श्रेणी: West Bengal

  • मुर्शिदाबाद हिंसा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बड़ा बयान, कहा- लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे

    मुर्शिदाबाद हिंसा पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बड़ा बयान, कहा- लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे

    KKN गुरुग्राम डेस्क | उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और 24 परगना जिलों में हाल ही में हुई हिंसा पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मुख्यमंत्री ने कहा कि “लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे, दंगाई डंडे से ही मानेंगे।” इस बयान के साथ ही योगी आदित्यनाथ ने बंगाल सरकार पर कटाक्ष किया और राज्य में अराजकता फैलने का आरोप लगाया।

    मुर्शिदाबाद हिंसा: क्या हुआ था?

    पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और 24 परगना जिलों में हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क उठी थी। इस हिंसा में सड़कों पर जलते हुए वाहन, लूटे गए शॉपिंग मॉल और फार्मेसियों में तोड़फोड़ के दृश्य सामने आए। मुर्शिदाबाद के कई इलाके पूरी तरह से बंद थे, लोग अपने घरों में कैद हो गए थे, और सैकड़ों लोग मालदा जिले की तरफ पलायन कर गए थे।

    स्थानीय प्रशासन का कहना है कि स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन हिंसा की तस्वीरें और स्थानीय लोगों के बयान कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

    सीएम योगी ने पश्चिम बंगाल सरकार पर साधा निशाना

    सीएम योगी आदित्यनाथ ने मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “बंगाल में आजकल अराजकता फैली हुई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मौन हैं, और दंगाइयों को शांतिदूत कह रही हैं। लातों के भूत बातों से नहीं मानेंगे, इन्हें केवल डंडे की भाषा समझ में आती है।”

    योगी ने आगे कहा, “जो लोग बांग्लादेश के समर्थन में हैं, अगर उन्हें बांग्लादेश पसंद है तो उन्हें वहीं जाना चाहिए। भारत की धरती पर बोझ क्यों बने हुए हैं?”

    मुख्यमंत्री ने अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा पर जोर दिया

    योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि उन्हें पश्चिम बंगाल के न्यायालय का धन्यवाद करना चाहिए, जिसने केंद्रीय बलों को तैनात करने का आदेश दिया, ताकि अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने कहा कि केंद्रीय बलों की तैनाती से ही स्थिति कुछ हद तक नियंत्रण में आई है।

    “वहां के हिंदू समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा था, लेकिन अब केंद्रीय बलों की तैनाती से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हुई है। मैंने देखा है कि पूरे मामले में कांग्रेस, सपा, और टीएमसी चुप हैं। वे इस हिंसा पर बयान तक देने से बच रहे हैं,” योगी ने कहा।

    विरोधी पार्टियों पर हमला: कांग्रेस और सपा क्यों हैं चुप?

    सीएम योगी ने विपक्षी पार्टियों, खासकर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा), पर निशाना साधते हुए कहा कि ये पार्टियां हमेशा धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटती हैं, लेकिन जब हिंदू समुदाय पर हमला होता है, तो ये चुप रहती हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर क्यों इन दलों ने मुर्शिदाबाद और 24 परगना में हो रही हिंसा की कड़ी निंदा नहीं की।

    “जब हिंदू समुदाय पर हमला हो रहा था, तो इन दलों की खामोशी समझ से बाहर है। क्या ये धर्मनिरपेक्षता के नाम पर दंगाइयों का समर्थन कर रहे हैं?” योगी ने कहा।

    बंगाल में प्रशासनिक विफलता: क्या है असल समस्या?

    योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पिछले एक हफ्ते से मुर्शिदाबाद जल रहा है, लेकिन राज्य सरकार मौन है और कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार दंगाइयों को खुली छूट दे रही है, जो प्रदेश की कानून-व्यवस्था की स्थिति को खराब कर रहे हैं।

    “बंगाल जल रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री चुप हैं। ऐसी अराजकता को काबू करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। केंद्र को इस पर हस्तक्षेप करना चाहिए,” योगी ने कहा।

    सीएम योगी ने हरदोई में विकास परियोजनाओं का शिलान्यास किया

    सीएम योगी आदित्यनाथ मंगलवार को हरदोई में थे, जहां उन्होंने 729 विकास परियोजनाओं का शिलान्यास और उद्घाटन किया। इन परियोजनाओं में सड़कें, स्कूल, स्वास्थ्य केंद्र और सिंचाई परियोजनाएं शामिल हैं, जो प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करने का कार्य करेंगी।

    हालांकि, इस कार्यक्रम में उनकी बयानबाजी पर ज्यादा ध्यान दिया गया, खासकर मुर्शिदाबाद हिंसा पर उनकी टिप्पणियों ने राजनीतिक माहौल को गर्म कर दिया है।

    क्या बंगाल में प्रशासनिक ढांचा कमजोर है?

