद्यार्थियों को इस प्रकार भोजन मिलेगा:

    • सोमवार और गुरुवार: चावल के साथ तड़का (हरी सब्जियों और दाल से युक्त भोजन)
    • बुधवार: चावल और लाल चना की सब्जी (आलू के साथ)
    • शुक्रवार: चावल और चना दाल की सब्जी
    • शनिवार: खिचड़ी (पहले सप्ताह में दो बार दी जाती थी, अब केवल एक बार)

    इस बदलाव को मिड-डे मील योजना के निदेशक विनायक मिश्रा ने मंजूरी दी है और सभी जिला शिक्षा अधिकारियों (DEOs) को इस संबंध में निर्देश जारी कर दिए गए हैं।

    मेन्यू बदलाव का उद्देश्य: बच्चों को बेहतर पोषण देना

    बिहार सरकार ने मिड-डे मील योजना को अधिक पौष्टिक और विविधतापूर्ण बनाने के लिए यह निर्णय लिया है। इस योजना से 1.10 करोड़ बच्चे प्रतिदिन लाभान्वित होते हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

    इस बदलाव से बच्चों को क्या लाभ मिलेगा?

    ✔️ भोजन में विविधता – बच्चों को अलग-अलग प्रकार का पौष्टिक खाना मिलेगा
    ✔️ हरी सब्जियों और प्रोटीन की मात्रा बढ़ेगी – यह बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है
    ✔️ भोजन की गुणवत्ता में सुधार होगा – अलग-अलग दिन नई डिशेस खाने से बच्चे उत्साहित रहेंगे
    ✔️ पोषण स्तर बढ़ेगा – दाल, हरी सब्जियां और चना जैसे पोषक तत्व शामिल होने से कुपोषण कम होगा

    सरकार का मानना है कि बार-बार एक जैसा भोजन (खिचड़ी) देने की बजाय, अधिक विविधता देना बच्चों की सेहत के लिए फायदेमंद होगा।

    बिहार में मिड-डे मील योजना का महत्व

    बिहार में मिड-डे मील योजना का उद्देश्य सिर्फ भोजन देना नहीं है, बल्कि कुपोषण को कम करनाविद्यालय उपस्थिति बढ़ाना और बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रोत्साहित करना भी है।

    मिड-डे मील योजना के प्रमुख लाभ

    ✅ कुपोषण को कम करना: बच्चों को संतुलित आहार देकर उनके पोषण स्तर में सुधार लाना
    ✅ विद्यालय उपस्थिति बढ़ाना: गरीब परिवारों के बच्चे नियमित रूप से स्कूल आएं
    ✅ सीखने की क्षमता में सुधार: अच्छा भोजन बच्चों को ऊर्जा और मानसिक मजबूती देता है
    ✅ लिंग समानता को बढ़ावा: इस योजना से अधिकतर लड़कियों का नामांकन बढ़ा है

    बिहार में 1.10 करोड़ छात्र प्रतिदिन मिड-डे मील से लाभान्वित होते हैं, जिससे यह योजना देश की सबसे बड़ी स्कूल पोषण योजनाओं में से एक बन गई है।

    नए मेन्यू को लागू करने की प्रक्रिया

    सरकार ने सभी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को नए मेन्यू के अनुसार कार्य करने के निर्देश दिए हैं। इसमें निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं का ध्यान रखा जाएगा:

    📌 निर्देशों का पालन – सभी स्कूलों को सख्ती से नए मेन्यू का पालन करना होगा
    📌 स्थानीय स्तर पर खाद्य सामग्री की खरीदारी – भोजन की ताजगी और लागत को नियंत्रित करने के लिए
    📌 रसोइयों को प्रशिक्षित किया जाएगा – ताकि वे पौष्टिक भोजन को सही तरीके से तैयार कर सकें
    📌 स्वच्छता और गुणवत्ता नियंत्रण – भोजन बनाते समय साफ-सफाई और गुणवत्ता बनाए रखना आवश्यक होगा

    इसके अलावा, जिला शिक्षा अधिकारियों (DEOs) को नियमित निरीक्षण करने और रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए निर्देश दिए गए हैं।

    माता-पिता और छात्रों की प्रतिक्रिया

    नए मेन्यू पर छात्रों और अभिभावकों की मिश्रित प्रतिक्रियाएं आई हैं।

    👩‍👦 पटना की एक माता-पिता का कहना है:
    “यह एक अच्छा कदम है क्योंकि बच्चों को अलग-अलग तरह का भोजन मिलेगा, जिससे उनका पोषण बेहतर होगा। लेकिन, खिचड़ी सुपाच्य होती है और इसे सप्ताह में दो बार रखा जाना चाहिए।”

    👨‍🏫 गया के एक शिक्षक ने कहा:
    “नया मेन्यू अधिक संतुलित है और इसमें सब्जियां और प्रोटीन की मात्रा अधिक है। यह बच्चों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा कदम है।”

    मिड-डे मील योजना में आने वाली चुनौतियाँ

    हालांकि नए मेन्यू को लागू करना एक सकारात्मक पहल है, लेकिन इसके सामने कुछ चुनौतियां भी हैं:

    🔴 खाद्य आपूर्ति की समस्या – यह सुनिश्चित करना कि सभी स्कूलों को समय पर पर्याप्त खाद्य सामग्री मिले
    🔴 भोजन की गुणवत्ता – सभी स्कूलों में खाने की गुणवत्ता समान रूप से बनी रहे
    🔴 बच्चों की स्वीकार्यता – बच्चे नए भोजन को कितना पसंद करेंगे

    सरकार ने आश्वासन दिया है कि इन चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे।

    भविष्य की योजनाएं: बिहार में मिड-डे मील योजना का विस्तार

    बिहार सरकार इस योजना को और सशक्त बनाने के लिए कुछ नए कदम उठाने पर विचार कर रही है, जैसे:

     फोर्टिफाइड चावल और दाल का उपयोग ताकि बच्चों को अधिक पोषण मिले
    ✅ बजट वृद्धि ताकि भोजन की गुणवत्ता बेहतर हो
    ✅ सप्ताह में एक बार दूध या डेयरी उत्पाद शामिल करना
    ✅ योजना का विस्तार ग्रामीण इलाकों में

    ये प्रयास बच्चों के स्वास्थ्य और शिक्षा दोनों को बढ़ावा देने में मदद करेंगे।

    बिहार सरकार द्वारा मिड-डे मील मेन्यू में किया गया बदलाव छात्रों के लिए सकारात्मक पहल है। इसमें प्रोटीन युक्त भोजन, हरी सब्जियां और विविध आहार शामिल किए गए हैं, जिससे 1.10 करोड़ छात्रों को सीधा लाभ मिलेगा।

    यदि इस योजना को सही तरीके से लागू किया गया, तो यह विद्यालय उपस्थिति बढ़ाने, कुपोषण कम करने और शिक्षा स्तर को सुधारने में मददगार साबित होगी।

  • बिहार बोर्ड परीक्षा 2025: गाइडलाइंस, परीक्षा शेड्यूल और ड्रेस कोड से जुड़ी अहम जानकारी

    बिहार बोर्ड परीक्षा 2025: गाइडलाइंस, परीक्षा शेड्यूल और ड्रेस कोड से जुड़ी अहम जानकारी

    KKN  गुरुग्राम डेस्क |  बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) ने इंटरमीडिएट (कक्षा 12) और मैट्रिक (कक्षा 10) परीक्षा 2025 के लिए आधिकारिक परीक्षा कार्यक्रम जारी कर दिया है।

    • इंटरमीडिएट परीक्षा (कक्षा 12) का आयोजन 1 फरवरी से 15 फरवरी 2025 तक होगा।
    • मैट्रिक (कक्षा 10) परीक्षा 17 फरवरी से 25 फरवरी 2025 के बीच आयोजित की जाएगी।

    बिहार बोर्ड ने परीक्षा की सुचारू व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कड़े नियम और दिशानिर्देश (guidelines) जारी किए हैं। इस वर्ष की सबसे बड़ी पाबंदी यह है कि परीक्षा भवन में जूते और मोजे पहनकर आना प्रतिबंधित कर दिया गया है। सभी परीक्षार्थियों को सिर्फ चप्पल पहनकर ही परीक्षा देने की अनुमति होगी।

    इस साल इंटर परीक्षा में लगभग 12.90 लाख विद्यार्थी शामिल हो रहे हैं, और इसके लिए पूरे बिहार में 1,500 से अधिक परीक्षा केंद्र बनाए गए हैं। साथ ही, परीक्षा केंद्रों में प्रवेश समय को लेकर भी सख्त नियम लागू किए गए हैं।

    बिहार बोर्ड परीक्षा 2025 के लिए महत्वपूर्ण दिशानिर्देश

    1. ड्रेस कोड: जूते और मोजे पर पूर्ण प्रतिबंध

    बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) द्वारा परीक्षा में अनुचित साधनों (unfair means) को रोकने के लिए ड्रेस कोड में सख्त बदलाव किए गए हैं।

    • परीक्षार्थियों को जूते और मोजे पहनकर परीक्षा केंद्र में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।
    • विद्यार्थियों को सिर्फ चप्पल पहनकर परीक्षा देने आना होगा।
    • अगर कोई परीक्षार्थी जूते या मोजे पहनकर आता है, तो उसे परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।

    इस नियम का उद्देश्य नकल पर रोक लगाना और परीक्षा प्रक्रिया को पूरी तरह पारदर्शी बनाना है।

    2. परीक्षा कार्यक्रम और प्रवेश समय

    बिहार बोर्ड परीक्षा के दौरान विद्यार्थियों के प्रवेश समय को लेकर भी सख्त नियम बनाए गए हैं।

    • पहली पाली (First Shift) की परीक्षा सुबह 9:30 बजे से शुरू होगी।
    • दूसरी पाली (Second Shift) की परीक्षा दोपहर 2:00 बजे से शुरू होगी।
    • परीक्षार्थियों को परीक्षा शुरू होने से 30 मिनट पहले परीक्षा केंद्र में प्रवेश करना अनिवार्य होगा।

    परीक्षा केंद्र में प्रवेश का समय:

    पारी परीक्षा का समय अंतिम प्रवेश समय प्रवेश प्रारंभ समय
    प्रथम पाली 9:30 AM – 12:45 PM सुबह 9:00 बजे (30 मिनट पहले) सुबह 8:30 बजे (1 घंटा पहले)
    द्वितीय पाली 2:00 PM – 5:15 PM दोपहर 1:30 बजे (30 मिनट पहले) दोपहर 1:00 बजे (1 घंटा पहले)

    📌 महत्वपूर्ण:

    • समय से देरी होने पर विद्यार्थियों को परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
    • विद्यार्थियों को परीक्षा शुरू होने से 1 घंटे पहले केंद्र पर पहुंचने की सलाह दी जाती है।
    • परीक्षा केंद्र के गेट परीक्षा शुरू होने से 30 मिनट पहले बंद कर दिए जाएंगे।

    बिहार बोर्ड ने जूते और मोजे पर प्रतिबंध क्यों लगाया?

    बिहार बोर्ड ने परीक्षा में नकल रोकने के लिए “नो शूज़, नो सॉक्स” पॉलिसी लागू की है

    • पिछले वर्षों में कई बार परीक्षार्थियों द्वारा जूते-मोजे में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, पर्चियां या अन्य नकल सामग्री छुपाने की घटनाएं सामने आई थीं।
    • इस बार परीक्षा को पूरी तरह पारदर्शी और अनुशासित बनाने के लिए यह सख्त निर्णय लिया गया है।
    • परीक्षा हॉल में प्रवेश से पहले कड़ी सुरक्षा जांच की जाएगी, जिससे किसी भी तरह की अनियमितता को रोका जा सके।

    बिहार बोर्ड परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम

    बिहार बोर्ड परीक्षा 2025 को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा प्रबंध किए गए हैं:

    • CCTV कैमरों की निगरानी में परीक्षा होगी।
    • परीक्षा कक्ष में मोबाइल फोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर सख्त प्रतिबंध लगाया गया है।
    • फ्लाइंग स्क्वॉड (Flying Squad) की टीमें अचानक निरीक्षण करेंगी।
    • परीक्षा केंद्र में प्रवेश के लिए एडमिट कार्ड अनिवार्य किया गया है।

    बिहार बोर्ड परीक्षा 2025: छात्रों के लिए महत्वपूर्ण टिप्स

    विद्यार्थी किसी भी असुविधा से बचने के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखें:

    ✅ समय पर पहुंचे: परीक्षा केंद्र में समय से कम से कम 1 घंटा पहले पहुंचें ताकि सुरक्षा जांच में कोई परेशानी न हो।
    ✅ सही ड्रेस कोड अपनाएं: चप्पल पहनकर ही परीक्षा केंद्र में प्रवेश करें, जूते और मोजे पहनने की अनुमति नहीं होगी।
    ✅ जरूरी दस्तावेज साथ लाएं: बिहार बोर्ड एडमिट कार्ड 2025 और अन्य आवश्यक स्टेशनरी सामग्री लेकर आएं।
    ✅ बेवजह की चीजें न लाएं: मोबाइल फोन, स्मार्टवॉच, कैलकुलेटर, नोट्स आदि परीक्षा कक्ष में ले जाना पूरी तरह प्रतिबंधित है।

    अगर कोई परीक्षार्थी देर से पहुंचता है तो क्या होगा?

