KKN गुरुग्राम डेस्क | उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में एक धार्मिक कार्यक्रम के दौरान अस्थायी मंच गिरने से बड़ा हादसा हो गया। इस दुर्घटना में 5 लोगों की मौत हो गई, जबकि 40 से अधिक लोग घायल हो गए। स्थानीय प्रशासन ने घटना की पुष्टि करते हुए कहा कि घायलों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है। यह हादसा सुरक्षा मानकों की कमी और आयोजकों की लापरवाही को उजागर करता है।
कैसे हुआ हादसा?
यह हादसा एक धार्मिक आयोजन के दौरान हुआ, जहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए थे। आयोजन के लिए एक अस्थायी मंच तैयार किया गया था, जो अचानक गिर गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, मंच पर अधिक संख्या में लोग चढ़ने के कारण यह गिरा।
मंच गिरते ही वहां अफरातफरी का माहौल बन गया। लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे, जिससे हालात और बिगड़ गए। घटना के तुरंत बाद, बचाव कार्य शुरू किया गया और घायलों को पास के अस्पतालों में भर्ती कराया गया।
घायलों और मृतकों की जानकारी
स्थानीय अधिकारियों के अनुसार, इस हादसे में अब तक 5 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। घायलों की संख्या 40 से अधिक है, जिनमें से कई की हालत गंभीर बताई जा रही है।
डॉक्टरों ने बताया कि कई लोगों को गिरते हुए मलबे से चोटें आई हैं, और कुछ को आपातकालीन सर्जरी की जरूरत पड़ी। मृतकों की पहचान के लिए प्रशासन प्रयास कर रहा है और उनके परिवारों को सूचित किया जा रहा है।
प्रारंभिक जांच: क्या थी दुर्घटना की वजह?
घटना की प्रारंभिक जांच से पता चला है कि मंच कमजोर सामग्री से बनाया गया था और उसकी संरचना में आवश्यक सुरक्षा मानकों का पालन नहीं किया गया।
साथ ही, अधिक लोगों के मंच पर चढ़ने से इसका वजन सहन करने की क्षमता समाप्त हो गई, जिसके चलते यह गिर गया। स्थानीय प्रशासन ने कहा कि आयोजकों ने अस्थायी ढांचे के निर्माण और भीड़ प्रबंधन को लेकर किसी प्रकार की सावधानी नहीं बरती।
सार्वजनिक आयोजनों में सुरक्षा पर सवाल
बागपत की इस घटना ने सार्वजनिक आयोजनों में सुरक्षा के महत्व को फिर से उजागर किया है। खासकर ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में, जहां अस्थायी संरचनाओं का उपयोग अधिक होता है, वहां सुरक्षा मानकों की अनदेखी अक्सर बड़ी दुर्घटनाओं का कारण बनती है।
मुख्य चिंताएं:
अस्थायी संरचनाओं की गुणवत्ता:
अस्थायी मंच और ढांचे आमतौर पर जल्दी और घटिया सामग्री से बनाए जाते हैं, जिससे वे कमजोर हो जाते हैं।
भीड़ प्रबंधन की कमी:
आयोजकों द्वारा लोगों की संख्या को सीमित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता, जिससे ऐसे हादसे होते हैं।
सुरक्षा निरीक्षण का अभाव:
अधिकतर सार्वजनिक आयोजनों में अस्थायी संरचनाओं की उचित जांच नहीं होती, जो दुर्घटनाओं का बड़ा कारण है।
प्रशासन का प्रतिक्रिया और कार्रवाई
घटना के बाद जिला प्रशासन ने जांच शुरू कर दी है। प्रारंभिक जांच में आयोजकों की लापरवाही और सुरक्षा मानकों के उल्लंघन को हादसे की मुख्य वजह बताया गया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने हादसे पर दुख व्यक्त किया है और मृतकों के परिजनों को ₹5 लाख की आर्थिक सहायता और घायलों को ₹50,000 देने की घोषणा की है। उन्होंने अधिकारियों को घायलों के इलाज में हर संभव मदद सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है।
साथ ही, उन्होंने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है।
स्थानीय लोगों की नाराजगी और प्रतिक्रिया
घटना के बाद स्थानीय लोगों में भारी नाराजगी है। उन्होंने आयोजकों और प्रशासन पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाए हैं। सोशल मीडिया पर भी लोगों ने घटना को लेकर गुस्सा जाहिर किया और सार्वजनिक आयोजनों में सुरक्षा उपायों की मांग की।
एक स्थानीय निवासी ने कहा: “अगर मंच मजबूत और सही तरीके से बनाया गया होता, तो यह हादसा टल सकता था। सुरक्षा के बिना ऐसे कार्यक्रम आयोजित करना लोगों की जान के साथ खिलवाड़ है।”
सुरक्षा उपाय: ऐसी घटनाओं से कैसे बचा जा सकता है?
बागपत की यह घटना एक चेतावनी है कि सार्वजनिक आयोजनों में सुरक्षा की अनदेखी कितनी घातक हो सकती है। ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
अनिवार्य सुरक्षा निरीक्षण:
किसी भी सार्वजनिक आयोजन से पहले, अस्थायी संरचनाओं का अनिवार्य रूप से निरीक्षण किया जाना चाहिए।
गुणवत्तापूर्ण निर्माण सामग्री:
अस्थायी ढांचे को केवल उच्च गुणवत्ता की सामग्री और अनुभवी कारीगरों द्वारा बनाया जाना चाहिए।
भीड़ प्रबंधन:
आयोजकों को मंच पर चढ़ने वालों की संख्या सीमित करनी चाहिए और इसके लिए सख्त नियम बनाए जाने चाहिए।
कानूनी कार्रवाई:
लापरवाह आयोजकों और ठेकेदारों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
बागपत में मंच गिरने की यह दुर्घटना न केवल एक दर्दनाक घटना है, बल्कि यह सुरक्षा मानकों की अनदेखी का गंभीर उदाहरण भी है। इस हादसे में 5 लोगों की मौत और 40 से अधिक लोगों के घायल होने से कई परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है।
यह घटना सभी आयोजकों और प्रशासन के लिए एक चेतावनी है कि सार्वजनिक आयोजनों में सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाए। उचित सुरक्षा मानकों और जिम्मेदार प्रबंधन से ऐसी दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।
घायलों की स्थिति पर नजर रखने और हादसे से जुड़े हर अपडेट के लिए KKN Live के साथ बने रहें।
यूपी, उत्तराखंड, मणिपुर, पंजाब और गोवा की तस्वीरें लगभग साफ हो गई हैं। पंजाब ने इतिहास रच दिया है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप ने पंजाब में लगभग क्लिन स्वीप कर लिया है। आप ने गोवा में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है। यूपी में 36 सालों का रिकॉर्ड तोड़ते हुए बीजेपी लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में लौट रही है। पंजाब में आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन पर बोलते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि इंकलाब शुरू हो गया है। कहा कि अब एक नया भारत बनायेंगे। कांग्रेस का प्रदर्शन निराश करने वाला रहा। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन पर कहा कि उनकी पार्टी इससे सबक सीखेगी और देश की जनता के हित में काम करती रहेगी।
चुनाव हार गये मुख्यमंत्री के दावेदार
KKN न्यूज ब्यूरो। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनाव की तस्वीरें लगभग साफ हो गई हैं। पंजाब ने इन चुनावों में इतिहास रच दिया है। अरविंद केजरीवाल की पार्टी पंजाब में प्रचंड बहुमत को प्राप्त करके सभी को चौका दिया है। हालांकि, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए है। वो खटीमा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे। बीजेपी नेता को कांग्रेस के भुवन चंद्र कापड़ी ने 6,579 मतों के अंतर से हराया। हालांकि, सत्तारूढ़ भाजपा पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में लगातार दूसरी जीत की ओर बढ़ रही है। बीजेपी ने गोवा में अगली सरकार बनाने के लिए निर्दलीय और क्षेत्रीय दलों को साथ ले सकती है। प्रदेश की 40 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 20 सीटों पर जीत हासिल की है। यहा बीजेपी बहुमत के आंकड़े से महज एक सीट दूर है।
शाम 7 बजे तक के आंकड़े
– यूपी में बीजेपी 269, एसपी 129, कांग्रेस 2, बीएसपी 1 और अन्य 2
– पंजाब में आप 92, कांग्रेस 18, अकाली प्लस 4, बीजेपी प्लस 2 और अन्य 1
– उत्तराखंड में बीजेपी 48, कांग्रेस 18, बीएसपी 2, आप 0 और अन्य 2
– गोवा में बीजेपी 20, कांग्रेस प्लस 12, आप प्लस 3, टीएमसी प्लस 2 और अन्य 3
– मणिपुर में बीजेपी 32, एनपीपी 8, जेडीयू 6, कांग्रेस 4 और अन्य 10
गोरखपुर का चुनाव परिणाम