    पश्चिम बंगाल में बार-बार होने वाली हिंसा और राजनीतिक अराजकता सवालों के घेरे में आ चुकी है। यह पहली बार नहीं है जब राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ी हो। पिछले कुछ वर्षों में ऐसी घटनाओं ने यह स्पष्ट किया है कि राज्य प्रशासन इन हालातों से निपटने में विफल हो रहा है। मुर्शिदाबाद की ताजा घटना इस बात का उदाहरण है कि राज्य सरकार दंगाइयों को बढ़ावा दे रही है और सही समय पर कार्रवाई नहीं कर रही है।

    राजनीतिक बयानबाजी और बंगाल में आगामी चुनावों का प्रभाव

    सीएम योगी आदित्यनाथ का यह बयान आगामी 2026 विधानसभा चुनावों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भाजपा, जो बंगाल में अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रही है, ने इस घटना को “बंगाल में प्रशासनिक विफलता” के तौर पर प्रस्तुत किया है।

    पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी टीएमसी और भाजपा के बीच तीखी राजनीति चल रही है, और योगी आदित्यनाथ के बयान से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा इस तरह की घटनाओं का चुनावी मुद्दा बना सकती है।

    मुर्शिदाबाद हिंसा और उसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान ने फिर से राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा मुद्दों को उजागर किया है। चाहे वह दंगों की रोकथाम हो, राजनीतिक दलों की खामोशी, या केंद्रीय बलों का हस्तक्षेप – ये सभी मुद्दे महत्वपूर्ण हैं।

    अब यह देखना होगा कि पश्चिम बंगाल सरकार इस हिंसा पर काबू पाने के लिए कौन सी ठोस कदम उठाती है और क्या राज्य में स्थिति जल्द सामान्य हो पाएगी। वहीं, भाजपा अपनी राजनीति को और तेज करती नजर आ सकती है, खासकर आने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए।

  • ​वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर पश्चिम बंगाल में हिंसा: मुर्शिदाबाद और दक्षिण 24 परगना में तनावपूर्ण हालात

    ​वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर पश्चिम बंगाल में हिंसा: मुर्शिदाबाद और दक्षिण 24 परगना में तनावपूर्ण हालात

    KKN गुरुग्राम डेस्क | वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के लागू होने के बाद, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद और दक्षिण 24 परगना जिलों में व्यापक विरोध और हिंसा देखी गई है। यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में बदलाव लाता है, जिसे मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों ने धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला माना है।

    मुर्शिदाबाद: विरोध से हिंसा तक

    मुर्शिदाबाद में 8 अप्रैल 2025 को विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जिसमें प्रदर्शनकारियों ने उमरपुर में राष्ट्रीय राजमार्ग 12 को अवरुद्ध कर दिया और पुलिस वाहनों को आग के हवाले कर दिया। 11 अप्रैल को, प्रदर्शनकारियों ने स्थानीय सांसद खलीलुर रहमान के कार्यालय पर हमला किया और निमतिता रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों पर पथराव किया।

    12 अप्रैल को, एक हिंसक भीड़ ने हरगोबिंद दास और उनके बेटे चंदन दास की हत्या कर दी। इसके अलावा, 17 वर्षीय इजाज अहमद शेख की गोली लगने से मौत हो गई। इस हिंसा में कुल तीन लोगों की मौत हुई और दस से अधिक लोग घायल हुए। पुलिस ने 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया और प्रभावित क्षेत्रों में धारा 144 लागू की गई।

    दक्षिण 24 परगना: हिंसा का विस्तार

    मुर्शिदाबाद के बाद, दक्षिण 24 परगना के भांगर क्षेत्र में भी विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया, पुलिस वाहनों को आग लगा दी और आठ पुलिसकर्मी घायल हो गए। इस हिंसा में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

