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  • इन कारणो से है मुजफ्फरपुर के लीची की विशिष्ट पहचान  

    इन कारणो से है मुजफ्फरपुर के लीची की विशिष्ट पहचान  

    अपनी खास सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनिया में विशिष्ट पहचान रखने वाले भारत की अधिकांश बड़ी शहरो की पहचान, वहां मिलने वाले किसी न किसी फल से जुड़ी हुई है। मिशाल के तौर पर जब हम हिमाचल प्रदेश या कश्मीरर की बात करते हैं। तो, हमारे जेहन में वहां मिलने वाली सेब की आकृतियां उभरने लगती है। यही बात केरल के संदर्भ में करें, तो नारियल और काजू का फल बरबस ही जेहन में आ जाता है। संतरा के लिए मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश का नाम कौधता है। केला की बात होते ही महाराष्ट्र की याद आने लगती है। कहतें हैं कि जलवायु और भूमि की उपयोगिता के कारण इन राज्यों की अर्थ व्यवस्था में फलों की महत्वूमपर्ण भूमिका से इनकार नही किया जा सकता है। इसी प्रकार उत्तर बिहार का एक प्रमुख शहर है मुजफ्फरपुर। इसको यानी मुजफ्फरपुर को देश दुनिया में लीची जोन के रूप जाना जाता है। मुजफ्फरपुर की लीची इतना प्रसिद्ध क्यों है?

    उपयुक्त जलवायु है कारण

    KKN न्यूज ब्यूरो। मुजफ्फरपुर और इसके निकटवर्ती क्षेत्र की भूमि और जलवायु लीची के लिए उपयुक्त माना जाता है। यही कारण है कि आज समूचे भारत में लीची उत्पादन का 90 प्रतिशत पैदावार उत्तर बिहार में होता है। इसमें 80 प्रतिशत लीची का उत्पादन अकेले मुजफ्फरपुर में होता है। लीची के 10 प्रतिशत उत्पादन चंपारण, सीतामढ़ी, समस्तीतपुर, वैशाली और भागलपुर में होता है। वैसे भारत के पश्चिम बंगाल के मालदह, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का देहरादून और सहारनपुर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों  में लीची का थोड़ा-बहुत उत्पादन होता है। विगत तीन दशक में लीची के उत्पादन में डेढ़ से दो गुणा की वृद्धि हुई है। हालांकि, कोरोना की वजह से पिछले दो वर्षो में लीची उत्पादक किसान घाटे में है।दूसरा ये कि लीची पर आधारित उद्योग नहीं होने से यहां के लीची उत्पादक किसान मन मसोस कर रह जातें है। लीची के स्टोरेज व ट्रांसपोटेशन की दिशा में भी सरकार की बेरूखी से किसान हतोत्साह होने लगें हैं।

    स्पेडेंसी परिवार का है लीची

    लीची का वैज्ञानिक नाम ‘चाई नेसिंस नेनंस’ है। बनस्पति शास्त्र में इसको स्पेडेंसी परिवार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। इसकी उत्पत्ति चीन से हुई माना जाता है। जानकार बतातें है कि पहली शताब्दी के आसपास लीची की खेती सर्वप्रथम दक्षिण चीन में हुई थी। इसका पेंड़ उष्ण कटिबंधियो क्षेत्र में पाया जाता हैं। पहली शताब्दी में दक्षिण चीन से प्रारंभ होने वाली लीची की खेती आज उत्तर भारत की प्रमुख पैदावर बन चुका है। इसके अतिरिक्त थाइलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, और फ्लोरिडा में भी लीची की खेती होती है। हालिया दशका में पाकिस्तान, दक्षिण ताइवान, उत्तरी वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका में के कुछ हिस्से में लीची की खेती होने लगी है।

    लूचू से लीची का सफर

    विशेषज्ञ इस लुभावने फल की जन्मिस्थंली चीन को मानते हैं, कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि किसी पर्यटक के माध्यकम से लीची, चीन से भारत में आयी होगी। चीन के लूचू द्वीप में इसका अत्यधिक उत्पादन होता था। लगता है लूचू से ही इस फल का नाम लीची पड़ा होगा। इसके पेड़ की ऊंचाई 4 से 12 मीटर तक होती है। फरवरी में पेड़ पर मंजर निकल आती है और मार्च में फल दिखाई पड़ने लगते हैं। वैसे यह रस भरी लीची 15 मई तक पकना शुरू हो जाता हैं।