    बिहार बोर्ड के अनुसार, परीक्षार्थियों को परीक्षा शुरू होने से 30 मिनट पहले ही परीक्षा केंद्र में प्रवेश करना होगा।

    • अगर कोई विद्यार्थी तय समय के बाद परीक्षा केंद्र पहुंचता है, तो उसे प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
    • विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा केंद्र तक पहुंचने के लिए पहले से यात्रा योजना बनाएं।
    • परीक्षा केंद्र का स्थान एक दिन पहले ही देख लें, ताकि परीक्षा के दिन कोई असमंजस न हो।

    बिहार बोर्ड परीक्षा 2025: महत्वपूर्ण तिथियां

    इवेंट तारीख
    इंटरमीडिएट परीक्षा (कक्षा 12) 1 फरवरी – 15 फरवरी 2025
    मैट्रिक परीक्षा (कक्षा 10) 17 फरवरी – 25 फरवरी 2025
    प्रैक्टिकल परीक्षा स्कूल द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार

    बिहार बोर्ड परीक्षा 2025 के लिए जारी किए गए दिशा-निर्देशों का पालन करना सभी परीक्षार्थियों के लिए अनिवार्य है

    • जूते और मोजे पहनने पर रोक,
    • परीक्षा केंद्र में प्रवेश का समय,
    • सुरक्षा व्यवस्था और
    • अनुशासनात्मक नियमों का पालन करके परीक्षार्थी बिना किसी परेशानी के अपनी परीक्षा दे सकते हैं।

    विद्यार्थियों को सलाह दी जाती है कि वे परीक्षा के दिन जल्द पहुंचे, एडमिट कार्ड साथ लाएं और परीक्षा नियमों का पूरी तरह पालन करें।

    बिहार बोर्ड इंटर और मैट्रिक परीक्षार्थियों को शुभकामनाएँ! 🎓📚

  • मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट: मार्च 2025 में डीपीआर होगा तैयार, जल्द शुरू होगा निर्माण कार्य

    मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट: मार्च 2025 में डीपीआर होगा तैयार, जल्द शुरू होगा निर्माण कार्य

    KKN गुरुग्राम डेस्क |   मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। शहर में मेट्रो के निर्माण की मंजूरी के बाद लोग इसके शुरू होने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। अब यह साफ हो गया है कि मेट्रो परियोजना का डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) मार्च 2025 तक तैयार हो जाएगा। डीपीआर तैयार होने के बाद परियोजना का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा।

    यह प्रोजेक्ट शहर की परिवहन व्यवस्था को पूरी तरह से बदलने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। इसमें दो मेट्रो कॉरिडोर और 22 स्टेशन शामिल होंगे, जो शहर के प्रमुख स्थानों को जोड़ेंगे।

    मेट्रो कॉरिडोर और स्टेशन: मुख्य जानकारी

    मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट के तहत शहर में दो मेट्रो कॉरिडोर बनाए जाएंगे, जिनकी कुल लंबाई 21.5 किलोमीटर होगी। इसमें कुल 22 स्टेशन होंगे। यह योजना RITES द्वारा तैयार की गई है। इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत ₹5,559 करोड़ है।

    पहला कॉरिडोर: हरपुर बखरी से रामदयालु नगर (13.85 किमी)

    यह कॉरिडोर शहर के सबसे व्यस्त और प्रमुख इलाकों को जोड़ने वाला होगा। इसमें कुल 13 स्टेशन होंगे, जो निम्नलिखित हैं:

    1. हरपुर बखरी
    2. अहियापुर
    3. जीरो माइल चौक
    4. बैरिया बस स्टैंड
    5. भगवानपुर चौक
    6. गोबरसही
    7. रामदयालु नगर

    यह कॉरिडोर एनएच-22, एनएच-27, एनएच-122, और एनएच-722 को जोड़ते हुए शहर के ट्रैफिक को सुचारु बनाएगा।

    दूसरा कॉरिडोर: एसकेएमसीएच से मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन (7.4 किमी)

    दूसरा कॉरिडोर शहर के मुख्य स्थानों को जोड़ने पर केंद्रित है। यह कॉरिडोर एसकेएमसीएच (श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल), शेखपुरअखाड़ाघाटकंपनी बाग, और अंत में मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन तक जाएगा। इसमें 9 स्टेशन शामिल होंगे।

    परिवहन में आएगा बड़ा बदलाव

    RITES के सर्वे के अनुसार, मेट्रो प्रोजेक्ट के दोनों कॉरिडोर चालू होने के बाद, शहर के लगभग 60% यात्रियों को इसका सीधा लाभ मिलेगा। मेट्रो से रोजाना आवागमन करने वाले लोगों को तेज, सुगम, और किफायती यात्रा का अनुभव मिलेगा।

    परियोजना की समयसीमा और प्रगति

    • मार्च 2025: मेट्रो प्रोजेक्ट की डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) तैयार हो जाएगी।
    • दिसंबर 2024: टाउन हॉल में जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों के साथ बैठक में मेट्रो प्रोजेक्ट को प्रारंभिक मंजूरी दी गई।
    • अगस्त 2024फिजिबिलिटी सर्वे किया गया, जिसमें परियोजना की व्यवहार्यता और स्टेशन स्थानों का निर्धारण हुआ।

    परियोजना की अनुमानित लागत

    मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत ₹5,559 करोड़ है। यह राशि मेट्रो निर्माण, स्टेशन बनाने, और मेट्रो ट्रेन संचालन के लिए खर्च की जाएगी। राज्य और केंद्र सरकार द्वारा इस परियोजना के लिए फंड उपलब्ध कराया जाएगा। साथ ही, इसमें निजी निवेश की संभावना भी है।

    मुजफ्फरपुर मेट्रो से होने वाले फायदे

    1. बेहतर कनेक्टिविटी
      मेट्रो शहर के प्रमुख स्थानों जैसे हरपुर बखरीरामदयालु नगरएसकेएमसीएच, और मुजफ्फरपुर रेलवे स्टेशन को जोड़ेगी।
    2. यात्रा में समय की बचत
      मेट्रो तेज और सुरक्षित यात्रा का विकल्प देगी, जिससे यात्रियों का समय बचेगा।
    3. ट्रैफिक जाम में कमी
      मेट्रो के संचालन से शहर की सड़कों पर वाहनों की संख्या में कमी आएगी, जिससे ट्रैफिक जाम की समस्या हल होगी।
    4. पर्यावरण के अनुकूल
      मेट्रो परियोजना पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। यह प्रदूषण को कम करने और हरित परिवहन को बढ़ावा देने में मदद करेगी।
    5. आर्थिक विकास
      मेट्रो प्रोजेक्ट से निवेश आकर्षित होगा, जिससे क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा।

    मुश्किलें और सावधानियां

    मेट्रो परियोजना के सफल क्रियान्वयन में कुछ चुनौतियां भी हो सकती हैं। इसके लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना जरूरी है:

    • समय पर फंडिंग और निर्माण कार्य
    • सुरक्षा मानकों का पालन
    • जनता का सहयोग और जागरूकता
    • परियोजना प्रबंधन और प्रशासनिक समन्वय

    मुजफ्फरपुर के विकास की दिशा में बड़ा कदम

    मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट शहर के विकास को नई दिशा देगा। यह परियोजना न केवल एक बेहतर परिवहन प्रणाली उपलब्ध कराएगी, बल्कि यह शहर को आधुनिक और पर्यावरण के अनुकूल बनाने में भी सहायक होगी।

    परियोजना के मुख्य बिंदु

    1. दो मेट्रो कॉरिडोर जिनकी कुल लंबाई 21.5 किमी होगी।
    2. 22 स्टेशन, जिनमें 13 पहले कॉरिडोर और 9 दूसरे कॉरिडोर में होंगे।
    3. अनुमानित लागत: ₹5,559 करोड़।
    4. डीपीआर मार्च 2025 तक तैयार होगी।
    5. 60% यात्रियों को मिलेगा मेट्रो से लाभ।
    6. शहर के प्रमुख नेशनल हाईवे और केंद्रों को जोड़ेगा।

    मुजफ्फरपुर मेट्रो प्रोजेक्ट शहर की परिवहन व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने की तैयारी में है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से न केवल यातायात व्यवस्था को सुधारने की कोशिश की जा रही है, बल्कि यह शहर के समग्र विकास का एक प्रमुख हिस्सा भी बनेगा।

    इस परियोजना के पूरा होने से न केवल यात्री सुविधाओं में सुधार होगा, बल्कि शहर की सड़कों से ट्रैफिक का दबाव भी कम होगा। साथ ही, यह परियोजना रोजगार और आर्थिक विकास के नए अवसर भी लाएगी।

    मुजफ्फरपुर से जुड़ी हर ताजा खबर और अपडेट के लिए KKN Live के साथ जुड़े रहें।

  • बिहार में कानून का राज: अनंत सिंह की न्यायिक हिरासत पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का बड़ा बयान

    बिहार में कानून का राज: अनंत सिंह की न्यायिक हिरासत पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का बड़ा बयान

    KKN गुरुग्राम डेस्क |  बिहार के पूर्व विधायक अनंत सिंह को न्यायिक हिरासत में भेजे जाने पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बिहार में कानून का राज है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में कानून अपना काम कर रहा है। जिन लोगों पर आरोप हैं, वे कानून के सामने सरेंडर कर रहे हैं। अब यह न्यायालय तय करेगा कि कौन जेल के अंदर रहेगा और कौन बाहर।

    अनंत सिंह का सरेंडर और न्यायिक हिरासत

    मोकामा गोलीकांड मामले में आरोपी पूर्व विधायक अनंत सिंह ने बाढ़ कोर्ट में सरेंडर कर दिया। कोर्ट ने उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में बेऊर जेल भेज दिया है। इस मामले में अन्य आरोपी भी कानून के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं। यह मामला राज्य में कानून व्यवस्था और न्याय प्रणाली की मजबूती को दर्शाता है।

    आरजेडी के आरोपों पर उपमुख्यमंत्री का पलटवार

    राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस मामले में चुप्पी पर सवाल खड़े किए हैं। इस पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने आरजेडी और उसके नेतृत्व पर तीखा हमला करते हुए कहा कि नीतीश कुमार को कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

    उन्होंने कहा, “तेजस्वी यादव और उनका परिवार अपराध और गुंडागर्दी का प्रतीक है। बिहार की जनता को बस यह पता चल जाए कि लालू यादव का राज वापस आने वाला है, तो लोग डर जाते हैं। लालू यादव ने बिहार में अपराध और अराजकता को बढ़ावा दिया। उनका परिवार सत्ता में वापस आने का सपना देखना बंद कर दे।”

    मोकामा गोलीकांड: क्या है मामला?

    मोकामा गोलीकांड, जिसमें अनंत सिंह और अन्य आरोपी शामिल थे, ने बिहार में अपराध और राजनीति के बीच की गहरी कड़ी को उजागर किया। इस मामले में अपराध और हिंसा के आरोप लगे हैं, जिससे बिहार की कानून व्यवस्था पर सवाल उठे थे। अनंत सिंह, जिनकी छवि एक दबंग और विवादास्पद नेता की रही है, ने लंबे समय तक गिरफ्तारी से बचने की कोशिश की।

    उनका सरेंडर यह दिखाता है कि बिहार सरकार अपराध के मामलों में किसी के साथ नरमी नहीं बरत रही है।

    कानून व्यवस्था पर सरकार का जोर

    उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने इस मौके पर राज्य में कानून व्यवस्था को लेकर नीतीश सरकार की उपलब्धियां गिनाईं। उन्होंने कहा, “बिहार में अब गुंडागर्दी और अपराध के लिए कोई जगह नहीं है। जिन पर आरोप हैं, वे कानून के सामने आत्मसमर्पण कर रहे हैं। न्यायालय इन मामलों को देख रहा है। यह सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है कि अपराधियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा।”

    चौधरी ने आगे कहा कि नीतीश कुमार के शासन में कानून व्यवस्था मजबूत हुई है, और राज्य ने अराजकता के उस दौर से उबर लिया है, जो लालू यादव के शासनकाल में आम बात थी।

    राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप

    इस मामले ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है। आरजेडी और सत्ताधारी गठबंधन के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर तेज हो गया है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सरकार पर कानून व्यवस्था को लेकर निशाना साधा, तो उपमुख्यमंत्री ने आरजेडी पर करारा पलटवार किया।

    चौधरी ने कहा, “आरजेडी को अपने शासनकाल को याद करना चाहिए, जब कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं थी। नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में शांति और कानून का राज स्थापित हुआ है।”

    अनंत सिंह की राजनीतिक पृष्ठभूमि

    अनंत सिंह, जिन्हें बिहार की राजनीति में “छोटे सरकार” के नाम से भी जाना जाता है, हमेशा विवादों में घिरे रहे हैं। उनकी राजनीतिक छवि एक दबंग और प्रभावशाली नेता की है, लेकिन उन पर कई गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। मोकामा क्षेत्र में उनकी पकड़ मजबूत है, लेकिन उनके ऊपर लगे अपराध के आरोपों ने उनकी राजनीतिक यात्रा को विवादास्पद बना दिया है।

    उनका सरेंडर और न्यायिक हिरासत में जाना इस बात का संकेत है कि राज्य की न्याय प्रणाली अब प्रभावशाली लोगों को भी बख्शने के मूड में नहीं है।

    आरजेडी पर सरकार का हमला

    उपमुख्यमंत्री ने आरजेडी और लालू यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि बिहार की जनता उनके शासनकाल को भूली नहीं है। उन्होंने कहा, “लालू यादव और उनके परिवार का नाम आते ही जनता के दिलों में अराजकता और अपराध का डर बैठ जाता है। उनके शासनकाल में अपराधियों का मनोबल बढ़ा हुआ था। अब बिहार की जनता ऐसा दौर कभी नहीं देखना चाहती।”

    अपराध और राजनीति का गहरा रिश्ता

    बिहार में अपराध और राजनीति का रिश्ता नया नहीं है। राज्य में कई नेताओं का आपराधिक इतिहास रहा है, और अनंत सिंह जैसे नेता इस सच्चाई का हिस्सा रहे हैं। लेकिन नीतीश सरकार ने इस चलन को खत्म करने के लिए कई कठोर कदम उठाए हैं। अनंत सिंह का जेल जाना इस बात का उदाहरण है कि कानून सबके लिए समान है।

    जनता की प्रतिक्रिया

    अनंत सिंह के जेल जाने और सरकार की कड़ी कार्रवाई पर जनता की प्रतिक्रिया मिली-जुली है। जहां कुछ लोग इसे सरकार की मजबूत कानून व्यवस्था का उदाहरण मानते हैं, वहीं कुछ इसे राजनीति से प्रेरित कदम बताते हैं।

    राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला आगामी चुनावों में अहम भूमिका निभा सकता है। सरकार इसे कानून व्यवस्था की जीत के तौर पर पेश कर रही है, जबकि विपक्ष इसे सत्ता के दुरुपयोग का नाम दे रहा है।

    अनंत सिंह का सरेंडर और उनकी न्यायिक हिरासत बिहार की राजनीति और कानून व्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। यह दिखाता है कि राज्य में कानून का राज कायम है और सरकार अपराधियों के खिलाफ सख्त रुख अपनाए हुए है।

    हालांकि, इस मामले ने बिहार की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर भी शुरू कर दिया है। अब देखना यह होगा कि न्यायालय क्या फैसला सुनाता है और यह मामला राज्य की राजनीति और जनता की सोच को कितना प्रभावित करता है।

