टैग: Muzaffarpur

  • मुजफ्फरपुर बना भारत का सबसे प्रदूषित शहर, AQI 306 के साथ ‘बहुत खराब’ श्रेणी में

    मुजफ्फरपुर बना भारत का सबसे प्रदूषित शहर, AQI 306 के साथ ‘बहुत खराब’ श्रेणी में

    KKN गुरुग्राम डेस्क |   बिहार के मुजफ्फरपुर ने शनिवार को भारत का सबसे प्रदूषित शहर होने का खिताब हासिल किया, जहां एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 306 दर्ज किया गया। यह स्तर ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। यह जानकारी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा जारी दैनिक आंकड़ों में सामने आई। मुजफ्फरपुर शनिवार को देश का अकेला ऐसा शहर था जो इस श्रेणी में पहुंचा। यहां प्रमुख प्रदूषक के रूप में पार्टिकुलेट मैटर (PM) 2.5 पाया गया, जो गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है।

    यह खिताब शहर के तीन निगरानी स्टेशनों से प्राप्त औसत AQI डेटा के आधार पर दिया गया। बिहार के किसी अन्य शहर ने भारत के 10 सबसे प्रदूषित स्थानों की सूची में जगह नहीं बनाई।

    मुजफ्फरपुर में वायु गुणवत्ता का खतरनाक स्तर

    AQI 306 का स्तर यह दर्शाता है कि शहर की हवा ‘बहुत खराब’ श्रेणी में है, जिसका लंबे समय तक संपर्क स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकता है। यह विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और उन लोगों के लिए हानिकारक है, जो पहले से ही श्वसन संबंधी बीमारियों से पीड़ित हैं।

    मुजफ्फरपुर में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिए कई कारण जिम्मेदार हो सकते हैं, जैसे:

    • वाहनों से होने वाला उत्सर्जन।
    • कचरे को खुले में जलाना।
    • आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों से होने वाला प्रदूषण।
    • निर्माण स्थलों से धूल का उड़ना और शहरी क्षेत्रों में हरियाली की कमी।

    राजगीर में शुक्रवार को सबसे खराब AQI दर्ज

    दिलचस्प बात यह है कि शुक्रवार को बिहार का ही एक और शहर, राजगीर313 AQI के साथ भारत का सबसे प्रदूषित शहर बना था। यह भी ‘बहुत खराब’ श्रेणी में आता है। यह लगातार दिखाता है कि बिहार के शहरों में वायु गुणवत्ता को लेकर गंभीर समस्याएं मौजूद हैं, जिनका समाधान तत्काल करना जरूरी है।

    दिल्ली का AQI ‘मध्यम’ श्रेणी में

    वहीं, देश की राजधानी दिल्ली, जो आमतौर पर खतरनाक वायु गुणवत्ता के लिए जानी जाती है, ने शनिवार को लगातार दूसरे दिन AQI 174 दर्ज किया, जो ‘मध्यम’ श्रेणी में आता है।

    दिल्ली का यह आंकड़ा 39 निगरानी स्टेशनों में से 31 स्टेशनों के डेटा पर आधारित है। इस सुधार का श्रेय कुछ प्रमुख कारणों को दिया जा सकता है, जैसे:

    • अनुकूल मौसम परिस्थितियां, जैसे तेज हवा।
    • वाहनों और औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए लागू उपाय।
    • पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं में कमी।

    हालांकि दिल्ली की वायु गुणवत्ता अभी भी आदर्श नहीं है, लेकिन पिछले महीनों की तुलना में इसमें सुधार एक सकारात्मक संकेत है।

    AQI और उसकी श्रेणियां

    एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) हवा की गुणवत्ता को मापने और रिपोर्ट करने का एक पैमाना है। यह हवा को छह श्रेणियों में विभाजित करता है:

    • अच्छा (0-50): स्वास्थ्य के लिए कोई खतरा नहीं।
    • संतोषजनक (51-100): संवेदनशील समूहों के लिए मामूली असुविधा।
    • मध्यम (101-200): सांस की तकलीफ वाले लोगों को परेशानी हो सकती है।
    • खराब (201-300): लंबे समय तक संपर्क में रहने पर स्वास्थ्य पर प्रभाव।
    • बहुत खराब (301-400): संवेदनशील समूहों के लिए गंभीर खतरा।
    • गंभीर (401-500): स्वास्थ्य आपातकाल के हालात।

    मुजफ्फरपुर का AQI 306 इसे ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रखता है, जो गंभीर स्वास्थ्य खतरों की ओर संकेत करता है।

    PM 2.5 का स्वास्थ्य पर प्रभाव

    मुजफ्फरपुर की खराब वायु गुणवत्ता का मुख्य कारण PM 2.5 है, जो 2.5 माइक्रोमीटर से छोटे कण होते हैं। ये बेहद खतरनाक हैं क्योंकि ये फेफड़ों में गहराई तक प्रवेश कर सकते हैं। इसके प्रभावों में शामिल हैं:

    • अस्थमा और ब्रोंकाइटिस का बढ़ा हुआ खतरा।
    • फेफड़ों की कार्यक्षमता में कमी।
    • हृदय संबंधी समस्याएं।
    • लंबे समय तक संपर्क से क्रॉनिक श्वसन रोग और यहां तक कि समय से पहले मृत्यु भी हो सकती है।

    इन क्षेत्रों के लोगों को सलाह दी जाती है कि वे मास्क पहनेंबाहरी गतिविधियों से बचें, और घरों में एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें।

    मुजफ्फरपुर और बिहार में प्रदूषण का समाधान

    मुजफ्फरपुर और अन्य शहरों जैसे राजगीर में वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर को देखते हुए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए कुछ प्रभावी उपाय हो सकते हैं:

    1. वाहनों के उत्सर्जन पर नियंत्रण: सार्वजनिक परिवहन, इलेक्ट्रिक वाहनों और कारपूलिंग को बढ़ावा दिया जाए।
    2. कचरे को खुले में जलाने पर प्रतिबंध: प्लास्टिक और अन्य कचरे को जलाने पर सख्त कानून लागू किए जाएं।
    3. औद्योगिक उत्सर्जन का नियमन: उद्योगों के लिए सख्त अनुपालन नियम लागू किए जाएं।
    4. हरित क्षेत्र का विस्तार: शहरों में अधिक पेड़ लगाए जाएं और हरित स्थान विकसित किए जाएं।
    5. सार्वजनिक जागरूकता अभियान: प्रदूषण के खतरों और इसे कम करने के तरीकों के बारे में लोगों को शिक्षित किया जाए।

    सरकार के प्रयास

    केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और स्थानीय प्रशासन वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सक्रिय रूप से कदम उठा रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:

    • AQI निगरानी स्टेशनों का विस्तार।
    • उत्सर्जन नियमों का उल्लंघन करने वाले उद्योगों और निर्माण स्थलों पर जुर्माना।
    • स्वच्छ ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देना।
    • कृषि क्षेत्रों में पराली जलाने को रोकने के लिए बायो-डीकंपोजर का उपयोग।

    हालांकि, इन प्रयासों के बावजूद, मुजफ्फरपुर और राजगीर जैसे शहरों में प्रदूषण के उच्च स्तर यह दिखाते हैं कि और अधिक स्थानीय समाधान की आवश्यकता है।

    मुजफ्फरपुर का भारत का सबसे प्रदूषित शहर बनना नीति निर्माताओं, पर्यावरणविदों और आम नागरिकों के लिए एक गंभीर चेतावनी है। जहां दिल्ली जैसे महानगरों में सुधार देखा जा रहा है, वहीं छोटे शहरों की खराब वायु गुणवत्ता यह बताती है कि प्रदूषण अब केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं है।

    इस चुनौती का समाधान केवल नीतिगत सुधारतकनीकी नवाचार, और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से संभव है। स्थानीय प्रशासन को वायु गुणवत्ता प्रबंधन को प्राथमिकता देनी होगी ताकि नागरिकों के स्वास्थ्य और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।

    जैसे-जैसे प्रदूषण सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है, यह जरूरी है कि हम सभी मिलकर एक स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य के लिए काम करें। मुजफ्फरपुर जैसे शहरों के लिए सामूहिक प्रयास ही इस गंभीर समस्या का समाधान ला सकते हैं।

  • नौ साल की बच्ची के पेट से निकला बालों का गुच्छा, एसकेएमसीएच में दुर्लभ ऑपरेशन

    नौ साल की बच्ची के पेट से निकला बालों का गुच्छा, एसकेएमसीएच में दुर्लभ ऑपरेशन

    KKN गुरुग्राम डेस्क |  श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (SKMCH) में डॉक्टरों ने नौ साल की बच्ची के पेट से बालों का एक बड़ा गुच्छा निकालकर एक दुर्लभ सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम दिया। यह बच्ची साहेबगंज की रहने वाली है और शनिवार को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराई गई थी। बच्ची का हीमोग्लोबिन काफी कम था, वह पिछले दो हफ्तों से भोजन नहीं कर रही थी और गंभीर पेट दर्द से परेशान थी।

    अस्पताल में किए गए एक्स-रे और सीटी स्कैन में पता चला कि बच्ची के पेट में बालों का बड़ा गुच्छा जमा हो गया है। डॉक्टरों ने पहले उसे रक्त चढ़ाकर उसकी स्थिति को स्थिर किया, ताकि वह सर्जरी के लिए तैयार हो सके।

    क्या है इस दुर्लभ बीमारी की वजह?