    पारिवारिक संबंधो का प्रतीक है लीची

    लीची को शर्बत, सलाद और आइसक्रीम के साथ खाने का रिवाज़ रहा है। चीन में इसे कई मांसाहारी व्यंजनों के साथ खाने की परंपरा रही है। चीनी संस्कृति में लीची का महत्वपूर्ण स्थान है। चीन में यह घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की प्रतीक माना जाता है। अन्य फलो की तरह लीची में कई पौष्टिक तत्वों का भंडार है। इसमें विटामिन सी, पोटेशियम और प्राकृतिक शक्कर पाया जाता है। इसमें प्रयाप्त मात्रा में पानी पाया जाता है। गौर करने वाली बात ये है कि यह फल गर्मी का फल है और गर्मी के समय शरीर में पानी के अनुपात को संतुलित रखने में लीची की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक मोटो अनुमान के मुताबिक करीब दस लीची से हमें लगभग 65 कैलोरी उर्जा मिलती हैं। इसके अतिरिक्त लीची में कैल्शियम, फोस्फोरस व मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स पाया जाता हैं। जो हमारे शरीर की हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक माना गया हैं। लीची का प्रमुख पोषक तत्व कार्बोहाइट्रेट है।

    लीची में पाए जाने वाला तत्व

    लीची के पके फलो का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि इसमें औसतन 15.3 प्रतिशत चीनी, 1.15 प्रतिशत प्रोटीन और 116 प्रतिशत अम्ल पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह फल फासफोरस, कैल्शियम, लोहा, खनिज-लवण और विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्त्रोत होता है। लीची में जल की मात्रा अत्यशधिक होती है। इसके एक फल में 77. 30 प्रतिशत गुद्दा होता है। गुद्दा में 30. 94 प्रतिशत जल पाया जाता है। लीची में विटामिन C अधिक पाया जाता है। यह हमारे त्वचा और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करता है। इतना ही नही बल्कि लीची खाने से शरीर का रक्त बिकार कम होने लगता है। रीसर्च से पता चला है कि लीची में ब्रेस्ट कैंसर को रोकने की विशेषता पाई जाती है। लीची में डाएट्री फाइबर अच्छी मात्रा में पाया जाता हैं। यह हमारे पाचनतंत्र को दुरुस्त करता है। लीची एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेट भी होता हैं। जो हमारे शरीर को बिमार होने से रोकता है। लीची खाने से शरीर का ब्लड प्रेशर स्थिर रहता है। लीची ह्रदय की धड़कन को मजबूती देता है।

    लीची की किस्में

    लीची की अनेक किस्मे हैं। मुजफ्फरपुर में रोज सेंटेड, शाही, चाइना और बेदाना किस्म की लीची मिलता हैं। मुजफ्फरपुर में लीची को देशी रसगुल्ला भी कहा जाता है। व्यांपारिक दृष्टि से लीची की बागवानी बहुत ही लाभप्रद है। जानकार बतातें हैं कि लीची के बगिचो से किसान को प्रति हेक्टेरयर बीस हजार रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है। कहतें हैं कि 70 के दशक में मुजफ्फरपुर के करीब 1,330 हैक्टेयर में लीची का बगान हुआ करता था। चालू दशक में यह बढ़ कर 12,667 हैक्टेयर तक पहुंच चुका है। किंतु, इस क्रम में उत्पादन का नही बढ़ना चिंता का कारण है। जानकार बतातें हैं कि 70 के दशक में जहां तकरीबन 5,320 मिट्रिक टन सालाना लीची का उत्पादन होता था। वही, चालू दशक में यह बढ़ कर एक लाख 50 हजार मिट्रिक टन तक पहुंच चुका है।