    बिहार की राजनीति, अपराध और कानून से जुड़ी हर खबर के लिए जुड़े रहें KKNLive.com के साथ। हम आपको हर अपडेट सबसे पहले और सटीक जानकारी के साथ पहुंचाते रहेंगे।

  • बिहार में ठंड का कहर जारी, 16 जिलों में घने कोहरे का अलर्ट

    बिहार में ठंड का कहर जारी, 16 जिलों में घने कोहरे का अलर्ट

    KKN  गुरुग्राम डेस्क | बिहार में इन दिनों कड़ाके की ठंड और घने कोहरे का प्रकोप जारी है। पश्चिमी विक्षोभ के कारण राज्य के कई हिस्सों में नमी बढ़ गई है, जिससे घने कोहरे की स्थिति बन गई है। मौसम विभाग ने आज, 23 जनवरी 2025, को राज्य के 16 जिलों में घने कोहरे का अलर्ट जारी किया है। वहीं, पांच जिलों में ठंड और कोहरे के चलते येलो अलर्ट घोषित किया गया है।

    घने कोहरे और कड़ाके की ठंड के कारण आम जनजीवन प्रभावित हुआ है। मौसम विभाग ने अगले दो दिनों तक प्रदेश में घने कोहरे और ठंड के बने रहने की संभावना जताई है।

    16 जिलों में घने कोहरे का अलर्ट

    मौसम विभाग के अनुसार, बिहार के 16 जिलों में घने कोहरे का अलर्ट जारी किया गया है। इनमें सीतामढ़ीपूर्वी चंपारणमधुबनीशिवहर, और सारण जैसे जिले शामिल हैं। इन पांच जिलों में कोल्ड-डे की स्थिति को लेकर येलो अलर्ट जारी किया गया है।

    विशेषकर हिमालय की तराई से सटे क्षेत्रों में कोहरे का प्रकोप ज्यादा रहेगा। घने कोहरे के कारण सुबह और रात के समय विजिबिलिटी में भारी गिरावट हो सकती है, जिससे यातायात प्रभावित होने की संभावना है।

    तापमान की स्थिति

    बिहार के विभिन्न जिलों में न्यूनतम तापमान में भारी गिरावट दर्ज की गई है। रोहतास जिला सबसे ठंडा रहा, जहां न्यूनतम तापमान 8°C दर्ज किया गया। इसके अलावा, अन्य प्रमुख जिलों का तापमान इस प्रकार रहा:

    • बांका: 10.3°C
    • नालंदा: 10.4°C
    • जमुई: 10.5°C
    • गया: 10.9°C
    • शेखपुरा: 11.1°C
    • वैशाली: 11.3°C
    • पटना: 11.4°C
    • गोपालगंज: 12°C
    • दरभंगा: 12.8°C
    • पश्चिमी चंपारण: 13.8°C
    • मधेपुरा: 13.9°C

    मौसम विभाग ने बताया है कि अधिकतर जिलों में अधिकतम तापमान 18°C से 22°C के बीच रहने का अनुमान है।

    पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव

    बिहार में ठंड और कोहरे का मुख्य कारण पश्चिमी विक्षोभ को माना जा रहा है। पश्चिमी विक्षोभ की वजह से वातावरण में नमी बढ़ गई है, जिससे कोहरा और ठंड बढ़ने की स्थिति बनी हुई है। पश्चिमी विक्षोभ सर्दियों के मौसम में सामान्य रूप से उत्तर भारत को प्रभावित करता है और इससे ठंडी हवाएं, बारिश और कोहरे की स्थिति पैदा होती है।

    27 जनवरी को बारिश का अलर्ट

    मौसम विभाग ने 27 जनवरी को बिहार में हल्की बारिश की संभावना जताई है। इस बारिश से ठंड और नमी में और अधिक बढ़ोतरी हो सकती है। बारिश के कारण तापमान में और गिरावट आने की संभावना है, जिससे ठंड का प्रकोप और बढ़ सकता है।

    सड़क पर कोहरे का असर

    घने कोहरे के कारण सड़क यातायात पर भी असर पड़ रहा है। कम विजिबिलिटी के कारण दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ गया है। मौसम विभाग और प्रशासन ने यात्रियों को सतर्क रहने और सड़क पर सावधानी बरतने की सलाह दी है।

    यात्रियों के लिए सुझाव:

    1. गाड़ी चलाते समय फॉग लाइट्स का इस्तेमाल करें।
    2. तेज गति से गाड़ी चलाने से बचें।
    3. अत्यधिक कोहरा होने पर अनावश्यक यात्रा से बचें।
    4. सड़क पर ट्रैफिक नियमों का पालन करें।

    ठंड से होने वाले स्वास्थ्य जोखिम

    कड़ाके की ठंड और घने कोहरे के कारण लोगों की सेहत पर भी प्रभाव पड़ सकता है। खासकर बुजुर्गों, बच्चों और बीमार व्यक्तियों के लिए यह मौसम अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। ठंड के कारण हाइपोथर्मियाफ्रॉस्टबाइट, और सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

    स्वास्थ्य सुझाव:

    • गर्म कपड़े पहनें और खुद को ठंड से बचाएं।
    • सुबह और शाम के समय घर से बाहर जाने से बचें।
    • गर्म पेय पदार्थ जैसे चाय, सूप या अदरक का काढ़ा लें।
    • शरीर को गर्म रखने के लिए हीटर या ब्लोअर का उपयोग करें।

    बिहार में ठंड का ट्रेंड

    पिछले कुछ हफ्तों से बिहार में ठंड और कोहरे का सिलसिला जारी है। राज्य के उत्तरी हिस्से, खासकर हिमालय की तराई वाले जिलों में ठंड का असर अधिक महसूस किया जा रहा है। पिछले 24 घंटों में ठंड के कारण राज्य के कई जिलों में जनजीवन प्रभावित हुआ है।

    मौसम विभाग ने बताया है कि अगले 48 घंटे के दौरान घने कोहरे और ठंड से राहत मिलने की संभावना नहीं है। इसके साथ ही, 27 जनवरी को संभावित बारिश और तापमान में गिरावट की वजह से ठंड का प्रकोप और बढ़ सकता है।

    प्रभावित जिले

    1. रोहतास: 8°C के न्यूनतम तापमान के साथ सबसे ठंडा जिला।
    2. गया: 10.9°C, न्यूनतम तापमान और कोहरे के कारण जनजीवन प्रभावित।
    3. पटना: 11.4°C, राजधानी शहर में भी घने कोहरे के कारण यातायात प्रभावित।
    4. वैशाली और शेखपुरा: 11°C के आसपास तापमान, कड़ाके की ठंड का सामना कर रहे हैं।
    5. सीतामढ़ी, मधुबनी, और पूर्वी चंपारण: हिमालय की तराई से सटे होने के कारण घने कोहरे की चपेट में।

    प्रशासन के कदम

    कोहरे और ठंड के कारण बिहार सरकार ने कुछ एहतियाती कदम उठाए हैं:

    • स्कूलों के समय में बदलाव किया गया है ताकि बच्चे ठंड से बच सकें।
    • हाईवे पर सुरक्षा टीमों को तैनात किया गया है ताकि ट्रैफिक को व्यवस्थित रखा जा सके।
    • प्रशासन द्वारा लगातार मौसम की जानकारी साझा की जा रही है ताकि लोग सतर्क रह सकें।

    बिहार में ठंड और घने कोहरे ने जनजीवन को मुश्किल बना दिया है। 16 जिलों में जारी घने कोहरे के अलर्ट और न्यूनतम तापमान में गिरावट के कारण लोग सर्द मौसम का सामना कर रहे हैं। पश्चिमी विक्षोभ और संभावित बारिश से आने वाले दिनों में ठंड का असर और बढ़ने की संभावना है।

    मौसम विभाग और प्रशासन ने लोगों को सतर्क रहने और ठंड से बचाव के उपाय अपनाने की सलाह दी है। ऐसे समय में, जरूरी है कि लोग खुद को और अपने परिवार को सुरक्षित रखें।

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  • पूर्णिया सांसद पप्पू यादव के सोशल मीडिया प्रभारी आर्यन शर्मा का सड़क दुर्घटना में निधन

    पूर्णिया सांसद पप्पू यादव के सोशल मीडिया प्रभारी आर्यन शर्मा का सड़क दुर्घटना में निधन

    KKN गुरुग्राम डेस्क |   पूर्णिया सांसद पप्पू यादव के सोशल मीडिया प्रभारी आर्यन शर्मा का एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। यह दर्दनाक हादसा आरा-मोहनिया राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुआ, जब आर्यन अपने माता-पिता के साथ प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ में स्नान के लिए जा रहे थे। इस घटना ने न केवल उनके परिवार को गहरे शोक में डाल दिया है, बल्कि उनके शुभचिंतकों और सांसद पप्पू यादव को भी आघात पहुंचाया है। सांसद ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं और आर्यन को श्रद्धांजलि अर्पित की।

    कैसे हुआ हादसा?

    जानकारी के मुताबिक, यह हादसा बक्सर जिले के सोनवर्षा थाना क्षेत्र के पास आरा-मोहनिया राष्ट्रीय राजमार्ग पर हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, सामने से आ रही एक तेज रफ्तार कंटेनर ट्रक ने आर्यन शर्मा की गाड़ी स्कॉर्पियो को सीधी टक्कर मारी। टक्कर इतनी भयानक थी कि कंटेनर ट्रक ने स्कॉर्पियो को लगभग 100 मीटर तक घसीट दिया। दुर्घटना के वक्त आर्यन खुद गाड़ी चला रहे थे। टक्कर लगते ही उनकी मौके पर ही मौत हो गई।

    परिवार और अन्य यात्रियों की स्थिति

    आर्यन शर्मा के परिवार के सदस्य, जो उसी गाड़ी में सवार थे, इस हादसे में बाल-बाल बच गए। हालांकि, उन्हें भी मामूली चोटें आई हैं और घटना के बाद से वे गहरे सदमे में हैं। एक होनहार बेटे की अचानक मौत ने पूरे परिवार को दुख और निराशा में डाल दिया है।

    पप्पू यादव और समर्थकों में शोक

    आर्यन शर्मा की मौत की खबर से सांसद पप्पू यादव और उनके समर्थक स्तब्ध हैं। आर्यन सांसद के सोशल मीडिया अभियानों का अहम हिस्सा थे और उन्होंने डिजिटल माध्यम से सांसद की छवि बनाने और जनता से जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाई थी। पप्पू यादव ने आर्यन को याद करते हुए लिखा कि वह उनके परिवार का एक अभिन्न हिस्सा थे और उनकी कमी हमेशा खलेगी।

    आरा-मोहनिया राजमार्ग पर लगातार बढ़ रहे हादसे

    यह घटना आरा-मोहनिया राष्ट्रीय राजमार्ग पर हो रहे लगातार हादसों का एक और उदाहरण है। यह राजमार्ग लंबे समय से खराब सड़क स्थितियों और तेज रफ्तार वाहनों के कारण दुर्घटनाओं के लिए बदनाम है। सड़क पर ट्रैफिक के सही प्रबंधन की कमी, वाहनों की तेज रफ्तार, और भारी ट्रकों की अनियंत्रित आवाजाही इस क्षेत्र को दुर्घटना-प्रवण बनाते हैं।

    स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कई बार प्रशासन से इस राजमार्ग पर ट्रैफिक नियमों को सख्ती से लागू करने और सड़क सुरक्षा के उपायों में सुधार की मांग की है। लेकिन हाल की घटनाएं दर्शाती हैं कि इन मांगों पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

    प्रत्यक्षदर्शियों का बयान

    घटना के समय मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कंटेनर ट्रक अत्यधिक तेज गति में था और उसने नियंत्रण खो दिया, जिसके कारण यह सीधी टक्कर हुई। टक्कर के बाद स्कॉर्पियो गाड़ी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और हादसे के बाद सड़क पर जाम की स्थिति बन गई।

    पुलिस ने घटनास्थल पर पहुंचकर जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक जांच में यह स्पष्ट हुआ है कि तेज रफ्तार और लापरवाह ड्राइविंग इस हादसे की मुख्य वजह है।

    आर्यन शर्मा के योगदान को याद करते हुए

    सोशल मीडिया मैनेजर के तौर पर आर्यन शर्मा की भूमिका बहुत अहम थी। उन्होंने सांसद पप्पू यादव की डिजिटल छवि को बेहतर बनाने और जनता से जुड़ने में बड़ी भूमिका निभाई थी। आर्यन की मेहनत और लगन के कारण पप्पू यादव की डिजिटल रणनीति को जनता ने खूब सराहा।

    आर्यन के निधन से केवल एक परिवार नहीं, बल्कि एक समर्पित और प्रतिभाशाली युवा का जीवन असमय समाप्त हो गया है। उनके योगदान को याद करते हुए सोशल मीडिया पर उनके दोस्तों, शुभचिंतकों और राजनीतिक हस्तियों ने श्रद्धांजलि दी है।

    सड़क सुरक्षा पर ध्यान देने की जरूरत

    आर्यन शर्मा की दुखद मृत्यु से एक बार फिर सड़क सुरक्षा की अनदेखी उजागर होती है। ऐसे हादसों को रोका जा सकता है अगर सड़क पर सुरक्षा के मानकों का सही तरीके से पालन हो। तेज रफ्तार वाहनों की जांच, सड़क पर स्पष्ट संकेत और ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन ही ऐसी दुर्घटनाओं को कम कर सकते हैं।

    प्रशासन को चाहिए कि वह सड़क पर सुरक्षा के नियम लागू करने और खराब सड़कों को सुधारने पर ध्यान दे। इसके अलावा, जागरूकता अभियानों के माध्यम से लोगों को ट्रैफिक नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना भी बेहद जरूरी है।

    आर्यन शर्मा की असमय मौत ने उनके परिवार, मित्रों और पप्पू यादव की पूरी टीम को गहरे शोक में डाल दिया है। यह घटना न केवल एक व्यक्तिगत क्षति है, बल्कि यह सड़क सुरक्षा और यातायात नियमों की अनदेखी पर सवाल खड़े करती है।

    आज, जब हम एक होनहार युवा को श्रद्धांजलि दे रहे हैं, तो यह समय है कि प्रशासन और समाज मिलकर सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता दें। आर्यन शर्मा की याद हमेशा उनके परिवार और दोस्तों के दिलों में जीवित रहेगी। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है और उनकी मौत हमें यह सिखाती है कि सड़क पर सतर्कता और नियमों का पालन कितना जरूरी है।

