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  • बिहार की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर

    बिहार की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर है। बदले हालात में आरजेडी विनर है और बीजेपी बैक फुट पर। तीसरा बड़ा दल यानी जेडीयू को लेकर असमंजस बरकरार है। फिलहाल, वह आरजेडी के साथ है। पिछले तीन दशक से बिहार की राजनीति इन्हीं तीनों दल के बीच घुमती रही है। जानकार मानते है कि इसमें से दो जिधर होगा, बिहार की सत्ता पर उसी का कब्जा होगा। बीजेपी और आरजेडी एक साथ नहीं हो सकती है। ऐसे में जेडीयू ही एक मात्र पार्टी है, जो दोनों गठबंधन के साथ सहज भाव से राजनीति करती रही है। समाजवादी एकता के नाम पर वह आरजेडी के साथ खड़ी है। जबकि विकास के नाम पर उसको बीजेपी के साथ जाने में भी गुरेज नहीं रहा है। जेडीयू ने समय- समय पर इस खुले विकल्प का भरपूर लाभ उठाया है। नतीजा, तीसरे नंबर की पार्टी होने के बाद भी सत्ता के शीर्ष पर जेडीयू को फिलहाल कोई चुनौती नहीं है।

    आरजेडी का उभार

    बिहार में राजद की राजनीति उभार पर है। तेजस्वी यादव नए समीकरण में विनर की भूमिका में हैं। उनकी पार्टी, जेडीयू के साथ सत्ता में वापस हुई है। संख्या बल के हिसाब से देखा जाए तो बिहार विधानसभा में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी है। चुनाव प्रचार हो या लोगों से जुड़े मुद्दे दोनों फ्रंट पर तेजस्वी यादव ने शानदार काम किया है। अपने पिता लालू प्रसाद के पुराने राजनीतिक सिद्धांतों से इतर अपने नए सिद्धांत गढ़े है। उन्होंने बिहार में जातीय राजनीति को भी साधने की कोशिश की। तेजस्वी ने अपनी पार्टी को केवल मुस्लिम और यादवों की पार्टी वाली छवि से बाहर निकालने की कोशिश करते हुए ‘ए-टू-जेड’ यानी सभी को साथ लेकर चलने की घोषणा कर दी है। लोगों ने भी उन्हें वोट किया। माना जा रहा है अगर नीतीश कुमार केंद्र की राजनीति में शामिल होते हैं। जैसा कि अनुमान लगाया जा रहा है तो तेजस्वी यादव बिहार के मुख्‍यमंत्री बन सकते है। ऐसे में  तेजस्वी यादव के सामने एक मौका है। जिसमें उनको  जंगलराज की छवि से बाहर निकल कर जाति विशेष के उत्‍पात पर आंखें मूंदे रहने वाली पुरानी छवि को बदलने का मौका मिल सकता है। बिहार में रोजगार, विकास और बेहतर कानून-व्यवस्था के साथ धारणा बदलने में यदि वो सफल हो गए तो बिहार की सत्ता की लम्बी पारी से दूर रखना, बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है।

    बीजेपी की चुनौती

    बिहार में बीजेपी को जेडीयू की पिछलग्‍गू पार्टी कहा जाने लगा था। हालांकि, जेडीयू के तल्ख तेवर की बीजेपी को उम्मीद नहीं थी। फिलहाल, बीजेपी की पीलर राइडर वाली छवि को जेडीयू ने बिहार में ध्वस्त कर दिया है। चीजें तेजी से बदल गईं है। बड़ा पार्टनर होने के बाद भी बीजेपी आज सत्ता से बाहर है और भविष्य की चुनौतियों से भरा है। बीजेपी का देश में फैल रही जनाधार उसके सहयोगी पार्टियों को डराने लगा है। इन्हीं अज्ञात भय से जेडीयू ने बीजेपी का साथ छोड़ दिया और आरजेडी के साथ बिहार में सरकार बना ली है। ऐसे में बीजेपी को अब बिहार में नए समीकरण की तलाश है, जो आसान नहीं होगा। लाभार्थी कल्याणकारी योजना का बिहार में कितना असर होगा… इस पर संशय बरकरार है। हालांकि, बीजेपी के नेता पहले से ही पीएम मोदी को गरीबों के लिए काम करने वाला नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में ब्रांड मोदी एक बहुत बड़ा फैक्‍टर बन चुका है। पर, एक सच यह भी है कि अभी तक बिहार की राजनीति में ब्रांड मोदी बहुत कारगर साबित नहीं हुआ है।

    जेडीयू का जनाधार

    नीतीश कुमार ने आठवीं बार मुख्यमंत्री बन कर साबित कर दिया है कि बिहार की राजनीति में उनका कोई सानी नहीं है। लेकिन, एक सच यह भी है कि चुनाव-दर-चुनाव उनकी पार्टी जेडीयू की जनाधार में गिरावट होती रही है। जिसे रोक पाने में नीतीश कुमार सफल नहीं हो रहें हैं। बदले समीकरण में बिहार की राजनीति में  बीजेपी मुख्य विपक्ष के रूप में पूरी ताकत झोंक देगी। वहीं, राजद भी अपनी ताकत झोंकने में गुरेज नहीं करेगा। ऐसे में अस्तित्व की प्रासंगिकता के लिए जेडीयू की मुश्किलें बढ़ सकती है। अहम बात ये है कि जेडीयू के कई नेता आरजेडी के साथ गठबंधन से असहज हैं। खासकर वे जिन्हें पिछले विधानसभा चुनाव में राजद ने हराया था। जेडीयू का संगठन जमीनी स्तर पर कितना मजबूत है, यह बात भी किसी से छिपा नहीं है। इस स्थिति में, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि नीतीश कुमार वर्ष 2024 के लिए विपक्ष का चेहरा बनते हैं या नहीं? वैसे नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर बेशक बढ़ेगा। इसका लाभ उनकी पार्टी को भी मिल सकता है। पर, क्या वह प्रयाप्त होगा? फिलहाल, यह सवाल अनुत्तरित है।

  • बिहार के कुशेश्वर स्थान और तारापुर में जदयू ने परचम लहराया

    बिहार के कुशेश्वर स्थान और तारापुर में जदयू ने परचम लहराया

    चौथे स्थान पर कॉग्रेस

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार विधानसभा उपचुनाव के लिए कुशेश्वर स्थान और तारापुर की दोनो सीट जीत कर सत्तारुढ़ जदयू ने अपना जलबा दिखा दिया है। कुशेश्वर स्थान से जदयू के अमन भूषण हजारी और तारापुर से जदयू के राजीव कुमार सिंह चुनाव जीत गए है। दोनो सीट के लिए जदयू और राजद ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थीं।

    कुशेश्वर स्थान

    कुशेश्वर स्थान में जदयू के अमन भूषण हजारी ने राजद के गणेश भारती को 12,695 मतो से पराजित कर दिया है। यहां जदयू को कुल 59,887 मत मिले। जबकि, राजद को 47,192 मतो से संतोष करना पड़ा। राजद से अलग होकर चुनाव लड़ने उतरी कॉग्रेस के अतिरेक कुमार को 5,603 मतो से संतोष करना पड़ा। कॉग्रेस यहां चौथे स्थान की पार्टी बन गई है। तिसरे स्थान पर लोकजन शक्ति (रामविलाश) के अनु देवी को 5623 मत मिले। यहां 2,899 लोगो ने नोटा का बटन दवा कर अपने आक्रोश का इजहार कर दिया है। पोस्टल बैलेट पर गौर करें तो जदयू को 5 और राजद को 8 मत मिले। जबकि, कॉग्रेस को 1 और लोकजन शक्ति (रामविलाश) को 0 मत मिला है।

    तारापुर

    तारापुर से जदयू के राजीव कुमार सिंह ने राजद के अरुण कुमार को 3,852 मतो से पराजित कर दिया है। यहां जदयू को कुल 79,090 मत मिले। जबकि, राजद को 75,238 मत मिले। यहां भी कॉग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा 3,590 मत लेकर चौथे स्थान पर चले गए। जबकि, लोकजन शक्ति (रामविलाश) के कुमार चंदन को 5,364 मत मिले और वे तिसरे स्थान पर रहे। तारापुर के 2,569 लोगो ने नोटा को मत देकर उम्मीदवारो को नापंसद किया है। पोस्टल बैलेट की बात करें तो तारापुर में राजद को 93 और जदयू को 124 लोगो ने पसंद किया है। इसी प्रकार कॉग्रेस को 20 और लोकजन शक्ति (रामविलाश) को 14 मत मिले है।