गोरखपुर शहर विधानसभा सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 1 लाख 2 हजार मतों के अंतर से चुनाव जीत गएं हैं। गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी विपिन सिंह की जीत हुई। सहजनवा विधानसभा सीट पर भाजपा के प्रदीप शुक्ला ने पहली बार चुनाव लड़कर 43 हजार वोटों से जीत दर्ज की है। कैंपियरगंज में भाजपा के फतेह बहादुर सिंह ने सातवीं बार जीत दर्ज कर क्लीन स्वीप किया है। करहल से अखिलेश यादव चुनाव जीत गएं है।
यूपी में एआईएमआईएम को नहीं मिला वोट
यूपी चुनाव में असुदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन के अधिकतर उम्मीदवार 5 हजार मतों के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाई। मतदाताओं ने उन्हें बुरी तरह नकार दिया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा की 403 विधानसभा सीटों में अभी तक आए रुझान के आधार पर एआईएमआईएम को इस बार आधा फीसदी से भी कम मत मिलता हुआ नजर आ रहा है। पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री एवं पंजाब लोक कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। अमरिंदर सिंह को पटियाला शहरी से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार अजीतपाल सिंह कोहली ने 19,873 मतों के अंतर से हरा दिया है।
यूपी का करहल विधानसभा सीट अचानक हॉटसीट बन गया है। अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद सभी की नजर करहल पर है। सवाल उठने लगा है कि आखिरकार अखिलेश यादव ने करहल को ही क्यों चुना? क्या वहां उनकी जीत तय है? लोगो की नजर करहल की गुणा गणित पर है। यूपी की राजनीति पर इसका क्या असर होगा? बीजेपी के उम्मीदवार एस.पी सिंह बधेल के मैदान में उतरने के मायने क्या है? ऐसे और भी कई सवाल है। इसको समझने के लिए करहल को समझना होगा।
यूपी के करहल को सपा का गढ़ क्यों माना जाता है
KKN न्यूज ब्यूरो। यूपी की राजनीति में करहल विधानसभा का सीट अचानक हॉटसीट बन गया है। सपा सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के करहल से चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ पूरे देश की नजर यूपी के कहरल पर टिक गई है। बीजेपी ने करहल में एस.पी सिंह बधेल को मैदान में उतार कर मुकाबला को दिलचस्प बना दिया है। अब राजनीति की बिसात पर इसके मायने तलाशे जा रहें है। करहल विधानसभा, सैफई के बहुत करीब है। यह मैनपुरी लोकसभा का हिस्सा है और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव वहां के सांसद है। करहल में मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार का दबदबा माना जाता है। चुनाव परिणाम पर गौर करें तो इसकी बानगी दिख जायेगी। मशलन, करहल विधानसभा की सीट पर वर्ष 2007 के बाद से लगातार समाजवादियों का कब्जा रहा है। वर्ष 2002 को छोड़ दें, तो बीजेपी को करहल कभी रास नहीं आया। यह बात दीगर है वर्ष 2002 में बीजेपी की टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनाव जीत गए थे। तब उन्होंने सपा के बाबूराम यादव को हराया था। बाद में सोबरन सिंह यादव ने बीजेपी छोड़ दिया और सपा में शामिल हो गए। इसके बाद वर्ष 2007 में सपा की टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनाव जीत गए। इसके बाद सपा की टिकट पर वर्ष 2012 और 2017 में भी सोनबर सिंह यादव ने बाजी मारी। वर्तमान में सोबरन सिंह यादव ही करहल के विधायक है। इसके पहले वर्ष 1993 और 1996 में बाबूराम यादव सपा की टिकट पर करहल के विधायक रह चुकें है। यानी वर्ष 2002 को छोड़ दे तो वर्ष 1993 से लेकर आज तक करहल पर समाजवादियों का कब्जा रहा है।
सपा के लिए करहल मुफीद क्यों है
वर्ष 2017 के चुनाव में मोदी लहर के बाद भी करहल में सपा की जबरदस्त जीत हुई थीं। करहल सीट पर समाजवादी पार्टी के सोनबर सिंह यादव को लगभग आधे वोट मिले थे। यानी कुल मतदान का 49.81 फीसदी वोट सपा के सोबरन सिंह यादव को मिला था। जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ 31.45 फीसदी वोट गए थे। बीएसपी को करहल में मात्र 14.18 फीसदी वोट से संतोष करना पड़ा था। वर्ष 2017 में बीजेपी ने करहल से रमा शाक्य को अपना उम्म्मीदवार बनाया था। वे 38 हजार 405 मतो की भारी अंतर से हारे थे। सपा के सोबरन सिंह यादव को 1 लाख 4 हजार 221 वोट मिले थे। जबकि, बीजेपी की रमा शाक्य को 65 हजार 816 वोट मिले। तीसरे नंबर पर बीएसपी के दलवीर रहे। उनको 29 हजार 676 वोट मिले थे। इन्हीं कारणो से अखिलेश यादव ने करहल से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। बीजेपी ने अखिलेश यादव के खिलाफ करहल से एस.पी. सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है। बघेल आगरा से बीजेपी के सांसद है और वर्तमान में मोदी सरकार के मंत्रीमंडल में शामिल है। दिलचस्प बात ये है कि एक समय ऐसा था जब यही बघेल मुलायम सिंह यादव के सुरक्षा दस्ता का हिस्सा हुआ करते थे। उस वक्त मुलायम सिंह यादव देश के रक्षा मंत्री हुआ करते थे। अब वहीं एस.पी. सिंह बघेल अखिलेश यादव को चुनौती दे रहें है।
मैनपुरी को सपा का गढ़ क्यों माना जाता है
मैनपुरी में विधानसभा की कुल चार सीट है। वर्तमान में चार में से तीन सीटों पर सपा का कब्जा है। जबकि एक मात्र भोगांव पर भाजपा का कब्जा हैं। जिले में सपा ने पहला चुनाव 1993 में लड़ा था। उनदिनो मैनपुरी में विधानसभा की पांच सीट हुआ करती थीं और उनमें से चार पर सपा की जीत हुई थीं। हालांकि, वर्ष 1996 में सपा ने सभी पांचों सीट पर जीत का परचम लहराया था। इसके बाद वर्ष 2002 के चुनाव में भोगांव और किशनी सीट पर सपा जीती। वर्ष 2007 में भोगांव और किशनी के साथ करहल सीट भी सपा के कब्जे में आ गई। वर्ष 2012 के चुनाव में सपा ने फिर से सभी चारों सीटों पर कब्जा कर लिया। बीजेपी की बात करें तो वर्ष 2017 के चुनाव में बीजेपी को एक मात्र भोगांव सीट पर मात्र 20 हजार के अंतर से जीत मिली थीं। जबकि करहल, किशनी और मैनपुरी में बीजेपी दूसरे नंबर थी। भाजपा इससे पहले 1991, 1993, 2002 और 2007 में मैनपुरी की सीट जीत चुकी है। करहल से वर्ष 2002 में बीजेपी पहली बार जीती थीं। दूसरी ओर घिरोर सीट पर दो बार बीएसपी के उम्मीदवार चुनाव जीत चुकें है। किंतु, 2012 के परिसीमन के बाद यहां का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरिके से बदल चुका है। गौर करने वाली बात ये है कि वर्ष 1985 के बाद से कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार यहां से चुनाव नहीं जीता है।
कानपुर और आगरा मंडल पर रहेगा करहल का असर
अखिलेश यादव पहली बार करहल से विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतरे है। उनके करहल से चुनाव लड़ने का मैनपुरी के अतिरिक्त कानपुर और आगरा मंडल की कई सीटों पर इसके असर से इनकार नहीं किया जा सकता है। फिरोजाबाद, एटा, औरैया, इटावा और कन्नौज समेत कई सीटों पर सपा को इसका लाभ मिल सकता है। दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव के इस दुर्ग को भेदने के लिए बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। वर्ष 2017 में यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के बाद से ही बीजेपी की नजर मैनपुरी के इलाके पर रहा है। लिहाजा, जिले के एकमात्र भाजपा विधायक रामनरेश अग्निहोत्री को योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बना कर बीजेपी के रणनीतिकारो ने पहले से तैयारी कर रखी है। इसके अतिरिक्त भोगांव-शिकोहाबाद सड़क मार्ग को फोरलेन बना कर बीजेपी ने इलाके में अपनी मजबूत पैठ बनाने की कोशिश की है। यहां एक सैनिक स्कूल भी है। हालांकि इस सैनिक स्कूल की स्वीकृति सपा की सरकार में ही मिल गई थी। किंतु, योगी की सरकार ने इस पर तेजी से काम करके लोगो के दिल को जितने की भरपुर कोशिश की है।
करहल में बीजेपी ने झोंकी ताकत
दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हर बूथ तक नहीं पहुंच सकी थी। पर, इस बार प्रत्येक बूथ तक बीजेपी ने पकड़ बना लिया है। जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव जीतकर बीजेपी ने अपनी तैयारियों का रिहर्सल भी किया है। दिलचस्प बात ये है कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई की बेटी के पति अनुजेश यादव ने वर्ष 2019 में सपा को छोड़ कर बीजेपी ज्वाइन किया था। इस इलाके में उनकी साफ सुथरा छवि का बीजेपी को लाभ मिल सकता है। यानी बीजेपी ने करहल सीट के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। आपको बतादें कि वर्ष 1956 के परिसिमन के बाद पहली बार करहल विधानसभा स्तित्व में आई थीं। वर्ष 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से पहलवान नत्थू सिंह यादव यहां से पहला विधायक निर्वाचित हुए थे। इसके बाद तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते। कांग्रेस के टिकट पर वर्ष 1980 में पहली बार शिवमंगल सिंह जीते। वर्ष 2002 से सोबरन सिंह यादव भाजपा की टिकट पर करहल से जीते। लेकिन कुछ दिनो के बाद ही सपा में आ गए और उसके बाद हुए तीनों चुनाव में सपा की टिकट पर सोबरन सिंह यादव चुनाव जितते रहें हैं।
करहल का सियासी समीकरण देता है संकेत
करहल का सीट समाजवादियों के लिए मुफीद क्यों है? दरअसल, करहल की वजह से ही मैनपुरी को यादव बाहुल्य इलाका माना जाता है। करहल में अकेले यादव जाति के करीब 40 फीसदी मतदाता हैं। जबकि, करीब 6 फीसदी अल्पसंख्यक मतदता है। जो करहल में जीत और हार का फैक्टर बनता रहा है। इसको सपा का कोर वोट माना जाता है और इसी के दम पर अखिलेश यादव को करहल से चुनाव जीतने की उम्मीद है। इसके अतिरिक्त् करहल में अनुसूचित जाति के करीब 17 फीसदी मतदता है। जबकि, 13 फीसदी शाक्य, 9 फीसदी ठाकुर और 7 फीसदी ब्राह्मण मतदाता है। करहल में अन्य कई छोटी जातियों की संख्या करीब 8 फीसदी हैं। और इन्हीं छोटी-छोटी जातियों के दम पर बीजेपी ने करहल से एस.पी सिंह बधेल को मैदान में उतारा है। करहल सीट पर तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होना है। अब देखना है कि उंट किस करबट बैठता है।
एक समय था, जब भारतीय संविधान के शिल्पकार, भारतरत्न, बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भारत में जातिवाद को खत्म करने में खुद को खपा दिया। बाबा साहेब ने अपने शोधपत्र में जातिवाद को अखंड भारत की राह में सबसे बड़ा बाधक बताया था। ताज्जुब की बात ये है कि उन्हीं के अनुयायियों ने आज भारत की राजनीति में जातिवाद को अनिवार्य शर्त बना दिया है। विकास की चाहे जितनी बात कर लीजिए, जीत के लिए अंत में जाति की धूरी पर सभी को चकरघिन्नी बनना पड़ता है। अब आप यूपी चुनाव को ही देख लीजिए।
एक नजर यूपी चुनाव पर
एक नजर यूपी चुनाव को देख लेते हैं। यहाँ राजनीति एक्सप्रेस-वे से शुरू होकर, विकास की कई कॉरिडोर से गुजरता हुआ इन्टरनेशल एअरपोर्ट होते हुए जाति की खाई भरे समीकरण में हिचकोले भरने लगा है। चाहे किसानों की कर्ज माफी हो या गन्ना का बकाया भुगतान, मानो कल की बातें हो गई हो। महंगाई का मुद्दा… बेरोजगारी और किसान आंदोलन से उपजा आक्रोश पीछे छूटने लगा है। यूपी चुनाव की तारीख करीब आते ही लोग पूछने लगे कि जाठ किधर जायेगा? राजभर का क्या होगा? कुर्मी और निषाद वोटर एकजुट रहेंगे या नही? मुसलमान, दलित और ब्राह्मण जैसे शब्द अचानक सुर्खियों में आ गये हैं। ऐसा क्यों हुआ? यह सवाल आज यूपी चुनाव की राजनीति में मौजू बन गया है, खास करके हिन्दी पट्टी में।
यूपी के हिन्दी पट्टी की राजनीति में जातिवाद
KKN न्यूज ब्यूरो। हिन्दी पट्टी की राजनीति में अक्सर विकास पीछे छूट जाता है। लिहाजा, जातीय समीकरण की चौसर पर क्षेत्रीय दलो की दमदार वजूद को नजरअंदाज करना मुश्किल है। यूपी चुनाव भी इससे अछूता नहीं है। जानकार मानते है कि वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में ओबीसी यानी पिछड़़े वर्ग के मतदाता राजनीति की धूरी बन चुके है। सभी राजनीतिक दल इसी ओबीसी को साधने की जुगत में लगे हैं। यूपी में पिछड़े वर्ग के मतदाताओं की संख्या करीब 52 फीसदी है। जिस पर सभी की नजर है। वर्ष 1990 के बाद इस जाति का दबदबा यूपी चुनाव की राजनीति में काफी बढ़ा है। खासतौर से यादव जाति का। यह समाज ओबीसी का नेतृत्व करता है। इनकी भागीदारी करीब 11 फीसदी है। मंडल कमीशन के बाद मुलायम सिंह यादव को इसका भरपूर लाभ मिला और वे ओबीसी के राजनीति की धूरी बन गए। हालांकि इससे पहले वर्ष 1977 में जनता पार्टी के रामनरेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। किंतु, ओबीसी नेता के तौर पर वह अपनी पहचान स्थापित नहीं कर सके।
यूपी चुनाव मे कौन करता है ओबीसी का नेतृत्व
मुलायम सिंह यादव ने खुद के दम पर अपनी पहचान बनाई है। वे वर्ष 1989, 1993 और 2003 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद वर्ष 2012 में उन्हीं के पुत्र अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने जो आज ओबीसी के नेतृत्व का दावा करते है। हालांकि, वर्ष 2014 के यूपी चुनाव के बाद बीजेपी ने आंबीसी में अपनी पैठ को मजबूत कर लिया है। लिहाजा, यूपी चुनाव की राजनीति में ओबीसी धूरी बन गई है। हम बता चुके हैं कि ओबीसी खेमे में यादव समाज सबसे सशक्त रहा है। जनाधार के ग्राफ पर नजर डालें तो वर्ष 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 72 फ़ीसदी यादवो का समर्थन मिला था। वहीं 2012 के यूपी चुनाव में यह घटके 63 फीसदी रह गया। जबकि, 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में 66 फीसदी यादव, सपा के साथ जुड़े रहे। बात लोकसभा की करे तो वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल 53 फ़ीसदी यादवो ने समाजवादी पार्टी को वोट दिया था। जबकि, 27 फ़ीसदी यादवों का वोट भाजपा में शिफ्ट हो गया था। यह वो दौड़ था, जब ओबीसी मतदाता यादव और गैर यादवो के बीच बंटने लगा था। बीजेपी को इसका भरपूर लाभ मिला।
उत्तरप्रदेश में यादव और गैर यादव में बंट सकता है ओबीसी
ओबीसी की सभी छोटी-बड़ी जातियों को मिला दें, तो ओबीसी के जातियों की कुल संख्या करीब 80 हो जाती है। हम आपको बता चुकें हैं कि वर्ष 2014 के बाद उत्तरप्रदेश की राजनीति में ओबीसी समाज यादव और गैर यादवो में बंट गया है। फिलवक्त अखिलेश यादव इसको पाटने में लगें है। क्योंकि, यूपी में गैर यादव ओबीसी करीब 41 फ़ीसदी हैं। पिछड़ा वर्ग में यादव के बाद सबसे ज्यादा कुर्मी मतदाताओं की संख्या है। इस जाति के मतदाताओं की भागीदारी करीब 6 फीसदी है। जबकि, पूर्वांचल के करीब एक दर्जन से अधिक जनपदों में इनकी हिस्सेदारी करीब 12 फ़ीसदी हैं। इसी प्रकार मौर्य यानी कुशवाहा जाति की संख्या उत्तरप्रदेश के 13 जिलों में सबसे ज्यादा है। स्वामी प्रसाद मौर्य और केशव प्रसाद मौर्य इसी जाति से ताल्लुक रखते है। फिलहाल दोनो आमने- सामने है। नतीजा क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। फिलहाल, इतना तय है कि यूपी चुनाव मे ओबीसी को गोलबंद करना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा।
लोध, निषाद और राजभर पर टिकी है नजरें
उत्तरप्रदेश के दो दर्जन से अधिक जनपदों में लोध जाति के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है। यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह इस जाति के सबसे बड़े नेता हुआ करते थे। अब वो नहीं रहे। हालांकि, लोध समाज का झुकाव बीजेपी की ओर बताया जा रहा है। हालांकि, सपा इसको साधने की जुगत में है। इसी प्रकार गंगा किनारे बसे एक दर्जन से अधिक जनपदों में निषादो की आबादी 6 से 10 फीसदी है। यह समाज यूपी चुनाव के परिणाम को बदलने का माद्दा रखता है। इस जाति के बड़े नेता डॉ. संजय निषाद फिलहाल भाजपा के साथ है। किंतु, भीआईपी के मुकेश सहनी यहां भी उलट-फेर की तैयारी में जुट गए है। उत्तरप्रदेश में राजभर बिरादरी की आबादी करीब 2 फ़ीसदी है। इनका सर्वाधिक असर पूर्वांचल में है। पूर्वांचल की आधा दर्जन से अधिक जनपदों में राजभर वोटर किसी का भी खेल बिगाड़ देने का माद्दा रखता है। फिलहाल, इसके सबसे बड़े नेता ओम प्रकाश राजभर और अनिल राजभर है। ओम प्रकाश राजभर ने सपा से हाथ मिला लिया है। इसका बीजेपी को कितना नुकसान होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
यूपी चुनाव मे निर्णायक भूमिका मे हैं मुसलमान