  • राज्य सरकार ने ड्यूटी से अनुपस्थित कैप्टन परिमल को किया निलंबित, मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा में लापरवाही का आरोप

    राज्य सरकार ने ड्यूटी से अनुपस्थित कैप्टन परिमल को किया निलंबित, मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा में लापरवाही का आरोप

    KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार सरकार ने विमान चालक सह उत्तरदायी प्रबंधक, वायुयान संगठन के पद पर तैनात कैप्टन विवेक परिमल को उनकी ड्यूटी में लापरवाही और अनुशासनहीनता के गंभीर आरोपों के तहत निलंबित कर दिया है। यह कार्रवाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा के दौरान उनके कर्तव्यों का पालन न करने और लगातार अनुपस्थित रहने के कारण की गई।

    लापरवाही और अनुशासनहीनता के गंभीर आरोप

    कैप्टन विवेक परिमल पर यह आरोप है कि उन्होंने मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा के दौरान अपनी जिम्मेदारियों को गंभीरता से नहीं लिया। सरकार द्वारा जारी आदेश में उनके खिलाफ निम्नलिखित प्रमुख आरोप लगाए गए हैं:

    1. हेलिपैड की एनओसी उपलब्ध नहीं कराना:
      • प्रगति यात्रा के दौरान जिलों में हेलिपैड की अनापत्ति प्रमाणपत्र (एनओसी) प्रदान करना उनकी जिम्मेदारी थी, लेकिन उन्होंने यह कार्य नहीं किया।
    2. लॉजिस्टिक्स का समन्वय न करना:
      • हेलिकॉप्टर संचालन के लिए आवश्यक फोटो, वीडियो और समन्वय की जिम्मेदारी उन्होंने नहीं निभाई।
    3. ड्यूटी से अनुपस्थित रहना:
      • कैप्टन परिमल 3 जनवरी 2025 से ड्यूटी से लगातार अनुपस्थित हैं और उनके दोनों मोबाइल फोन भी बंद पाए गए, जिससे उनके संपर्क में आना असंभव हो गया।
    4. प्रमाणपत्र और करेंसी न प्राप्त करना:
      • वायुयान संगठन निदेशालय में विमान चालक के रूप में कार्यरत रहते हुए उन्होंने राजकीय विमान किंग एयर सी-90 ए/बी वीटी-ईबीजी के परिचालन के लिए आवश्यक करेंसी भी प्राप्त नहीं की। यह विमान राज्यपाल, मुख्यमंत्री और अन्य विशिष्ट व्यक्तियों की उड़ानों के लिए उपयोग होता है।

    कैबिनेट सचिवालय का निलंबन आदेश

    राज्य सरकार ने इस लापरवाही को कर्तव्य के प्रति गंभीर उपेक्षा और अनुशासनहीनता माना है। कैबिनेट सचिवालय ने तुरंत कार्रवाई करते हुए कैप्टन परिमल का निलंबन आदेश जारी कर दिया है। यह कदम यह सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है कि राज्य की महत्वपूर्ण योजनाओं और कार्यक्रमों के संचालन में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न हो।

    मुख्यमंत्री की प्रगति यात्रा पर असर

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा बिहार के विकास कार्यों की जमीनी समीक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। इस यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री विभिन्न जिलों का दौरा करते हैं और चल रहे परियोजनाओं का मूल्यांकन करते हैं। हेलिकॉप्टर संचालन इस यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह मुख्यमंत्री को समय पर दुर्गम क्षेत्रों में पहुंचने में मदद करता है।

    कैप्टन परिमल की गैरमौजूदगी और जिम्मेदारियों का निर्वहन न करने के कारण यात्रा की व्यवस्थाओं में अव्यवस्था उत्पन्न हुई। हालांकि, सरकार ने इस स्थिति को संभालते हुए यात्रा को बाधित नहीं होने दिया।

    प्रमुख जिम्मेदारियां जिन्हें किया गया अनदेखा

    कैप्टन विवेक परिमल, वायुयान संगठन निदेशालय में विमान चालक और उत्तरदायी प्रबंधक के रूप में, राज्य के विशिष्ट व्यक्तियों की उड़ानों और हेलिकॉप्टर संचालन के लिए निम्नलिखित जिम्मेदारियां निभाने के लिए उत्तरदायी थे:

    • हेलिपैड के लिए एनओसी की व्यवस्था करना।
    • फोटो और वीडियो जैसे तकनीकी आवश्यकताओं को हेलिकॉप्टर ऑपरेटर को प्रदान करना।
    • विभिन्न टीमों के बीच समन्वय स्थापित करना।
    • राजकीय विमान के परिचालन के लिए आवश्यक प्रमाणपत्र और करेंसी सुनिश्चित करना।

    इन सभी जिम्मेदारियों को अनदेखा करना उनकी कर्तव्यहीनता और अनुशासनहीनता को दर्शाता है।

    सरकार का सख्त रुख

    राज्य सरकार ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और यह सुनिश्चित किया है कि प्रशासनिक कार्यों में अनुशासनहीनता को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। कैप्टन परिमल का निलंबन सरकारी अधिकारियों के लिए एक कड़ा संदेश है कि किसी भी स्तर पर लापरवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

    यह कार्रवाई राज्य की महत्वाकांक्षी योजनाओं को सुचारू रूप से लागू करने और नागरिकों की समस्याओं को हल करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

    लापरवाही के सबक और सुधार

    इस घटना ने सरकारी प्रशासन में कुछ महत्वपूर्ण सबक दिए हैं, जो भविष्य में ऐसी समस्याओं से बचने के लिए जरूरी हैं:

    1. सख्त निगरानी और जवाबदेही:
      • सरकारी अधिकारियों की जिम्मेदारियों का नियमित आकलन और निगरानी सुनिश्चित करनी होगी।
    2. संचार व्यवस्था में सुधार:
      • ऐसे अधिकारियों के लिए एक प्रभावी संचार प्रणाली लागू की जानी चाहिए ताकि आपातकालीन स्थितियों में संपर्क स्थापित किया जा सके।
    3. प्रशिक्षण और प्रमाणन:
      • विमान चालकों और प्रबंधकों के लिए नियमित प्रशिक्षण और प्रमाणन अनिवार्य किया जाना चाहिए।

    कैप्टन विवेक परिमल का निलंबन बिहार सरकार की कड़ी अनुशासन नीति और जिम्मेदारी के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की प्रगति यात्रा के दौरान उनकी अनुपस्थिति ने संचालन में व्यवधान पैदा किया, लेकिन सरकार ने इस स्थिति को प्रभावी ढंग से संभाला।

    यह घटना सरकारी अधिकारियों को यह याद दिलाती है कि प्रशासनिक जिम्मेदारियों का पालन सर्वोपरि है और लापरवाही को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बिहार सरकार की यह कार्रवाई यह सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है कि राज्य की योजनाएं और कार्यक्रम प्रभावी ढंग से लागू हों और जनता को इसका लाभ मिले।

  • बिहार में कोहरे का कहर: 30 जिलों में येलो अलर्ट जारी, तापमान गिरने से बढ़ी ठंड

    बिहार में कोहरे का कहर: 30 जिलों में येलो अलर्ट जारी, तापमान गिरने से बढ़ी ठंड

    KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार में मौसम का मिजाज लगातार बदल रहा है, जिससे लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। दिन में धूप और रात में कड़ाके की ठंड के बीच बुधवार सुबह घने कोहरे ने राज्य के कई जिलों को अपनी चपेट में ले लिया। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अ गले दो दिनों तक कोहरे के बने रहने की संभावना जताई है और राज्य के 30 जिलों में येलो अलर्ट जारी किया है।

    बिहार में घना कोहरा छाया

    मौसम विभाग के अनुसार, हिमालय की तराई से सटे क्षेत्रों में अति घना कोहरा और राज्य के अन्य हिस्सों में घना कोहरा छाए रहने की संभावना है। पटना, नालंदा, भागलपुर, बेगूसराय, लखीसराय और मुंगेर जैसे जिलों में कोहरे का व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है।

    घने कोहरे के कारण सुबह और रात में विजिबिलिटी कम हो रही है, जिससे जनजीवन प्रभावित हो रहा है। इसके साथ ही न्यूनतम तापमान में गिरावट के चलते ठंडक और बढ़ गई है। राजधानी पटना समेत कई इलाकों में लोग “कनकनी” महसूस कर रहे हैं।

    30 जिलों में येलो अलर्ट जारी

    मौसम विभाग ने बिहार के 30 जिलों में येलो अलर्ट जारी किया है। इन जिलों में घने से अति घने कोहरे की संभावना है। प्रमुख जिलों में शामिल हैं:

    • कटिहार
    • किशनगंज
    • अररिया
    • सुपौल
    • मधुबनी
    • पटना
    • सीवान
    • सारण
    • मोतिहारी

    इन जिलों में कोहरा विशेष रूप से सुबह के समय अधिक घना रहेगा, जिससे यातायात और जनजीवन प्रभावित होने की आशंका है।

    यातायात और जनजीवन पर प्रभाव

    बिहार में घने कोहरे का सबसे ज्यादा असर यातायात पर देखने को मिल रहा है। कम विजिबिलिटी के कारण सड़क यातायात धीमा हो गया है, जिससे गाड़ियों की आवाजाही में दिक्कतें आ रही हैं। ट्रेनों की आवाजाही पर भी कोहरे का असर पड़ने की संभावना है, जिससे रेलगाड़ियों के समय में देरी हो सकती है।

    हवाई यातायात भी कोहरे के कारण प्रभावित हो सकता है, जिससे विमानों के आगमन और प्रस्थान में बाधाएं आ सकती हैं। सुबह जल्दी यात्रा करने वाले लोगों को विशेष सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है। कोहरे के कारण सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है, जिससे सावधानीपूर्वक यात्रा करना अनिवार्य हो गया है।

    तापमान में गिरावट से बढ़ी ठंड

    कोहरे के साथ-साथ बिहार के कई जिलों में न्यूनतम तापमान में गिरावट दर्ज की गई है। पटना समेत नौ जिलों में तापमान गिरने से ठंड का प्रकोप बढ़ गया है। लोग भारी कपड़ों और हीटर जैसे साधनों का सहारा ले रहे हैं।

    राजधानी पटना और आसपास के इलाकों में रात के समय तापमान में भारी गिरावट हो रही है, जिससे लोगों को ठंड से बचने के लिए अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ रही है।

    कोहरे में सुरक्षित रहने के टिप्स

    मौसम विभाग की चेतावनी के बाद, नागरिकों को सतर्क रहने और कोहरे के दौरान सुरक्षित रहने के लिए कुछ सुझाव दिए गए हैं:

    1. सुरक्षित यात्रा करें:
      • वाहन चलाते समय फॉग लाइट का उपयोग करें।
      • धीमी गति से गाड़ी चलाएं और बेवजह यात्रा करने से बचें।
      • सुबह और रात के समय यात्रा से बचने का प्रयास करें।
    2. स्वस्थ रहें:
      • ठंड से बचने के लिए गर्म कपड़े पहनें।
      • घर के अंदर हीटर का इस्तेमाल करते समय उचित वेंटिलेशन सुनिश्चित करें।
      • बच्चों और बुजुर्गों को ठंड से बचाने के लिए विशेष ध्यान दें।
    3. मौसम अपडेट पर नजर रखें:
      • स्थानीय मौसम विभाग और समाचार माध्यमों से मौसम की जानकारी प्राप्त करें।
      • प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करें।
    4. आउटडोर गतिविधियों को सीमित करें:
      • कोहरे और ठंड के दौरान बाहर की गतिविधियों को सीमित करें।
      • सुबह की सैर या व्यायाम करने से बचें, खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए।

    अगले दो दिनों का पूर्वानुमान

    मौसम विभाग के अनुसार, बिहार में अगले दो दिनों तक कोहरे का प्रभाव बना रहेगा। हिमालय के पास स्थित क्षेत्रों जैसे अररिया, सुपौल और किशनगंज में घना कोहरा छाने की संभावना है। इन इलाकों में सुबह और रात के समय विजिबिलिटी लगभग शून्य हो सकती है, जिससे यात्रा और अन्य गतिविधियां प्रभावित हो सकती हैं।

    पटना, भागलपुर और नालंदा जैसे जिलों में भी कोहरा दिन चढ़ने के बाद ही छंटने की संभावना है। हालांकि, दोपहर के समय थोड़ी धूप निकल सकती है, लेकिन रात होते ही ठंडक और कोहरे का प्रकोप फिर से बढ़ने की उम्मीद है।

    पड़ोसी राज्यों में भी कोहरे का प्रभाव

    बिहार के पड़ोसी राज्यों में भी कोहरे और ठंड का प्रभाव देखने को मिल रहा है। उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के कुछ हिस्सों में भी घने कोहरे की स्थिति बनी हुई है। इन क्षेत्रों में भी सड़क और रेल यातायात प्रभावित हो सकता है।

    कोहरे के निर्माण का मुख्य कारण ठंडी उत्तर-पश्चिमी हवाएं और वातावरण में नमी का बढ़ा हुआ स्तर है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक मौसम में कोई बड़ा बदलाव, जैसे बारिश या तापमान में वृद्धि नहीं होती, कोहरे का प्रभाव जारी रहेगा।

    बिहार में घने कोहरे और गिरते तापमान ने जनजीवन को प्रभावित कर दिया है। मौसम विभाग द्वारा जारी येलो अलर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि राज्य के 30 जिलों में अगले कुछ दिनों तक चुनौतीपूर्ण मौसम बना रहेगा। ऐसे में लोगों को सतर्क रहने, मौसम की जानकारी पर नजर रखने और सुरक्षा उपाय अपनाने की आवश्यकता है।

  • बिहार: क्या सच में चुनाव हाथ से फिसल गया…

    बिहार: क्या सच में चुनाव हाथ से फिसल गया…

    सवाल पान की दुकान पर खड़े लोगों का

    KKN न्यूज ब्यूरो। क्या नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी… संपूर्ण बहुमत के साथ… तीसरी बार फिर से मजबूत सरकार का गठन् करेगी… या देश एक बार फिर… गठबंधन की दौर में लौट जायेगा? चौथे चरण के मतदान के बाद… कॉग्रेस ये क्यों कहने लगी है… कि चुनाव… नरेन्द्र मोदी के हाथों से फिसल चुका है? स्वयं बीजेपी के नेताओं के सुर… क्या सच में बदलने लगा है? बीजेपी के नेता अब 400 पार… वाले नारों से बचते हुए क्यों नजर आने लगें हैं? ईडी की सक्रियता में अचानक कमी क्यों आ गई? ऐसे और भी तमाम सवाल… ये सवाल… मेरे नहीं है। बल्कि, ये सवाल उन लोगों का है… जिनको राजनीति के तमाम धुरंधर… हासिए पर ढ़केल चुकें है।