    एसकेएमसीएच के बाल शल्य चिकित्सा विभाग के प्रमुख, डॉ. अशुतोष कुमार, जिन्होंने अपनी टीम के साथ इस सर्जरी को अंजाम दिया, ने बताया कि बच्ची एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या से पीड़ित है, जिसे ट्राइकोफेजिया (Trichophagia) कहा जाता है। इस स्थिति में व्यक्ति अपने ही बाल खाने लगता है।

    डॉ. कुमार ने बताया कि यह बच्ची लगभग दो साल की उम्र से अपने बाल खा रही थी और यह आदत उसे पिछले सात वर्षों से है। “बाल पचते नहीं हैं और पेट में जमा हो जाते हैं, जिससे वे एक गुच्छे का रूप ले लेते हैं।” मंगलवार को किए गए ऑपरेशन के दौरान, बच्ची के पेट से गुर्दे के आकार के बराबर बालों का गुच्छा निकाला गया।

    सर्जरी के बाद का उपचार और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल

    डॉ. कुमार ने कहा कि यह समस्या केवल शारीरिक नहीं है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है। “हम बच्ची को मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श दिलवाएंगे, ताकि उसकी काउंसलिंग की जा सके और यह आदत छोड़ी जा सके।”

    डॉक्टरों ने बच्ची की स्थिति को स्थिर बताया है, लेकिन उसे कुछ समय तक डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाएगा। डॉक्टरों का कहना है कि ट्राइकोफेजिया जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं अगर समय पर पहचानी न जाएं, तो यह गंभीर शारीरिक समस्याओं को जन्म दे सकती हैं।

    क्या है ट्राइकोफेजिया?

    ट्राइकोफेजिया (Trichophagia) एक दुर्लभ मानसिक स्वास्थ्य समस्या है, जिसमें व्यक्ति अपने ही बाल खाने की आदत विकसित कर लेता है। यह समस्या अक्सर ट्राइकोटिलोमेनिया (Trichotillomania) से जुड़ी होती है, जिसमें व्यक्ति बार-बार अपने बाल तोड़ने या खींचने की प्रवृत्ति रखता है।

    ट्राइकोफेजिया के कारण पेट में बाल जमा होने लगते हैं, जो पाचन तंत्र को बाधित करते हैं और पेट दर्द, भूख में कमी, और पोषण की कमी जैसी समस्याओं का कारण बनते हैं। अगर समय पर इस स्थिति का इलाज न किया जाए, तो यह स्थिति जानलेवा भी हो सकती है।

    सर्जरी की प्रक्रिया

    सर्जरी का नेतृत्व करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि यह ऑपरेशन काफी चुनौतीपूर्ण था। ऑपरेशन से पहले बच्ची का स्वास्थ्य स्थिर करना सबसे जरूरी था, क्योंकि उसका हीमोग्लोबिन काफी कम हो गया था। रक्त चढ़ाने के बाद, बच्ची को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने पेट से बालों का बड़ा गुच्छा सफलतापूर्वक निकाल दिया।

    डॉक्टरों ने यह भी बताया कि ऑपरेशन के दौरान कोई बड़ी जटिलता नहीं आई और बच्ची अब तेजी से स्वस्थ हो रही है।

    अभिभावकों के लिए सतर्कता जरूरी

    डॉ. कुमार और उनकी टीम ने इस घटना के बाद अभिभावकों को सतर्क रहने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि बच्चों की आदतों और व्यवहार पर ध्यान देना बेहद जरूरी है, क्योंकि कई बार ऐसी आदतें, जो सामान्य लगती हैं, गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती हैं।

    “अगर बच्चा बार-बार बाल खींचता है, तोड़ता है, या खाता है, तो यह संकेत हो सकता है कि उसे मानसिक स्वास्थ्य सहायता की आवश्यकता है। समय पर ध्यान देने से ऐसी समस्याओं को बढ़ने से रोका जा सकता है।”

    ट्राइकोफेजिया के संकेत और इलाज

    संकेत:

    1. लगातार बाल तोड़ने या खाने की आदत।
    2. पेट दर्द और पाचन संबंधी समस्याएं।
    3. वजन में कमी और भूख में कमी।
    4. कमजोर स्वास्थ्य, जैसे कि कम हीमोग्लोबिन स्तर।

    इलाज:

    1. मानसिक स्वास्थ्य परामर्श: विशेषज्ञों की मदद से बच्ची की आदतों को बदला जा सकता है।
    2. सर्जिकल हस्तक्षेप: अगर बाल पेट में जमा हो गए हों, तो ऑपरेशन जरूरी हो सकता है।
    3. व्यवहार चिकित्सा (Behavioral Therapy): आदतों को बदलने के लिए प्रभावी तकनीक।

    यह मामला न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एक दुर्लभ घटना को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को गंभीरता से लेना कितना जरूरी है। साहेबगंज की इस बच्ची का सफल इलाज श्री कृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (SKMCH) के डॉक्टरों की टीम की काबिलियत को दर्शाता है।

    यह घटना अभिभावकों के लिए एक चेतावनी भी है कि वे अपने बच्चों की आदतों और व्यवहार पर ध्यान दें। मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को नजरअंदाज करने के बजाय, समय पर सही परामर्श और उपचार से ऐसी गंभीर परिस्थितियों से बचा जा सकता है।

    बच्ची अब डॉक्टरों की निगरानी में है और उसके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए काउंसलिंग की योजना बनाई जा रही है। ऐसे मामलों से यह स्पष्ट होता है कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के बीच गहरा संबंध है, और दोनों का ध्यान रखना समान रूप से महत्वपूर्ण है।

  • पढ़ाई करके रोड पर घूम रहें है, हमे रोजगार चाहिए

    पढ़ाई करके रोड पर घूम रहें है, हमे रोजगार चाहिए

     

  • Loksabha चुनाव 2024 के बारे में क्या सोचते है Laskaripur, Muzaffarpur के लोग

    Loksabha चुनाव 2024 के बारे में क्या सोचते है Laskaripur, Muzaffarpur के लोग

    Loksabha चुनाव 2024 के बारे में क्या सोचते है Laskaripur, Muzaffarpur के लोग…

  • इन कारणो से है मुजफ्फरपुर के लीची की विशिष्ट पहचान  

    इन कारणो से है मुजफ्फरपुर के लीची की विशिष्ट पहचान  

    अपनी खास सांस्कृतिक विरासत के लिए दुनिया में विशिष्ट पहचान रखने वाले भारत की अधिकांश बड़ी शहरो की पहचान, वहां मिलने वाले किसी न किसी फल से जुड़ी हुई है। मिशाल के तौर पर जब हम हिमाचल प्रदेश या कश्मीरर की बात करते हैं। तो, हमारे जेहन में वहां मिलने वाली सेब की आकृतियां उभरने लगती है। यही बात केरल के संदर्भ में करें, तो नारियल और काजू का फल बरबस ही जेहन में आ जाता है। संतरा के लिए मध्यप्रदेश और आंध्र प्रदेश का नाम कौधता है। केला की बात होते ही महाराष्ट्र की याद आने लगती है। कहतें हैं कि जलवायु और भूमि की उपयोगिता के कारण इन राज्यों की अर्थ व्यवस्था में फलों की महत्वूमपर्ण भूमिका से इनकार नही किया जा सकता है। इसी प्रकार उत्तर बिहार का एक प्रमुख शहर है मुजफ्फरपुर। इसको यानी मुजफ्फरपुर को देश दुनिया में लीची जोन के रूप जाना जाता है। मुजफ्फरपुर की लीची इतना प्रसिद्ध क्यों है?

    उपयुक्त जलवायु है कारण

    KKN न्यूज ब्यूरो। मुजफ्फरपुर और इसके निकटवर्ती क्षेत्र की भूमि और जलवायु लीची के लिए उपयुक्त माना जाता है। यही कारण है कि आज समूचे भारत में लीची उत्पादन का 90 प्रतिशत पैदावार उत्तर बिहार में होता है। इसमें 80 प्रतिशत लीची का उत्पादन अकेले मुजफ्फरपुर में होता है। लीची के 10 प्रतिशत उत्पादन चंपारण, सीतामढ़ी, समस्तीतपुर, वैशाली और भागलपुर में होता है। वैसे भारत के पश्चिम बंगाल के मालदह, उत्तराखंड, पश्चिमी उत्तर प्रदेश का देहरादून और सहारनपुर तथा पंजाब के कुछ हिस्सों  में लीची का थोड़ा-बहुत उत्पादन होता है। विगत तीन दशक में लीची के उत्पादन में डेढ़ से दो गुणा की वृद्धि हुई है। हालांकि, कोरोना की वजह से पिछले दो वर्षो में लीची उत्पादक किसान घाटे में है।दूसरा ये कि लीची पर आधारित उद्योग नहीं होने से यहां के लीची उत्पादक किसान मन मसोस कर रह जातें है। लीची के स्टोरेज व ट्रांसपोटेशन की दिशा में भी सरकार की बेरूखी से किसान हतोत्साह होने लगें हैं।

    स्पेडेंसी परिवार का है लीची

    लीची का वैज्ञानिक नाम ‘चाई नेसिंस नेनंस’ है। बनस्पति शास्त्र में इसको स्पेडेंसी परिवार का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना गया है। इसकी उत्पत्ति चीन से हुई माना जाता है। जानकार बतातें है कि पहली शताब्दी के आसपास लीची की खेती सर्वप्रथम दक्षिण चीन में हुई थी। इसका पेंड़ उष्ण कटिबंधियो क्षेत्र में पाया जाता हैं। पहली शताब्दी में दक्षिण चीन से प्रारंभ होने वाली लीची की खेती आज उत्तर भारत की प्रमुख पैदावर बन चुका है। इसके अतिरिक्त थाइलैंड, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका, और फ्लोरिडा में भी लीची की खेती होती है। हालिया दशका में पाकिस्तान, दक्षिण ताइवान, उत्तरी वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका में के कुछ हिस्से में लीची की खेती होने लगी है।

    लूचू से लीची का सफर

    विशेषज्ञ इस लुभावने फल की जन्मिस्थंली चीन को मानते हैं, कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि किसी पर्यटक के माध्यकम से लीची, चीन से भारत में आयी होगी। चीन के लूचू द्वीप में इसका अत्यधिक उत्पादन होता था। लगता है लूचू से ही इस फल का नाम लीची पड़ा होगा। इसके पेड़ की ऊंचाई 4 से 12 मीटर तक होती है। फरवरी में पेड़ पर मंजर निकल आती है और मार्च में फल दिखाई पड़ने लगते हैं। वैसे यह रस भरी लीची 15 मई तक पकना शुरू हो जाता हैं।