यूपी की राजनीति में मुसलमान निर्णायक भूमिका में है। जनसंख्या के लिहाज से मुसलमानो की आबादी लगभग 20 फ़ीसदी है। वर्ष 1990 से पहले मुसलमानो का एक मुश्त वोट कांग्रेस को मिलता रहा है। लेकिन 1990 के बाद बदले हालात में मुसलमान का झुकाव सपा की ओर तेजी से हुआ। बसपा के साथ भी मुसलमान जुड़ते रहें हैं। हालांकि, वर्तमान में मुसलमान मतदाताओं का रुझान एक बार फिर से सपा की ओर देखा जा सकता है। क्योंकि, मुसलमानो को ऐसा लगने लगा है कि सपा ही बीजेपी को हरा सकती है। इस बीच कई ऐसे विधानसभा सीट भी है, जहां मुसलमान बसपा के साथ मजबूती के साथ खड़ा हैं। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि असदउद्दीन ओबैसी की पार्टी ए.आई.एम.आई.एम का क्या होगा? क्या मुसलमान उनके साथ जायेंगे? इसमें कोई दोराय नहीं है कि यूपी की पूरी राजनीति इन्हीं सवालो के घेरे में है। फिलहाल, इतना तो तय है कि यूपी चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए मुसलमान एकजुट होने की पूरी कोशिश करेंगे।
यूपी चुनाव में दलित बना साइलेंट वोटर
यूपी की राजनीति में दलित मतदाता बहुत मायने रखते है। फिलहाल, यह साइलेंट है। आजादी के बाद दलित जाति के मतदाताओं पर सबसे ज्यादा कांग्रेस पार्टी की पकड़ हुआ करती थी। लेकिन बहुजन समाज पार्टी के गठन के बाद मान्यवर कांशी राम इस जाति के सबसे बड़े मसीहा बनकर उभरे। इससे पहले जगजीवन राम इस जाति के सर्वमान्य नेता हुआ करते थे। दलित की बात करें तो यह पूरा समाज जाटव और गैर जाटव में बंटा हुआ है। दलितो में जाटव जाति की जनसंख्या सबसे ज्यादा है। यह दलित वोट बैंक का करीब 54 फीसदी है। यहां आपको बतातें चलें कि दलित समुदाय के मतदाता करीब 70 उप जातियों में बंटा हुआ है। दलितों में करीब 16 फ़ीसदी पासी और 15 फ़ीसदी बाल्मीकि समाज का हिस्सा है। वर्तमान में इसके कई नेता है। किंतु, बहुजन समाज पार्टी कि बहन मायावती का नाम सबसे बड़ा है। दलित वोट बैंक के सहारे सुश्री मायावती पहली बार 1995 में उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं। इसके बाद वर्ष 2002 और 2007 में भी वो मुख्यमंत्री बनी। वर्तमान में बसपा के कमजोर होने से दलित वोट बैंक में बिखराव देखा जा सकता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 24 फ़ीसदी दलितों का वोट मिला था। जबकि, दलितो की पार्टी के रूप में पहचान रखने वाली बसपा को दलितो का मात्र 13.9 फ़ीसदी वोट लेकर संतोष करना पड़ा था।
जाटव और गैर जाटव में बंटा है दलित समाज
जानकार मानते है कि उत्तरप्रदेश मे दलित समाज जाटव और गैर जाटव में बंटा हुआ है। गैर जाटव वोट बैंक पर बीजेपी की पकड़ मजबूत हुई है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में दलित वोट बैंक में से गैर जाटव का करीब 61 फ़ीसदी वोट बीजेपी को मिला था। जबकि, करीब 11 फीसदी जाटव ने भाजपा को वोट किया था। उन दिनो बसपा को 68 फ़ीसदी जाटव और 11 फ़ीसदी गैर जाटव दलित का समर्थन मिला था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव की बात करें तो बीजेपी को करीब 60 फ़ीसदी गैर जाटव और करीब 21 फ़ीसदी जाटव दलित का वोट मिला था। इस गणित से समझा जा सकता है कि बीजेपी ने दलित वोट बैंक में मजबूत पकड़ बना लिया है। सवाल उठता है कि वर्ष 2022 में हालात क्या होगा? जानकार मानते हैं कि वर्ष 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा से करीब 12 फीसदी दलित वोट खिसक रहा है। जबकि, सपा को इतने ही दलित वोट का लाभ मिल रहा है। यदि ऐसा हुआ तो यहां सपा को इसका जबरदस्त लाभ मिल जायेगा। बीजेपी को पूर्वांचल में इसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है। हालांकि, बीजेपी के रणनीतिकार यूपी चुनाव मे दलित वोट को साधने की जुगत में लगे हुए है।
यूपी चुनाव मे किंग मेंकर बनेगा सवर्ण
दरअसल, सवर्ण वोटर यूपी चुनाव में इस बार किंग मेकर की भूमिका में है। उत्तरप्रदेश में सवर्ण मतदाताओं की संख्या करीब 23 फ़ीसदी है। इसमें 11 फ़ीसदी ब्राम्हण, 8 फ़ीसदी राजपूत और 2 फ़ीसदी कायस्थ हैं। इसमें करीब दो फीसदी भूमिहार भी शामिल है। आजादी के बाद उत्तरप्रदेश की राजनीति में पकड़ रखने वाला यह वर्ग आज महज वोट बैंक बन कर रह गया है। शुरू में यह वर्ग कॉग्रेस का मजबूत आधार माना जाता था। मगर, बदले हालात में यह वर्ग तेजी से बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ है। बहरहाल, बसपा और सपा ब्राह्मणों को रिझाने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं। वर्ष 2007 में बसपा ने ब्राह्मण और दलित को एकजुट करके सत्ता पर कब्जा कर लिया था। बसपा के अतिरिक्त सपा भी इस बार ब्राह्मणो को साधने की जुगत में लगी है। उत्तरप्रदेश के करीब तीन दर्जन से अधिक जनपद में सवर्ण मतदाता जीत और हार का फैक्टर बनते रहें है। बीजेपी से नाराजगी की चर्चा के बीच ब्राह्मण मतदाता इस बार क्या करेगा? जानकार मानतें हैं कि सवर्ण मतदाताओं का बड़ा वर्ग यदि बीजेपी के साथ चला भी गया किंतु, कुछ छोटे-छोटे पॉकेट पर सपा और बसपा ने इसमें सेंधमारी कर ली तो परिणाम चौकाने वाला हो सकता है। अब होगा क्या यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।
भारत की राजनीति (Indian Politics) में जातिवाद (Cast System)) एक अनिवार्य शर्त बन गया है। विकास की चाहे जितनी बात कर लीजिए, जीत के लिए अंत में जाति (Cast) की धूरी पर सभी को चकरघिन्नी बनना पड़ता है। खास करके हिन्दी पट्टी (Hindi Belt States)) में। UP का चुनाव इससे अछूता नहीं है। एक्सप्रेस-वे (ExpressWay) से शुरू हुआ राजनीति (Politics)। विकास (Development) की कई कॉरिडोर से गुजरता हुआ। जातीय समीकरण (Cast Equation) की दलदल में हिचकोले भरने लगा है। किसानो की कर्ज माफी (Farmers Loan Wave)), गन्ना का बकाया भुगतान और इज्जत घर। मानो कल की बातें हो गई। मतदान की तारीख (Election Date) करीब आते ही Uttar Pradesh में लोग पूछने लगे कि जाठ (Jath Cast) किधर जायेगा। राजभर (Rajbhar Cast) का क्या होगा। कुर्मी और निषाद वोटर (Kurmi & Nishad Voters) एकजुट रहेंगे या नही। मुसलमान, दलित और ब्राह्मण (Musalman, Dalit and Brahman) जैसे शब्द अचानक सुर्खियों में आ गया है। कहां गई महंगाई का मुद्दा। क्या हुआ बेरोजगारी (Unemployment) का। किसान आंदोलन (Farmers Protest) से जुड़े आक्रोश का क्या हुआ। ऐसे कई ज्वलंत सवाल है। जो, UP के राजनीति (Politics of UP) की दशा और दिशा को तय करता है। आज हम इन्ही मुद्दो की पड़ताल करेंगे।
KKN न्यूज ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल का अपना महत्व है। महंगाई, बेरोजगारी, विकास और सुशासन के दावो से इतर, पूर्वांचल के मतदाताओं का अपना अंदाज है। पूर्वांचल का यह इलाका बिहार से सटा है। जाहिर है यहां जातीय क्षत्रपो का अपना मजबूत संसार है। बेशक, गुजिश्ता दशको में यहां की राजनीति ने करबट बदली है। बावजूद इसके क्षत्रपो की स्वीकारता में कोई कमी नहीं आई है। जानकार मानते है कि विकास की राह में पूर्वांचल के पिछड़ जाने का यह सबसे बड़ा कारण माना जाता है।
विकास की बाट जोह रहा है पूर्वांचल
आजादी के करीब सात दशक बाद, आज भी पूर्वांचल विकास की बाट जोह रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गुजिश्ता वर्षो में पूर्वांचल का तेजी से विकास हुआ है। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे इसका बड़ा उदाहरण है। यह बात दीगर है कि इसके श्रेय को लेकर बीजेपी और सपा में तलवारे खींच गई है। इसके अतिरिक्त गंगा एक्सप्रेस-वे का काम भी शुरू हो चुका है। अय़ोध्या, काशी और प्रयागराज के पूर्णनिर्माण की दिशा में भी वेशक कई बड़े काम हुए है। स्वास्थ्य सेवा और विधि व्यवस्था को लेकर बीजेपी के रणनीतिकार चुनाव की वैतरणी को पार करना चाहतें है। वाराणसी को पूर्वांचल का गेटवे कहा जाता है। पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने का वाराणसी को भरपुर लाभ मिला है। दूसरी ओर सपा की गढ़ होने के बाद भी आजमगढ़ को इसका बहुत लाभ नहीं मिल सका है।
पूर्वांचल में अगड़ा पिछड़ा का असर