  • जातीय जनगणना को लेकर मची हायतौबा की हकीकत समझिए

    जब योजनाएं जाति के लिए बन सकता है तो गणना क्यों नहीं

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार समेत पूरे देश में जातीय जनगणना को लेकर इनदिनो बहस छिड़ी हुई है। अधिकांश ऐसे लोग है, जो विषय की गंभीरता को समझे बिना ही अपनी बात कह देते है। हालिया वर्षो में राजनीतिक कारणो से विरोध या समर्थन करने की खतरनाक प्रवृत्ति का तेजी से विस्तार हुआ है। जातीय जन गणना इससे अछूता नहीं है। बेशक, जातीय जनगणना आज की जरुरत है। बल्कि, जाति के साथ उसकी आर्थिक गणना भी आज की जरुरत बन चुकी है। यह समाज की एक कड़बी हकीकत है और इससे किसी को मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। कहतें है कि जब योजनाएं जाति के लिए बनाई जाती है और सुविधाएं जाति को दिएं जातें हैं। ऐसे में जातियों की गणना करने और उसकी आर्थिक स्थिति का वैज्ञानिक डेटा इखट्ठा करने से परहेज क्यों? यह बड़ा सवाल है।

     

    ऐसे हुई विवाद की शुरूआत

    वह 20 जुलाई 2021 का दिन था। उस रोज संसद का सत्र चल रहा था। सांसदो को संबोधित करते हुए केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानन्द राय ने संसद में एक बड़ी बात कह दी। उन्होंने कहा कि वर्ष 2021 की जनगणना में एससी और एसटी के अलावा अन्य जातियों की जातिवार गणना नहीं होगी। इसके बाद बिहार समेत पूरे देश की राजनीति में उबाल आ गया। विपक्ष के नेता जातीय गणना की मांग करने लगे। तर्क गढ़ा जाने लगा और जातीय गणना को देश हित में बताने की होर लग गई। कहा जा रहा है कि इससे जरूरतमंदों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक मदद मिलेगी। दूसरी ओर केन्द्र की सरकार जातीय गणना को समाज को खंडित करने वाला कदम बता कर फिलहाल इससे इनकार कर रही है। जातीय गणना को लेकर सर्वाधिक गरमाहट बिहार में है। बिहार विधानसभा ने फरवरी 2019 और फिर फरबरी 2020 में दो अलग-अलग प्रस्ताव पास करके केन्द्र को भेजा हुआ है। इस प्रस्ताव में बिहार की राजनीतिक पार्टियों ने जातीय गणना की मांग की है। बिहार विधानसभा से पारित यह प्रस्ताव केन्द्र को भेज दिया गया है। यानी बिहार की राजनीति पहले से जातीय गणना के लिए संजिदा है। लिहाजा, अब बिहार में कर्नाटक की तरह राज्य सरकार के द्वारा अपने खर्चे पर जातीय गणना करने की मांग भी जोर पकड़ने लगा है।

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    जाति और आर्थिक गणना क्यों जरुरी

    मैं पहले ही बता चुका हूं कि विरोध हो अथवा समर्थन। कारण राजनीतिक है। इससे कई लोग गुमराह होने लगे है। हालांकि, इस बीच अधिकांश ऐसे लोग है, जिनका मानना है कि सभी जातियों की और उनकी आर्थिक स्थिति की गणना की जाये। कहतें हैं कि इससे हकीकत सामने आ जायेगा और विकास की योजना बनाने में मदद मिलेगी। सभी को समान रुप से उसका हक मिलेगा और समाजिक तनाव भी कम हो जायेगा। प्रजातंत्र में प्रजा की मांग को सर्वोपरी माना गया है। जब अधिकांश लोग जतीय गणना की मांग कर रहें है। तो सरकार को गंभीर होना चाहिए। यह समय की मांग की है।

    यूपीए-टू की सरकार ने क्यों प्रकाशित नहीं किया

    वर्ष 2010 में मनमोहन सिंह की यूपीए- टू की सरकार ने जातीय गणना कराया था। इस जनगणना में जातीय आंकड़े तो जुटाए गए। लेकिन इसका प्रकाशन नहीं हुआ। सवाल उठता है कि इसका प्रकाशन क्यों नहीं हुआ। दरअसल, भारत में जातियों का आंकड़ा बहुत उलझा हुआ है। यहां जातियों के भीतर कई उप जातियां है। कहतें हैं कि जन गणना रिपोर्ट की स्क्रिनिंग के दौरान कई चौकाने वाले आंकड़े सामने आये थे। मशलन भारत में करीब 46 लाख जातियों का इस रिपोर्ट में खुलाशा होने से अधिकारी के साथ-साथ सरकार भी सकते में पड़ गई। इसका मतलब तो ये हुआ कि प्रत्येक 72 परिवार पर देश में एक जाति होगा। ऐसा कैसे हो सकता है? इसी को आधार बना कर तात्कालीन सरकार ने जातीय गणना की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने का निर्णय लिया। भारत में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग बना हुआ है। यह आयोग सभी राज्यों में पिछड़ी जातियों की लिस्ट तैयार करता है। आयोग की लिस्ट के मुताबिक, बिहार में ओबीसी की कुल 136 जातियां है। जबकि कर्नाटक में इनकी संख्या 199 हो जाती है। इसी प्रकार अलग अलग राज्यों में इसके अलग संख्या बताई गई हैं। यानी, केंद्र और राज्यों के द्वारा बनाई गई ओबीसी लिस्ट की मिलान की जाये। तो सिर्फ इसी वर्ग में जातियों की संख्या हजारों में पहुंच जाती है। लिहाजा, कई लोगो का मानना है कि पहले किसी एक्सपर्ट कमेटी का गठन करके ओबीसी के लिए खास मानक निर्धारित किया जाये और इसको आधार बना कर ओबीसी की परिभाषा तय की जाये। इसके बाद उसी आधार पर जनगणना अधिकारियों को ट्रेनिंग दे कर जातीय गणना करनी होगी। दरअसल, यह एक तकनीक पहलू है और इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। पर, जब तक ओबीसी की परिभाषा तय नहीं होती है। तब तक प्रचलित जातियों की गणना करने में हर्ज क्या है?

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    ब्र्रिटिश इंडिया ने कब कराया था जातिय जनगणना

    ब्रिटिश इंडिया की सरकार ने भारत में पहली और आखरी बार जातीय जनगणना वर्ष 1931 में की थीं। वर्तमान का पाकिस्तान और बांग्लादेश उस वक्त भारत का हिस्सा हुआ करता था। तब देश की कुल आबादी 30 करोड़ के करीब थी। इस गणना में हिन्दू वर्ग में पिछड़ी जाति की संख्या- 43.70 और अल्पसंख्यक वर्ग में पिछड़ी जातियों की संख्या- 8.40 बताई गई है। यानी कुल मिला कर पिछड़ी जातियों की कुल संख्या- 52.1 होती है। इसी को आधार मान कर आज तक योजनाएं बनती रही है। यहां एक बात और है, जो गौर करने लायक है। ब्रिटिश इंडिया ने वर्ष 1941 के जन गणना के दौरान भी भारत में जातियों की गिनती की थीं। किंतु, दूसरे विश्वयुद्ध का हवाला देकर इसके प्रकाशन पर रोक लगा दिया गया था। आजादी मिलने के बाद भारत की सरकार ने पहली बार वर्ष 1951 में जन गणना कराया। किंतु, इसमें जातिय गणना नहीं की गई। तब से भारत में यहीं परंपरा चली आ रही है। स्वतंत्र भारत में 1951 से 2011 तक की प्रत्येक जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को छोड़ कर अन्य किसी जाति की गणना नहीं की गई। हालांकि, वर्ष 2011 में जातियों की गणना तो हुई। पर आंकड़ो का प्रकाशन नहीं किया गया। ब्रिटिश इंडिया ने पहली बार भारत में 1881 में जन गणना किया था और इसके बाद प्रत्येक दस साल पर जन गणना होती रही है। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान भारत की जन गणना में शिक्षा, रोजगार और मातृभाषा की गणना करने का प्रचलन था। जो, जरुरत के हिसाब से आज बदल चुका है।

    जाति आर्थिक गणना जरुरी

    अधिकांश लोगो का मानना है कि भारत में जातीय जन गणना से किसी का कोई नुकसान नहीं होगा। उल्टे इससे समाज में तनाव कम होगा। लिहाजा, इसको लेकर किसी को भ्रम में रहने की जरुरत नहीं है। राजनीतिक बहकावे में आने की भी जरुरत नहीं है। कहतें हैं कि यह सभी के हित में होगा। दरअसल, यह आज की जरुरत है और इसके लिए समवेत प्रयास करने से समाजिक सौहार्द और बढ़ेगा। जरुरतमंदो को इसका उचित लाभ मिल जायेगा। इससे समाजिक असंतोष में कमी आयेगी और सरकार को भी विकास की योजना बनाने में कारगर मदद मलेगी।