    पारिवारिक संबंधो का प्रतीक है लीची

    लीची को शर्बत, सलाद और आइसक्रीम के साथ खाने का रिवाज़ रहा है। चीन में इसे कई मांसाहारी व्यंजनों के साथ खाने की परंपरा रही है। चीनी संस्कृति में लीची का महत्वपूर्ण स्थान है। चीन में यह घनिष्ठ पारिवारिक संबंधों की प्रतीक माना जाता है। अन्य फलो की तरह लीची में कई पौष्टिक तत्वों का भंडार है। इसमें विटामिन सी, पोटेशियम और प्राकृतिक शक्कर पाया जाता है। इसमें प्रयाप्त मात्रा में पानी पाया जाता है। गौर करने वाली बात ये है कि यह फल गर्मी का फल है और गर्मी के समय शरीर में पानी के अनुपात को संतुलित रखने में लीची की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। एक मोटो अनुमान के मुताबिक करीब दस लीची से हमें लगभग 65 कैलोरी उर्जा मिलती हैं। इसके अतिरिक्त लीची में कैल्शियम, फोस्फोरस व मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स पाया जाता हैं। जो हमारे शरीर की हड्डियों के विकास के लिए आवश्यक माना गया हैं। लीची का प्रमुख पोषक तत्व कार्बोहाइट्रेट है।

    लीची में पाए जाने वाला तत्व

    लीची के पके फलो का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि इसमें औसतन 15.3 प्रतिशत चीनी, 1.15 प्रतिशत प्रोटीन और 116 प्रतिशत अम्ल पाया जाता है। इसके अतिरिक्त यह फल फासफोरस, कैल्शियम, लोहा, खनिज-लवण और विटामिन ‘सी’ का अच्छा स्त्रोत होता है। लीची में जल की मात्रा अत्यशधिक होती है। इसके एक फल में 77. 30 प्रतिशत गुद्दा होता है। गुद्दा में 30. 94 प्रतिशत जल पाया जाता है। लीची में विटामिन C अधिक पाया जाता है। यह हमारे त्वचा और हमारे शरीर की प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत करता है। इतना ही नही बल्कि लीची खाने से शरीर का रक्त बिकार कम होने लगता है। रीसर्च से पता चला है कि लीची में ब्रेस्ट कैंसर को रोकने की विशेषता पाई जाती है। लीची में डाएट्री फाइबर अच्छी मात्रा में पाया जाता हैं। यह हमारे पाचनतंत्र को दुरुस्त करता है। लीची एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेट भी होता हैं। जो हमारे शरीर को बिमार होने से रोकता है। लीची खाने से शरीर का ब्लड प्रेशर स्थिर रहता है। लीची ह्रदय की धड़कन को मजबूती देता है।

    लीची की किस्में

    लीची की अनेक किस्मे हैं। मुजफ्फरपुर में रोज सेंटेड, शाही, चाइना और बेदाना किस्म की लीची मिलता हैं। मुजफ्फरपुर में लीची को देशी रसगुल्ला भी कहा जाता है। व्यांपारिक दृष्टि से लीची की बागवानी बहुत ही लाभप्रद है। जानकार बतातें हैं कि लीची के बगिचो से किसान को प्रति हेक्टेरयर बीस हजार रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ प्राप्त हो जाता है। कहतें हैं कि 70 के दशक में मुजफ्फरपुर के करीब 1,330 हैक्टेयर में लीची का बगान हुआ करता था। चालू दशक में यह बढ़ कर 12,667 हैक्टेयर तक पहुंच चुका है। किंतु, इस क्रम में उत्पादन का नही बढ़ना चिंता का कारण है। जानकार बतातें हैं कि 70 के दशक में जहां तकरीबन 5,320 मिट्रिक टन सालाना लीची का उत्पादन होता था। वही, चालू दशक में यह बढ़ कर एक लाख 50 हजार मिट्रिक टन तक पहुंच चुका है।

    फलो की छटनी करती महिलाएं

    लीची का कारोबार

    मुजफ्फरपुर में लीची का बाजार उपलब्ध नही होने से किसान इसके व्यापार के नाम पर मिडल मैन के हाथो पिसने को मजबूर हैं। व्यापार के नाम पर ऐसे लोग अक्सार किसानों को चकमा देकर स्वयं अधिक मुनाफा कमा लेते है। कई बार किसानो को जल्दी बाजी के कारण अधिक नुकसान उठाना पड़ जाता है। क्योंकि लीची पकने के बाद इसका स्टोर करने की सुविधा यहां उपलब्ध नही है। बतातें है कि 90 के दशक में मुजफ्फरपुर से लीची का विदेशो में निर्यात शुरू हुआ था। इस क्रम में यहां की लीची इंगलैंड, नीदरलैंड, फ्रांस, स्पेन, दुबई व अन्य कई गल्फ कंट्री सहित नेपाल को भेजी जाती थी। किंतु, हाल के दिनो में कतिपय कारणो से इसमें कमी आई है और अब विदेश के नाम पर नेपाल और बंगनादेश तक ही मुजफ्फरपुर की लीची सीमट कर रह गई है।

  • मीनापुर के 24 डाटा ऑपरेटर गायब, अनुश्रवण समिति में हुआ खुलाशा

    मीनापुर के 24 डाटा ऑपरेटर गायब, अनुश्रवण समिति में हुआ खुलाशा

    बाढ़ पीडितो की सूचि को संसोधित करने का हुआ निर्णय

    KKN न्यूज ब्यूरो। मुजफ्फरपुर के मीनापुर में बाढ़ की जबरदस्त विभिषिका के बीच प्रखंड में कार्यरत 30 डाटा ऑपररेटर में से 24 का गायब रहना चौका देता है। सोमवार को प्रखंड अनुश्रवण समिति की बैठक में इसका खुलाशा होते ही जन प्रतिनिधियों का आक्रोश फूट पड़ा। विधायक मुन्ना यादव ने इसको गंभीर अपराध बतातें हुए कारवाई की मांग की। इसके बाद समिति ने सर्व सम्मति से प्रस्ताव पास करके लापरवाह डाटा ऑपरेटर पर कारवाई करने का प्रस्ताव स्वीकृत करके जिलाधिकारी को भेज दिया है। दूसरी ओर सीओ ने डाटा ऑपरेटर को प्रतिनियुक्ति पर होने की बात कही।

    इसके अतिरिक्त प्रखंड की 27 पंचायतो को बाढ़ग्रस्त घोषित करने सहित कुल एक दर्जन प्रस्ताव स्वीकृत किय गए। बैठक के हवाले से अंचलाधिकारी रामजपी पासवान ने बताया कि किसानो को फसल सहायता राशि का तत्काल भुगतान करने, बाढ़ पीड़ितो की सूचि में सुधार करने और सामुदायिक किचेन का पिछला सभी बकाया भुगतान करने का निर्णय लिया गया है। समिति ने प्रखंड में चल रहें 12 नाव की संख्या बढ़ा के उसको 20 करने का निर्णय लिया है। इसी तरह पॉलीथिन की 50 हजार शीट उपलब्ध कराने की मांग की गई है।

    ये लोग थे मौजूद

    बैठक में विधायक मुन्ना यादव के अतिरिक्त जदयू अध्यक्ष अभिषेक कुमार, भाकपा के अंचल मंत्री शिवजी प्रसाद, राजद अध्यक्ष उमाशंकर सहनी, मुखिया संघ की अध्यक्ष नीलम  कुमारी, मुखिया कृष्ण कुमार मुन्ना, नागेन्द्र साह, पंसस शिवचन्द्र प्रसाद, जिला पार्षद रघुनाथ राय और अर्जुन कुमार गुप्ता समेत अधिकांश जन प्रतिनिधि मौजूद थें। कृषि पदाधिकारी के बैठक में नहीं आने पर सदस्यों ने नाराजगी प्रकट की है।

    बैठक को लेकर विवाद शुरू

    अनुश्रवण समिति की बैठक को लेकर विवाद शुरू हो गया है। प्रमुख और उपप्रमुख के बैठक में शामिल नहीं होने को लेकर सवाल उठने लगा है। रघई पंचायत के मुखिया चन्देश्वर प्रसाद ने बताया कि सूचना नहीं रहने की वजह से बमुश्किल से आधा दर्जन पंचायत प्रतिनिधि बैठक में शामिल हो सके। मुखिया श्री प्रसाद ने बैठक में बाहरी लोगो के शामिल होने का आरोप लगाते हुए विवाद को गहरा दिया है।

  • मीनापुर की 27 पंचायत बाढ़ की चपेट में

    मीनापुर की 27 पंचायत बाढ़ की चपेट में

    आक्रोशित बाढ़ पीड़ितो ने रघई पंचायत के मुखिया को बनाया बंधक

    KKN न्यूज ब्यूरो। मुजफ्फरपुर के मीनापुर में बूढ़ी गंडक नदी का पानी 27 पंचायतो में तबाही मचा रही है। बाढ़ की कहर के बीच शिवहर स्टेट हाईवे पर आवागमन ठप हो गया है। सड़क पर चार से पांच फीट पानी चढ़ जाने के बाद बड़ी वाहनो का परिचालन रोक दिया गया है। दूसरी ओर बनघारा पावर सब स्टेशन में करीब चार फीट पानी भर जाने के बाद मीनापुर के बड़े इलाके में ब्लैकआउट का खतरा मंडराने लगा है। हालांकि, शनिवार की देर शाम तक बिजली की आपूर्ति जारी है और राहत की खबर ये कि बूढ़ी गंडक नदी का जलस्तर स्थिर हो गया है। इस बीच पिछले पांच रोज से बाढ़ में फंसे लोगो का धैर्य अब जवाब देने लगा है। रघई के आक्रोशित बाढ़ पीड़ितो ने मुखिया चन्देश्वर प्रसाद को बंधक बना लिया और करीब चार घंटा तक हंगामा करते रहे। बाढ़ पीड़ित भोजन और पॉलीथिन देने की मांग कर रहे थे। मुखिया ने बताया कि दोपहर बाद अपने स्तर से दो सामुदायिक किचेन की व्यवस्था करने के बाद लोगो का गुस्सा शांत हुआ। इस बीच पूर्व जिला पार्षद विनोद कुमार शर्मा ने अंचलाधिकारी से मिलकर भटौलिया गांव में फंसे सैकड़ो लोगो तक मदद पहुंचाने की मांग की है। भटौलिया में बाढ़ ने लोगो को घर में कैद रहने को विवश कर दिया है।