    खुफिया रिपोर्ट: हिंसा का पैटर्न

    खुफिया एजेंसियों के अनुसार, वक्फ अधिनियम के विरोध में हुई हिंसा का पैटर्न 2019 में नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के विरोध से मिलता-जुलता है। प्रदर्शनकारियों ने टेलीग्राम, सिग्नल और व्हाट्सएप जैसे एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स का उपयोग करके विरोध प्रदर्शन आयोजित किए और पुलिस स्टेशनों पर समन्वित हमले किए।

    राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

    • मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंसा की निंदा की और सभी समुदायों से शांति बनाए रखने की अपील की। उन्होंने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लागू नहीं करेगी।

    • विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने हिंसा को “पूर्व नियोजित” बताया और इसे लोकतांत्रिक संस्थानों पर हमला करार दिया। उन्होंने दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग की।

    • भाजपा राज्य अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि वह हिंसा के दौरान उचित कार्रवाई नहीं कर रही है और पुलिस को निष्क्रिय बना रही है।

    कानूनी और प्रशासनिक उपाय

    हिंसा की गंभीरता को देखते हुए, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने केंद्रीय बलों, विशेष रूप से सीमा सुरक्षा बल (BSF), को तैनात करने का आदेश दिया है ताकि कानून और व्यवस्था बहाल की जा सके। इसके अलावा, अदालत ने राज्य सरकार से स्थिति पर रिपोर्ट मांगी है।

    वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 के विरोध में पश्चिम बंगाल में हुई हिंसा ने राज्य की कानून व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। सरकार और प्रशासन को चाहिए कि वे स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी कदम उठाएं और सभी समुदायों के बीच शांति और सौहार्द बनाए रखें।

  • मुर्शिदाबाद हिंसा पर गरमाई सियासत: वक्फ एक्ट को लेकर बीजेपी-टीएमसी आमने-सामने

    मुर्शिदाबाद हिंसा पर गरमाई सियासत: वक्फ एक्ट को लेकर बीजेपी-टीएमसी आमने-सामने

    KKN गुरुग्राम डेस्क | पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ एक्ट को लेकर भड़की हिंसा ने पूरे राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है। इस हिंसा ने न सिर्फ स्थानीय स्तर पर तनाव बढ़ाया, बल्कि राज्य सरकार और केंद्र की मुख्य विपक्षी पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी तेज कर दिया है।

    सूत्रों के मुताबिक, वक्फ संपत्तियों को लेकर स्थानीय लोगों में असंतोष था, जो देखते ही देखते उग्र प्रदर्शन में बदल गया। कई जगहों पर आगजनी, पथराव और दुकानों को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं सामने आई हैं। पुलिस को हालात काबू में लाने के लिए अतिरिक्त बल तैनात करना पड़ा।

    बीजेपी का हमला: ममता बनर्जी इस्तीफा दें

    घटना के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर सीधा हमला बोलते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर दी है। भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि वक्फ एक्ट की आड़ में तृणमूल सरकार ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ कर रही है, जिससे राज्य में सांप्रदायिक तनाव बढ़ रहा है।

    “ममता सरकार राज्य को अराजकता की ओर ले जा रही है। हिंदू समुदाय की जमीनें जबरन वक्फ संपत्ति घोषित की जा रही हैं,” भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा।
    उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस इस कानून का इस्तेमाल अल्पसंख्यक वोट बैंक को खुश करने के लिए कर रही है।

    टीएमसी का पलटवार: बीजेपी कर रही है भड़काऊ राजनीति

    भाजपा के आरोपों पर तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने भी तीखा पलटवार किया है। टीएमसी ने कहा कि भाजपा जानबूझकर इस संवेदनशील मुद्दे को राजनीतिक रंग दे रही है और लोगों को गुमराह कर रही है।

    टीएमसी प्रवक्ता ने कहा,
    “वक्फ एक्ट एक वैधानिक कानून है, जो पूरे देश में लागू है। भाजपा इसे सांप्रदायिक रंग देकर समाज में नफरत फैला रही है।”

    टीएमसी का दावा है कि सरकार ने हालात को नियंत्रण में कर लिया है और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है।

    सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरों ने बढ़ाई गर्मी

    इस विवाद के बीच एक और मोड़ तब आया जब टीएमसी सांसद और पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई। भाजपा समर्थकों ने इसे हिंसा से जोड़ते हुए टीएमसी पर और हमले किए।

    हालांकि, जांच में सामने आया कि यह तस्वीर पुरानी है और वर्तमान घटना से कोई लेना-देना नहीं है। बावजूद इसके, इस वायरल सामग्री ने लोगों के बीच भ्रम और आक्रोश को और बढ़ाया।