  • मझौलिया : सड़क, बिजली और पानी के साथ सेल्टर भी चाहिए

    मझौलिया : सड़क, बिजली और पानी के साथ सेल्टर भी चाहिए

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर प्रखंड का मझौलिया पंचायत। प्रखंड मुख्यालय से 6 किलोमीटर पूरब मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना से बनी पक्की सड़क पर फर्राटा भरते हुए मझौलिया पंचायत के ब्रहण्डा गांव पहुंचते ही लोगो के मिलीजुली प्रतिक्रिया के बीच पंचायत की तस्वीर साफ होते देर नहीं लगा। लोगो ने बताया कि पिछले पांच वर्षो में पंचायत की सड़क और बिजली के क्षेत्र में बेशक बहुत सुधार हुआ है। पर, बाढ़ के दर्द को याद करके यहां के लोग आज भी सहम जाते है। इलाका नीचा है और बाढ़ के दिनो में पूरा पंचायत टापू बन जाता है। बाढ़ में मुख्यालय से सड़क संपर्क टूटने का दर्द लोगो को असहज कर देता है। इस दर्द को याद करके लोग आज भी सिहर जाते है। उंचे स्थानो पर सप्ताहो शरणार्थी रहे लोगो के दर्द की यहां अनगिनत कहानी है। जितनी मुंह, उतनी बातें। गत वर्ष पंचायत की मझौलिया, ब्रहण्डा, मझुअर, हजरतपुर, अस्तालकपुर और विशुनपुर रुपौली गांव के करीब 4 हजार घरो में बाढ़ का पानी प्रवेस कर गया था। बाढ़ के महीनो में अपनी जरुरत के लिए जान को जोखिम में डालना यहां के लोगो की नीयति बन चुका है। लोग अब इसका स्थायी निदान चाहते है।

    मझौलिया मझुअर सड़क

    बात को बदलते ही लोगो ने बताया कि पंचायत की अधिकांश सड़के पक्की है और मोटे तौर पर यहां आवागमन की दिक्कत नहीं है। हालांकि, मझौलिया से नेउरा को जोड़ने वाली पक्की सड़क के सहजपुर के आगे कई स्थानो पर टूट जाने से थोड़ी मुश्किले पैदा हो गई है। इसी प्रकार मझुअर से मझौलिया की जर्जर हो चुकी सोलिंग सड़क फिलहाल, मुख्यमंत्री सड़क योजना के तहत निर्माणाधीन है। इस पर मिट्टी बिछा कर छोर देने से धूल के उठते गुबार राहगीरो के लिए मुश्किल का सबब बन गया है।

    स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधा से लोग खुश नहीं है। सबसे बुरा हाल शिक्षा का है। हालांकि, दो साल पहले मझौलिया मिडिल स्कूल को उत्क्रमित करके हाई स्कूल बना दिया गया। हाई स्कूल के लिए अलग से भवन निर्माण का काम भी चल रहा है। पर, हाई स्कूल के लिए अलग से शिक्षक के अभाव में पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर लोगो के मन में कई सवाल है। पंचायत ओडीएफ नहीं है। पर, शौचालय निर्माण से सड़क किनारे लगने वाली गंदगी के अंबार में कमी आई है। हालांकि, आदतन कुछ लोग अभी भी सड़क पर गंदगी फैलाने से परहेज नहीं करते है। कहने को यहां एक सरकारी और दो निजी पोखर है। पर, गर्मी की धमक पड़ते ही पानी की किल्लत से अभी तक लोगो को छुटकारा नहीं मिला है। सिचाई के लिए राजकीय नलकूप बंद पड़ा है। हालांकि, अब खेतो को बिजली देने की योजना से लोगो में उम्मीदें जगी है।

    उपलब्धियां :

    मनरेगा में अस्तालकपुर से ब्रहण्डा तक नाला उड़ाही हुआ। ब्रहण्डा में पोखर का निर्माण हुआ। मझौलिया बाजार पर मिट्टी कार्य और विशुनपुर में 2 हजार फीट व ब्रहण्डा में 400 फीट पीसीसी सड़क का निर्माण हुआ। विशुनपुर में बहुउद्देशीय भवन का जीर्णोद्धार हो चुका है। सात निश्चय में 2 कि.मी. लम्बी 35 सड़को की ढ़लाई का काम पूरा हो चुका है। सभी 13 वार्डो में 21 जलमिनार के सहारे पेयजल आपूर्ति बहाल है।

    नाकामियां :

    पंचायत की सड़को पर अभी तक स्ट्रीटलाइट नहीं लगने से रात में सफर करना दुष्कर बना हुआ है। ब्रहण्डा से कोइली तक सड़क जर्जर है। पंचायत सरकार भवन का निर्माण नहीं हुआ है। ब्रहण्डा, अस्तालकपुर, मझौलिया और हजरतपुर में स्वीकृति मिलने के बाद भी आंगनबाड़ी केन्द्र की स्थापना नहीं हो सकी है। शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में आशतीत काम होना अभी बाकी है।

    रोजगार के अवसर :

    मझौलिया पंचायत के लोगो के जीविका का मुख्यस्त्रोत खेती है। हालांकि, धान, मक्का, गेंहू और सब्जी की परंपरागत खेती से परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा है। दुर्भाग्य से रोजगार के अन्य कोई साधन विकसित नहीं हो सका है। महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना से भी स्थायी रोजगार का सृजन नहीं हो सका। नतीजा, प्रत्येक साल बड़ी संख्या में लोग पलायन कर जाते है। लोगो ने बताया कि यहां की करीब 3 हजार लोग सूरत, दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और बनारस जैसी शहरो में मजदूरी करने चले जातें हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग स्थानीय बाजार पर दुकानदारी करके और कुछ लोग ईटभट्ठा में मजदूरी करके अपना भरण पोषण करते है।

    सड़क :

    मझौलिया से नेउरा जाने वाली पक्की सड़क सहजपुर से आगे बढ़ते ही कई जगहो पर उखड़ चुकी है। इससे लोगो को सीधे शहर जाने में परेसानी होती है। ठीक इसी प्रकार मझुअर से मझौलिया को जोड़ने वाली सोलिंग सड़क के जर्जर होने से लोग परेसान है। हालांकि, इस सड़क का मुख्यमंत्री ग्राम सड़क योजना में चयन हो गया है। पर, कार्य की धीमी प्रगति से लोगो में असंतोष है। फिलहाल सड़क पर मिट्टी बिछा कर छोर देने से धूल की समस्या बिकराल रुप धारण करने लगा है।

    नल जल :

    पंचायत की सभी 13 वार्ड में नल लगाने का काम पूरा हो चुका है। पेयजल की निर्वाध सप्लाई के लिए 21 जल मिनार बनाया गया है। इसके बाद भी 24 घंटे पेयजल की सप्लाई नहीं है। इसके दो प्रमुख कारण बताएं गयें है। पहला ये कि स्थायी ऑपरेटर के लिए अभी तक कोई प्रावधान नहीं हुआ है और दूसरा लोगो में पेयजल को लेकर जागरुकता का घोर अभाव है। इससे पेयजल की बर्बादी को रोकने में पंचायत नाकाम साबित हो रही है।

    बिजली :

    पंचायत के लोगो को बिजली विभाग से बहुत शिकायत नहीं है। यहां छोटे बड़े 16 ट्रांसफॉर्मर काम कर रहा है। कृषि कार्य के लिए अलग से ट्रांसफॉर्मर लगाने का काम जोरो पर है। हालांकि, पिछले तीन सप्ताह से बिजली का तार बदलने जाने की वजह से सुबह से शाम तक पंचायत की बिजली बाधित रहती है। लोगो में सड़क किनारे स्ट्रीटलाइट नहीं होने का भी मलाल है।

    अस्पताल :

    मझौलिया में एक अतिरिक्त स्वास्थ्य केन्द्र है, जो एएनएम के सहारे रोज खुलता है। हालांकि, डॉक्टर यदा- कदा ही आते है। लोगो ने बताया कि सर्दी, जुकाम और बुखार आदि की दवा यहां से मुफ्त में मिल जाता है। किंतु, अन्य रोग का इलाज कराने के लिए पंचायत के अधिकांश लोग एसकेएमसीएच जाने को विवश होते है। इससे लोगो में असंतोष है। फिलहाल, यहां कोविशील्ड वैक्सीन देने का काम चल रहा है।

    पंचायत भवन :

    जमीन के अभाव में मझौलिया का पंचायत सरकार भवन नहीं बन सका है। इसका लोगो को मलाल है। पुराना पंचायत भवन काफी जर्जर हो चुका है। पंचायत के एक छोर पर स्थित मझुअर गांव में पुराने पंचायत भवन का अधिकांश खिड़की और दरबाजा टूटा पड़ा है। फर्स उखड़ चुका है और दीबार भी दरकने लगा है। 90 के दशक में यहां डब्लू.एल.एल. फोन लगा था। अब उसका एक मात्र टाबर शेष बचा है। पंचायत के लोग साल में दो बार झंडा फहराने के लिए यहां आते है।

    बयान :