    बाढ़ पीड़ित

    प्रशासन का दावा

    मीनापुर की 28 में से 27 पंचायत की तीन लाख से अधिक की आबादी बाढ़ में फंसी हुई है। दूसरी ओर अंचल प्रशासन ने मात्र 92 हजार 500 परिवार के बाढ़ पीड़ित होने और 7,500 परिवार के विस्थापित होने की पुष्टि की है। अंचल प्रशासन ने प्रखंड की छह पंचायत को पूर्ण और 21 पंचायत आंशिक रूप से बाढ़ प्रभावित होने की घोषणा कर दी है। पूर्णरूप से बाढ़ प्रभावित पंचायतो में रघई, हरशेर, नंदना, महदेइया, कोइली और मझौलिया पंचायत शामिल है। अंचलाधिकारी रामजपी पासवान ने बताया कि बाढ़ में फंसे लोगो के लिए 23 नौका चलाया जा रहा है। इसमें 12 सरकारी और 11 निजी नाव शामिल है। बाढ़ पीड़ितो के बीच 2,600 पॉलीथिन शीट बांट दिया गया है। जबकि, 3,030 पॉलीथिन शीट का आबंटन प्राप्त है और इसको शीघ्र ही पीड़ितो तक पहुंचाने का काम जारी है। इसी प्रकार अभी तक अंचल प्रशासन के द्वारा 9 सामुदायिक किचेन चलाने का दावा किया गया है।

  • मीनापुर में कटाव राहत कार्य की डीएम ने की समीक्षा

    मीनापुर में कटाव राहत कार्य की डीएम ने की समीक्षा

    सम्भावित बाढ़ से निपटने के लिए डीएम ने अंचल प्रशासन को दिए कई निर्देश

    KKN न्यूज ब्यूरो। मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी प्रणव कुमार शुक्रवार को मीनापुर के डुमरिया और रघई घाट पहुंच कर कटाव राहत कार्य की समीक्षा की। बूढ़ी गंडक नदी के द्वारा हो रही कटाव की लगातार मिल रही सूचना के बाद डीएम ने स्वयं स्थल का मुआइना  किया। बतातें चलें कि डुमरिया में 400 मीटर और रघई में 300 मीटर की दूरी में कटावरोधी कार्य चल रहा है। डीएम ने बाड़ाभारती गांव के पुकार चौक के समीप बूढ़ी गंडक के कमजोर हो चुके बांध का भी जायजा लिया और मौके पर ही जल संसाधन विभाग के अधिकारी को कई निर्देश दिए।

    कटाव स्थल पर डीएम

    बाढ़ पूर्व तैयारी की समीक्षा

    दोपहरबाद डीएम मीनापुर के अंचल कार्यालय पहुंच कर बाढ़ पूर्व तैयारी की समीक्षा की और बाढ़ आने पर यहां सामुदायिक किचन की व्यवस्था करने और विस्थापितो के बीच तत्काल पोलीथिन वितरण करने का निर्देश अंचलाधिकारी को दिया। डीएम ने मेडिकल टीम को तैयार रहने का आदेश दे दिया है। बाढ़ में फंसे पशुओं को चारा और दवा मुहैय्या कराने के लिए पशु पालन विभाग के अधिकारी को पहले से तैयार रहने का निर्देश दिया गया है। स्मरण रहें कि लगातार हो रही बारिश और बूढ़ी गंडक नदी के खुले तटबंध के कारण मीनापुर में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है।

    डीएम के समीक्षा के दौरान जल संसाधन विभाग के कार्यपालक अभियंता बबन पांडेय, सहायक अभियंता विजय कुमार प्रिंस, बीडीओ अमरेन्द कुमार, सीओ रामजपी पासवान, सीएचसी प्रभारी डॉ. राकेश कुमार, पशु चिकित्सक डॉ. जमा, कनीय अभियंता उमां शंकर पाल भी मौजूद थे।

    चांदपरना के ग्रामीण

     जल संसाधन विभाग की टीम को ग्रामीणो ने खदेड़ा

    इधर, चांदपरना पहुंचने पर जल संसाधन विभाग के अधिकारियों को फजीहत का सामना करना पड़ा। ग्रामीणो ने बांध पर पहुंचने से पहले ही अधिकारी को खदेड़ दिया। जल संसाधन विभाग के अधिकारी चांदपरना के समीप बूढ़ी गंडक नदी के जर्जर तटबंध का मुआइना करना चाहते थे। ग्रामीणो का नेतृत्व कर रहे किसान अनील कुमार और रीषिकेष राज ने बताया कि जब तक किसानो के मुआवजा का भुगतान नहीं हो जाता है। तबतक किसी भी अधिकारी को बांध का निरीक्षण नहीं करने दिया जायेगा। स्मरण रहें कि पिछले तीन दशक से यहां के 100 से अधिक किसान बांध के लिए अधीग्रहित की गई जमीन के बदले मुआवजा की मांग कर रहें है।

  • मीनापुर में बूढ़ी गंडक का तटबंध खुला छोड़ने की असली वजह

    मीनापुर में बूढ़ी गंडक का तटबंध खुला छोड़ने की असली वजह

    अंचल प्रशासन ने लाइफ जैकेट के लिए लगाई गुहार

    KKN न्यूज ब्यूरो। बारिश का मौसम शुरू होते ही बिहार में बाढ़ का खतरा अब नई नहीं रही। किंतु, मुजफ्फरपुर जिला की समस्या इससे इतर है। दरअसल, जिले के मीनापुर प्रखंड में बूढ़ी गंडक नदी का खुला तटबंध यहां की 28 में से 27 पंचायत के लोगो के लिए तबाही का सबब बन चुकी है। जानकार बतातें है कि एक रणनीति के तहत बूढ़ी गंडक नदी की कहर से जिला मुख्यालय को बचाने के लिए मीनापुर को बाढ़ की आगोश में छोड़ दिया है। दूसरी ओर लोगो के असंतोष को दबाने की गरज से प्रशासन ने बाढ़ की खतरो से निपटने का स्वांग शुरू कर दिया है। कहतें है कि बूढ़ी गंडक नदी की जलस्तर में बृद्धि शुरू होते ही अंचल प्रशासन ने कमर कस ली है। बूढ़ी गंडक नदी के जलस्तर में बृद्धि के साथ प्रखंड की 28 में से 27 पंचायत में बाढ़ का पानी फैलने का खतरा मंडराने लगा है। दूसरी ओर अंचलाधिकारी रामजपी पासबान ने बताया कि लोगो को बचाने के लिए तैयारी मुकम्मल है। रिहायसी इलाका में बाढ़ का पानी प्रवेस किया तो वहां की आबादी को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए 12 सरकारी नाव तैयार है। हालात और बिगड़ने पर निजी नाव को काम पर लगाया जायेगा। इसके लिए 17 निजी नाव मालिको से करार हो चुका है। हालांकि, लाइफ जैकेट नहीं है। लाइफ जैकेट के लिए जिला प्रशासन से गुहार लगाई गई है। आपदा विभाग ने यहां के 22 गोताखोर को विशेष ट्रेनिंग देकर आपातकाल के लिए तैयार कर दिया है।

    75 स्थानो पर सेल्टर बनाने की है योजना

    सीओ ने बताया कि विस्थापित हुए एक हजार परिवार के लिए पॉलीथिन स्टॉक है। विस्थापितो के रहने के लिए प्रशासन ने 75 उंचे स्थान को चिन्हित किया है। विस्थापित लोगो के लिए शौचालय व पेयजल के लिए स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग को अलर्ट कर दिया गया है। अंचल प्रशासन ने किसी भी आपातकाल से निपटने के लिए किराना दुकानदार और टेंट हाउस वाले से भी एकरारनामा कर लिया है। उंचे  स्थानो पर सामुदायिक किचेन चलाने के लिए कर्मचारी की तैनाती कर दी गई है।

    पशुचारा और सर्पदंश से निपटने की हुई व्यवस्था

    अंचल प्रशासन के दावो पर एकीन करें तो प्रशासन ने तीन जोन में बांट कर बाढ़ में फंसे पशुओं के लिए चारा और इलाज की व्यवस्था की है। इसके लिए प्रखंड मुख्यालय के अतिरिक्त पशु चिकित्सालय रामपुरहरि और सिवाईपट्टी में पशुओं के चारा व दवा की व्यवस्था की गई है। अधिकारी ने बताया कि पशु चारा के लिए जिला में टेंडर भी हो चुका है। इसी तरह सर्पदंश की दवा के साथ सभी आवश्यक दवाओं के साथ मानव चिकित्सा दल को भी तैयार रहने को कह दिया गया है।

    तीन शिफ्ट में 24 घंटा काम करेगा कंट्रोलरूम

    मीनापुर में बाढ़ आने पर कंट्रौलरूम काम करने लगेगा। पहली बार यहां तीन शिफ्ट में 24 घंटा काम करने की योजना है। पहला शिफ्ट सुबह 6 बजे से 2 बजे तक, फिर 2 बजे से रात के 10 बजे तक और तीसरा शिफ्ट रात के 10 बजे से सुबह 6 बजे तक काम करेगा। इसके लिए कंट्रौल रुम में तीन शिफ्ट में कर्मचारी की प्रतिनियुक्त कर दी गई है। सीओ ने बताया कि सरकार के आपदा संपूष्ठि पोटल पर 86 प्रतिशत लोगो का नाम पहले से दर्ज है। ताकि, बाढ़ से नुकसान हुए फसल आदि का मुआवजा तत्काल उसके खाता में भेज दिया जाये।