    फलो की छटनी करती महिलाएं

    लीची का कारोबार

    मुजफ्फरपुर में लीची का बाजार उपलब्ध नही होने से किसान इसके व्यापार के नाम पर मिडल मैन के हाथो पिसने को मजबूर हैं। व्यापार के नाम पर ऐसे लोग अक्सार किसानों को चकमा देकर स्वयं अधिक मुनाफा कमा लेते है। कई बार किसानो को जल्दी बाजी के कारण अधिक नुकसान उठाना पड़ जाता है। क्योंकि लीची पकने के बाद इसका स्टोर करने की सुविधा यहां उपलब्ध नही है। बतातें है कि 90 के दशक में मुजफ्फरपुर से लीची का विदेशो में निर्यात शुरू हुआ था। इस क्रम में यहां की लीची इंगलैंड, नीदरलैंड, फ्रांस, स्पेन, दुबई व अन्य कई गल्फ कंट्री सहित नेपाल को भेजी जाती थी। किंतु, हाल के दिनो में कतिपय कारणो से इसमें कमी आई है और अब विदेश के नाम पर नेपाल और बंगनादेश तक ही मुजफ्फरपुर की लीची सीमट कर रह गई है।

  • मुजफ्फरपुर की जलवायु लीची के लिए बन गया वरदान

    मुजफ्फरपुर की जलवायु लीची के लिए बन गया वरदान

    कौशलेन्द्र झाबिहार का एक प्रमुख शहर है मुजफ्फरपुर। इसको उत्तर बिहार की अघोषित राजधानी भी कहा जाता है। हालांकि, देश- दुनिया में मुजफ्फरपुर की पहचान लीची जोन के रूप में बन चुका है। मुजफ्फरपुर और इसके निकटवर्ती क्षेत्र की भूमि और जलवायु लीची के लिए बेहद ही उपयुक्त माना गया है। यही कारण है कि आज समूचे भारत में लीची उत्पादन का 90 प्रतिशत पैदावार पर उत्तर बिहार का एकाधार है और इसमें 80 प्रतिशत लीची का उत्पादन अकेले मुजफ्फरपुर में होता है। बिहार में मुजफ्फरपुर के अतिरिक्त चंपारण, सीतामढ़ी, समस्तीतपुर, वैशाली और भागलपुर में भी लीची की खेती की जाती है।

    इन जगहो पर होती है खेती

    लीची एक ऐसा फसल है, जिसका उत्पादन कमोवेश पूरी दुनिया में की जाती है। बिहार के अतिरिक्त भारत के पश्चिम बंगाल के मालदा, उत्तराखंड के देहरादून और सहारनपुर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों  में भी लीची का थोड़ा-बहुत उत्पादन होता है। अध्ययन से पता चला है कि पहली शताब्दी में सर्व प्रथम दक्षिण चीन में लीची की खेती की गई थी। कालांतर में इसका क्षेत्र विस्तार हुआ और आज उत्तर भारत के अतिरिक्त थाइलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, और फ्लोरिडा तक इसके खेती का फैलाव हो चुका है। पिछले दो दशक में पाकिस्तान, दक्षिण ताइवान, उत्तरी वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका में भी लीची की खेती शुरू हो चुकी है।

     घाटे में है  लीची का पैदावार

    कृषि विभाग से प्राप्त जानकारी के मुताबिक 70 के दशक में मुजफ्फरपुर के करीब 1,330 हैक्टेयर जमीन पर लीची का बगान था। जो, आज बढ़ कर 12,667 हैक्टेयर तक पहुंच चुका है। जानकार बतातें हैं कि 70 के दशक में जहां तकरीबन 5,320 मिट्रिक टन सालाना लीची का उत्पादन होता था। वही, चालू दशक में यह बढ़ कर  एक लाख 50 हजार मिट्रिक टन तक पहुंच चुका है। बावजूद इसके लीची उत्पादक किसान लगातार घाटे में है। बतातें है कि 90 के दशक में मुजफ्फरपुर से लीची का विदेशो में निर्यात शुरू हुआ था। इस क्रम में यहां की लीची इंगलैंड, नीदरलैंड, फ्रांस, स्पेन, दुबई व अन्य कई गल्फ कंट्री सहित पड़ोसी देश नेपाल को भेजी जाती थी। किंतु, हालिया वर्षो में कतिपय कारणो से इसमें कमी आई है और अब विदेश के नाम पर नेपाल और बंगनादेश तक ही मुजफ्फरपुर की लीची सीमट कर रह चुकी है।