    पंचायत में चल रही विकास की योजना हो या कल्याणकारी योजना। किसी भी लाभुक को रिश्वत नहीं देना पड़ा। यह बड़ी उपलब्धी है। पांच साल में 500 से अधिक लोगो का पक्का घर बना। दो हजार से अधिक शौचालय बनाया गया। 200 से अधिक राशनकार्ड बनाया गया और करीब 500 से अधिक लोगो को बृद्धापेंशन का लाभ मिला। हालांकि, राशि के अभाव में स्ट्रीटलाइट नहीं लगाने का मलाल बाकी रह गया।   –— वारिश खां, मुखिया

    मझौलिया पंचायत में विकास का कोई भी काम ठीक से नहीं हुआ है। समाजिक सुरक्षा पेंशन जरुरतमंदो को नहीं मिला है। जलनल का पाईप जमीन के तीन फीट नीचे बिछाना था। उसको उपर में बिछा देने से अक्सर पाइपलाइन फट जाता है और पेयजल की आपूति बाधित रहता है। मुखिया अपने चहेते लोगो से घिरे रहते है। इससे आमलोगो में आक्रोश है। — लालबाबू प्रसाद, निकटतम प्रतिद्वंदी

    पंचायत का पिछले पांच वर्षो में विकास हुआ है। हालांकि, बाढ़ की समस्या बहुत बड़ी हो चुकी है और इसका स्थायी समाधान जरुरी है। सड़क, बिजली और पानी के साथ, बाढ़ से विस्थापितो के लिए पंचायत के उंचे स्थान पर स्थायी सेल्टर का निर्माण होना बहुत जरुरी है। — रतन राय, मझुअर

    बरसात के दिनो में जल निकासी के लिए पंचायत में नाला का निर्माण होना चाहिए था, जो नहीं हुआ। किसानो के लिए अनाज के भंडारण की सुविधा पंचायत में होना बहुत जरुरी है। इसी प्रकार युवाओं के लिए खेल का एक मैदान होना चाहिए था।   — मो. सलीम, ब्रहण्डा

    स्कूल में सही से पढ़ाई नहीं होता है। शिक्षक की मनामानी पर लगाम लगाने वाला कोई नहीं है। अस्पताल नाम का है। बीमार पड़ने पर वहां इलाज नहीं होता है। डीलर की मनमानी से गरीबो को समय पर राशन नहीं मिलता है।   — मो. ग्यासुद्दीन, ब्रहण्डा

    आर्थिक जनगणना में हुई गड़बरी की वजह से प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ जरुरतमंदो तक नहीं पहुंच रहा है। इसी प्रकार आरटीपीएस कर्मियों की मनामानी से जरुरतमंद लोगो का राशनकार्ड समय से नहीं बन पाता है।   — रामतलेवर सिंह, मझौलिया

  • बिहार सरकार का इकबाल सवालो के घेरे में

    बिहार सरकार का इकबाल सवालो के घेरे में

    बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की वापसी हो चुकी है। पहली बार सात रोज की सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार सातवीं बार बिहार में मुख्यमंत्री की शपथ लेकर इतिहास रच दिएं। अब सरकार के आगे की सफर को लेकर अभी से आशंकाओं के बादल मंडराने लगा है। गठबंधन की एकजुटता का क्या होगा। मंत्री परिषद में सामंजस का क्या होगा और सबसे बड़ा सवाल तो सरकार के इकवाल को लेकर उठेगा। लोग अभी से पूछने लगे है कि सरकार के इकबाल का क्या होगा। शराबबंदी कानून का क्या होगा। भ्रष्ट्राचार और विधि व्यवस्था का क्या होगा। बड़ा सवाल ये कि रोजगार और वैक्सिनेशन को लेकर जो घोषणाएं की गई थीं। अब उसका क्या होगा। ऐसे और भी अनगिणत सवाल है। जिसका पड़ताल जरुरी है। देखिए, इस रिपोर्ट में…

     

  • मीनापुर से लगातार दूसरी बार जीते मुन्ना यादव

    मीनापुर से लगातार दूसरी बार जीते मुन्ना यादव

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मीनापुर विधानसभा से राजद के राजीव कुमार उर्फ मुन्ना यादव लगातार दूसरी बार चुनाव जीत गए। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी जदयू के मनोज कुमार को 15,321 मतो की अंतर से पराजित किया है। राजद के मुन्ना यादव को 59,733 मत मिले। जबकि, जदयू के मनोज कुमार को 44,412 मतो से संतोष करना पड़ा।

    लोजपा उम्मीदवार अजय कुमार तिसरे स्थान पर रहे। उनको 43,337 मतो से संतोष करना पड़ा। जाप के वीणा यादव को 3,707 मत मिले। वहीं, रालोसपा के प्रभु कुशवाहा 2,054 मत बटोरने में सफल हो सके। निर्दलीय उम्मीदवारो में रमेश कुमार को 4,084, संतोष शाही को 3,047 और कंचन सहनी को 2,517 मतो से संतोष करना पड़ा है। पुलिस सेवा से अवकाश लेकर चुनाव के मैदान में उतरे निर्दलीय विनय कुमार सिंह को मात्र 854 मत मिले। जबकि, मीनापुर के 1,209 मतदाताओं ने नोटा को पसंद किया है।

  • मीनापुर के मतदाताओं का उत्साह कोरोना पर भारी पड़ा

    मीनापुर के मतदाताओं का उत्साह कोरोना पर भारी पड़ा

    • शिवहर जिला से सटे मीनापुर के नक्सल पीड़ित गांवो में दिखा जबरदस्त उत्साह
    मतदान के लिए उत्सुक महिलाएं

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर में मतदाताओं का उत्साह कारोना पर भारी पड़ गया। मंगलवार की सुबह से ही मतदान केन्द्रों पर लगी लम्बी कतार और कतार में बड़ी संख्या में महिलाओं की मौजूदगी कहानी वयां कर रहा था। शिवहर जिला के तरियानी से सटे और किसी जमाने में नक्सल पीड़ित गंगटी के मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह दिखा। मतदान केन्द्रो पर थर्मोस्क्रिनिंग, सेनिटाइजर और ग्लब्स का इस्तेमाल हो रहा था। हालांकि, कई जगहो पर डस्टबीन नहीं रहने से लोगो को परेसानी का सामना करना पड़ा।
    गंगटी के मतदान केन्द्र पर वोट गिराने के बाद अपनी पतोहू सीमा देवी के इंतजार में खड़ी शैल देवी बताती है कि वोट गिराने के बाद लौट कर खाना बनायेंगे। वहीं, कतार में अपनी बारी की प्रतीक्षा में खड़ी लक्ष्मी देवी कहती है कि सुबह में ही खाना बना दिये थे। अब वोट गिराने के बाद सभी लोगो को खिला देंगे। बिकलांग शिवजी सहनी वोट का महत्व समझाते हुए कहतें है कि वोट देंगे, तब विकास होगा। मतदान केन्द्र पर मौजूद पूर्व नक्सल नेता सुरेश सहनी वोट गिराने के लिए काफी उत्सुक दिखे। पूछने पर कहने लगे- मतदान जरुरी है।
    गंगटी में 49, 49 ‘क’, 50 और 50‘क’ के चार मतदान केन्द्रो पर मतदाताओ की कुल संख्या- 1,551 है। पीठासीन पदाधिकारी अजय कुमार ने बताया कि मतदाताओं में जबरदस्त उत्साह है। कमोवेश यही हाल नक्सल पीड़ित तुर्की हाई स्कूल के मतदान केन्द्र संख्या 35, 36 और 37 पर दिखा। यहां मतदाताओं की कुल संख्या- 1,650 है। पीठासीन पदाधिकारी विरेन्द्र कुमार ने बताया कि यहां महिला वोटरो में जबरदस्त उत्साह है।

    थर्मोस्क्रिनिंग

    इसी प्रकार खेमाईपट्टी का आदर्श मतदान केन्द्र हो या मानिकपुर मध्य विद्यालय का मतदान केन्द्र। वासुदेव छपरा, मीनापुर, हरका, चाकोछपरा, हथियावर, बनघारा, सिवाईपट्टी, कड़चौलिया, खरहर और मझौलिया सहित कई अन्य मतदान केन्द्रो पर मतदाताओं की लम्बी कतार, कोविड को चुनौती देकर प्रजातंत्र के महापर्व में हिस्सा लेने के लिए उतावली दिख रही थी। निर्वाची पदाधिकारी चंदन चौहान ने शांति पूर्वक मतदान संपन्न होने का दावा किया है।
    हल्का बल प्रयोग
    छिटफुट घटनाओं को छोर कर मीनापुर विधानसभा में मंगलवार को शांतिपूर्वक मतदान संपन्न हो गया। सुबह 7 बजे धरमपुर मतदान केन्द्र संख्या- 209 पर ईवीए में गड़बरी की शिकायत मिली। हालांकि, आधा घंटा में इसको ठीक कर लिया गया और मतदान शुरू हो गया। इसके बाद कई और जगहों सेेेे ईवीएम में गड़बड़ीी की शिकायत आई और करीब 32 ईवीएम को बदलना पड़ा। मदारीपुर कर्ण में मतदान केन्द्र संख्या- 197 और शाहपुर के मतदान केन्द्र संख्या- 207 पर दो गुटो में मामुली झड़प के बाद पुलिस हरकत में आ गई। इधर, हजरतपुर मतदान केन्द्र संख्या- 180 पर भीड़ को तितर बितर करने के लिए पुलिस को हल्का बन प्रयोग करना पड़ा।

  • पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के कद्दावर नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह नहीं रहे

    पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के कद्दावर नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह नहीं रहे

    बिहार में शोक की लहर

    KKN न्यूज ब्यूरो। पूर्व केंद्रीय मंत्री और बिहार के दिग्गज नेताओं में शूमार रहे डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह का आज निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के एम्स में अंतिम सांसें ली। बिहार की राजनीति में ब्रह्मबाबा के नाम से प्रसिद्ध पूर्व केंद्रीय मंत्री को कुछ दिन पहले ही दिल्ली एम्स में भर्ती किया गया था। उनको सांस लेने में तकलीफ होने लगा था।
    पिछले कई दिनों से रघुवंश सिंह की हालत लगातार नाजुक बनी हुई थी। उनको सांस लेने में भी दिक्कत हो रही थीं। अस्पताल के आइसीयू में रघुवंश बाबू चार डॉक्टरो की निगरानी में थे। किंतु, उनको बचाया नहीं जा सका। रविवार सुबह तक रघुवंश बाबू वेंटिलेटर पर थे। हालांकि, उनकी स्थिति नाजुक बनी हुई थीं। मालूम हो कि रघुवंश प्रसाद सिंह का इलाज 4 अगस्त से ही दिल्ली स्थित एम्स में चल रहा था और वो पिछले चार दिनों से वेंटिलेटर पर थे। फिलहाल उनके निधन से पूरे बिहार में शोक की लहर है। लोग कहने लगे है कि समाजवाद की राजनीति में आई शून्यता को भरना अब मुश्किल होगा।

    आरजेडी से दिया था इस्तीफा

    करीब चार दशक तक आरजेडी की राजनीति से जुड़े रहने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने कुछ दिन पहले की आरजेडी से इस्तीफा दे दिया था। दिल्ली एम्स में भर्ती रघुवंश प्रसाद सिंह ने अपना इस्तीफा एक सामान्य पन्ने पर लिखकर भेजा था। इसमें उन्होंने आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को संबोधित करते हुए लिखा था कि जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं…। पार्टी नेता, कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें… हालांकि, आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ने उनका इस्तीफा मंजूर करने से इनकार कर दिया था।

  • मुखौटा भले गरीब का हो, चेहरा तो पूंजीवाद का ही होगा

    मुखौटा भले गरीब का हो, चेहरा तो पूंजीवाद का ही होगा

    बिहार विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। चुनाव अपने निर्धारित समय पर होगा। कोरोनाकाल का यह पहला आम चुनाव होगा। राजनीति में गुणा गणित का खेल शुरू हो चुका है। सम्भावनाएं तलाशी जा रही है। कहतें है कि राजनीति वह विधा है, जहां मौका मिला तो ठीक। वर्ना मौका परस्ती से भी गुरेज नहीं होता है। जाहिर है, दरबारें सजेंगी। पटना ही नहीं, रांची में भी सजेंगी। जोगाड़ टेक्नॉलजी, एक्टिव होगा। वायोडेटा का खेल चलेगा। राजनीति के गलियारे में चंदा- चुटकी की बातें छन-छन कर बाहर आयेंगी। कुछ आरोप के शक्ल में और कुछ खंडन के शक्ल में। रहनुमाओं के बगावत के चर्चे सुर्खियां बटोरेगी। आरोप प्रत्यारोप का शोर ऐसा मचेगा कि हमारा और आपका मुद्दा एक बार फिर से गुम हो जाये, तो आश्चर्य नहीं होगा। यह कोई नई परंपरा नहीं है। बल्कि, ऐसा पहले भी हो चुका है। विकास की बात से शुरू होने वाला राजनीति, आखिरकार भावनाओं की भंवर में गुम होता ही रहा है। सवाल उठता है कि क्या यहीं राजनीति है? देखिए, इस रिपोर्ट में…

  • मुख्यधारा से विमुख रहने की फोबिया

    मुख्यधारा से विमुख रहने की फोबिया

    तारीख 10 अगस्त 2020… सुबह के 10 बजे तक। भारत में 6 लाख से अधिक लोग कोविड-19 यानी कोरोना वायरस की चपेट में है और करीब 44 हजार से अधिक लोगो की मौत हो चुकीं है। जीहां, 44,386 लोगो की मौत…। क्या यह आंकड़ा भी महज एक अफवाह है…? क्या यह मीडिया के द्वारा फैलाई गई दहशत की परिणति है…? ऐसे और भी कई सवाल है, जो कोरोनाकाल की मौजू बन गई है और इसको डीकोड करना आज जरुरी हो गया है।

     

    बिहार के गांवो में ज्ञान का स्वांग भरने का फितुर रखने वाले लोग कोरोनाकाल की सबसे बड़ी समस्या बन चुुकें हैं। इनमें से कई ऐसे है, जो इस खतरे को मीडिया की मायाजाल साबित करने में लगें है। ऐसे भी है, जिनको वैश्विक महामारी कोरोना में भी आसानी से राजनीति दीख जाता है। महारथ ऐसा कि पल भर में ही नाना प्रकार के कुतर्को का खजाना खोल देने की माद्दा रखते है। सोशल साइट पर एक कुतर्की दूसरे कुतर्की के हवाले से अपनी बातो की पुष्टि कर लेता हैं। मजाल नहीं, कि कोई इन्हें समझा ले।

    गांव का आलम ये हो गया है कि बड़ी संख्या में भोलीमानस भी अब इन्हीं कुतर्को को सच का आधार मान कर, खुद को खतरे में डाल रहा है। नतीजा, गांव की स्थिति विस्फोटक रूप लेने लगा है। खतरे की बात ये कि शहर पर लोगो की नजर है। पर, आज भी गांव ओझल है। हालिया दिनो में गुमनाम मौत का सिलसिला गांव में चल पड़ा है। अब इसकी तस्दिक कौन करेगा? लोगो पर तो पर्दा डालने का फितुर सवार है। मन पसंद खबर नहीं मिले तो, मीडिया के बिकाउ कहने का फितुर सवार है और समझाने की कोशिश करने पर, विरोधी समझने का फितुर सवार है।

    इसे अनजाने में की गई गलती कहेंगे या गुमराह मानसिकता? जाहिर है, ये अनजान नहीं है। बल्कि, इनको गुमराह किया गया है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी हो जाता है कि वो कौन है… जो, गुमराह करता है? जवाब तलाशने से पहले, समझना बेहद जरुरी है कि- ऐसे लोग मुख्य रूप से तीन प्रकार के होतें हैं। पहला ओ… जो, किताबी ज्ञान में पारंगत होने के बाद भी, खुद गुमराह है। खुद के ज्ञान का स्वांग भरने के अतिरिक्त वह कुछ और समझने को तैयार नहीं है। उसकी बातो को पुष्टि करने वाले लेख के अतिरिक्त वह कुछ और पढ़ने को तैयार नहीं है। वह, समझने के लिए नहीं… बल्कि, समझाने के लिए धरती पर खुद को मौजूद पातेे है। अक्सर ऐसे लोग भिन्न विचारधारा वाले लोगो को अपना वैचारिक दुश्मन समझते हैं और हर बात में व्यंग करना, इनकी फितरत हो जाता है।

    दूसरे प्रकार के लोग खुद गुमराह नहीं होते। पर, राजनीतिक या समाजिक नफा-नुकसान की चासनी में तथ्यों को मरोड़ देना, इनकी फितरत में शूमार हो जाता है। ऐसे लोग वक्त के साथ अपने तर्को को बदलने की कला भी रखते हैं। इनको समाज पर पड़ने वाले असर का नहीं… बल्कि, खुद को मिलने वाले लाभ का, लोभ अधिक होता है। तीसरे प्रकार वाले वो है, जो मुख्यधारा से विमुख रहने की फोबिया से ग्रसित होतें हैं। ऐसे लोगो की समझ में विरोध करना ही ज्ञान का एकमात्र लक्षण होता है। इस विचारधारा के लोग राजनीति में हासिए पर होते है और अपनी विफलता का ठिकरा अक्सर प्रचार माध्यम के सिर फोड़ते हैं। गौरकरने वाली बात ये है कि इस प्रजाती के प्राणी पूरी दुनिया में मौजूद है। ऐसे लोगो के रहते कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से निपटना आसान नहीं होगा। विशेषकर ग्रामीण समाज में, यदि खतरा प्रवल हो जाये तो आश्चर्य नहीं होगा। लिहाजा, सतर्क रहिए, सुरक्षित रहिए…।