    न्यूज रूम की चकाचौध से बाहर भी है सवाल

    बिहार के सुदूर गांव में चाय- नाश्ता के दुकान पर बैठे… किसान हो या दिन भर मेहनत करने के बाद… शाम में फुर्सत से बैठे मजदूर…। आज की दौर में सवाल, उनके जेहन में भी हिलोरे मार रही है। हालांकि, उनके राजनीतिक समझ को… अमूमन गंभिरता से नहीं लिया जाता है। दूसरी ओर मेरा मानना है कि इन्हीं सवालों के दायरे में बिहार की राजनीति को समझना होगा। करबट बदलती बिहार की राजनीति की अंगराइयों को समझना होगा। युवाओं के अरमानों को समझना होगा। कहतें हैं कि बिहार की राजनीति को न्यूज रूम की चकाचौध में नहीं देखा जा सकता है। बल्कि, गली- मुहल्लों में… नुक्कड़ पर और पान की दुकान पर खड़े लोगों की बातचीत में.. इसको बेहतर तरीके से समझा जा सकता है।

    किस जाति का टिकट कटा इसका भी असर

    तिरहुत सहित बिहार के राजनीति का अपना एक अलग मिजाज है। किस जाति को कितने टिकट मिले और किस जाति का टिकट कट गया…? बिहार की राजनीति में इसके बड़े मायने है। करीब एक दशक बाद… बिहार के कोर वोट में सेंधमारी की रणनीति… क्या अब कारगर आयाम लेने लगा है? बिहार के शिवहर और सीतामढ़ी में टिकट कटने से… वैश्य समुदाय में एनडीए के प्रति नाराजगी है। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि अधिकांश वैश्य मतदाता… आज भी मोदी का नाम ले रहें हैं। पर नेताओं के नाराजगी का भी असर है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।

    बिहार में कुर्मी और कुशवाहा क्या करेगा

    कुर्मी और कुशवाहा वोटर में भी असंतोष से इनकार नहीं किया जा सकता है। कुर्मी समाज… विशेषकर एलजेपी के उम्मीदवार के प्रति बहुत रुचि नहीं दिखा रहें हैं। कहा जाता है कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से हट कर… चुनाव लड़ा। विशेष करके जेडीयू के खिलाफ… उन्होंने खुला मुहिम चलाया। जेडीयू को इसका नुकसान हो गया और बिहार की राजनीति में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। कुर्मी समुदाय के प्रबुद्ध मतदाता… लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान से हिसाब चुकता करने के मूड में बताये जा रहें है। हालांकि, खुल कर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। पर अंदरखाने इस बात की चर्चा है। चाय- पान की दुकान पर खड़े लोगों की बात को सुने… तो आपको इसका अंदाजा… हो जायेगा।

    हाजीपुर में कुशवाहा सम्मेलन के संकेत

    कुशवाहा समाज में भी अंदरखाने असंतोष की चर्चा है। यह असंतोष भी छिटफुट.. आकार लेने लगा है। हाजीपुर में कुशवाहा समाज का सम्मेलन… इसका सबसे बड़ा मिशाल है। समस्तीपुर, उजियारपुर और मोतीहारी में कुशवाहा समाज… क्या करेगा… यह बड़ा सवाल है। कारकाट पर भी इसका असर पड़ेगा क्या? हालांकि, यह भी सच है कि कुशवाहा समाज के नेता इस असंतोष को पाटने में लग चुके है। कहतें हैं कि समय रहते कुशवाहा वोट के बिखराव को रोका नहीं गया तो इस समाज का उभरता हुआ सितारा… यानी बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की राजनीतिक करियर… दाव पर होगा।

    ब्राह्मण और राजपूत वोटर भी असमंजस में

    शिवहर में ब्राह्मण वोटर… एनडीए के प्रति मुखर नहीं है। वैशाली में भी ब्राह्मण वोट पर आरजेडी की नजर है। इसी प्रकार सीतामढ़ी में राजपूत वोटर एनडीए के प्रति अभी तक मुखर नहीं हुआ है। वैशाली और मुजफ्फरपुर में भूमिहार वोटर को लेकर असमंज है। वैशाली में आरजेडी ने भूमिहार समाज के मुन्ना शुक्ला को अपना उम्मीदवार बना कर… बड़ा खेला कर दिया है। मुजफ्फरपुर और हाजीपुर लोकसभा में भी इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में यह सवाल… बड़ा होने लगा है कि भूमिहार समाज क्या करेगा?

    निषाद समाज एकजुट हो गया तो क्या होगा

    बिहार में निषाद वोट पर सभी की नजर टिकी है। कहतें हैं कि निषाद वोट पर वीआईपी के मुकेश सहनी का मजबूत प्रभाव है। मुकेश सहनी… इंडिया गठबंधन के साथ है और ताबतोड़ प्रचाार कर रहें हैं। जाहिर है इसका खामियाजा भी बिहार में एनडीए को हो सकता है। कुल मिला कर बिहार की राजनीति में एनडीए का विजय रथ…क्या हिचकोला ले रहा है? फिलहाल यह बड़ा सवाल है और इसका जवाब जानने के लिए इंतजार करना होगा। इस बीच मोदी मैजिक भी है। कहतें हैं कि मोदी मैजिक काम कर गया तो हालात बदलते देर नहीं लगेगा।

    स्थानीय सांसद के प्रति जबरदस्त असंतोष

    बिहार में एक और बड़ा फैक्टर काम करने लगा है। वह है, स्थानीय सांसद के प्रति असंतोष…। दरअसल, अधिकतर सांसद… पिछले पांच वर्षो में… लोगों के बीच सक्रिय नहीं रहे। इससे लोगों में बहुत गुस्सा है।  गुस्सा… एनडीए के वर्कर में भी है। ऑफ द रिकार्ड… वैशाली के कई समिर्पत कार्यकर्ताओं ने बताया… कि उनकी भी नहीं सुनी जाती है। जाहिर है… कार्यकर्ताओं में उत्साह का अभाव है। दूसरी ओर… यह भी सच है कि इनमें से अधिकांश लोग… आज भी मोदी को ही प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहतें है। बेशक पीएम मोदी के चुनाव प्रचार का इन पर असर पड़ेगा। पर, कितना… ? यह देखना अभी बाकी है।

    क्या हुआ मुंगेरीलाल आयोग का

    वर्ष 1971 में बिहार सरकार ने मुंगेरी लाल आयोग का गठन किया था। तब कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री हुआ करते थे। इस आयोग को महंगाई, भ्रष्टाचार ओर बेरोजगारी दूर करने के उपाये बताने थे। इससे भी अहम बात ये, कि मुंगेरी लाल आयोग को लोकतंत्र बचाने के लिए… उपाये देने को कहा गया था। इतना ही नहीं। बल्कि, मुंगेरीलाल आयोग को बिहार में समाजिक परिवर्तन के लिए अंतर्जातीय विवाह और समाजिक विभेद यानी जातिवाद को खत्म करने के उपाय पर… सुझाव देने थे। मुंगेरीलाल आयोग ने कई मुश्किल सुझाव दिए। पर बिहार की राजनीति… आज भी जाति की उसी दल-दल में फसी है।

    जेपी आंदोलन से निकले नेताओं की हकीकत

    जिन लोगों ने समाजिक एकीकरण का नारा बुलंद किया था…। जेपी आंदोलन के बाद उनमें से कई… बिहार के सत्ताशीर्ष पर रहे। स्व. कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार… इसी जेपी आंदोलन की उपज है। बावजूद इसके… बिहार की राजनीति से… जातिवाद… खत्म नहीं हुआ। बल्कि, और बढ़ गया। कह सकतें है कि जाति की राजनीति… संगठित तौर पर विभत्स रूप धारण कर चुका है। जड़ पकड़ चुका है।  इसमें हमारे रहनुमाओं की बड़ी भूमिका है। यानी बिहार की राजनीति आज भी जाति की मजबूत दीवारों में कैद होकर… सिसकिया ले रही है। आलम ये हो गया कि उम्मीदवार… चाहे, कितना भी दबंग हो… जाति के नाम पर… एक वर्ग का उसको समर्थन मिलता ही है… गठबंधन… यानी समीकरण का वोट भी उसके साथ होगा ही होगा। इसके अतिरिक्त थोड़े से और वोट का जुगाड़ करके… यदि वह जीत गया… तो बाद में सहयोग की उम्मीद करना… कितना उचित होगा… ?

    फोब्स की रिपोर्ट से उत्साहित है कॉग्रेस

    अब चर्चा के दूसरे पहलू पर आते है। कॉग्रेस समर्थक कहने लगें हैं कि चुनाव… मोदीजी के हाथ से निकल चुका है। ऐसे लोग महंगाई और बेरोजगारी को बड़ा मुद्दा मानते है। जबकि, एनडीए का पूरा फोकस राष्ट्रवाद और विकास पर केन्द्रीत है। सवाल उठता है कि कॉग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के लोग ऐसा क्यों बोलते है? दरअसल इसी वर्ष के फरबरी महीने में फोब्स की एक रिपोर्ट आई थी1 इसी रिपोर्ट को आधार बना कर कॉग्रेस… बहुत उत्साहित हो रही है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण यानी एन.एस.ओ. के हवाले से फोब्स ने महंगाई और बेरोजगारी को लेकर… एक लेख प्रकाशित किया था। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013 में बेरोजगारी दर 5.42 प्रतिशत था, जो मोदी कार्यकाल में बढ़ कर 6.8 प्रतिशत हो गया है।

    महंगाई और बेरोजगारी बनेगा मुद्दा

    कॉग्रेस सहित इंडिया गठबंधन के उत्साह का कारण ये है कि सर्वे में 27 फीसदी लोगों ने माना है कि भारत में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा है। जबकि, 23 फीसदी लोग महंगाई को बड़ा मुद्दा मानते है। दूसरी ओर विकास और राष्ट्रवाद के साथ मात्र 15 फीसदी के खड़ा होने से… इंडिया गठबंधन के नेताओं का उत्साह दूना हो गया है। क्योंकि, इंडिया गठबंधन वाले नेता… अक्सर महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा उठा रहें है। जाहिर है.. यदि यह मुद्दा लोगों को पसंद आ गया तो इसका लाभ मिलना लाजमी है। अब देखना है कि मतदताओ के दिलों दिमाग पर कौन सा मुद्दा भारी पड़ता है?

  • बिहार में बीजेपी के प्रर्याय थे सुशील कुमार मोदी

    बिहार में बीजेपी के प्रर्याय थे सुशील कुमार मोदी

    पांच दशक के युग का अंत

    KKN न्यूज ब्यूरो। वह वर्ष 1997 का साल था। सुशील कुमार मोदी, मीनापुर आये थे। पहली बार उनसे मिल कर बातचीत करने का अवसर मिला। इसके बाद समीप के राघोपुर गांव में उनके साथ बैठ कर खाना खाने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनदिनों सुशील कुमार मोदी बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता के तौर पर बहुत मुखर हुआ करते थे। इसके बाद वो कई बार मीनापुर आये। उनमें अपने लोगों से कनेक्ट होने की क्षमता था और जब भी मीनापुर आये, पार्टी को कुछ न कुछ लाभ देकर ही गए।

    सुशील कुमार मोदी

    मीनापुर से था गहरा लगाव

    वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान एनडीए के लिए उन्होंने मीनापुर में रोडशो किया था। इससे पहले के करीब- करीब सभी चुनाव में वो मीनापुर आते रहे। यहां के लोगों से उनका गहरा लगाव था और लोगों को भी उनसे लगाव था। सुशील कुमार मोदी के चुनावी सभा के बाद तुर्की सहित मीनापुर के कई इलाको में लोगों का मिजाज बदलते हुए, मैंने स्वयं भी कई बार महसूस किया था।

    आर्थिक मामलो की थी समझ

    बिहार की राजनीति में इनको छोटे मोदी के नाम से जाना जाता था। राजनीति के बहुत अच्छे जानकार, कुशल प्रशासक और आर्थिक मामलों पर जबरदस्त पकड़ रखने की वजह से राजनीति में इनके धाख की तपीस को महसूस किया जाता था। जीएसटी पारित होने में उनकी सक्रिय भूमिका सदैव याद की जायेगी। बिहार में भाजपा के उत्थान और उसकी सफलताओं के पीछे उनका अमूल्य योगदान रहा है। आपातकाल का पुरज़ोर विरोध करते हुए, उन्होंने छात्र राजनीति से अपनी एक अलग पहचान बनाई थी। क़रीब पांच दशक से अलग-अलग भूमिका निभाने वाले सुशील कुमार मोदी की कमी, वास्तव में अपूर्ण्रीय क्षति है।

    कैंसर ने ले ली जान

    दरअसल, वो कैंसर से जूझ रहे थे और दिल्ली के एम्स अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। लोकसभा चुनाव के एलान के बाद स्वयं सुशील मोदी ने अपनी बीमारी की जानकारी सार्वजनिक की थी। इसके बाद लोग सन्न रह गए थे। हालांकि, तब किसी ने ये नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी वो दुनिया को अलविदा कह देंगे।

    राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री शोक में

    सुशील कुमार मोदी के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव समेत कई नेताओं ने गहरा शोक जताया है। स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा है, ”पार्टी में अपने मूल्यवान सहयोगी और दशकों से मेरे मित्र रहे सुशील मोदी जी के असामयिक निधन से अत्यंत दुख हुआ है।

    छात्र राजनीति की उपज

    सुशील मोदी को जेपी आंदोलन की उपज कह सकते है। उन्होंने वर्ष 1971 में छात्र राजनीति की शुरुआत में कदम रखा था1 उनदिनो विश्वविद्यालय छात्र संघ की 5 सदस्यीय कैबिनेट के सदस्य निर्वाचित हुए थे। इसके बाद वर्ष 1973 में वो छात्र संघ के महामंत्री निर्वाचित हुए। उन दिनों लालू प्रसाद पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष हुआ करते थे। जबकि, रविशंकर प्रसाद संयुक्त सचिव हुआ करते थे। बाद के दिनों में केएन गोविंदाचार्य के प्रभाव में आकर सुशील कुमार मोदी ने बीजेपी ज्वाइन कर ली।