  • मीनापुर के घोसौत में बूढ़ी गंडक का खौफ

    मीनापुर के घोसौत में बूढ़ी गंडक का खौफ

    अपने हाथों उजाड़ रहें हैं अपना आशियाना

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्पुरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर के घोसौत गांव में बूढ़ी गंडक नदी का खौफ लोगो के सिर चढ़ कर बोल रहा है। नदी के जलस्तर में मामुली बढ़ोतरी होते ही किनारे बसे लोगो में कटाव का दहशत एक बार फिर से कायम हो गया है। घोसौत गांव के वार्ड संख्या- 13 में रहने वाले कई परिवार अपना आसियाना उजाड़ कर समय रहते सुरक्षित स्थान की ओर पलायन करने लगे है। हालांकि, अभी तक कटाव शुरू नहीं हुआ है। बावजूद इसके अपने हाथो अपना आशियाना उजाड़ रहें मो. शमसेर अ

    घर तोड़ते हुए

    लि ने बताया कि कटाव शुरू होने के बाद बहुत नुकसान हो जायेगा। लिहाजा, समय रहते वह नदी का किनारा छोड़ कर सुरक्षित हो लेना चाहतें हैं। शमसेर मजदूरी करके कुछ रुपये जमा किया था और अब उसी रुपये से गांव के दूसरे जगह पर घर निर्माण कार्य में लगा है। गांव में शमसेर अकेला नहीं है। बल्कि, मो. बच्चा खेनारी, कुसुम खातुन, जनत प्रवीण, मुस्कान खातुन और मो. आलमीन ने भी बूढ़ी गंडक नदी के किनारे से अपना घर तोड़ कर गांव के भीतर शिफ्ट होने की कोशिश में जुटें हैं। आलमीन बतातें है कि पुराने घर को तोड़ कर नया बनाने में लाखो रुपये की बर्बादी है। पर, कटाव की चपेट में आ गए तो कुछ नहीं बचेगा।

    दो दशक से हो रहा है कटाव

    घोसौत के मो. सजमुल ने बताया कि कटाव की वजह से बुढ़ी गंडक नदी करीब चार किलोमीटर के क्षेत्रफल में गांव के रिहायसी इलाका को अपने चपेट में ले चुका है। बतातें चलें कि कटाव का यह सिलसिला पिछले 20 वर्षो से जारी है। मीनापुर में बूढ़ी गंडक नदी के किनारे अनुसूचित जाति और अति पिछड़ी जाति की बड़ आबादी है। इसमें से बड़ी संख्या में लोग साल दर साल होने वाले कटाव की चपेट में आकर तबाह हो चुकें है। हालांकि, गुजिश्ता वर्षो में सरकार के द्वारा कटावरोधी कार्य की गई है। किंतु, लोगो को यह प्रयाप्त नहीं लगता है। लिहाजा, गांव में दहशत है। समाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय मुखिया के पति अजय कुमार ने बताया कि कुछ साल पहले घोसौत में कटाव रोधी कार्य हुआ था। पर, खतरा अभी टला नहीं है। दुसरी ओर अंचलाधिकारी रामजपी पासबान बतातें है कि नदी के बढ़ते जलस्तर पर प्रशासन की पैनी नजर है।

  • कोरोनाकाल की त्रासदी ने छीन ली मासूम की खुशियां

    कोरोनाकाल की त्रासदी ने छीन ली मासूम की खुशियां

    पिता की मौत से एक साथ अनाथ हो गए तीन बच्चे

    KKN न्यूज ब्यूरो। महज 12 वर्ष की उम्र में ही सुहांगी कुमारी हंसना, मुश्कुरान भूल चुकी है। वह अक्सर शून्य को निहारते हुए ठिठक जाती है। कोरोना से पिता की मौत के बाद उसके सभी सपने एक ही झटके में टूट गए। पांचवां वर्ग की सुहांगी को नहीं पता कि अब उसके भविष्य  का क्या होगा? बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर दूर, मीनापुर थाना के दरहीपट्टी गांव की गलियों में किलकारी भरने वाली सुहांगी की खामोशी, कोरोनाकाल के भयावह तस्वीर की तस्दीक कर रही है। यहां सुहांगी अकेली नहीं है। उसके दो छोटे भाई 10 वर्ष का सुधांशू और 7 वर्ष का आर्यन भी है। पिता की मौत के बाद घर में मातमी सन्नाटा पसर चुका है।

    मुसमात

    पति की मौत से टूट चुकी मुसमात रेणु देवी के आंखो से मानो आंसू सूख चुका है। लड़खराती जुबान से वह बताती है कि घर से करीब दस किलो मीटर दूर सिवाईपट्टी में उसके पति अरविन्द कुमार का दुकान था और उनके कमाई से घर का खर्चा चलता था। अब बड़ा सवाल ये है कि इन बच्चो के भविष्य का क्या होगा? अरविन्द के पिता शंकर प्रसाद उम्र के चौथेपन में है। शंकर प्रसाद बतातें है कि अरविन्द उनका माझिल पुत्र था। वह खुद की कमाई से अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहा था। अब इस परिवार की सुधि लेने वाला कोई नहीं है। दावो से इतर सरकार का कोई भी कारिंदा पलट कर देखने नहीं आया।

    ऐसे आया कोरोना की चपेट में

    अरविन्द कुमार की उम्र अभी महज 37 वर्ष की थीं। वह अपने घर से करीब 12 किलोमीटर दूर सिवाईपट्टी बाजार पर एक डाक्टर की निगरानी और दोस्तो की पार्टनरशीप में अल्ट्रासाउउंट का मशीन चला कर अपने परिवार का भरन-पोषण करता था। अचानक 26 अप्रैल को उसको बुखार हो गया। बुखार ठीक नहीं होने पर 2 मई को उसने मीनापुर अस्पताल पहुंच कर कोरोना की जांच करावाई। रिपोर्ट पॉजिटिव था। डाक्टर ने कोरोना संक्रमण की पुष्टि कर दी। इसके बाद एसकेएमसीएच के एक डाक्टर की निगरानी में उसका इलाज शुरू हुआ। किंतु, 11 मई की शाम 4 बजे उसे सांस लेने में दिक्कत होने लगा। डाक्टर की सलाह पर उसको ऑक्सीजन सपोर्ट पर रख दिया गया। अगले रोज 12 मई को हालत और बिगड़ने लगा। डाक्टर की सलाह पर परिजन पटना ले गए। वहां एक निजी अस्पताल में उसको वेंटीलेटर पर रखा गया। उसी दिन करीब 2 बजे में उसकी मौत हो गई।

    सिस्टम में फंसा मुआवजा का पेंच

    सरकार के द्वारा घोषित मुआवजा भुगतान का मामला सिस्टम की उलझनो में फंस कर रह गया है। परिजन मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए भटक रहें है। हालांकि, अस्पताल के द्वारा मृत्यु-प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया है। किंतु, मीनापुर अंचल प्रशासन ने पटना के निजी अस्पताल के द्वारा दी गई मृत्यु प्रमाण-पत्र को मानने से इनकार कर दिया है। मृतक के पिता शंकर प्रसाद बतातें हैं कि अब मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए नए सिरे से 3 जून को पटना नगर निगम में आवेदन दिएं है। बड़ा सवाल ये कि बार-बार पटना कौन जाये? लिहाजा, पीड़ित परिवार के लिए मुआवजा टेढ़ी खीर बन बन चुका है।

  • नलजल योजना में जांच की मांग को लेकर तीन रोज से जारी अनशन समाप्त

    नलजल योजना में जांच की मांग को लेकर तीन रोज से जारी अनशन समाप्त

    कोविड का हवाला देकर प्रशासन ने जबरन तुुुुुुुुड़वाया अनशन

    KKN न्यूज ब्यूरो। मुजफ्फरपुर जिला के मीनापुर प्रखंड मुख्यालय पर अनशन कर रहे घोसौत के दो समाजिक कार्यकर्ता का तीसरे रोज शुक्रवार को प्रशासन ने पुलिस की मदद से अनशन समाप्त करा दिया है। एसडीओ पूवी के द्वारा जारी पत्र के हवाले से बीडीओ अमरेन्द्र कुमार ने बताया कि कोविड- 19 के खतरो के बीच धरना और प्रदर्शन पर रोक है। बीडीओ ने यह भी बताया कि आरोप की जांच पूरी हो गई है और रिपोर्ट उच्चाधिकारी को भेज दिया गया है। गौरकरने वाली बात ये है कि एसडीओ पूवी ने 5 सितम्बर को ही अनशन पर रोक का आदेश जारी कर दिया था। किंतु, यह पत्र 11 सितम्बर को मीनापुर पहुंचा। इस बीच 9 सितम्बर से ही दोनो अनशन पर बैठ चुकें थे।

    गौरकरने वाली बात ये है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ड्रीम प्रोजेक्ट नलजल योजना में गड़बरी का मामला अब तुल पकड़ने लगा है। घटिया पाइप लाइन बिछा कर राशि के बंदरबाट का मामला हो या पेयजल की अनियमित आपूर्ति का मामला। मीनापुर में पिछले तीन रोज से जांच की मांग को लेकर दो युवा समाजिक कार्यकर्ता अनशन पर बैठे थे। मीनापुर अस्पताल के प्रभारी डॉ. राकेश कुमार के मुताबिक अनशकारी डिहाड्रेशन के शिकार होने लगे है। नतीजा, शुक्रवार की सुबह दोनो को स्लाइन दिया गया। अनशनकारियों को स्थानीय प्रशासन की नीयत पर भरोसा नहीं है।