  • मीनापुर में कोरोना के 23 पॉजिटिव मिलते ही मचा हड़कंप

    मीनापुर में कोरोना के 23 पॉजिटिव मिलते ही मचा हड़कंप

    पॉजिटिव होने वालों में एक आठ साल का बच्चा भी

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार का ग्रामीण इलाका अब तेजी से कोरोना संक्रमण की चपेट में आने लगा है। मुजफ्फरपुर के मीनापुर में एक ही रोज में कोरोना संक्रमण के 23 मामले प्रकाश में आते ही दो जुलाई को हड़कंप मच गया। इसी के साथ यहां संक्रमित लोगो की संख्या बढ़ कर 30 हो गई है। स्वास्थ्य प्रबंधक दिलिप कुमार ने बताया कि पॉजिटिव होने वालों में एक बहुचर्चित पंचायत के 17 और दूसरे एक पंचायत के 6 लोग शामिल है। इसमें 20 पुरुष और 3 महिला है। कोविड-19 की चपेट में आने वाला एक 8 साल का बच्चा भी है। जबकि, 3 लोगो का उम्र 60 वर्ष से अधिक है।
    जानकारी के मुताबकि, इसमें से अधिकांश प्रवासी मजदूर है। किंतु, कई ऐसे भी है, जिनका कोई ट्रैवल्स हिस्ट्री नहीं है। अस्पताल के प्रभारी डॉ.राकेश कुमार ने बताया कि स्थानीय मुखिया की मदद से पॉजिटिव पाये गये लोगो को चिन्हित करके शुक्रवार की सुबह तक सभी को आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट करने का काम शुरू कर दिया गया है। स्मरण रहें कि जांच रिपोर्ट आने में पहले ही एक सप्ताह से अधिक का समय लगा चुका है। सवाल उठता है कि इस बीच इन लोगो के संपर्क में आने वालों की पहचान कब होगी?
    समाजिक कार्यकर्ता मो. सदरुल खां ने कंटेनमेंट जोन बनाने और गांव में बड़े पैमाने पर कोविड-19 की जांच कराने की मांग की है। उन्होंने बताया कि पॉजिटिव होने वाले लोग पिछले एक सप्ताह से अपने परिवार और समाज के लोगो के संपर्क में थे। इसी के साथ गांव में होने वाले समारोह के नाम पर जुटाई जा रही भीड़ को काबू में रखने की मांग भी अब उठने लगा है। कुल मिला कर एक रोज में 23 लोगो के पॉजिटिव होने की खबर फैलते ही गांव के लोग सहम गये है।

  • बिहार में नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव

    बिहार में नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव

    इसी साल यानी वर्ष 2020 के 29 नवम्बर को बिहार विधानसभा का कार्यकाल पूरा हो रहा है। जाहिर है इससे पहले चुनाव होगा। दरअसल, होली बाद ही बिहार चुनावी मोड में आने को तैयार हो गया था। फरबरी में इसकी कशमकश दिखने लगा था। किंतु कोरोना ने सभी कुछ गड्डमड्ड करके रख दिया। हालांकि, लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूरो के बिहार लौटने का  सिलसिला जैसे ही जोर पकड़ा कि सियासतदानो को मौका मिल गया। पक्ष हो या विपक्ष, इस मौका को लपकने की गरज से सभी दौर पड़े। फिर जो हुआ, किसी से छिपा नहीं है। अब सवाल उठता है कि इसका लाभ किसको मिलेगा? इससे भी बड़ा सवाल ये कि कौन बनेगा बिहार का मुख्यमंत्री… नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव? पड़ताल जरुरी है।  देखिए इस रिपोर्ट में…

  • बिहार के इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेजों की परीक्षा पर भी कोरोना का असर

    बिहार के इंजीनियरिंग और पॉलिटेक्निक कॉलेजों की परीक्षा पर भी कोरोना का असर

    कोरोना वायरस का असर बिहार के इंजीनियरिंग तथा पॉलिटेक्निक कॉलेजों की परीक्षाओं पर भी पड़ा है। यही कारण है कि, अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि, परीक्षा ऑनलाइन ली जाएगी या ऑफलाइन। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, परीक्षा के दोनों ही परिस्थितियों के लिए तैयार है। उम्मीद है कि, इस पर जल्द ही फैसला लिया जाएगा। परीक्षा को लेकर विभाग निरंतर स्टेट बोर्ड ऑफ टेक्निकल एजुकेशन से संपर्क बनाए हुए है और साथ ही बैठकों का दौर भी जारी है।

    परीक्षा को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTI) के अगले दिशा-निर्देश के आने का इंतजार किया जा रहा है। हालांकि, जून के पहले सप्ताह तक दिशा-निर्देश आने की संभावना है।

    परीक्षा ऑनलाइन माध्यम से हो या ऑफलाइन, लेकिन 50 फीसदी अंकों की ही होगी। वहीं 50 फीसदी अंक विद्यार्थियों के पिछले शैक्षणिक वर्ष के प्रदर्शन के आधार पर दिए जाएंगे

  • बिहार आये प्रवासी को क्वारंटाइन होने के लिए भटकना पड़ता है

    बिहार आये प्रवासी को क्वारंटाइन होने के लिए भटकना पड़ता है

    भटकने वाले सभी 24 मजदूर रेडजोन से पहुंचे थे गांव

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार सरकार के दावों से इतर गांव पहुंच रहें प्रवासी मजदूरो को क्वारंटाइन होने के लिए भी मशक्कत करना पड़ता है। मुजफ्फरपुर में बुधवार को यही नजारा देखने को मिला। दिल्ली के रेडजोन से आए 46 प्रवासी मजदूर क्वारंटाइन होने के लिए पूरे दिन मीनापुर में भटकते रहे। पर उनकी सुधि लेने वाला कोई नहीं था। अधिकारियों ने दोपहर बाद फोन उठाना बंद कर दिया। तब ये सभी प्रवासी मजदूर चैनपुर के गौशाला पहुंच गये और आराम करने लगे। जब मीडिया की नजर पड़ी, तब अधिकारी हरकत में आ गये।
    कोइली के मुखिया अजय सहनी ने बताया कि दिल्ली के रेडजोन से किराये की बस लेकर चार बजे सुबह 46 प्रवासी मजदूर अचानक मीनापुर पहुंच गये और फोन पर सीओ से संपर्क कर मीनापुर अस्पताल में अपना रजिस्ट्रेशन करावा लिया। इसके बाद सुबह सात बजे इन सभी प्रवासी मजदूरों को रेडजोन के लिए निर्धारित महदेइया कन्या हाईस्कूल भेज दिया गया। किंतु, जगह नहीं होने का हवाला देकर महदेइया क्वारंटाइन सेंटर के प्रभारी ने इनको रखने से इनकार कर दिया।
    इधर, सीओ ने फोन उठाना बंद कर दिया और यह सभी 46 प्रवासी मजदूर भटकते हुए चैनपुर गौशाला पहुंच गये। शाम में मीडिया के द्वारा सवाल पूछे जाने के बाद सीओ ज्ञान प्रकाश श्रीवास्तव एक बार फिर से हरकत में आ गये और रेडजोन से आये सभी 46 प्रवासी मजदूरों को क्वारंटाइन सेंटर पहुंचाने के लिए बस भेजने की बात कहने लगे। इस बीच हरपाली में क्वारंटाइन हुए 28 प्रवासियों ने सुविधा की मांग को लेकर हंगामा शुरू कर दिया और सड़क पर उतर गये। उमाशंकर सहनी के नेतृत्व में राजद की टीम ने हरपाली पहुंच कर बताया कि ये लोग पिछले चार दिनों से क्वारंटाइन सेंटर पर रहते हुए अपने घर से खाना मंगा कर खाते हैं। हालांकि, हंगामे के बाद अंचल प्रशासन ने वहां प्रवासी मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था कर दी है। कामेवेश यहीं हाल टेंगरारी, मेथनापुर और राघोपुर सहित कई अन्य क्वारंटाइन सेंटर का है। दूसरी ओर स्थानीय अधिकारी की माने तो कही कोई समस्या नहीं है।

  • बिहार के शहर से गांव तक कोरोना से लड़ने की तैयारी शुरू

    बिहार के शहर से गांव तक कोरोना से लड़ने की तैयारी शुरू

    संक्रमण फैला तो काबू करना मुश्किल

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार सरकार से निर्देश मिलते ही शहर के बंद पड़े अस्पताल और होटल की पहचान करके आइसोलेशन सेंटर बनाने का काम पहले ही शुरू हो चुका था। अब बिहार के गांवों में इसकी तैयारी शुरू हो गई है। सभी प्रखंड मुख्यालय में कम से कम 500 बेर्ड के आइसोलेशन सेंटर बनाने का आदेश दे दिया गया है। यानी सरकार को लगने लगा है कि आने वाले दिनो में कोरोना वायरस का संक्रमण बिहार के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। दिल्ली, महाराष्ट्र और एमपी के बाद बिहार बड़ा हॉटस्पॉट बन जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। यानी संक्रमण फैला तो इसको काबू कर पाना मुश्किल हो जायेगा।