    1990 में बने विधायक

    जेपी आंदोलन में आने के बाद उन्होंने पोस्ट ग्रैजुएशन की पढ़ाई बीच में छोर दी। आपातकाल के दौरान उनको करीब 19 महीना जेल में रहना पड़ा था। इसके बाद वर्ष 1977 से 1986 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में कई पदों पर रहे1 पहली बार वर्ष 1990 में पटना केन्द्रीय विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत कर सुशील कुमार मोदी विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2004 में उन्होंने भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। दिसंबर 2020 में पार्टी ने उनको राज्यसभा भेज दिया1 इसी साल फ़रवरी में सुशील मोदी का कार्यकाल ख़त्म हुआ था। अपने विदाई भाषण में उन्होंने मौक़ा देने के लिए पार्टी की तारीफ़ की थी।

  • बिहार के वैशाली में परिणाम चौकाने वाला होगा क्या…

    बिहार के वैशाली में परिणाम चौकाने वाला होगा क्या…

    एनडीए के कोर वोट में आरजेडी की सेंधमारी

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के वैशाली को गणतंत्र की जननी कहा जाता है। बौद्ध और जैन धर्म के कई प्रचीन अवशेष आज भी यहां मौजूद है। इसी वैशाली में भगवान महावीर का जन्म हुआ था। भगवान बुद्ध ने इसी धरती से ज्ञान का संदेश दिया था। सम्राट अशोक की यह कर्मभूमि रह चुका है। नगरवधू आम्रपाली के किस्से यहां बिखरे पड़े है। आजाद भारत में वैशाली की अपनी अलग पहचान बनी। आरंभिक दिनों में कॉग्रेस के साथ खड़ी रहने वाली वैशाली, हालिया कुछ दशकों में समाजवादियों का गढ़ बन चुकी थी। किंतु, 2014 की मोदी लहर में वैशाली से समाजवाद का किला ढ़ह गया। वैशाली लोकसभा सीट पर एनडीए के घटक एलजेपी का कब्जा हो गया। हालांकि, इस बार स्थानीय सांसद के प्रति वैशाली में एन्टी इनकन्वेंसी फैक्टर से इनकार नहीं किया जा सकता है। दूसरी ओर आरजेडी ने एनडीए के कोर वोट में सेंधमारी करके, खेला कर दिया है। जाहिर है वैशाली में लोकसभा का चुनाव दिलचस्प मोड़ पर आ गया है।

    ईमान के जीत की उम्मीद पालना बेइमानी होगा

    लोकसभा चुनाव का आगाज होते ही… आम से खास तक… और महलों की अट्टालिकाओं से चाय- पान की दुकान तक… लोगों की उत्सुकता… ये है कि इस बार वैशाली का विजेता कौन होगा? दरअसल, हम इन्हीं सवालों में उलझ कर, बुनियादी समस्याओं को खो देते है। भ्रष्ट्राचार, महंगाई और बेरोजगारी… जैसे भारी- भरकम शब्द… आज अपना अर्थ खो रहा है। अर्थ खोने से… मेरा मतलब ये है कि अब महंगाई को लेकर न कोई आंदोलन होता है और नाही कही आक्रोश देखने को मिलता है। ऐसा लगता है… जैसे लोगों ने महंगाई को अत्मसात कर लिया है। इसी प्रकार भ्रष्ट्राचार को लेकर भी… हम लोग सलेक्टिव हो गए है।  हमी में से कई लोग… इन्हीं भ्रष्ट्राचारियों के बचाव में खड़ा हो जाता है। पूरी मुस्तैदी और मजबूती से खड़ा हो जाता है। कहतें हैं कि हमारा वाला ठीक है…। फसाया गया है…। उसका वाला… भ्रष्ट्राचारी है। हमारे इसी सलेक्टिव एप्रोच की वजह से भ्रष्ट्राचरियों का मनोबल बढ़ता है। यदि, इसको रोका नहीं गया… तो इमान की जीत होगी… इसका उम्मीद पालना. भी बेइमानी होगा…।

    अशोक स्तंभ

    क्या इस चुनाव के बाद भ्रष्ट्राचार में कमी आयेगी

    वैशाली की गलियों में राष्ट्रीय मुद्दा को लेकर चर्चा है। पर, गणतंत्र की जननी कहलाने वाले वैशाली के लोगों में… क्या, यह साहस… शेष नहीं बची है… कि वह अपने उम्मीदवार से यह पूछे… कि आपके जितने के बाद… सरकारी कार्यालय में… बिना चढ़ावा दिए… मेरा आवासीय या जाति प्रमाण- पत्र बनेगा क्या…? क्या सरकारी बाबू… समय पर… दाखिल- खारिज करेंगे…? क्या थानेदार… आम लोगों की सुनेगें… ? सवाल ये… कि क्या आप एक ऐसा प्रतिनिधि चुनने पर विचार कर रहें हैं… जो सिस्टम और आपके बीच में सक्रिय बिचौलिए को समाप्त कर सके? यह तमाम छोटे- छोटे सवाल है…। पर, इसके मायने बड़े है। कहतें हैं कि सड़क, बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार की बात… करके चुनाव जितने वाले, चुनाव जितने के बाद क्या करतें है? यह बात अब किसी से छिपा नहीं है। पहले इन्हीं छोटी- छोटी समस्याओं पर अपने उम्मीदवारों से सवाल पूछ कर देखिए…। आपको बात समझते… देर नहीं लगेगा।

    क्या विकास पर भारी पड़ेगा जातीय समीकरण

    सच तो ये है कि आप इस विषय पर… नहीं सोच रहें हैं। बल्कि, आप सोच रहें होंगे… कौन जाति… किसको वोट करेगा… ? फलां जाति वाले… यदि ऐसा किए… तो क्या होगा… ? मुसलमान का वोट… एकमुस्त किधर जायेगा… ? अगड़ी जाति का वोट किधर जायेगा… ? पिछड़ी जाति का वोट किधर जायेगा… ? पिछड़ों में अति पिछड़ा कितना प्रतिशत… किसके साथ जायेगा….और दलित वोट का एक हिस्सा इधर… तो दूसरा हिस्सा किधर जायेगा… ? जीत- हार के इसी गुणा- गणित में जबतक हम उलझे रहेंगे… तबतक मीनापुर में बूढ़ी गंडक नदी पर चांदपरना हो… या हरशेर पुल… बनाने की बात को कोई गंभीरता से नहीं लेगा। घोसौत में अस्पताल के समुचित संचालन को… कोई गंभीरता से नहीं लेगा। मोतीपुर में चीनी मिल के चालू करने की बात… बेइमानी हो जायेगी। सभी प्रखंडों में किसानों के लिए मल्टी पर्पस कोल्डस्टोरेज हो या खाद- बीज की समय पर उपलब्धता…। हमारे रहनुमाओं के लिए.. ऐसे तमाम विषय… कोई मायने नहीं रखेगा। उन्हें पता है कि समीकरण ठीक हो गया… तो जीत पक्की है।

    स्पीड ब्रेकर

    स्पीड ब्रेकर भी बढ़ा रही है राहगीरों की मुश्किलें

    जाहिर है, राजनीति करने वालों का पूरा फोकस… समीकरण बनाने पर होता है। उनको करने दीजिए…। आप तो पूछ ही सकतें हैं… सड़क तो पक्की बन गया…। पर, इस पर इतने स्पीड ब्रेकर है… कि दूरी तय करने में… पहले से अधिक समय लग रहा है। पेट्रोल की खपत भी बढ़ गई है। हम इसकी शिकायत लेकर कहा जायें… ? हमारी सुनने वाला कौन है… ?  शराब बंदी कानून लागू है। बावजूद इसके… नशेड़ियों की हरकत सरेआम जारी है। हाट- बाजार से बाइक चोरी की घटना में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। सड़क लुटेरा और अपराधियों की गतिविधि थमने का नाम नहीं ले रहा है। छोटी- छोटी घटनाओं को पुलिस हल्के में लेती है। ऐसे में आम आदमी… कहा जाये… किससे न्याय की गुहार लगाये… ? इस तरह के और भी कई सवाल है, जो इसी लोकसभा चुनाव में मौजू बन सकता है…।

    छोटी- छोटी समस्याओं का समाधान होगा क्या

    आम आवाम इन्हीं छोटी- छोटी समस्याओं से परेसान है। सवाल उठता है कि क्या हमारे उम्मीदवार… इन सवालों के प्रति गंभीर हैं… ? चलिए, इन बातो को छोर देते है। विकास की बात करते है। पांच साल में वैशाली लोकसभा क्षेत्र का क्या विकास हुआ… ? पताही में हवाईअड्डा बना? एसकेएमसीएच को एम्स का दर्जा मिला? इस इलाके से मजूदरों के पलायन में कमी आयी… ? नलजल लगा… बेशक लगा… पर, कितने गांव है… जिसमें 24 घंटा.. या कम से कम 12 घंटा ही पानी की सप्लाई हो रही है? एक अदद बिजली के बिल में गड़बरी हो जाये… तो महीनों कार्यालय का चक्कर काटना पड़ता है। ऐसे और भी तमाम सवाल… वोट मांगने आये, नेताओं से तो पूछ ही सकते है…। कहतें है कि बड़े- बड़े भ्रष्ट्राचारियों पर लम्बे भाशण देने वालों से पूछिए कि गांव और कस्वों के इन छोटे भ्रष्ट्राचारियों से कब मुक्ति मिलेगी… ? ऐसे और भी कई सवाल है…। जिसका उत्तर जाने बिना… यदि आप मतदान करेंगे… तो आप अपना और अपने बच्चों के भविष्य के लिए खुद ही जीम्मेदार कहलायेंगे…।

    शांति स्तूप

     विश्व को लोकतंत्र देने वाले वैशाली का क्या होगा

    ताज्जुब की बात ये है कि यह सभी कुछ गणतंत्र की जननी कहलाने वाले… वैशाली में हो रहा है। कहतें हैं कि बिहार के वैशाली का इतिहास काफी पुराना है। जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए यह एक पवित्र स्थान रहा है। जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का इसी धरती पर जन्म हुआ था। भगवान बुद्ध ने अपने ज्ञान से इस धरती को सींचा है…। इसको सम्राट अशोक की कर्मस्थली भी कहा जाता है। सबसे बड़ी बात ये… कि वैशाली को विश्व में लोकतंत्र की प्रथम प्रयोगशाला के रूप में जाना जाता है। कहते है कि लिच्छवी राजवंश ने सबसे पहले यहां गणतंत्र की शुरुआत की थी। आजाद भारत में भी वैशाली का अपना महत्व रहा है। वैशाली लोकसभा में कुल छह विधानसभा आता है। इसमें मीनापुर, कांटी, बरुराज, पारू, साहेबगंज और वैशाली विधानसभा… शामिल है। यहां छठे चरण में 25 मई को मतदान होना है।

    मोदी लहर में वैशाली से ढ़हा आरजेडी का किला

    कहतें हैं कि एक समय वैशाली को राजद का मजबूत गढ़ कहा जाता था। राजद के वरिष्ठ नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह यहां से लगातार पांच बार सांसद निर्वाचित हुए। वर्ष 2014 के मोदी लहर में वैशाली से राजद का किला ढ़ह गया। वर्ष 2014 की मोदी लहर में एलजेपी की टीकट से रामाकिशोर सिंह उर्फ रमा सिंह निर्वाचित हुए। जबकि, वर्ष 2019 में एलजेपी टीकट पर वीणा देवी ने रघुवंश बाबू को मात दे दी। इस बार यानी वर्ष 2024 में एक बार फिर से एलजेपी की टीकट पर वीणा देवी उम्मीदवार है। वेशक मोदी लहर का लाभ… 2019 में वीणा देवी को मिला था। पर, इस बार हालात थोड़े अलग दिखाई दे रहा है। इलाके में सक्रियता और विकास कार्यो में शिथिलिता को लेकर इस बार उन्हें लोगों के जबरदस्त असंतोष का सामना करना पड़ रहा है।

     आरजेडी की रणनीति से सकते में एनडीए

    आरजेडी से मुन्ना शुक्ला मैदान में है। मुन्ना शुक्ला 2000 में वैशाली जिले के लालगंज विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक रह चुके हैं। इसके बाद वर्ष 2005 के फरबरी में एलजेपी और नवंबर में जेडीयू की टीकट से चुनाव जीत कर विधायक रह चुके है। हालांकि, बृज बिहारी हत्याकांड में मुन्ना शुक्ला को जेल जाना पड़ा था। इसके बाद उनकी पत्नी अन्नू शुक्ला को जेडीयू का टिकट मिला और वो चुनाव जीत गई। मुन्ना शुक्ला इससे पहले दो बार वैशाली से लोकसभा चुनाव में अपना किस्मत आजमा चुके है। पहली बार वर्ष 2004 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में दो लाख 56 हजार वोट मिला था…। जबकि, दूसरी बार वर्ष 2009 में जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और करीब दो लाख 63 हजार वोट बटोरने में कामयाब रहे। बहरहाल 2024 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी की टीकट से मुन्ना शुक्ला के चुनावी मैदान में आने के बाद… वैशाली लोकसभा में मुकाबला दिलचस्प हो गया है। मुन्ना शुक्ला भूमिहार समाज से आते है। भूमिहारो को एनडीए का कोर वोट माना जाता है। यदि, वैशाली में मुन्ना शुकला की वजह से भूमिहार आरजेडी के साथ हो गया, तो एनडीए के लिए मुश्किल बढ़ सकता है। अब देखना है कि उंट… किस करबट बैठता है।

  • पवन सिंह का चुनावी यू-टर्न: क्या बीजेपी से किनारा कर लेंगे?

    पवन सिंह का चुनावी यू-टर्न: क्या बीजेपी से किनारा कर लेंगे?