    9 सितम्बर से अनशन पर बैठे घोसौत गांव के समाजिक कार्यकर्ता राकेश कुमार सहनी और मो. शमसुल डीएम से आश्वासन मिलने के बाद अनशन समाप्त करना चाहते थे। किंतु, प्रखंड प्रशासन कोविड का हवाला देकर अनशन समाप्त कराने के लिए पुलिस की मदद ले रहे थे। बतातें चलें कि गांव के दो दर्जन से अधिक लोग अनशकारियों के समर्थक में धरना पर है। सीपीआई भी अनशनकारियों के समर्थन में खड़ी हो गई थीं।

    राकेश कुमार ने बताया कि घोसौत पंचायत के नलजल योजना के तहत वार्ड संख्या 1, 2, 5, 6, 9, 10, 11 व 12 में व्यापक गड़बरी हुई है और ग्रामीण लम्बे समय से जांच की मांग कर रहे है। गांव के लोगो ने स्थानीय अधिकारी से लेकर उच्चाधिकारी तक इसकी शिकायत की। मुख्यमंत्री को भी लिखित आवेदन देकर जांच की मांग की गई। पर, किसी ने नहीं सुना। इसके बाद लोगो का असंतोष भड़क गया।

    धरना पर बैठे लोग वार्ड क्रियान्वयन प्रबंध समिति पर पैसा की निकासी करके प्राक्कलन के अनुसार कार्य नही करने का आरोप लगा रहें हैं। भाकपा के प्रो. लक्ष्मीकांत व रामचन्द्र झा ने बताया कि पूरे प्रखंड में कमोवेश यही हाल है। निष्पक्ष जांच हो जाए तो कई बड़े अधिकारी और जनप्रतिनिधियो की गर्दन फंस जायेगी।

  • ब्लैकआउट झेल रहे बाढ़ पीड़ितो का धैर्य जवाब देने लगा

    ब्लैकआउट झेल रहे बाढ़ पीड़ितो का धैर्य जवाब देने लगा

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर के बाढ़ पीड़ित में बिजली के लिए आक्रोश है। दरअसल, बाढ़ का पानी घुस जाने से पिछले 10 दिनों से बनघारा पावर सब स्टेशन (पीएसएस) से आपूर्ति बंद है। इससे 18 पंचायत की दो लाख से अधिक की आबादी प्रभावित है। दस दिनों से ब्लैकआउट झेल रहे बनघारा से जुड़ उपभोक्ताओं का आक्रोश 5 जुलाई को फुट पड़ा। राजद के युवा जिला सचिव मनीष कुशवाहा के नेतृत्व में आक्रोशित लोगों ने पावर सब स्टेशन का घेराव करके हंगामा किया और कुछ देर के लिए लाइनमैन को बंधक बना लिया। आक्रोशित लोगों ने 24 घंटे में बिजली की आपूर्ति बहाल नहीं होने पर सड़क जाम करने की चेतावनी दी।
    बिजली के अभाव में मीनापुर टेलीफोन एक्सचेंज दस रोज से बंद है। अस्पताल और सिवाईपट्टी थाना जरनेटर के भरोसे है। सबसे अधिक परेशानी बाढ़ प्रभावित गांवों के लोगों को हो रही है। उमस भरी गर्मी और रात के अंधेरे में सर्पदंश के खतरों से लोगो में आक्रोश है। मोबाइल चार्ज नहीं होने से लोगों का बाहरी दुनिया से संपर्क टूट चुका है। आंदोलन के मौके पर रीतेश कुमार, गोलू राजा, चंदन कुशवाहा, अभिषेक कुमार, चंद्रिका राय और चुन्नू बाबू सहित बड़ी संख्या में लोग थे।

    आपूर्ति बहाल करने की कवायद शुरू
    बिजली विभाग के एसडीओ प्रभात कुमार सिंह ने बताया कि बनघारा पीएसएस तक बिजली की आपूर्ति लाइन को दुरुस्त करके बंद पड़े 600 से अधिक ट्रांसफॉर्मर को चार्ज पर लगाने की प्रक्रिया जारी है। समीप के कुछ गांवों तक 5 जुलाई की देर शाम या 6 जुलाई को बिजली आपूर्ति बहाल कर दी जाएगी। अधिकारी ने बताया कि आरके हाई स्कूल के समीप पानी की तेज बहाव की वजह से तीन पोल उखड़ चुका है। उसको ठीक करने का काम किया जा रहा है। शीघ्र ही मुस्तफागंज तक बिजली की आपूर्ति बहाल कर दी जाएगी। उधर, घोसौत की ओर भी बिजली आपूर्ति बहाल करने के लिए संचरण लाइन को दुरुस्त करने के लिए बिजलीकर्मी पूरी तत्परता से लग चुकें हैं।

  • मीनापुर के बाढ़ पीड़ितों में पनप रहा आक्रोश आखिरकार फूट ही पड़ा

    मीनापुर के बाढ़ पीड़ितों में पनप रहा आक्रोश आखिरकार फूट ही पड़ा

    विशेष शाखा के अधिकारी ने सरकार को कर दिया था अगाह

    जख्मी मुखिया

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला अन्तर्गत मीनापुर के चार लाख से अधिक बाढ़ पीड़ितो में असंतोष है। समुचित सरकारी मदद नहीं मिलने से निराश बाढ़ पीड़ितो का गुस्सा अब फुटने भी लगा है। 31 जुलाई की शाम में रघई पंचायत के मुखिया चन्देश्वर प्रसाद पर हुए जानलेवा हमला इसका सबसे बड़ा मिशाल है। गौर करने वाली बात ये है कि विशेष शाखा ने पत्र लिख कर पहले ही सरकार को इसकी सूचना दे दी थीं। बावजूद इसके समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाने से लोग भड़क गए। इस बीच बीडीओं ने भी जिला प्रशासन को एक पत्र लिखा। इसमें 25 हजार पॉलीथिन की मांग की गई है। बतातें चलें कि मीनापुर की सभी 28 पंचायतो में बाढ़ का पानी तबाही का कारण बना हुआ है। हालांकि, अंचल प्रशासन पिपराहां असली पंचायत को आंशिक रूप से बाढ़ प्रभावित मानती है। किंतु, बाकी बचे 27 पंचायतो तक समुचित राहत नहीं पहुंचने को लेकर अब राजनीति भी शुरू हो चुकी है।

    मीनापुर का 20 पंचायत ब्लैकआउट

    विशेष शाखा के अधिकारी विनय कुमार सिंह ने सरकार को लिखे गोपनीय पत्र में मीनापुर के करीब 4 लाख बाढ़ पीड़ितो की परेशानी से सरकार को अवगत करा दिया है। विशेष शाखा के अधिकारी ने लिखा है कि मीनापुर में एक दर्जन से अधिक मोबाइल टावर में पानी प्रवेश कर जाने से ठप है। मीनापुर का टेलीफोन एक्सचेंज एक सपताह से ठप है। इससे बाढ़ प्रभावित लोगो का बाहरी दुनिया से संपर्क टूट गया है। इसके अतिरिक्त बाढ़ का पानी प्रवेश कर जाने से एक सप्ताह से बनघारा पावर सब स्टेशन बंद है। नतीजा, 600 ट्रांसफार्मर से जुड़े बाढ़ग्रस्त 20 पंचायत पांच रोज से ब्लैकआउट है। अधिकारी ने लिखा है कि अंधेरे में सांप और बिच्छू का आतंक बढ़ गया है। जल भराव वाले दर्जनों गांव में चारा के अभाव में पशुओ का पेट भरना मुश्किल हो रहा है। लिहाजा सरकार के प्रति लोगों में आक्रोश गहराने लगा है।

    प्रशासन का दावा

    खुले में बाढ़ पीड़ित भोजन बनाते हुये 

    बीडीओ ने बताया कि बाढ़ वाले इलाके में 25 सामुदायिक किचन चला कर आठ हजार से अधिक बाढ़ पीड़ितो को दोनो शाम का भोजन दिया जा रहा है। बाढ़ में फंसे लोगो को बाहर निकालने के लिए 13 निजी नौका दिनरात काम पर लगा है। अभी तक तीन हजार पॉलीथिन का वितरण कर दिया गया है। बाढ़ पीड़ितो के सर्वे का काम अंतिम चरण में है। इसके पूरा होते ही सभी के खाते में मुआवजा की रकम भेज दी जायेगी। इस बीच बाड़ाभारती के पंसस मंजू देवी ने सड़क पर शरण लिए विस्थापितों के लिए अपने स्तर से जेनरेटर लगा दिया है।

    जन प्रतिनिधियों में है असंतोष

    बाढ़ से विस्थापित लोगों की तबाही देख कर अब माननीय भी मुखर होने लगे है। विधायक मुन्ना यादव ने सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए बाढ़ पीड़ितो के बीच प्रयाप्त राहत चलाने की मांग की है। जिला पार्षद वीणा देवी और पूर्व जिला पार्षद मिथलेश यादव ने बाढ़ में फंसे लोगों को बाहर निकालने के लिए प्रत्येक गांव में कम से कम एक नाव देने की मांग की है। इस बीच बूढ़ी गंडक के जलस्तर में कमी आने के साथ ही गांव की समस्या भी बाहर आने लगी है। कोइली के मुखिया अजय सहनी ने बताया कि उनके गांव चैनपुर के कई घरों में कमर से उपर तक पानी भरा है। ब्रहण्डा के मो. सदरुल खां ने बताया कि गांव की स्थिति चिंताजन बन गई है। घोसौत के पूर्व मुखिया साबिर अली, बहबल बाजार के बिन्देश्वर प्रसाद और मझौलिया के सरपंच रतन राय ने बताया कि बड़ी संख्या में बाढ़ में फंसे लोगों के सामने भोजन और मवेशी के लिए चारा की समस्या उत्पन्न हो गई है। उपेन्द्र सहनी बतातें है कि खरार में बाढ़ पीड़ितो की सुधि लेने कोई नहीं आया। बेलाहीलच्छी, रानीखैरा सहित दर्जनो गांव तक मदद नहीं पहुंच पा रहा है। रामसजीवन यादव ने बताया कि बाढ़ पीड़ितो में आक्रोश है। कमोवेश यही हाल अन्य गांवों का भी है।