    दो बड़े कारण

    बिहार में संक्रमण फैलने का दो प्रमुख कारण बताया जा रहा है। पहला तो ये कि शहर हो या गांव, लोग स्वभाविक तौर पर सोशल डिस्टेंस के महत्व को नहीं समझ रहें है और प्रत्येक गांव या हाट-बाजारो में पुलिस को तैनात करना व्यवहारिक नहीं है । ऐसे में कोरंटाइन का समाजिक तौर पर पालन करना होगा, जो नहीं हो रहा है। इस बीच प्रवासी मजदूरो के चोरी-छुपे बिहार पहुंचने का सिलसिला आज भी जारी है। यह बिहार के गांवों में संक्रमण फैलने की बड़ी वजह बन सकता है। क्योंकि, कतिपय कारणो से समाज ने यहां चुप्पी साध ली है। दूसरा बड़ा कारण ये है कि कोरोना काल के इस समाजिक समस्या को राजनीति की चासनी में डाल कर हमने खुद हालात को पेंचिदा बना दिया है। परवाह जीवन की नहीं है। परवाह, राजनीति के नफा नुकसान की है। जाहिर है ऐसे में जीवन पर मंडरा रही मौत का संकट और बढ़ेगा और हालात बेकाबू हुआ तो खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ेगा।

    कौन भुगतेगा खामियाजा

    अप्रैल के दूसरे सप्ताह में बिहार के सभी पंचायतो में कोरंटीन सेंटर बनाया गया था। कॉन्सेप्ट था कि बाहर से लौटे लोग पहले यहां 14 रोज तक रहेंगे, फिर घर जायेंगे। चूंकी यह सेंटर उनके घर के समीप ही था। लिहाजा, खाना घर से आना था और रहने व साफ-सफाई की व्यवस्था का जिम्मा पंचायत को करना था। पर, हुआं क्या? सभी प्रवासी कामगार सीधे घर चले गये। उस वक्त सभी बुद्धिजीवी चुप थे। कारण ये कि इस वर्ष के अंत में विधानसभा का चुनाव होना है। वोट खिसकने का डर है। इसके बाद अगले वर्ष के अप्रैल में स्थानीय निकाय का चुनाव होना है। लिहाजा, चुप रहना मुनासिब समझा गया। अब वहीं तथाकथित बुद्धिजीवी इसके लिए पुलिस, प्रशासन और सरकार को दोषी बता रहें है। कोई समझने को तैयार नहीं है कि यदि हालात बेकाबू हो गया तो खामियाजा किसको भुगतना पड़ेगा? दरअसल, कोरोना वायरस के संक्रमण का खतरा एक समाजिक समस्या है। इस चुनौती से निपटने के लिए मिल कर प्रयास करने की जरुरत है। महामारी के इस महाकाल मे राजनीति से इतर हट कर काम करने की जरुरत आन पड़ी है।

    राजनीति की विवशता

    प्रजातंत्र में राजनीति की विवशता देखिए। कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पहले कहा गया कि जो जहां है, वहीं रहेगा। बाद में पता चला कि प्रवासियों की संख्या लाखो में है। यानी ये वो लोग है, जो राजनीति की धारा मोड़ देने की माद्दा रखते है। नतीजा, विपक्ष टूट पड़ा और सरकार पलटी मार गई। अब प्रवासियों को लाने की तैयारी हो रही है। राजनीतिक नफा नुकसान के बीच जीवन के मायने बदल गये। बुद्धिजीवियों के सवालो का अंदाज बदल गया। पर, जीवन पर मंडरा रही कोरोना वायरस का खतरा आज भी बरकरार है। बल्कि, संक्रमण के तेजी से फैलने का खतरा पहले से अधिक बढ़ गया है। ऐसे में बड़ा सवाल ये कि क्षणिक राजनीतिक लाभ हेतु, पूरे बिहार को संकट में डालना कितना उचित होगा?

  • संक्रमण की रोकथाम पर भारी है वोट की राजनीति

    संक्रमण की रोकथाम पर भारी है वोट की राजनीति

    सोशल डिस्टेंस को तोड़ना सेवा नही

    KKN न्यूज ब्यूरो। सुबह के दस बजने को था। गांव के चौराहे पर एक बाइक आकर रूक गई। मुंह पर मास्क लगाये और हाथो में एक बड़ा सा झोला लिए, दो लोग बाइक से उतरते है और वहां पर खड़े एक अधेड़ व्यक्ति को कपड़े से बना एक मास्क और एक छोटा सा साबुन थमा देते है। फिर क्या था…? दूर खड़े लोग भी पास आ गये और अपने-आपने हिस्से का मास्क और साबुन की मांग करने लगे। पूछने पर पता चला कि ये पड़ोसी गांव के समाजसेवी है और गरीबो को मुफ्त में मास्क बांटने आयें हैं। वहीं खड़ा उनका दूसरा साथी सोशल मीडिया पर लाइव शुरू कर चुका था। खैर…
    देखते ही देखते लोगो की भीड़ जुट गई। मास्क कम पड़ने लगा। अब लोग गुथ्थम-गुथ्था पर उतारू होने लगे थे। सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की किसी को परवाह नहीं था। सभी को मुफ्त का मास्क और साबुन चाहिए ही चाहिए। भीड़ बढ़ता ही जा रहा है। समाज सेवियों को अब यहां से निकलने की कोई जुगत, दिखाई नहीं पड़ रहा था। ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग याद आई और लोगो को दूर-दूर खड़ा रहने को कहा जाने लगा। पर, कोई सुनने को तैयार नहीं है। भीड़ बढ़ता ही जा रहा है। लोग एक दूसरे को रगड़ कर अपना हिस्सा लेने पर अमादा हो चुकें हैं। अब इसे आप क्या कहेंगे? समाज की सेवा या संक्रमण फैलाने का एक मौका?

    बिहार के गांवो में इस तरह का नजारा गाहे-बेगाहे देखने को मिल जाता है। ऐसे लोगो को कोरोना वायरस के संक्रमण फैलने की कोई परवाह नहीं है और नाही लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंस के टूटने की परवाह है। इनको सिर्फ अपना चेहरा चमकाना है। मदद की आर में खुद का ब्रेंडिंग करना है। अखबार में फोटो छपबाना है। संक्रमण फैलता है, तो फैले… इन्हें तो सिर्फ अपनी बाहबाही चाहिए। इन्हें तो यह भी नही पता है कि ये अनजाने में खुद के लिए और खुद के परिवार के लिए भी संक्रमण का खतरा मोल रहें है।
    दरअसल, इस वर्ष के आखरी तिमाही में बिहार विधानसभा का चुनाव होना है और इसके कुछ ही महीने बाद वर्ष 2021 के अप्रैल में पंचायत के चुनाव होने है। बेचैनी की असली वजह, यही है। खतरा संक्रमण का नही है। बल्कि, असली खतरा तो चुनाव हारने का है। सरकार चिंता में है। विपक्ष चिंता में है। कोराना काल के इस लॉकडाउन को भूनाने की कोशिशे शुरू हो चुकीं है। बिहार के प्रवासी मजदूर को साधने की कोशिश पहले से चल रही थी। अब बिहार से बाहर पढ़ने गये छात्र भी मुद्दा बनने लगा है। आने वाले दिनो में बेरोजगारी और भूख बड़ा मुद्दा बन जाये तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा।
    दरअसल, चिंता इस बात की नहीं है कि संक्रमण को फैलने से कैसे रोका जाये? बल्कि, चिंता इस बात की है कि अपने समर्थको की संख्या को कैसे बढ़ाया जाये? कोविड-19 से मर रहे लोगो की चिंता नहीं है। बल्कि, मरने वाले परिवार को साधने की चिंता है। लब्बोलुआब ये है कि जब जिन्दगी मौत के साये में हो… तब भी हमारे सियासतदान, नफा- नुकसान की राजनीति से इतर हटने को तैयार कयों नहीं होते है?

  • ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ओलावृष्टि की मार

    ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर ओलावृष्टि की मार

    गेंहूं के फसल को सर्वाधिक नुकसान

    KKN न्यूज ब्यूरो। गेंहूं की तैयार हो चुकी फसल की कटनी और दौनी का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि ओलावृष्टि से किसानो के अरमान चकनाचूर हो गये। आसमान से आफत की ऐसी बरसात हुई, जिसमें सिर्फ गेंहूं ही नही? बल्कि, खेतो में खड़ी मक्का और सब्जी की फसल को, थूर कर रख दिया। आम और लीची का मंजर भी नहीं बचा। गांव में अब किसान कहने लगें हैं कि लॉकडाउन की मार तो झेल भी लें। पर, फसल को हुई नुकसान को कैसे झेले?