    लीची पर आधारित उद्दोग

    बात उत्तर बिहार की करें तो विगत तीन दशक में यहां लीची के उत्पादन में करीब डेढ़ गुणा की वृद्धि हुई है। लीची की अनेक किस्मे हैं। अकेले मुजफ्फरपुर में रोज सेंटेड, शाही, चाइना और बेदाना किस्म की लीची मिलता हैं। व्यांपारिक दृष्टि से लीची की बागवानी बहुत ही लाभप्रद है। जानकार बतातें हैं कि लीची के बगिचो से किसान को प्रति हेक्टेयर बीस हजार रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है। किंतु, प्रकृतिक आपदा की वजह से ऐसा हो नहीं पाता है। दूसरा ये कि लीची पर आधारित कोई उद्योग नहीं होने से यहां के लीची उत्पादक किसान आर्थिक बदहाली का सामना कर रहें है। लीची के उत्पादन पर करीब 90 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला मुजफ्फरपुर में लीची के स्टोरेज और ट्रांसपोटेशन की अभी तक कोई कारगर व्यवस्था बहाल नहीं हो सकी है। सरकार की बेरूखी से लीची उत्पादक किसान हतोत्साह होने लगें हैं। मुजफ्फरपुर के एक लीची किसान नीरज कुमार बतातें हैं कि सरकार लीची से जूस बनाने का उद्दोग लगा दे, तो किसानो को इसका लाभ मिलने लगेगा। इसी प्रकार लीची के लिए कोल्डस्टोर और लीची के ट्रांसपोटेशन के लिए एसी कोच की व्यवस्था कर दे, तो आमदनी दोगुणी हो सकती है।

    लीची में मौजूद है पौष्टिक तत्व

    लीची की खेती सिर्फ कमाई का जरिया नहीं है। बल्कि, इसे सेहत का वरदान भी कहा जाता है। लीची में पौष्टिक तत्वों का भंडार माना जाता है। इसमें भरपूर विटामिन सी, पोटेशियम और प्राकृतिक शक्कर पाया जाता है। साथ ही इसमें पानी की मात्रा भी पर्याप्त होती है। गरमी में खाने से यह शरीर में पानी के अनुपात को संतुलित रखने में मददगार साबित होता है। कहा जाता है कि मात्र दस लीची खाने से करीब 6.5 कैलोरी उर्जा मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त लीची में कैल्शियम, फोस्फोरस व मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स पाये जातें हैं। यह हमारे शरीर की हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक माना गया हैं। लीची में प्रमुख पोषक तत्व कार्बोहाइट्रेट है। लीची के पके फलो का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि इसमें औसतन 15.3 प्रतिशत शक्कर, 1.15 प्रतिशत प्रोटीन और 16 प्रतिशत अम्ल पाया जाता है। लीची का फल फास्फोरस, कैल्शियम, लोहा, खनिज-लवण और विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्त्रोत होता है। लीची में जल की मात्रा अत्यशधिक होती है। इसके एक फल में 77.30 प्रतिशत गुद्दा और गूद्दे में 30. 94 प्रतिशत जल पाया जाता है। लीची में विटामिन C अधिक पाया जाता है, जो हमारे त्वचा और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करता है। इतना ही नही बल्कि लीची खाने से शरीर का रक्त बिकार कम होने लगता है। रीसर्च से पता चला है कि लीची में ब्रेस्ट कैंसर को रोकने की विशेषता पाई जाती है। लीची में डाएट्री फाइबर पाया जाता हैं, जो हमारे पाचनतंत्र को मजबूत करता है। लीची एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेट भी हैं, जो हमारे शरीर को बिमार होने से रोकता है। लीची खाने से शरीर का ब्लड प्रेशर स्थिर रहता है। लीची ह्रदय की धड़कन को मजबूती देता है।