    पवन सिंह ने बीजेपी से टिकट मिलने के बाद चुनाव लड़ने से मना कर दिया था, लेकिन अब उन्होंने यू-टर्न ले लिया है। उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि वे मां और जनता से किया वादा पूरा करने के लिए चुनाव लड़ेंगे।

    10 दिन पहले, 3 मार्च को उन्होंने आसनसोल सीट से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। उन्होंने निजी कारणों का हवाला दिया था।

    अब सवाल उठ रहे हैं:

    पवन सिंह ने यू-टर्न क्यों लिया?
    क्या वे बीजेपी से ही चुनाव लड़ेंगे?
    क्या उन्हें आरजेडी से टिकट मिलेगा?
    पहले उन्होंने आसनसोल सीट से चुनाव लड़ने से मना क्यों किया था?

    बीजेपी ने उन्हें पश्चिम बंगाल के आसनसोल सीट से उम्मीदवार बनाया था।
    मौजूदा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ उन्हें उतारा जाना था।
    पवन सिंह ने निजी कारणों का हवाला देते हुए मना कर दिया था।
    इसके बाद उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की थी।

    मुलाकात के बाद उन्होंने कहा था कि जो भी होगा अच्छा होगा।
    अब चर्चा है कि वे आरजेडी से चुनाव लड़ सकते हैं।

    दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार, पवन सिंह आरा से टिकट चाहते थे।
    जनवरी में उन्होंने इशारा किया था कि अगर आरा से टिकट मिलेगा तो वे चुनाव लड़ेंगे।
    सूत्रों की माने तो पवन सिंह आरा और काराकाट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
    पवन सिंह की पहली पसंद आरा लोकसभा सीट है।

    लेकिन यहां से दो बार के सांसद केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह चुनाव लड़ेंगे।
    इसके बाद से पवन सिंह का आरा से चुनाव लड़ना मुश्किल दिखने लगा था।
    पवन सिंह ने बीजेपी को ऑप्शन दिया था कि अगर वह चाहे तो बिहार में दूसरी जगह से उन्हें चुनाव लड़ा सकती है।

    अब चर्चा हो रही है कि शायद अब पवन सिंह की मांग ना सुनना भारतीय जनता पार्टी को भारी पड़ सकता है और पवन सिंह भाजपा की जगह आरजेडी के टिकट पर बिहार में ही चुनाव लड़ सकते हैं।

    आपकी राय क्या है?

    कमेंट में जरूर बताएं।

     

  • लोकसभा चुनाव: बिहार की मौजूदा राजनीति एनडीए के गले की फांस तो नहीं

    लोकसभा चुनाव: बिहार की मौजूदा राजनीति एनडीए के गले की फांस तो नहीं

    नीतीश कुमार के साथ छोड़ते ही फ्रंडफूट पर आ गया राजद

    कौशलेन्द्र झा, KKN न्यूज। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ आने से बिहार में लोकसभा चुनाव के दौरान जबरदस्त प्रदर्शन की उम्मीद पाले भाजपा नेताओं की उम्मीदों पर ग्रहण लगने के संकेत मिलने लगा है। टाइम्स नाऊ और मैट्रिज एनसी के सर्वे ने बिहार में एनडीए नेताओं की नींद उड़ा दी है। हालांकि, यह सर्वे पूरे देश के पैमाने पर किया गया है। यहां हम सिर्फ बिहार की बात कर रहें हैं। सर्वे में 22 फीसदी लोगों का मानना है कि नीतीश कुमार के साथ आने से एनडीए को नुकसान होगा। जबकि, 21 फीसदी लोगों का मानना है कि बहुत हद तक एनडीए को इसका लाभ नहीं मिलेगा। यानी, करीब 43 फीसदी लोगों को नीतीश कुमार से पहले की तरह बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद नहीं है। हालांकि, 41 फीसदी लोगों का अभी भी मानना है कि इसका लाभ एनडीए को मिलेगा। बतातें चलें कि 28 जनवरी को महागठबंधन से पाला बदल कर नीतीश कुमार एनडीए का हिस्सा बन चुकें हैं। बीजेपी के साथ मिलकर नौवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली। पर, ऐसा लगता है कि इस बार बिहार के अधिकांश लोगों को नीतीश कुमार का पाला बदलना हजम नहीं हो रहा है। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बिहार की राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गया है। दूसरी ओर राजद समेत इंडिया गठबंधन के तमाम बड़े नेता फ्रंडफूड पर आ गए हैं।

    नीतीश कुमार एनडीए में कब तक रहेंगे

    मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर बिहार के आम लोगों में कई तरह की चर्चा शुरू हो चुकी है। अव्वल तो ये कि नीतीश कुमार कब तक एनडीए का हिस्सा रहेंगे? टाइम्स नाऊ और मैट्रिज एनसी के सर्वे में इस सवाल को टटोलने की कोशिश की गई है। सर्वे में शामिल 21 फीसदी लोगों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के बाद नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन फिर से टूट सकता है। वहीं, 34 फीसदी लोग मानते हैं कि लोकसभा चुनाव तक यह गठबंधन चलेगा। किंतु, 2025 में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर से नीतीश कुमार पाला बदल सकते हैं। यानी, करीब 55 फीसदी लोग यह मान कर चल रहें हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए में लंबे समय तक नहीं रहेंगे। हालांकि, यहां भी 26 फीसदी लोग यह मान रहें है कि अब बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन अटूट रहने वाला है।

    बिहार में एनडीए को होगा लाभ या महागठबंधन को

    बिहार की बदली राजनीति फिंजा में लोकसभा चुनाव होने जा रहा है। ऐसे में सवाल उठने लगा हैं कि इसका लाभ किसको मिलेगा? एनडीए अपनी सीट बचा पायेगी या इसमें महागठबंधन सेंधमारी करेगी? टाइम्स नाऊ और मैट्रिज एनसी के सर्वे में इस सवाल का भी जवाब टटोलने की कोशिश की गई है। यहां आपको बतातें चलें कि बिहार में लोकसभा की 40 सीट है। वर्तमान में 39 पर एनडीए का कब्जा है। सर्वे में शामिल लोगों के मुताबिक लोकसभा चुनाव 2024 में एनडीए को बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से 35 पर ही बढ़त हासिल होने की उम्मीद है। यानी, सीधे तौर पर कहें तो सर्वे के मुताबिक एनडीए को अभी से चार सीटों का नुकसान होता दीख रहा है। हालांकि, यह आरंभिक संकेत है। नुकसान इससे अधिक भी हो सकता है। सर्वे के मुताबिक इंडिया गठबंधन के खाते में 5 सीट जाने उम्मीद है। यदि इस सर्वे पर यकीन कर लिया जाये तो इंडिया गठबंधन को बिहार में चार सीटों का इजाफा होता दीख रहा है।

    बिहार में एनडीए के लिए अच्छे संकेत नहीं

    लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में ‘अबकी बार 400 पार’ का नारा बुलंद कर दिया है। इसमें उन्होंने अकेले बीजेपी के 370 से अधिक सीट जीतने का दावा किया है। पीएम मोदी के द्वारा तय किए गये इस लक्ष्य को पाने के लिए बिहार समेत कई अन्य राज्यों में एनडीए को क्लीन स्वीप करने की चुनौती होगी। बीजेपी के रणनीतिकार यह मान कर चल रहें हैं कि बिहार में नीतीश कुमार के साथ आने के बाद एनडीए की स्थिति मजबूत हो गई है। जेडीयू और बीजेपी के तमाम नेता 40 की 40 सीटें जीतने का दावा भी कर रहे हैं। हालांकि, ताजा सर्वे की माने तो बिहार में ऐसे परिणाम मिलने के आसार बनता हुआ दीख नहीं रहा है। यानी सर्वे रिपोर्ट की माने तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ आने का बिहार में एनडीए के लिए अच्छे संकेत नहीं है। दूसरी और बिहार की प्रमुख विपक्षी दल राजद समेत इंडिया गठबंधन को बैठे- बिठाये बड़ा मुद्दा हाथ लग गया है।

  • बिहार में सियासी बदलाव का लोकसभा चुनाव में क्या असर होगा

    बिहार में सियासी बदलाव का लोकसभा चुनाव में क्या असर होगा

    नीतीश कुमार के साथ आने से होगा लाभ या साथ साथ छोड़ने से

    कौशलेन्द्र झा, KKN न्यूज। बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार के एनडीए में वापसी के साथ ही लोकसभा चुनाव 2024 के ठीक पहले बिहार की राजनीतिक तस्वीर पूरी तरीके से बदल गई है। विपक्षी इंडिया गठबंधन के शिल्पकार रहे नीतीश कुमार अब बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बन चुके हैं। सवाल यह उठता है कि लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच नीतीश कुमार के पाला बदलने से किसे नुकसान और किसे फायदा होगा? बहरहाल, नीतीश कुमार के आने के साथ ही एनडीए गठबंधन में बीजेपी, एलजेपी, जीतनराम मांझी की पार्टी हम और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के अतिरिक्त जदयू शामिल हो चुकी है। जबकि, विपक्षी इंडिया गठबंधन में अब आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल ही अब बच गयें हैं। लिहाजा, बिहार में कमोवेश 2019 के लोकसभा चुनाव वाली तस्वीर बनती दिख रही है। हालांकि, एक फर्क यह है कि उपेन्द्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी पिछले चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा थे। अब एनडीए का हिस्सा है। मोटे तौर पर बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए इस बार पहले की तुलना में बड़े कुनबे के साथ मैदान में उतरेगा। किंतु, जदयू के साथ आने का बीजेपी को कितना लाभ मिलेगा? फिलहाल यह बड़ा सवाल है।

    सीट शेयरिंग के फॉर्मूला पर पड़ेगा असर

    इतना तो तय है कि नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने से बिहार में लोकसभा चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग का फॉर्मूला पूरी तरीके से बदल गया है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। नीतीश कुमार के एनडीए में शामिल होने से पहले बीजेपी, एलजेपी, हम और उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के बीच सीट बंटनी थी। लेकिन अब नीतीश कुमार के हिस्सा बन जाने के बाद जेडीयू भी एक बड़े भूमिका में होगी। वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी मिलकर लड़ी थी। इसमें बीजेपी को 17, जेडीयू को 17 और एलजेपी 6 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। नीतीश कुमार के एनडीए में आने से पहले तक बिहार में बीजेपी कम से कम 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की प्लानिंग कर रही थी। अब सवाल उठता हैं कि क्या इस बार फिर से बीजेपी और जेडीयू के बीच बराबर-बराबर सीटों का फॉर्मूला बन सकता है? ऐसे में मांझी, कुशवाहा, चिराग की एलजेपी और पशुपति पारस की पार्टी को कितनी सीटें मिलेगी? यह बड़ा सवाल है। बिहार की राजनीति को समझने वालों का मानना हैं कि यदि बीजेपी और जेडीयू के बीच बराबर- बराबर सीटों का बंटबारा हुआ तो, बदले हुए हालात में एनडीए को इसका नुकसान हो सकता है। क्योंकि, नीतीश कुमार की विश्वसनियता सवालों के घेरे में है।

     मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के विश्वसनीयता की होगी परीक्षा

    लोकसभा चुनावों से ठीक पहले बिहार में हुए उलटफेर से बिहार में एनडीए के नेता सकते में हैं। इंडिया गठबंधन को जवाब देते नहीं बन रही है। दूसरी और बिहार की प्रमुख दल आरजेडी समेत इंडिया गठबंधन से जुड़े नेता बीजेपी पर हमलावर है। दरअसल, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान जेडीयू के साथ मिलकर बीजेपी और उसके सहयोगी पार्टियों ने बिहार की 40 लोकसभा सीट में 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। अब नीतीश कुमार के दोबारा एनडीए में आने पर बीजेपी उस प्रदर्शन को दोहराने या उससे बेहतर करने की उम्मिदें पाली बैठी है। बीजेपी का टारगेट 50 फीसदी प्लस वोट का है। बिहार में यादव और मुस्लिम मिलकर 35 फीसदी के करीब होता है। इसी समीकरण के बदौलत 2019 में आरजेडी और कांग्रेस ने बीजेपी से मुकाबला किया था। वर्ष 2019 के लोकसभा में मुस्लिम बहुल किशनगंज की महज एक मात्र सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव जीत गई थी। जबकि आरजेडी का खाता नहीं खुला था। बहरहाल, बिहार की सियासी समीकरण बदल चुका है। ऐसे में मुश्किलें दोनों गठबंधन के लिए मुंह बायें खड़ी है। इतना तो तय है कि इस लोकसभा चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश के विश्वसनीयता की परीक्षा होनी है।

    राजनीतिक दलों के बदले जातीय समीकरण

    बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलने के चलते गठबंधन का जातीय समीकरण भी बदल गया हैं। बीजेपी सवर्ण वोट बैंक के साथ दलित, ओबीसी और अति पिछड़ा समीकरण के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। वहीं, महागठबंधन अब मुस्लिम-यादव के साथ दलित और सवर्ण समीकरण को साधने की जुगत करेगी। नीतीश के बीजेपी के साथ जाने से मुस्लिम वोट जेडीयू से छिटक सकता है। पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित वोट बैंक में बीजेपी पहले ही सेंधमारी कर चुकी है। ऐसे में जेडीयू का सियासी स्पेस क्या होगा? राजनीति के इसी गुणा- गणित पर बिहार में एनडीए और इंडिया गठबंधन के किस्मत का फैसला होना है। इतना तो तय है कि बिहार में अचानक हुए सियासी उलटफेर का सर्वाधिक खामियाजा एनडीए के छोटे सहयोगियों को भुगतना पड़ेगा। जाहिर है उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और जीतन राम मांझी की पार्टी के सियासी स्पेस को घटाया जा सकता है। मेरा स्पष्ट मानना हैं कि एनडीए को इसका नुकसान होगा। हालांकि, इस पर अभी कुछ कहना जल्दीबाजी होगी।