    ओलावृष्टि

    उत्तर बिहार के कई जिलो में अप्रैल के दूसरे और तीसरे सप्ताह में गरज के साथ हुई बारिश और ओलावृष्टि ने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था को बिगाड़ कर रख दिया है। शिवहर जिला से सटे मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर में तबाही का मंजर कुछ ज्यादा ही है। बेलाहीलच्छी गांव के विनोद कुमार उर्फ शर्माजी कहतें है कि आसमान से गिरी पत्थर से गेंहूं का 50 प्रतिशत दाना खेत में ही झड़ गया। नन्दना के अरुण कुमार राय ने बताया कि उनके गांव में गेंहूं और करैला की फसल पूरी तरह से तबाह हो गया है। मालिकाना के दीपक सिंह और खरारू गांव के मोहन राय भी गेंहूं की फसल के बर्बाद होने से परेसान है।
    ओलावृष्टि में सिर्फ फसल को तबाही हुई है, ऐसी बात नहीं है। बल्कि, आसमान से गिरे 200 ग्राम और इससे भी बड़े पत्थर से मकान को भी बहुत नुकसान हुआ है। गंगटी के रामजन्म साह बतातें हैं कि उनके घर का एसवेस्टस सात जगहो पर टूट गया है। गंगटी बाजार के कई दुकानो पर रखे एसवेस्टस को भी काफी नुकसान होने की खबर आई है। गंगटी से सटे सीतामढ़ी जिला अन्तर्गत रुन्नीसैदपुर थाना के कुम्हरार और इसके आसपास के गांवों में हुई ओलावृष्टि से लोगो की कमर टूट गई है। सहजपुर के किसान नीरज कुमार बतातें हैं कि लॉकडाउन से जितना नुकसान नहीं हुआ। उससे अधिक नुकसान तो ओलावृष्टि से हो गया।

  • बिहार से बाहर लॉकडाउन में फंसे मजदूर, सरकार से कैसे लें मदद

    बिहार से बाहर लॉकडाउन में फंसे मजदूर, सरकार से कैसे लें मदद

    बिहार की सरकार बाहर फंसे मजदूरो को दे रही है एक हजार रुपये

    KKN लाइव न्यूज। बिहार सरकार ने लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रदेशो में फंसे प्रवासी मजदूरो की मदद कर रही है। सरकार ने ऐसे मजदूरो की पहचान करके उनके खाते में तत्काल एक हजार रुपये की मदद देने की घोषणा कर दी है। प्रवासी बिहारी मजदूर बिहार सरकार से कैसे एक हजार रुपये प्राप्त करें? इसको लेकर मजदूरो में कन्फ्यूजन हैं और जानकारी के अभाव में अधिकांश मजदूर सरकार के इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहा है। आइए सहायता राशि प्राप्त करने की पूरी विधि जानते हैं।

    बिहार सरकार से ऐसे प्राप्त करें सहायता

    सबसे पहले aapda.bih.nic.in पर लॉगिन करें। चाहे तो आप ऐप भी डाउनलोड कर सकते हैं। यह योजना केवल उन्हीं लोगों के लिए है जो बिहार राज्य के निवासी हैं और बिहार राज्य से बाहर कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन में फसें हुए हैं। लाभार्थी के पास आधार कार्ड होना अनिवार्य है। लाभार्थी के नाम से बैंक खाता, जो बिहार राज्य में स्थित किसी बैंक के ब्रांच में होना अनिवार्य है। कयोंकि, इसके बिना आपको इस योजना का लाभ नहीं मिलेगा।

    ऐसे करें अपना रजिस्टेशन

    सबसे पहले aapda.bih.nic.in पर लॉगिन करें। इसके बाद बैंक अकाउंट और आईएफसी कोड सहित मांगी गई सभी जानकारी लोड कर दें। लाभार्थी को अपना सेल्फी भी डालना होगा। इस फोटो का आधार के डेटाबेस से मिलान होगा। एक आधार संख्या पर एक हीं रजिस्ट्रशन होगा। इसके बाद सबमिट करते ही आपके मोबाइल पर एक ओपीटी आयेगा। इस ओपीटी को सबमिट करते ही आप लाभार्थी की सूची में शामिल हो चुके होते है। ध्यान रहे कि सरकार के द्वारा एक हजार रुपये की सहायता राशि सिर्फ आपके बैंक खाता में हीं भेजा जायेगा।

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  • बिहार का सीवान बना कोरोना का हॉटस्पॉट

    बिहार का सीवान बना कोरोना का हॉटस्पॉट

    सीवान में मिले कोरोना के 29 मामले

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार में कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं। बिहार में अभी तक 64 लोगो में कोरोना की पुष्टि हो चुकी है। इसमें से अकेले सीवान के 29 लोग शामिल है। हालांकि, इसमें से पांच ठीक भी हुयें है। लिहाजा, सीवान को बिहार का वुहान कहा जाने लगा है। सरकार ने सीवान को कोरोना संक्रमण के हॉटस्‍पॉट के रूप में चिन्हित करके जिला को सील कर दिया है।

    अस्पताल से भागी संदिग्ध

    पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्‍पताल में भर्ती सीवान की एक संदिग्‍ध महिला मरीज अस्‍पताल से भाग गई है। संदिग्ध के अस्पताल से भागने की खबर मिलते ही प्रशासनिक महकमे में हड़कंप मच गया। पुलिस ने मरीज की तलाश शुरू कर दी है। किंतु, रविवार की दोपहर बाद तक उसका पता नहीं चल सका है। इस बीच सरकार ने एहतियातन शहर और ग्रामीम क्षेत्रों की कई सड़कों को सील कर दिया गया है।

    ड्रोन से हो रही है निगरानी

    बिहार में कोरोना पॉजिटिव मामलों की संख्या बढ़ कर 64 हो गई है। इनमें सीवान के 29 मामले शामिल हैं। बिहार में कोरोना के इस हॉटस्‍पॉट पर राज्‍य सरकार की खास नजर है। यहां लॉकडाउन का सख्‍ती से पालन कराया जा रहा है। सीमाएं सील कर दी गईं हैं तथा ड्रोन से निगरानी की जा रही है। कई सड़कों को ग्रामीणों ने बांस-बल्ला बांध कर स्वयं से सील कर दिया है। बाहरी लोगों के प्रवेश पर पूर्ण रूप से रोक लगा दी गई है। शहर के पुरानी बाजार, पुरानी मस्जिद, काजी बाजार की ओर जाने वाली सड़क को भी ग्रामीणो ने बांस-बल्ला से घेर कर सील कर दिया है।

  • नेपाल बॉर्डर पर कोरोना साजिश के मिले संकेत

    नेपाल बॉर्डर पर कोरोना साजिश के मिले संकेत

    बिहार के ग्रामीण इलाके में वायरस फैलाने की तैयारी

    जालिम मुखिया

    KKN न्यूज ब्यूरो। नेपाल की सीमा से सटे बिहार के कई जिलो में कोरोना वायरस को लेकर जो खबर आई है, वह चिंता पैदा करने वाली है। भारत-नेपाल की सीमा से सटे बिहार के जिलो में संदिग्ध गतिविधियों की खबर के बाद हड़कंप मच गया है। दरअसल, एसएसबी ने बिहार पुलिस के आलाधिकारी को पत्र लिख कर अलर्ट किया है कि नेपाल में बैठे जालिम मुखिया ने बिहार के सीमावर्ती जिला में कोरोना फैलाने की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। एसएसबी ने यह पत्र पश्चिम चंपारण के डीएम और एसपी को लिखा है।

    कौन है जालिम मुखिया

    आपके मन में सवाल उठने लगा होगा कि यह जालिम मुखिया है कौन? दरअसल, एसएसबी ने जो पत्र लिखा है कि उसमें कहा गया है कि नेपाल में बैठा जालिम मुखिया अवैध हथियारो का तस्करी करता है और सीमावर्ति इलाके में सक्रिया रहता है। हालांकि, अन दिनो वह कोविड-19 वायरस को बिहार के ग्रामीण इलाके में फैलाने पर काम कर रहा है। कॉग्रेस ने इसे गंभीर मामला बतातें हुए बिहार सरकार से सीमा सील करने की मांग की है। प्रशासन भी हरकत में आ गया है। इस बीच बिहार पुलिस के आलाधिकारी इसे एक पुराना पत्र बता कर मामले को गंभीरता लेते हुए जांच करने की बात कह रहें है। किंतु, यदि एसएसबी का अनुमान सही निकला तो यह नेपाल की सीमा से सटे बिहार के गांवो के लिए बड़ा खतरा बन सकता है।