    सैपिडेंसी परिवार का है लीची

    वनस्पती शास्त्र में लीची को सैपिडेंसी परिवार का एक महत्वपूर्ण सदस्य बताया गया है। इसका वैज्ञानिक नाम चाइ नेन्सिस है। इसकी उत्पत्ति चीन से हुई माना जाता है। जानकार बतातें है कि लीची की खेती सर्वप्रथम दक्षिण चीन में,  पहली शताब्दी के आसपास शुरू हुई थी। सर्व प्रथम चीन के लूचू द्वीप पर इसका उत्पादन शुरू हुआ था। लूचू से ही इस फल का नाम लीची पड़ा होगा, ऐसी मान्यता है। इसके पेड़ की ऊंचाई 4 से 12 मीटर तक होती है। फरवरी में पेड़ पर मंजर निकलने लगता है और मार्च में दाना बनना शुरू हो जाता है। वैसे यह रस भरी लीची 15 मई तक पकना शुरू हो जाता हैं। इसका पेंड़ उष्ण कटिबन्धों में पाया जाता हैं। चीन में लीची का शर्बत, फ्रूट सलाद और आइसक्रीम के साथ खाने का रिवाज़ रहा है। चीन में इसे मांसाहारी व्यंजनों के साथ भी सम्मिलित किया जाता है। चीनी संस्कृति में लीची का महत्वपूर्ण स्थान है। चीन में यह घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की प्रतीक के रूप में माना जाता है।

  • लीची उत्पादक किसानों की बदल सकती है किस्मत

    लीची उत्पादक किसानों की बदल सकती है किस्मत

    कोका कोला ने बड़ा निवेश करने का लिया निर्णय

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार में लीची के किसानों के लिए अच्छी खबर है। इंडिया की कोका कोला कंपनी ने लीची की खरीद करने के लिए 11 हजार करोड़ रुपए का निवेश करने का निर्णय किया है। कंपनी ने उन्नत लीची परियोजन के तहत राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र और बिहार की संस्था देहात के साथ मिलकर इस पर काम शुरू कर दिया है। बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार ने इसकी पुष्टि कर दी है। इस योजना के तहत करीब 80 हजार लीची उत्पादक किसानों को प्रशिक्षण दिया जाएगा और 30 हजार एकड़ में पुराने लीची बागों का जीर्णोद्धार किया जाएगा।

    लीची को मिला जीआई टैग

    इस योजना के तहत कंपनी ने मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर और वैशाली जिलों में लीची के उत्पादन बढ़ाने का काम करेगी। इसके साथ ही लीची किसानों और इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की बेहतरी के लिए काम होने है। मुजफ्फरपुर में लीची का एक स्टेट ऑफ द आर्ट यानी अत्याधुनिक बाग लगाया जाना है। इसके लीची उत्पादक किसानों को आधुनिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। स्मरण रहें कि सरकार के प्रयास से शाही लीची, जदार्लु आम, मगही पान और कतरनी धान को जी़ आई़ टैग मिल गया है। नतीजा, अब इन फसलो के उत्पाद को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिलना लगभग तय मानी जा रही है।

  • लीची का पौधा लगाने की योजना

    लीची का पौधा लगाने की योजना

    मुजफ्फरपुर। मुजफ्फरपुर को लीची जोन में विकसित करने के लिए राज्य की सरकार ने कमर कस लिया है। सरकार से निर्देश मिलते ही जिला उद्यान विभाग ने जिले के 50 हेक्टेयर जमीन पर चालू वर्ष में लीची का नया पौधा लगाने का लक्ष्य लेकर अधिकारी किसानो से संपर्क साधने की तैयारी में है। बतातें चलें कि सरकार की ओर से विभाग को लीची का पौधा लगवाने का लक्ष्य दिया गया है।
    विभाग की ओर से किसानों को बागवानी से पौधा ले जाने के लिए अपील किया गया है। किसान मुशहरी,मीनापुर और बोचहा में बने विभाग के नर्सरी से लीची का पौधा ले जा सकते हैं। सरकार इसके लिए किसानो को अनुदान राशि भी देगी। पौधा लेने के लिए किसान को जिला उद्यान विभाग में एक आवेदन देना होगा।