    तिरहुत के पांच सीटो पर हो सकती है उठापटक

    तिरहुत इलाके की सभी पांच लोकसभा सीटों पर कब्जा के लिए ‘इंडिया’ और एनडीए के बीच जबरदस्त मुकावला होने के आसार बनने लगे है। फिलहाल, हाजीपुर, वैशाली, मुजफ्फरपुर और शिवहर में बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए का कब्जा है। सीतामढ़ी की सीट पर जदयू का कब्जा है। हालांकि, सीतामढ़ी के सांसद सुनील कुमार पिंटू वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी छोड़ कर जेडीयू में शामिल हुए थे। वो सीतामढ़ी से बीजेपी के विधायक भी रह चुकें हैं। वहीं, हाजीपुर की सीट पर रामविलास पासवान की गैर मौजूदगी में उनके पुत्र चिराग पासवान और भाई पशुपति कुमार पारस के बीच घरेलू खींचतान, फिलहाल टसल का विषय बना हुआ है। सबसे दिलचस्प मुकावला वैशाली लोकसभा सीट पर है। वर्ष 2019 के चुनाव में वैशाली की सीट पर लोजपा की वीणा देवी चुनाव जीतने में सफल रही थी। बाद में वो लोजपा के पारस गुट में शामिल हो गई। हाल के दिनों में वे चिराग पासवान की लोजपा रामविलास के करीब आ गयी है। वैशाली लोकसभा सीट पर एनडीए की ओर से वर्तमान में आधा दर्जन से अधिक दावेदार ताल ठोक रहें हैं। इसमें से कई ऐसे भी है, जिनको टीकट नहीं मिला तो वो अन्दरखाने एनडीए की मुश्किल बढ़ा सकते है। मशलन,  वैशाली की सीट पर मुकावला दिलचस्प होने वाला है। यहां मुकावला सिर्फ विराधियों से नहीं, वल्कि भितरघातायों से भी होगा। मुजफ्फरपुर और शिवहर की सीट भाजपा की झोली मे है। मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट पर एनडीए समर्थको में अन्दरखाने गहरा असंतोष है। लोकसभा चुनाव के दौरान इसके असर ये इनकार नहीं किया जा सकता है। कमोवेश, शिवहर सीट पर भी इस बार एनडीए को अपनो से ही असंतोष झेलना पड़ सकता है।

    चंपारण में राजनीतिक गोलबंदी शुरू

    लोकसभा के चुनाव में चंपारण की तीनों सीट पर सभी की नजर है। पूर्व चंपारण, पश्चमी चंपारण और वाल्मीकिनगर की सीट दोनों गठबंधन के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन चुका है। लोकसभा चुनाव को लेकर यहां के चौक चौराहे पर चर्चा शुरू हो चुकी है। वाल्मिकीनगर में जदयू के सुनील कुमार सांसद है। वहीं पूर्व चंपारण और पश्चमी चंपारण पर भाजपा का कब्जा है। पश्चमी चंपारण से भाजपा के डॉ संजय जायसवाल और पूर्व चंपारण से पूर्व केद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह सांसद है। भाजपा को  अपनी सीट बचाने  की चुनौती होगी। दूसरी ओर इन तीनों सीटो पर इंडिया गठबंधन ने अपनी चुनावी रणनीति को अमलीजामा पहनाने की तैयारी शुरू कर दी है। भाजपा भी अपनी इन सीटों को हर हाल में बचाने की तैयारी में है। नतीजा, दोनों ओर से सामाजिक गोलबंदी की कोशिश शुरू हो चुकी है। नीतीश कुमार को इस इलाके में अपनी साख बचाने की जबरदस्त चुनौती होगी। वहीं, भाजपा अति पिछड़ी जातियों के साथ सवर्ण मतदाताओं के बीच पैठ बनाने की कोशिश कर रही है।

    मिथिलांचल में भी सीट बचाने की होगी चुनौती

    मिथिलांचल की मधुबनी, दरभंगा, झंझारपुर, समस्तीपुर, उजियारपुर और सुपौल की छह लोकसभा सीटो पर भितरघातायों में जबरदस्त खलबली है। दोनों गठबंधन के नेता इलाके में दौर लगाना शुरू कर चुकें है। सीटों के तालमेल को लेकर यहां जबरदस्त रस्सा-कस्सी शुरू हो चुका है। वर्ष 2019 में इनमें से सभी सीटों पर एनडीए का कब्जा हुआ था। इसमे झंझारपुर और सुपौल में जदयू और समस्तीपुर में लोजपा के उम्मीदवार चुनाव जीते थे। बाकी की तीन सीट मधुबनी, दरभंगा और उजियारपुर पर भाजपा का कब्जा हुआ था। जानकार बतातें हैं कि एनडीए के साथ आने के बाद भी मिथिलांचल में जदयू को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अव्वल तो ये कि जेडीयू को इन इलाको में अपने लिए मजबूत प्रत्यासी तलासने होंगे। इसके अतिरिक्त जेडीयू को इन इलाकों में विश्वसनीयता की कसौटी पर खड़ा उतरने की चुनौती होगी। समय कम है और टास्क बड़ा है। ऐसे में परिणाम चौकाने वाले भी हो जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो राजद को इसका भरपुर लाभ मिल जायेगा। बीजेपी के लिए भी राह आसान नहीं है। इस बार भाजपा को मधुबनी, दरभंगा और उजियारपुर में अपनी सीटें बचाने की जबरदस्त चुनौती होगी।

    मगध में जदयू के जनाधार से है बीजेपी को उम्मीद

    पटना और मगध प्रमंडल में लोकसभा की सात सीट है। इसमें पटना साहेब, पाटलिपुत्र, नालंदा, गया, नवादा, जहानाबाद और औरंगाबाद की सीटों पर पिछली दफा राजद ने कड़ा टक्कर दिया था। इनमें से पटना साहेब, पाटलिपुत्र और औरंगाबाद मे भाजपा को जीत मिली थी। वही, नालंदा, गया और जहानाबाद में जदयू के सांसद निर्वाचित हुए थे। जबकि, नवादा में लोजपा के चंदन सिंह को जीत मिली थी। आपको याद ही होगा कि पटना साहेब से भाजपा के हाई प्रोफाइल नेता रविशंकर पसाद की प्रतिष्ठा जुड़ी है। वहीं, पाटलिपुत्र की सीट पर एक बार फिर भाजपा के रामकृपाल यादव और राजद की मीसा भारती के बीच दिलचस्प मुकाबला होने के आसार है। नालंदा की सीट पर भाजपा की ओर गया की सीट पर जीतन राम मांझी के पार्टी की नजर है। महागठबंधन, इन तमाम सीटों पर नए सिरे से रणनीति बना कर जोरदार तैयारी के साथ एनडीए को चुनौती दे सकती है।

    सारण प्रमंडल की सीटों पर भी होगी उठा- पटक

    सारण प्रमंडल के छपरा और महाराजगंज लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। जबकि, गोपालगंज और सीवान की सीट जदयू की झोली में है। इस बार मौजूदा सांसदो की वापसी और पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेत्रत्व को लेकर इलाके में जोरदार बहस छिरी है। सीवान मे इंडिया गठबंधन के दो मजबूत घटक दल राजद और भाकपा माले की नजर है। वहीं सारण और महाराजगंज मे भाजपा को टक्कर देने के लिए नए दमखम वाले उम्मीदवार इंडिया गठबंधन की ओर से उतारे जाने की तैयारी शुरू हो चुकी है। हालांकि, उम्मीदवार का चेहरा फिलहाल नेपथ्य से बाहर आना बाकी है। समझौते की तस्वीर साफ होते ही स्थिति स्पष्ट हो जायेगा। इस इलाके में भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विश्वसनियता को लेकर जोरदार बहस शुरू हो चुका है। कहतें हैं कि नीतीश कुमार का सिक्का चला तो बीजेपी को इसका लाभ मिलेगा। अन्यथा महागठबंधन को लाभ मिलना लाजमी है।

    कोसी से ‘इंडिया’ गठबंधन को है बड़ी उम्मीद

    कोसी इलाके की मधेपुरा, कटिहार, खगड़िया, पूर्णिया, किशनगंज और अररिया की लोकसभा सीट पर इंडिया गठबंधन को बहुत उम्मीद है। फिलहाल, इसमें से एक मात्र अररिया लोकसभा सीट पर भाजपा का कब्जा है। बाकी की पांच में चार पर जदयू और किशनगंज में कांग्रेस के सांसद है। वर्तमान में चुनावी राह किसी भी दल के लिए आसान नहीं है। जदयू को नए समीकरण के साथ इस इलाके में अपनी प्रतिष्ठा बचाने की चुनौती होगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साख का इस इलाके में परीक्षा होना है। विशेष करके मुस्लिम मतदाताओं के बीच नीतीश कुमार की पकड़  को लेकर अभी से सवाल उठने शुरू हो चुकें हैं। बतातें चलें कि मधेपुरा लोकसभा सीट पर 2019 के चुनाव में राजद और जदयू आमने- सामने रहा था। इस बार के चुनाव में भी महगठबंधन मधेपुरा में अपनी पूरी ताकत झोंकने को तैयार बैठी है। ऐसे में देखना बाकी है कि कौर किस रणनीति के साथ कैसा प्रदर्शन करता है…?

    शाहाबाद में भी होगा दिलचस्प मुकाबला

    शाहाबाद के चार लोकसभा क्षेत्र आरा, बक्सर, सासाराम और काराकाट के चौपालों पर लोकसभा को लेकर चुनावी बहस शुरू हो चुकी है। फिलहाल, इन चारों सीटो में तीन पर भाजपा का कब्जा है। वही, काराकाट की सीट भाजपा के सहयोगी रालोसपा की झोली में है। रालोसपा एनडीए का हिस्सा है। आम तौर पर शाहाबाद की पहचान लड़ाकू मतदाताओं के इलाके से की जाती है। पूर्व उप प्रधानमंत्री जगजीवन राम से लेकर राम सुभग सिंह और सूर्यदेव सिंह जैसे दमदार उम्मीदवार इस इलाके से अपना भाग्य आजमाते रहें है। शाहाबाद में 2014 में नरेंद्र मोदी के नाम की लहर सिर चढ़ कर बोली थी। यही कारण है कि बाहरी होने के बावजूद आरा में आरके सिंह, काराकाट में उपेन्द्र कुशवाहा और बक्सर में अश्वनी कुमार चौबे को चुनाव में जीत हासिल हुई थी। इस बार मुकाबला तगड़ा होगा। राजद और कांग्रेस की संभावित गठजोड़ की ताकत को नकारना एनडीए के लिए आसान नहीं होने वाला है।

    इन सीटों पर भी है सभी  की नजर

    लोकसभा चुनाव को लेकर भागलपुर, बांका, मुंगेर, जमुई और बेगूसराय के इलाकों में भी गुणा- गणित शुरू हो चुकी है। वर्तमान में मुंगेर, भागलपुर और बांका की सीट पर जदयू का कब्जा है। इनमें भागलपुर और बांका में पिछले चुनाव में जदयू को राजद से कड़ा मुकावला मिला था। जमुई की सीट लोजपा की झोली में है। वही, बेगूसराय की सीट पर भाजपा का कब्जा है। पिछली बार बेगूसराय में राजद और सीपीआइ के बीच की खींचतान का लाभ भाजपा को मिला था। इस बार कन्हैया कुमार सीपीआइ छोड़ कांग्रेस में शामिल हो चुके है। इस बार जदयू अपने सांसदों को दोबारा चुनावी मैदान में उतार सकती है। वहीं, भागलपुर, बांका और मुंगेर पर भाजपा के उम्मीदवार चौंकाने वाले हो जाये तो आश्चर्य नहीं होगा।

  • बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर हलचल शुरू

    बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर हलचल शुरू

    बीजेपी ने बनाई रणनीति इंडिया गठबंधन ताकत झोकने को तैयार

    KKN न्यूज ब्यूरो।  बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीति का तापमान चढ़ने लगा है। जानकार बतातें हैं कि जदयू से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी ने किशनगंज, सुपौल, मुंगेर, नवादा, वैशाली, वाल्मीकि नगर, झंझारपुर, गया, कटिहार और पूर्णिया  की दस सीटो पर विशेष ब्यूह रचना करने की तैयारी शुरू कर दी है। जबकि, बांका, सीवान, नालंदा, जहानाबाद, काराकाट और सीतामढ़ी सहित दस अन्य सीटों पर भी नए सिरे से रणनीति तैयार की जा रही है। दूसरी ओर राजद समेत इंडिया गठबंधन में शामिल बिहार के अन्य राजनीतिक पार्टियां भी बीजेपी के इस दुखती नब्ज को और तरासने की पुख्ता इंतजाम में पीछे छुटने को तैयार नहीं है। तीसरी बार सत्ता का ख्वाब देख रही बीजेपी के लिए बिहार एक बड़ी चुनौती है। यहाँ लोकसभा के 40 सीट है। वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन ने बिहार के 40 में से 39 सीटों पर जीत हासिल की थी। इनमें 17 सीट पर बीजेपी, 16 सीट पर जदयू और 6 सीट पर एलजेपी ने जीत दर्ज की थी। बिहार की एकमात्र किशनगंज लोकसभा सीट से कांग्रेस के डॉ. मो. जावेद ने जीत हासिल की थी।

    बिहार पर केन्द्रीय गृहमंत्री की होगी नजर

    बिहार में बीजेपी की प्रमुख सहयोगी रह चुकी जेडीयू इस बार बीजेपी का साथ छोड़ चुकी है। जेडीयू के इंडिया गठबंधन में शामिल होने के बाद से ही बीजेपी ने बिहार के लिए अपने नए रणनीति तैयार करने शुरू कर दिया है। ऐसे में बीजेपी की नजर बिहार के अतिरिक्त झारखंड, पश्चिम बंगाल, यूपी, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित मैदानी इलाकों पर है। जाहिर है कि बीजेपी के चाणक्य कहलाने वाले  केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इन इलाको पर परचम लहराने की कमान स्वयं अपने हाथों में थाम ली है। इसका कितना असर होगा? यह तो वक्त ही बतायेगा।

    कार्यकर्ताओं को दी जा रही है प्रशिक्षण

    फिलहाल बीजेपी ने इसके लिए अपने कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देकर नए सिरे से काम पर लगाने की तैयारी शुरू कर दी है। वर्ष 2024 में 400 सीयों का लक्ष्य लेकर चल रही बीजेपी की नजर बिहार की सभी 40 सीट पर है। इसके लिए बीजेपी ने बिहार में दो दिवसीय प्रशिक्षण शिविर भी किया है। इसमें यूपी, उत्तराखंड, दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू काश्मीर, असम और मध्य प्रदेश सहित 19 राज्यों से आए नेता शामिल हो चुके है। इस प्रशिक्षण शिविर में खासतौर से बिहार के घटक दलों के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सहित दूसरे पदाधिकारी शामिल हो चुके है। दुसरी ओर इंडिया गठबंधन के घटक दल सीट शेयरिंग को लेकर गंभीर है। समझा जा रहा है कि दिसम्बर के अंत तक सीट शेयरिंग का फार्मुला तय होने के बाद बिहार की राजनीति में गरमाहट आने लगेगा।