कहतें है कि पूर्वांचल की राजनीति अगड़ा और पिछड़ा में बंटा है। जातीय समीकरण को साधे बिना पूर्वाचल को पार पाना मुश्किल होगा। दरअसल, पूर्वांचल में करीब 25 जिला है और विधानसभा की यहां 142 से अधिक सीटें है। इस जोन की पॉलिटिक्स मुख्य रूप से अगड़ा-पिछड़ा… सर्वण और दलित की आइडोलॉजी पर टिका है। लिहाजा, इस इलाके में दशको से समीकरण का बोलबाला रहा है। यहां की राजनीति में एक ओर जहां विकास के छौक की खुशबू है। वहीं, दूसरी ओर जातीय छत्रपो का मजबूत किला भी है।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पूर्वांचल की 115 सीटें जीत कर सभी को चौका दिया था। तब सपा को 17 और बसपा को केवल 14 सीटो पर जीत मिली थी। यहां आपको समझ लेना जरुरी है कि वर्ष 2017 में बीजेपी ने पूर्वांचल की कई छोटी-छोटी पार्टियों के साथ मिल कर चुनाव लड़ा और उसे कामयाबी मिली। गौर करने वाली बात ये है कि इस बार यहीं काम सपा कर रही है।
पूर्वांचल की कास्ट क्रॉनोलॉजी
अब पूर्वाचल की कास्ट क्रॉनोलॉजी को समझिए। पूर्वांचल की कई सीटों पर राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 फीसदी है। सपा ने ओम प्रकाश राजभर से हाथ मिला कर पूर्वाचंल में बीजेपी को चुनौती पेश कर दी है। पूर्वी यूपी के गाजीपुर, चंदौली, मऊ, बलिया, देवरिया, आजमगढ़, लालगंज, अंबेडकरनगर, जौनपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और भदोही में राजभर मतदाताओं की अच्छी आबादी है। सपा को इन सीटो से बहुत उम्मीदें टीकी है। दूसरी ओर पूर्वांचल में यादव के बाद ओबीसी कोटे में कुर्मी मतदाताओ का दबदबा माना जाता है। यूपी में 6 फीसदी कुर्मी बोटर है। किंतु, पूर्वांचल के कई जिलो में कुर्मी और पटेल वोटर की संख्या 6 से 12 फीसदी है। जानकारी के मुताबिक मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर और बस्ती के करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर कुर्मी वोटर की बाहुलता है। बीजेपी ने वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल से समझौता करके इस वोट को साधने में कामयाब हुई थीं। अनुप्रिया पटेल इस बार भी एनडीए के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है। बीजेपी को बेशक इसका लाभ मिलेगा। किंतु, सपा ने यहां सेंधमारी की तैयारी कर ली है।
सेंधमारी की है तैयारी
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने अनुप्रिया पटेल की मां कृष्णा पटेल से गठबंधन करके बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है। इसी तरह बीजेपी ने निषाद पार्टी के संजय निषाद से समझौत करके पूर्वांचल के समीकरण को साधने की कोशिश की है। दूसरी ओर वीआईपी के मुकेश सहनी यूपी में बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा रहें हैं। मुकेश सहनी बिहार के एनडीए सरकार में मंत्री है। लिहाजा, इसका साइड इफेक्ट बिहार की राजनीति में दिखने लगा है।
पूर्वांचल की राजनीति में नोनिया बोटर का अपना दबदबा है। ये अति पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखते है और अपना टाइटल चौहान रखते है। पूर्वांचल की दस से ज्यादा सीटों पर इनका मजबूत असर से इनकार नहीं किया जा सकता हैं। मऊ जिले में नोनिया समाज का करीब 50 हजार से अधिक वोटर हैं। इसी प्रकार गाजीपुर के जखनियां में करीब 70 हजार वोटर हैं। बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महराजगंज, चंदौली व बहराइच में भी इनकी बड़ी संख्या है। यह कभी बसपा का वोट बैंक हुआ करता था। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने फागू चौहान को साथ लेकर नोनिया समाज के 90 फीसदी वोट हासिल किए थे। किंतु, इस बार यह बोट सपा की ओर शिफ्ट करने लगा है। स्वामी प्रसाद मौर्य के साथ पूर्वांचल के कई छत्रपो के बीजपेी छोड़ कर सपा में शामिल होने के बाद समीकरण के लिहाजा से बीजेपी बैकफुट पर है।
पूर्वाचल के ब्राह्मणो पर टिकी है नजर
जाति की बिसात पर पूर्वांचल के ब्राह्मण भी इस बार सुर्खियों में है। पूर्वांचल में ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब 16 फीसदी है। ऐसा कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूर्वांचल के ब्राह्मण नेताओं की नहीं पटती है। शिवप्रताप शुक्ला और हरिशंकर तिवारी के साथ टकराव की बात जग जाहिर है। बिकरू के खुशी दुबे की घटना के बाद योगी पर ब्राह्मण विरोधी मानसिकता के आरोप लगते रहें हैं। हालांकि, बीजेपी ने इस दूरी को पाटने के लिए ब्राह्मण नेता एके शर्मा, जतिन प्रसाद और श्रीकांश शर्मा को अपने साथ मिला लिया है। बहुजन समाज पार्टी के प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन का भी ब्राह्मण वोटर्स पर असर से इनकार नहीं किया जा सकता है।
दूसरी ओर सपा ने भगवान पश्रुराम की आर लेकर ब्राह्मणो को अपने पाले में लाने की कोशिश तेज कर दी है। संत कबीरनगर जिले में इसका असर दिखने लगा है। हरिशंकर तिवारी जैसे जनाधार वाले नेता सपा में शामिल हो गएं है। माता प्रसाद पांडेय पहले से सपा के साथ है। कहतें हैं कि पूर्वांचल में ब्राह्मण वोटर्स सपा के लिए बोनस साबित हो गया तो खेला हो जायेगा। यानी पूर्वांचल में बीजेपी को बड़ा झटका लग जाये तो आश्चर्य नहीं होगा। हालांकि, बीजेपी ने इस डैमेज को कंट्रौल करने के लिए मथुरा को चुनावी मुद्दा बना दिया है। बीजेपी के रणनीतिकार मानते है कि मथुरा के मुद्दे पर पूर्वांचल में यादव मतदाताओं का एक हिस्सा बीजेपी के साथ आ जाये तो डैमेज कंट्रौल हो सकता है। कुल मिला कर विकास की आंधी हो या सख्त विधि व्यवस्था। माफियाओं के बुलंद इमारत को ढ़ाहती बुलडोजर हो या एनकाउंटर में ढ़ेर होते अपराधी। समीकरण की नशा में मदहोश पूर्वांचल के मतदाताओं पर इसका कितना असर पड़ेगा? यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पूर्वाचंल का अपना महत्व है। महंगाई, बेरोजगारी, विकास और सुशासन के दावो से इतर। पूर्वाचंल के मतदाताओं का अपना अलग अंदाज है। पूर्वाचल का यह इलाका बिहार से सटा है। यहां जातीय क्षत्रपो का अपना संसार है। बेशक, गुजिश्ता दशको में यहां की राजनीति ने करबट बदली है। बावजूद इसके क्षत्रपो की स्वीकारता में कोई कमी नहीं आई है।
जानकार मानते है कि विकास की राह में पूर्वाचंल के पिछड़ जाने का यह सबसे बड़ा कारण है। पूर्वाचंल की राजनीति, जातिवाद की दलदल में धसने को बेताब है। ऐसे में महंगाई और बेरोजगारी बनाम विकास और सुशासन का दावा, बेमानी नहीं तो और क्या है। इस Episode में पूर्वी यूपी की गुणा-गणित लेकर आयें है। रिपोर्ट देखिए और अपने विचारो से हमको अवगत कराइए।
पिछले कुछ दिनों पहले दिल्ली से अपने घर लौटे मजदूरों को सैनिटाइज करने के नाम पर उत्तरप्रदेश के बरेली में लोगों को बैठाकर दमकल कर्मियों ने केमिकल का छिड़काव कर दिया था। इस घटना पर विपक्ष पार्टी ने उत्तरप्रदेश की सरकार तथा शासन व्यवस्था पर निशाना साधा था।
आपको बताते चलें की बरेली में सैनिटाइजेशन कर रही फायर ब्रिगेड की टीम ने बसों का इंतजार कर रहे मजदूरों, महिलाओं व बच्चों को बैठाकर उनके ऊपर केमिकल छिड़काव कर दिया था। इससे लोगों की त्वचा झुलस गई और आंखों में भी काफी तकलीफ हुई थी। इस घटना पर स्थानीय डीएम ने बताया था की, ये घटना कर्मचारियों के अतिसक्रियता के कारण हुआ है। उन्होने सम्बंधित अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई के निर्देश दिए थे।
जांच के बाद एसएसपी शैलेश पांडेय ने लीडिंग फायरमैन महेश और स्प्रे पाइप हाथ में पकड़ने वाले फायरमैन आसिम को निलंबित कर दिया। एसएसपी ने इसकी पुष्टि की।
फायर सर्विस के डीजी आरके विश्वकर्मा ने बताया कि, सैनिटाइजेशन के दौरान फायरकर्मी ध्यान रखें कि किसी मानव या जानवरों के ऊपर इसका छिड़काव न हो। घरों व बिल्डिंगों के अंदर छिड़काव न करें, क्योंकि वहां ज्वलनशील वस्तुएं होती हैं। मीडिया को मौके पर बुलाने से बचें, उन्हें खुद ही फोटो उपलब्ध कराएं तथा अनावश्यक भीड़ एकत्र न करें।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने यूपी में बसपा सपा के महागठबंधन पर महाग्रहण लगा दिया है। राजनीतिक हलको में टूट के कयास लगने शुरू हो गए हैं। बसपा प्रमुख मायावती ने सपा के साथ गठबंधन के भविष्य को लेकर इशारों में सवाल खड़े कर दिए हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती ने लोकसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन पर नाराजगी व्यक्त करते हुए पार्टी के पदाधिकारियों से गठबंधनों पर निर्भर रहने के बजाय अपना संगठन मजबूत करने का निर्देश दे दिया है।