  • टापू बने गांव में चचरी का पुल बना लाइफलाइन

    टापू बने गांव में चचरी का पुल बना लाइफलाइन

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर का कई इलाका बाढ़ से परेसान है। किंतु, ऐसा भी गांव है, जो बाढ़ से नहीं बल्कि, बरसात की पानी भर जाने से टापू बन गया है। मीनापुर थाना के मदारीपुर गांव का सहनी टोला, ऐसा ही एक गांव है। अधिकारी और जन प्रतिनिधि से निराश होकर ग्रामीणों ने एकजुटता दिखाई और 24 घंटे के भीतर चचरी का पुल बना कर एक नजीर पेश कर दिया। गुरुवार को आवागमन बहाल होते ही मदारीपुर गांव के सहनी टोला में उत्सव का नजारा था। गांव के पुनीत सहनी बतातें है कि सड़क पर करीब छह फीट बरसात का पानी जमा हो जाने से यहां के करीब 500 परिवार का पिछले एक सप्ताह से आवागमन ठप था।

    विभागीय पत्र

    संतोष सहनी ने मुखिया से गुहार लगाई और फिर विधायक से भी मदद मांगी। किंतु, जब किसी ने नहीं सुनी तो ग्रामीणों ने बुधवार को बैठक कर चंदा से 40 हजार रुपये जमा किए और आनन-फानन में बांस का पुल बनाने का काम शुरू कर दिया। दो दर्जन से अधिक लोगों के दिनरात की मेहनत रंग लाई और मात्र 24 घंटे में गांव की लाइफलाइन कहलाने वाली चचरी पुल बन कर तैयार हो गया। पुल के चालू होते ही गांव के लोगो का समीप के दूसरे गांवों से संपर्क बहाल हो गया और ग्रामीण चहक उठे।
    इस मौके पर गांव में मौजूद छात्र राजद के जिला अध्यक्ष अमरेन्द्र कुमार ने बताया कि वे दो साल से गांव में सड़क बनाने की मांग कर रहे हैं। इस बीच जिलाधिकारी से गुहार लगाई और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा। थक कर लोक अदालत में मामल दर्ज कराया। अदालत का निर्णय निराशा करने वाला था। इसमें कहा गया कि विधायक से मिल कर सड़क बनाने का आग्रह करें। जबकि, विधायक से पहले भी अनुरोध किया जा चुका था। पर, उन्होंने सुध नहीं ली। छात्र नेता ने बरसात के बाद सड़क की मांग को लेकर गांववालों के साथ आंदोलन करने का ऐलान कर दिया है।

  • पांच कोरोना पॉजिटिव लापता, घर में लटके है ताले

    पांच कोरोना पॉजिटिव लापता, घर में लटके है ताले

    48 घंटे से ढ़ूढ़ रही है स्वास्थ्य विभाग की टीम

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार में कोरोना विस्फोटक रूप लेने लगा है। गांव में हालात और भी खतरनाक है। मुजफ्फरपुर के मीनापुर में कोरोना पॉजिटिव पांच लोगो के लापता हो जाने से स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी हैरान है। स्वास्थ्य विभाग की टीम पिछले 48 घंटे से इनकी खोज में जुटी है। हालांकि, शनिवार शाम तक कोई सुराग नहीं मिलने से संबंधित गांव तथा समीप के इलाको में दहशत है। कोरोना पॉजिटिव के घरो में ताला लटका हुआ है। किसी को कुछ नहीं पता कि ये लोग कहा गये? अस्पताल के प्रभारी डॉ. राकेश कुमार बताते है कि 21 जून को गांव में शिविर लगा कर जांच की गई थीं। बुधवार को रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की टीम खोज में जुट गई है।
    बुधवार को मीनापुर में 23 लोग कोरोना पॉजिटिव मिले थे। इसमें से पांच लोग अचानक लापता हो गये है। बाकी के 18 लोगो को आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कर दिया गया है। फिलाहल, स्थानीय मुखिया की मदद से स्वास्थ्य विभाग की टीम लापता हुए पॉजिटिव लोगो की खोज कर रही है। स्वास्थ्य विभाग की टीम में स्वास्थ्य प्रबंधक दिलिप कुमार और स्थानीय एएनएम शामिल है। किंतु, कोरोना पॉजिटिव के लापता होने के बाद इलाके में कई तरह की चर्चाएं शुरू हो गई है। गांव के लोग दहशत में है।

    मीनापुर में पॉजिटिव की संख्या 34 हुई

    सीतामढ़ी से सटे मीनापुर के एक पंचायत में शनिवार को कोरोना पॉजिटिव के 2 और नए केस मिलने के बाद मीनापुर में पॉजिटिव होने वालों की संख्या बढ़ कर 34 हो गई है। इसमें से 29 एक्टिव केस है। जबकि, 5 लोगो का रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे गई है। पिछले तीन रोज से लगातार कोरोना पॉजिटिव का मामला प्रकाश में आने के बाद बीडीओ अमरेन्द्र कुमार ने बिहार सरकार के हवाले से एक आदेश जारी करके सार्वजनिक स्थल पर मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंस का कड़ाई से पालन करने का आदेश जारी कर दिया है। इसके साथ 31 जुलाई तक सभी प्राइवेट स्कूल और कोचिंग चलाने पर रोक लगा दी गई है।

  • मीनापुर में कोरोना के 23 पॉजिटिव मिलते ही मचा हड़कंप

    मीनापुर में कोरोना के 23 पॉजिटिव मिलते ही मचा हड़कंप

    पॉजिटिव होने वालों में एक आठ साल का बच्चा भी

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार का ग्रामीण इलाका अब तेजी से कोरोना संक्रमण की चपेट में आने लगा है। मुजफ्फरपुर के मीनापुर में एक ही रोज में कोरोना संक्रमण के 23 मामले प्रकाश में आते ही दो जुलाई को हड़कंप मच गया। इसी के साथ यहां संक्रमित लोगो की संख्या बढ़ कर 30 हो गई है। स्वास्थ्य प्रबंधक दिलिप कुमार ने बताया कि पॉजिटिव होने वालों में एक बहुचर्चित पंचायत के 17 और दूसरे एक पंचायत के 6 लोग शामिल है। इसमें 20 पुरुष और 3 महिला है। कोविड-19 की चपेट में आने वाला एक 8 साल का बच्चा भी है। जबकि, 3 लोगो का उम्र 60 वर्ष से अधिक है।
    जानकारी के मुताबकि, इसमें से अधिकांश प्रवासी मजदूर है। किंतु, कई ऐसे भी है, जिनका कोई ट्रैवल्स हिस्ट्री नहीं है। अस्पताल के प्रभारी डॉ.राकेश कुमार ने बताया कि स्थानीय मुखिया की मदद से पॉजिटिव पाये गये लोगो को चिन्हित करके शुक्रवार की सुबह तक सभी को आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट करने का काम शुरू कर दिया गया है। स्मरण रहें कि जांच रिपोर्ट आने में पहले ही एक सप्ताह से अधिक का समय लगा चुका है। सवाल उठता है कि इस बीच इन लोगो के संपर्क में आने वालों की पहचान कब होगी?
    समाजिक कार्यकर्ता मो. सदरुल खां ने कंटेनमेंट जोन बनाने और गांव में बड़े पैमाने पर कोविड-19 की जांच कराने की मांग की है। उन्होंने बताया कि पॉजिटिव होने वाले लोग पिछले एक सप्ताह से अपने परिवार और समाज के लोगो के संपर्क में थे। इसी के साथ गांव में होने वाले समारोह के नाम पर जुटाई जा रही भीड़ को काबू में रखने की मांग भी अब उठने लगा है। कुल मिला कर एक रोज में 23 लोगो के पॉजिटिव होने की खबर फैलते ही गांव के लोग सहम गये है।

  • मुजफ्फरपुर के महंथ मनियारी गांव में छिपी है कई ऐतिहासिक धरोहर

    मुजफ्फरपुर के महंथ मनियारी गांव में छिपी है कई ऐतिहासिक धरोहर

    संजय कुमार सिंह। मुजफ्फरपुर जिले का महंथ मनियारी गांव रहस्य भरे मठ, संत की समाधि स्थल व मंदिरों के लिए जाना जाता है। महंथ मनियारी गांव मुजफ्फरपुर जिला के कुढ़नी प्रखंड में अवस्थित है। मुजफ्फरपुर शहर से 15 किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में

    महंथ मनियारी गांव में स्थित मंदिर
    महंथ मनियारी गांव में स्थित मंदिर

    अवस्थित यह स्थल अपनी कई ऐतिहासिक धरोहरो व आस्था के रूप में जानी जाती है। करीब चार सौ वर्ष पूर्व यह स्थल जंगलों से भड़ा परा था। तब संत मणिराम को मुगल शासक ने यहां की सात सौ एकड़ जमीन दान में दे दी थी। उन्होंने यहां एक झोपड़ी बना कर रहना शुरू किया। बाद में यहां एक मठ बना दिया। वे यहां अपनी अध्यात्म साधना में लीन रहते थे। मान्यता है कि अपने अंत समय में उन्होंने इसी मठ में जिन्दा समाधि ले ली थी।

     

    ईश्वरीय अंश के प्रतीक थे महात्मा, मठ में मौजूद है दुर्लभ पांडुलिपियाॅंं

    मुजफ्फरपुर के महंथ मनियारी गांव में स्थित मंदिर
    मुजफ्फरपुर के महंथ मनियारी गांव में स्थित मंदिर