बसपा ने दी सफाई
समीक्षा बैठक के दौरान बसपा में अंदरूनी हलचल को देखते हुए सपा से रार छिड़ना तय माना जा रहा है। इधर, सपा-बसपा में दरार की खबरों पर मायावती के भतीजे आकाश ने सफाई दी है। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में कहा कि मीडिया में मायावती के बयान आ रहे हैं कि बसपा अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी। परंतु बसपा ने इसका खंडन किया है। कहा कि बैठक में गठबंधन के भविष्य पर कोई फैसला नहीं किया गया है।
बसपा को नहीं मिले यादवों के वोट
लोकसभा चुनाव के परिणाम की समीक्षा के लिए मायावती ने सोमवार को यूपी के पार्टी पदाधिकारियों और निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की बैठक में कहा कि बसपा को जिन सीटों पर कामयाबी मिली उसमें सिर्फ पार्टी के परंपरागत वोट बैंक का ही योगदान रहा। बैठक में मिले फीडबैक के आधार पर बसपा अध्यक्ष ने लोकसभा चुनाव में सपा के साथ गठबंधन के बावजूद बसपा के पक्ष में यादव वोट स्थानांतरित नहीं होने की भी बात कही । पार्टी के प्रभारियों की रिपोर्ट में जमीन पर गठबंधन काम न करने की बात कही गई है।
अपने बूते उपचुनाव लड़ेगी बसपा
बसपा प्रमुख ने विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में किए गए गठबंधन से उम्मीद के मुताबिक परिणाम नहीं मिलने का हवाला देते हुए कहा कि अब बसपा अपना संगठन मजबूत कर खुद अपने बलबूते चुनाव लड़ेगी। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के 11 विधायकों के चुनाव जीतने के बाद इन सीटों पर उपचुनाव प्रस्तावित है।
उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल का कुख्यात डॉन प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या को लेकर हाय-तौवा मच हुआ है। विपक्ष विधबा बिलाप कर रहा है और सरकार ने जांच के आदेश दे दिएं हैं। बहरहाल, जेल में माफिया डॉन की हत्या से अधिकारियों में हड़कंप मच गया है। पुलिस पूरे मामले की जांच में जुट गई है।
झांसी से लाया गया था बागपत जेल
इस घटना के बाद यूपी में जेलो की सुरक्षा व्यवस्था सवालो के घेरे में है। उत्तर प्रदेश सरकार ने बागपत जिला जेल के जेलर, डिप्टी जेलर सहित चार कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है। बतातें चलें कि मुन्ना बजरंगी को रविवार को ही झांसी जेल से बागपत लाया गया था और यहां पहुंचते ही जेल के भीतर ही उसकी हत्या हो गई। ताज्जुब की बात तो ये कि डॉन के शरीर में एक या दो नहीं बल्कि, दस बुलेट मारे गये हैं और हद देखिए कि जेल के भीतर किसी को भी गोली चलने की आवाज सुनाई नहीं पड़ी। बसपा से जुड़े हत्या के तार
बसपा विधायक लोकेश दीक्षित से रंगदारी मांगने के आरोप में बागपत कोर्ट में मुन्ना बजरंगी की पेशी होनी थी। लिहाजा, उसे बागपत जेल के तन्हाई बैरक में रखा गया था। यहां पहले से ही कुख्यात सुनील राठी ओर विक्की सुंहेड़ा शायद उसका इंतजार कर रहा था। शुरुआती जांच से पता चला है कि कुख्यात अपराधी सुनील राठी ने ही मुन्ना बजरंगी पर गोली चलाई है। सुनील राठी यूपी के साथ उत्तराखंड में सक्रिय है। सुनील की मां राजबाला छपरौली से बसपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुकी है। लिहाजा, इस हत्या का कारण कहीं राजनीतिक एंगिल तो नहीं है? फिलहाल, यूपी पुलिस सभी एंगिल से मामले की तफतीश में जुट गई है। पत्नी ने जताई थी हत्या की आशंका
गौरतलब बात ये है कि मात्र दस रोज पहले ही मुन्ना बजरंगी की पत्नी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके जेल के भीतर ही अपने पति की हत्या कर देने की आशंका जाहिर कर चुकी है। मुन्ना की पत्नी ने मीडिया के माध्यम से यूपी के सीएम से अपने पति की सरक्षा करने की गुहार लगा चुकी है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या यह हत्या राजनीतिक है और इससे भी बड़ा सवाल कि क्या इसकी भनक परिवारवालों को पहले से थी? सवाल यह भी कि सुरक्षा को भेद कर जेल के भीतर हथियार कैसे पहुंच गया? यहां आपको बतातें चलें कि पिछले दिनों लखनऊ में हुए एक गैंगवार में माफिया डॉन मुन्ना बजरंगी के साले पुष्पजीत सिंह की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद अपने साले की तेरहवीं में हिस्सा लेने के लिए पिछले दिनो ही पुलिस अभिरक्षा के बीच मुन्ना बजरंगी विकासनगर कॉलोनी आया था। हिस्ट्री शीटर था मुन्ना बजरंगी
दरअसल, मुन्ना बजरंगी का असली नाम प्रेम प्रकाश सिंह है और उसका जन्म 1967 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में हुआ था। उसके पिता पारसनाथ सिंह उसे पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी बनाने का सपना संजोए थे। मगर प्रेम प्रकाश उर्फ मुन्ना बजरंगी ने उनके अरमानों को कुचल दिया। उसने पांचवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ दी। किशोर अवस्था तक आते आते उसे कई ऐसे शौक लग गए जो उसे जुर्म की दुनिया में ले जाने के लिए काफी थे। फिलवक्त, मुन्ना बजरंगी पर संगीन अपराध के 40 से अधिक एफआईआर दर्ज और उसका साम्राज्य उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड समेत कई अन्य प्रदेशो तक फैला हुआ था। यूपी के एक भाजपा विधायक की हत्या के बाद से ही मुन्ना बजरंगी स्थानीय पुलिस के साथ- साथ राष्ट्रीय सुरक्षा जांच एजेंसी के तारगेट पर आ गया था। स्मरण रहें कि मुन्ना बजरंगी ने भाजपा विधायक पर अत्याधुनिक एके-47 से 100 राउंड से अधिक गोली बरसाई थी।
उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा के फायर ब्रांड नेता और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को करारी हार का सामना करना पड़ा है। सूबे के फूलपुर और गोरखपुर लोगसभा सीट से सपा उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराके भाजपा के चुनावी रणनीतिकारो को करारा जवाब दिया है। बतातें चलें कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तेफे से रिक्त हुए इस दोनो सीट पर उपचुनाव में सपा ने अपना कब्जा जमा लिया है।
स्मरण रहे कि उक्त दोनो सीट पर उपचुनाव के दौरान मतदान काफी कम देखने को मिला। गोरखपुर में सिर्फ 47 फीसदी लोगों ने मतदान किया जबकि फूलपुर में 38 फीसदी लोगों ने वोटिंग की थी। भगवा पार्टी ने कौशलेन्द्र सिंह पटेल को फूलपुर सीट पर उतारा था। जबकि, कौशलेन्द्र दत्त शुक्ला को गोरखपुर में उतारा गया है। इनके खिलाफ फूलपुर सीट से समाजवादी पार्टी के प्रवीण निषाद और गोरखपुर सीट से नागेन्द्र प्रताप सिंह पटेल चुनावी मैदान में थे। कांग्रेस ने गोरखपुर से सुरीथा करीम और फूलपुर लोकसभा सीट से मनीष मिश्रा को उतारा था।
इस बीच बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से समाजवादी पार्टी को समर्थन देने के बाद बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गयी और सपा ने दोनो सीट पर कब्जा करके 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की काट के स्पष्ट संकेत दे दिएं हैं।
बतातें चलें कि बीजेपी के लिए गोरखपुर का सीट इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ रहा है जो यहां से पांच बार लोकसभा के लिए चुने गए हैं। आदित्यनाथ से पहले उनके गुरू योगी अवैधनाथ को गोरखपुर ने तीन बार संसद भेजा था। आज योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री है और उनके रहते गोरखपुर से भाजपा की हार का राजनीतिक के जानकारी दूरगामी परिणाम के रूप में देखने लगे है। वही, फूलपुर सीट एक समय में कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहलाल नेहरू यहां से जीत कर सांसद में पतिनिधित्व कर चुके हैं। लेकिन, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य संसद में चुनकर आ गए थे। आज श्री मोर्य यूपी के उपमुख्यमंत्री है। यानी मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री दोनो की जीती हुई सीट पर उपचुनाव में सपा की जीत होना राजनीतिक बदलाव के संकेत नही तो और क्या है?
पूजा श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश। डुप्लीकेट कॉपी छापने का खुलासा होते ही यूपी के बोर्ड में हड़कंप मच गया है। बतातें चलें कि छह फरवरी से शुरू होने जा रही परीक्षा के लिए यह कॉपी छापी गई थी। पहली बार हुए इस तरह के खुलासे से बोर्ड अधिकारियों से लेकर प्रशासनिक हल्के में हड़कम्प मच गया है। पुलिस ने हाईस्कूल की एक हजार कापियां बरामद कर प्रिंटिंग प्रेस मालिक को गिरफ्तार कर लिया है।
जिस इंटर कालेज प्रबंधक के आर्डर पर यह कापियां छापी जा रही थीं, फिलहाल वह फरार है। मामले की जांच के लिए क्षेत्रीय शिक्षा परिषद वाराणसी के सचिव भी जौनपुर पहुंचे हैं। वाराणसी से एसटीएफ की टीम भी पहुंचकर जांच-पड़ताल में जुटी है। पूरे मामले में शिक्षा माफियाओं का गिरोह काम करने की आशंका जताई जा रही है।
पूजा श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले से चौका देने वाली खबर आई है। हुआ ये कि एक विधवा राशन कार्ड बनबाने ग्राम प्रधान के कार्यालय में गयी। वहां काम के बदले महिला से रिश्वत की मांग की। महिला के पास रिश्वत देने के लिए पैसे नही थे। महिला की गुहार पर कर्मचारियों ने काम के बदले शारीरिक संबंध बनाने की शर्त रख दी और मजबूर महिला की इजाजत मिलते ही ग्राम प्रधान के सचिव सहित कुल 13 लोगो ने उसको अपने हवस का शिकार बना डाला।
मामला तब चर्चा में आया, जब ग्राम प्रधान के सचिव सहित सभी 13 लोग एड्स की चपेट में आ गये। एक साथ 13 लोगों के एड्स रोगी होने की खबर मिलते ही स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया है।
दरअसल गोरखपुर के भटहट ब्लॉक की 28 वर्षीय महिला की छह साल पहले शादी हुई थी। शादी के तीन साल बाद ही पति की बीमारी के कारण मौत हो गई। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक गुजर-बसर करने के लिए गरीब महिला ने राशन कार्ड बनाने के खातिर रोजगार सेवक से मिली तो उसने ग्राम प्रधान से मिलवाया। बेबस और अकेली महिला को देख कर सचिव ने बुरी नजर गड़ा दी। फिर सेक्रेटरी सहित कुल 13 लोगों ने राशऩ कार्ड और विधवा पेंशन दिलाने का झांसा देकर महिला का शारीरिक शोषण किए।
मामले का खुलाशा तब हुआ, जब वह महिला बीमार हुई तो चिकित्सक की सलाह पर जब महिला के खून की जांच में उसके एचआईवी संक्रमित होने का पता चला। यह पता चलते ही महिला का शारीरिक शोषण करने वालों में हड़कंप मच गया। चिकित्सकों की सलाह पर रोजगार सेवक, ग्राम प्रधान सहित 13 लोगों ने मेडिकल कॉलेज के एआरटी सेंटर पर जांच कराई तो पता चला कि सभी एचआईवी पॉजिटिव हैं।
इस बीच एआरटी सेंटर के कर्मियों के द्वारा की काउंसिलिंग के दौरान खुद पीड़िता ने ही पूरे मामले का खुलाशा करके सभी को स्तब्ध कर दिया है। महिला ने पूरी कहानी सुनाई कि किस तरह राशन कार्ड और विधवा पेंशन का झांसा देकर 13 लोगों ने उसकी अस्मत लूटी। महिला के पति की शादी के तीन साल बाद ही बीमारी से मौत हो गई थी। पति मुंबई में किसी फैक्ट्री में काम करता था। माना जा रहा है कि पति से ही महिला को एचआईवी संक्रमण हुआ।
लखनऊ। यूपी का राजधानी में मदरसा खदीजतुल कुबरा लिलबनात में छात्राओं का दर्द सामने आया और खुलासा हुआ कि वहां काफी लंबे समय से छात्राओं से यौनशोषण चल रहा था। छात्राओं ने पुलिस अधिकारी को बताया कि आरोपी संचालक कार्यालय में बुलाकर पैर दबवाता था। छेड़खानी भी करता था और विरोध करने पर डंडे से पीटता था और शरीर के नाजुक अंगो के साथ अश्लील हरकत करने लगता था। एक लड़की ने बताया कि मैनेजर कारी तैय्यब अश्लील तस्वीर दिखाते और गंदी बातें करते थे। नारी बंदी निकेतन में रखी गई इन लड़कियों के चेहरे पर दहशत के भाव साफ दिख रहे थे। पुलिस ने मजिस्ट्रेट के सामने जब इनके बयान लिए तो छात्राएं पहले काफी घबरायीं, लेकिन अफसरों ने जब उन्हें दिलासा दिया गया तब जा कर छात्राओं ने अपनी-अपनी आपबीती सुनाई। बहरहाल, मदरसा संचालक के खिलाफ पुलिस जांच में जुटी है।
उत्तर प्रदेश। मुजफ्फरनगर के एक गांव में प्रेमी के साथ धूमते देख महिला के पिता व भाई ने अपने चार अन्य रिश्तेदारो के साथ मिल कर सजा के तौर पर महिला का गैंग रेप करके इंसानी रिश्ते को तार तार कर दिया। पुलिस ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्देश पर महिला का बयान दर्ज करके सभी आरोपितो को गिरफ्तार कर लिया है।
जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि परिवार के सदस्यों ने उसका बलात्कार करने के बाद उसे धमकाया। उन्होंने बताया कि आरोपियों पर पीड़िता को एक मकान में कैद रखने का भी आरोप है। पुलिस ने बताया कि महिला कुछ महीनों पहले अपना घर छोड़कर अपने प्रेमी के साथ चली गई थी उन्होंने बताया कि महिला ने मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया।
उत्तर प्रदेश। यूपी के महोबा एक विवाह चर्चा का विषय बन गया है। दरअसल, एक लेडी सिपाही ने ऑन ड्यूटी ही शादी मंदिर में जाकर सात फेरे लिए और विवाह होने की घोषणा कर दी। इसके बाद से इनकी शादी की काफी चर्चाएं हैं। बताया जा रहा है कि दोनों को निकाय चुनाव के चलते शादी के लिए छुट्टी नहीं मिली तो उन्होंने ड्यूटी के दौरान ही एक मंदिर में सात फेरे ले लिए।
फतेहपुर के रहने वाले राजेंद्र लेखपाल पद पर महोबा में पोस्टेड है। वहीं चरखारी थाने में मीना देवी कॉन्स्टेबल पद पर तैनात है। दोनों के परिवार ने 22 नवंबर को शादी तय की हुई थी। आचार संहिता लगने के कारण कोई भी छुट्टी नहीं ले सकता था। लिहाजा, दोनों ने निर्णय लिया कि शादी ड्यूटी के दौरान ही करेंगे। इसके बाद मंदिर में हिंदू रीति रिवाज के साथ दोनों ने शादी कर ली। हालांकि, इस विवाह समारोह में रिश्तेदारो को शामिल नही करने का दोनो को मलाल है।
उत्तर प्रदेश। आगरा यमुना एक्सप्रेस वे पर आज बड़ा सड़क हादसा हो गया है। कई वाहन आपस में टकरा गए। इन हादसों में कई लोग घायल हुए हैं। मेरठ, ग्रेटर नोएडा में आज सुबह दो हादसे हुए जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोग घायल हो गए।
यमुना एक्सप्रेस वे पर कोहरे के कारण एक के बाद एक 10 वाहन आपस में टकरा गए। इसमें छह लोग घायल हो गए। घायलों को कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया गया। बताया जाता है कि जब दो वाहन टकराए तो इसकी सूचना यमुना एक्सप्रेस वे और पुलिस को दी गई। लेकिन कोई समय पर नहीं पहुंचा। अगर समय पर पहुंच जाते इतने वाहन एक साथ टकराने से बच जाता।
मथुरा के अलावा नन्दगांव, बरसाना, कोसी आदि देहात के इलाके भी सुबह कोहरे की गिरफ्त में रहे। इससे वाहनों का रफ्तार थम गया। सड़क और रेलमार्ग दोनों यातायात प्रभावित हुआ। वाहनो की लाइट जलानी पड़ी। सुबह 8:30 के बाद भी धुंध छाई रही। वहीं कोसी के कोटवन चौकी पर एक के बाद एक लगातार पांच गाड़ियां एक-दूसरे से भिड़ गईं। हालांकि कोई हताहत नहीं हुआ। आज दृश्यता काफी कम रही। कुछ मीटर की दूरी पर भी दिखाई नही दे रहा था।