    मणिराम सिख पंथ के गुरु गुरुनानक जी के पुत्र शिरचन महाराज के शिष्य थे। मठ परिसर में एक पोखर के किनारे शिव मंदिर है। इसके बारे में एक रोचक कहानी है। मंदिर के पास एक काला नाग व सफेद नागीन का जोड़ा रहता है। एक बार मठ के वर्तमान महंथ वीरेश कुमार की बहन निजी परेशानियों के निदान के लिए कर्नाटक गईं जहाँ एक संत ने उनसे कहा आपके मठ परिसर के शिवालय में एक काला नाग व नागीन दूध के लिए भटक रहे हैं उन्हें दूध दीजिए सारी परेशानी दूर होगी। उसके बाद गांव के एक भक्त कैलाश पासवान रोज पूजा कर सुबह एक मिट्टी के बर्तन में एक लीटर दूध रख देते थे, जो दोपहर होते ही नाग व नागीन पी जाते थे। इसे कई बार लोगों ने देखने का प्रयास भी किया लेकिन नहीं देख पाए। हालांकि सांपों का यह जोड़ा यदा-कदा मंदिर के आसपास दीख जाता था। एक वर्ष पूर्व कैलाश की कैंसर से मौत हो गई। तब से मंदिर में दूध रखने वाला कोई नहीं है।

    तत्कालीन महंथ ने मणिराम की समाधी स्थल पर विशाल मंदिर व राधे कृष्ण की प्रतिमा स्नाथापित कराई हैं

    मठ के प्रबंधक रामाकांत मिश्र बताते हैं कि 1928 में तत्कालीन महंथ दर्शन दास ने मणिराम की समाधी स्थान पर विशाल मंदिर व राधे कृष्ण की प्रतिमा स्नाथापित कराई जो आज भी भक्तजनो के लिए आस्था का केन्द्र बनी हुई है। यहां पर अलग- अलग प्रांतों से सैकड़ों की संख्या में नागा संन्यासी महिनो रहा करते थे। कहतें हैं कि नागा साधुओं के ठहरने के लिए महंथ दर्शनदास ने जो भवन बनवाया, वह गर्मी

    मठ मे स्थित राधे श्याम की प्रतिमा
    मठ मे स्थित राधे श्याम की प्रतिमा

    में ठंडा व ठंडी मे गर्मी देता है। इस भवन ने दर्जनों भूकंप के झटके झेले हैं, फिर भी जस का तस खड़ा है। कहते है संत मणिराम की एक लाठी थी जिसे लोग उनका आशीर्वाद मानते थे। कहा जाता है कि प्रसव पीड़ा के दौरान उनकी लाठी रखने मात्र से पांच मिनट में स्वस्थ बच्चे का जन्म हो जाता था। इतना ही नही उस जमाने में मठ से सटे एक आखाड़ा बनाई गई थी,  जहां कुस्ती खेलने के लिए दूर दूर के पहलवान, अपनी पहलवानी का परिचय देने आते थे। कहा जाता है कि इस आखाड़ा से कुसती जीतने को पहलवान अपना सौभाग्य समझते थे। संत मणिराम अपने जमाने से गुरूणानक जी की स्वयं हस्तलिखित दुर्लभ सिख पंथ के कई पांडुलिपि संयोग हुए थे, जो आज भी सुरक्षित है। इन पांडलिपि को देखने के लिए आज भी यदा कदा बाहर से लोगों के आने का सिलसिला जारी है। आज भी यहां समय-समय पर शिख पंथ के अनुयायी मठ में पहूंच कर पांडुलिपि की पूजा अर्चना व शब्‍द कीर्तन करते है। किन्तु, आज इस ऐतिहासिक स्थल को पहचान दिलाने वाला कोई नही है।

  • लीची के बगानो में पसरा है सन्नाटा, सरकार मदद करेगी?

    लीची के बगानो में पसरा है सन्नाटा, सरकार मदद करेगी?

    KKN न्यूज ब्यूरो। बिहार के मुजफ्फरपुर का ख्याति प्राप्त लीची बगान और बगान में पसरा सन्नाटा। लॉकडाउन में फंसे व्यापारी के बगान तक नहीं पहुंचने से मीनापुर के किसान हतप्रद है। मई का तिसरा सप्ताह शुरू हो चुका है। पेंड पर लदे लीची में लालिमा आने लगी है। किसानो ने पास अब सिर्फ दो सप्ताह का समय शेष बचा है। लीची बिक गया तो ठीक। नहीं तो उम्मीदो पर पानी फिरना तय माना जा रहा है। लीची उत्पादक किसानो के लिए आर्थिक नुकसान को सह पाना मुश्किल होगा। वह भी तब, जब सब्जी की खेती से पहले ही यहां के किसान भारी नुकसान उठा चुकें हैं।
    हताश किसानो का अब एक ही आसरा बचा है और वह है सरकार से मदद। नतीजा, मीनापुर के किसान सरकार से मुआवजा देने की मांग करने लगे है। गुरुवार को सहजपुर के नीरज कुमार ने मुख्यमंत्री को पत्र भेज कर लीची उत्पादक किसानो की पीड़ा से उन्हें अवगत कराया और लीची व आम की खेती करने वाले किसानो को विशेष राहत देने की मांग की। नीरज ने लीची व आम उत्पादक किसानो को अलग से मुआवजा देने की मांग की है। किसानो का कहना है कि यदि सरकार से तत्काल मुआवजा नहीं मिला तो किसानो की कमर टूट जायेगी।
    स्मरण रहें कि कांटी और मुशहरी के बाद तिसरे स्थान पर मीनापुर में करीब 895 हैक्टेयर जमीन पर लीची का बगान है। यहां की लीची दिल्ली, मुबंई, कोलकाता और लखनउ समेत पूरे देश में सप्लाई की जाती है। मीनापुर के लीची का नेपाल में भी जबरदस्त डिमांड रहता है। किंतु, लॉकडाउन की वजह से इस वर्ष व्यापारी के नहीं आने से लीची का अधिकांश बगान अभी तक नहीं बिका है। किसानो ने बताया कि उनके जीवन की यह पहली घटना है, जब लीची के सीजन में लीची का बगान सुना पड़ा है।

  • कर्ज में डूबे फूल की खेती करने वाले किसान, अधिकारी से लगाई मदद की गुहार

    कर्ज में डूबे फूल की खेती करने वाले किसान, अधिकारी से लगाई मदद की गुहार

    तीन बच्चो का भविष्य अंधकार में डूबा

    कौशलेन्द्र झा। मीनापुर के वासुदेव छपरा गांव में तीन एकड़ जमीन पर खिला गेंदे का फूल लॉकडाउन की भेंट चढ़ गया। किसान बीडीओ को पत्र लिख कर मदद की गुहार लगा रहे हैं और मदद नहीं मिलने पर बच्चों समेत आत्महत्या करने की लिखित में धमकी दे रहें हैं। बावजूद इसके कोई सुनने को तैयार नहीं है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिला का यह मामला है। दरअसल, अपने तीन बच्चों की मदद से खेतों में खिले गेंदा का फूल तोड़कर गड्ढे में फेंक रहे किसान फूलदेव भगत बहुत परेसान है। पूछने पर कहते हैं कि महाजन से चार लाख रुपये कर्ज लेकर फूल की खेती की थीं। फूल तो खिला, पर लॉकडाउन की वजह से इसकी खपत नहीं हुई। नतीजा, अब फूल तोड़ कर गड्ढे में फेंकना पड़ रहा है। क्योंकि, फूल को समय पर तोड़ा नहीं गया तो, फूल का पेंड़ सूख जायेगा।
    लॉकडाउन की वजह से फूल का कारोबार ठप है और फूल की खेती करने वाले किसान भुखमरी के कगार पर आ गयें हैं। फूलदेव कहते है कि महाजन से पांच रुपये सैकड़ा ब्याज पर चार लाख रुपये कर्ज लेकर खेती की थीं। खेती के लिए पांच एकड़ जमीन लीज पर है। भूस्वामी को सालाना 80 हजार रुपये देना पड़ता है। इसके अतिरिक्त एक लाख रुपये की पगड़ी जमा है, वह अलग। कहतें हैं कि बच्चों की पढ़ाई तो पहले से बंद है। अब घर में भोजन के लाले पड़ गए हैं।
    यहां आपको बताना जरुरी है कि फूलदेव भगत मूलरूप से देवरिया थाना के बुद्धिमानपुर गांव का रहने वाला है। वर्ष 2011 में मीनापुर के राघोपुर गांव की रिंकू देवी से उसका विवाह हुआ और तब से वह यही अपने ससुराल में रह गया। पांच साल पहले समीप के ही वासुदेव छपरा गांव में फूलदेव ने पांच एकड़ जमीन लीज पर लिया और फूल की खेती करने लगा। बहरहाल, फूलदेव पर लॉकडाउन की ऐसी मार पड़ी कि अब उसको सहारा देने वाला भी कोई नहीं है। घर में खाने के लिए अन्न का एक भी दाना नहीं है और पहले से कर्ज में डूबे इस किसान को अब और कर्ज देने को कोई तैयार नहीं है।

    इन फूलो की खेती करता है फूलदेव

    कोलकाता से बीज लाकर फूलदेव अपने खेतो में गेंदा के अतिरिक्त गुलाब, चीना, चेरी, गुल मखमल, रीता, डालिया और जरबेरा की खेती करता है। वह बताता है कि प्रति एकड़ 50 हजार रुपये की लागत खर्च से फूल की खेती से प्रति एकड़ 80 हजार से एक लाख रुपये तक की कमाई हो जाती थी। वह कहता है कि पीक सीजन में लॉकडाउन होने से इस वर्ष लाखों रुपये का नुकसान हो गया। फूलदेव विकलांग है और वर्ष 2018 में उसकी पत्नी रिंकू देवी की मौत हो चुकी है। उसके तीन छोटे बच्चे है। शिवानी कुमारी, वर्षा कुमारी और चांदनी कुमारी।