आगरा एक्सप्रेस वे पर महावन थाना क्षेत्र के माइल स्टोन 125 के पास दिल्ली से आगरा की तरफ ट्रक पलट गया। कोहरे के चलते उसमें बस, ट्रक, कार व अन्य दर्जनों वाहन टकराते गए। इससे कुछ लोग घायल भी हो गए। यातायात प्रभावित हुआ। जैथरा के एटा अलीगंज रोड पर कोहरे में चार वाहन भिड़ गए। इसमें दिल्ली से आने वाली बसें शामिल थीं। इस हादसे में 4 लोग घायल हो गए। रोडवेज बस और टैंकर में टक्कर में घायल बस चालक को रेफर किया गया है। मेरठ-सहारनपुर मंडल में अब तक कई जगह हादसे सामने आए हैं। इसमें पांच लोगों की मौत और 20 से अधिक लोग घायल हो गए हैं।
उत्तर प्रदेश। कानपुर शहर के चर्चित रेहान हत्याकांड में आरोपित बने बीसीए के छात्र को आखिरकार गूगल ने बचा ही लिया। गूगल से प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर एडीजे प्रथम की कोर्ट ने किदवई नगर पुलिस की दलीलों को खारिज करते हुए बीसीए छात्र को दोषमुक्त करार दिया है और देर रात बीसीए के छात्र को जेल प्रशासन ने रिहा कर दिया है। मामले में किदवई नगर पुलिस की भूमिका को संदिग्ध मानते हुए कोर्ट ने कार्रवाई का आदेश भी दिया है।
बतातें चलें कि 20 अगस्त 2016 को जूही लाल कालोनी में दस वर्षीय रेहान का शव मिला था। किदवई नगर पुलिस ने इस मामले में पहले अज्ञात लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई और बाद में रेहान के पड़ोस में रहने वाले एयरफोर्स के वारंट अफसर भगवान सिंह के बेटे और बीसीए के छात्र जय प्रताप सिंह उर्फ मोहित को जेल भेज दिया था। इसके बाद परिजनों ने गूगल के माध्यम से साक्ष्य जुटाए और जय के आईपी पते के माध्यम से कोर्ट में यह साक्ष्य रखा कि उनका बेटा अपराध के समय पर मौके पर था ही नहीं। यहीं से पुलिस की कहानी उल्टी पड़ गई।
संजय कुमार सिंह
वाराणसी। वाराणसी के पावन धरती रविन्द्रपुरी के बाबा कीनाराम स्थल पर शारदीय नवरात्र का पर्व श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। नौ दिनों में मां की अलग अलग रूपों में पूजन कि जाती है। जिसमें कन्या पूजन का अपना एक अलग महत्व है।
शुक्रवार को अघोरा चार्य बाबा कीनाराम अधोर शोध एवं सेवा संस्थान में नव कुमारी कन्याओं एवं भैरव देव का पूजन बड़ी श्रद्धा व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। बाबा कीनाराम पीठ के पीठाधीश्वर एवं सर्वेश्वरी समूह के अध्यक्ष व अधोर सेवा मण्डल के अध्यक्ष पूज्य बाबा सिद्धार्थ गौतम राम के मार्ग दर्शन में बाबा कीनाराम स्थल के आचार्य धंन्जय व डॉ. संगीता सिंह ने संयुक्त रूप से देवी स्वरूपी कन्याओं एवं भैरव देव का पूजन किया। उस दौरान स्थल प्रांगण में हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। भक्तों ने नव कुमारी कन्याओं एवं भैरव देव का दर्शन व पूजन किया। उस पावन अवशर पर संस्थान के व्यवस्थापक अरूण सिंह, प्रकाश जी, गुंजन, नानाजी, नवीन, वीरेन्द्र, बबलू, दिलीप, अनिल, मंटू, दीपू, गोलू, अंशु, राजदीप ने व्यवस्था मे बढ़ चढ़कर कर हिस्सा लिया।
बिहार की 14 जिलों में बाढ़ ने हाहाकार मची दी है। भागलपुर, कटिहार, सुपौल, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज और यूपी के गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, सीतापुर, बलरामपुर, गोंडा, बाराबंकी, बहराइच सहित कई अन्य जिलों में स्थिति काफी खराब है। दर्जनों जगह तटबंधों के टूटने से एक करोड़ से अधिक आबादी फंसी हुई हैं। इन्हें बचाने के लिए सेना की मदद ली जा रही है। पश्चिम चम्पारण में हेलीकॉप्टरों से जवानों को उतारा जा रहा है। उत्तर बिहार की बागमती, लखनदेई, अधवारा समूह की कई नदियां, कोसी, बूढ़ी गंडक तथा गोरखपुर में राप्ती आदि सहायक नदियां तेज उफान पर हैं। हालांकि, एनडीआरएफ की टीमें राहत व बचाव कार्य में लगी है। पटना में भी गंगा नदी खतरे के निशान तक पहुंच रही है। भारी बारिश के कारण गंगा और उसकी सहायक नदियों में आई बाढ़ पूरे उत्तर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में कहर बरपा रही है। इन दोनों राज्यों में पिछले दो दिनों में 90 लोगों के मारे जाने के साथ ही एक करोड़ से अधिक आबादी बाढ़ में फंसी है। कई इलाकों का संपर्क देश के अन्य हिस्सों से कट गया है, कई पुल बह गए हैं तो सड़क के साथ ही रेलमार्ग बाधित हुए है। मोतिहारी-वाल्मीकिनगर, नरकटियागंज-साठी, सीतामढ़ी-रक्सौल, सुगौली-रक्सौल, दरभंगा-सीतामढ़ी पर कई ट्रेनों को रद्द कर दिया गया है। दिल्ली की ओर से जानेवाली कई ट्रेनों को भी रद्द किया गया है। कई जगह बाढ़ पीड़ित लोग आंदोलन पर उतारू हैं।
यूपी के गोरखपुर में राप्ती और रोहिन नदी में उफान से दहशत व्याप्त है। तकरीबन 25 हजार लोग प्रभावित हो गए हैं। जिले के अलग-अलग क्षेत्रों में बाढ़ के पानी में डूब कर पांच युवकों की मौत हो गई। इसके अलावा दो लोगों की गोण्डा में और एक की बहराइच में डूबने से मौत हो गई। देवरिया के डुमरी गांव में शिव बनकटा से बहकर आए पीपे के पुलिए को निकालते समय एक युवक नदी के तेज धारा के साथ बह गया। सिद्धार्थनगर-बस्ती राजमार्ग और सिद्धार्थनगर-ककरहवा मार्ग बंद हो गया है। कुशीनगर में सेना के हेलीकाप्टरों में कुल 10 हजार परिवारों के लिए खाने का पैकेट, तीन दिन का राशन, दवा और कपड़े भेजे गए।
इधर, बिहार के मघुबनी में 8, मोतिहारी में 6, सीतामढ़ी में 13 व बेतिया में 10 लोगों की डूब कर मौत हो जाने की खबर है। सीतामढ़ी, शिवहर व मोतिहारी शहर में बाढ़ का पानी घुस गया है। एनएच 104 पर पानी के बहाव से मधुबन-शिवहर पथ पर आवागमन ठप है। मधुबनी में बाढ़ को लेकर 19 अगस्त तक विद्यालयों को बंद कर दिया गया है। मधुबनी- सीतामढ़ी स्टेट हाईवे पर पानी चढ़ जाने से यातायात ठप हो गया है। दरभंगा-सीतामढ़ी रेलखंड पर भी ट्रेनों का परिचालन हुआ ठप है। शिवहर का सीतामढ़ी व मोतिहारी से सड़क संपर्क चौथे दिन भी बहाल नही हो सका है। शिवहर-सीतामढ़ी पथ में धनकौल के पास बुनियादगंज पुल का डायवर्सन तेज धार में बह गया है। दरभंगा में कमला-बलान नदी का तटबंध टूटने से घनश्यामपुर के नये इलाकों में पानी प्रवेस करने लगा है। लिहाजा वहां जबरदस्त अफरा तफरी मची है। मुजफ्फरपुर के औराई में 25 हजार व साहेबगंज में 13 हजार लोग बाढ़ से प्रभावित बताये जा रहें हैं। कटरा में पांच हजार से अधिक लोगों ने बांधी पर शरण लेने को विवश हो चुकें हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में बड़ी संख्या में लोगा अपने घरों की छतों पर फंसे है।