    सरकार ने अफवाह फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं और सोशल मीडिया पर निगरानी तेज कर दी गई है।

    झारखंड और केरल में भी उठी आवाजें

    वक्फ एक्ट को लेकर बहस अब केवल बंगाल तक सीमित नहीं रही। झारखंड सरकार के मंत्री इर्फान अंसारी ने स्पष्ट कहा है कि राज्य में वक्फ एक्ट को उस रूप में लागू नहीं किया जाएगा, जैसा बंगाल में किया गया।

    उधर, केरल में वक्फ विरोधी रैली के दौरान हमास की तस्वीरें लहराने को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। विपक्षी दलों ने इस पर सवाल उठाए हैं कि भारत के स्थानीय मुद्दों में विदेशी संगठन का नाम क्यों जोड़ा जा रहा है।

    क्या है वक्फ एक्ट और क्यों हो रहा है विवाद?

    वक्फ एक्ट 1995 में पारित हुआ था, जिसका उद्देश्य मुस्लिम समुदाय की धार्मिक या परोपकारी संपत्तियों की सुरक्षा और प्रबंधन सुनिश्चित करना था। इसके अंतर्गत वक्फ बोर्डों को अधिकार दिया गया कि वे वक्फ संपत्तियों का नियंत्रण संभालें।

    हालांकि, कई राज्यों में आरोप लगे हैं कि इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है और गैर-मुस्लिमों की जमीनों को भी वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया जा रहा है, जिससे सामाजिक तनाव बढ़ रहा है।

    राजनीतिक असर और चुनावी समीकरण

    राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुर्शिदाबाद की हिंसा आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों पर असर डाल सकती है। भाजपा इसे ‘कानून व्यवस्था’ और ‘संविधानिक अधिकारों’ का मुद्दा बनाकर जनता को लामबंद करने की कोशिश कर रही है, वहीं टीएमसी इसे भाजपा की ‘ध्रुवीकरण की साजिश’ बता रही है।

    इन घटनाओं का असर बंगाल ही नहीं, बल्कि झारखंड, बिहार और असम जैसे पड़ोसी राज्यों की राजनीति पर भी पड़ सकता है।

    मुर्शिदाबाद की घटना केवल कानून व्यवस्था का मामला नहीं है, बल्कि यह सामाजिक संतुलन, राजनीतिक जिम्मेदारी और संवैधानिक अधिकारों की भी परीक्षा है।
    जहां एक ओर राजनीति अपनी जगह है, वहीं प्रशासन और समाज को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी कानून का उपयोग लोगों को बांटने या डरााने के लिए न हो।

    फिलहाल प्रशासन ने हालात को काबू में बताया है, लेकिन स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि क्या यह मामला राजनीतिक हथियार बनकर रह जाएगा या इसे सुलझाने के लिए कोई ठोस कदम उठाया जाएगा।

  • वक्फ बिल को लेकर बंगाल में तनाव, 3 की मौत, भाजपा ने ममता सरकार पर साधा निशाना

    वक्फ बिल को लेकर बंगाल में तनाव, 3 की मौत, भाजपा ने ममता सरकार पर साधा निशाना

    KKN गुरुग्राम डेस्क | पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में वक्फ कानून को लेकर अचानक हुई हिंसा ने प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा दी है। ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार, इस घटना में तीन लोगों की जान चली गई जबकि कई लोग घायल हुए हैं। इस मुद्दे को लेकर अब भाजपा और तृणमूल कांग्रेस (TMC) के बीच तीखी राजनीतिक बयानबाज़ी शुरू हो गई है।

    भाजपा ने ममता बनर्जी सरकार पर “तुष्टीकरण की राजनीति” का आरोप लगाते हुए कहा है कि “बंगाल में हिंदू सुरक्षित नहीं हैं।” वहीं TMC ने हिंसा को “स्थानीय विवाद” बताया है।

    वक्फ बिल: विवाद का मूल कारण क्या है?

    वक्फ एक्ट एक केंद्रीय कानून है जो मुसलमानों द्वारा धर्मार्थ कार्यों के लिए दी गई संपत्तियों के प्रबंधन से संबंधित है। राज्य वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों की देखरेख करता है। लेकिन हाल के वर्षों में कई जगह यह आरोप लगे हैं कि वक्फ बोर्ड द्वारा ज़मीन कब्ज़ा किया जा रहा है — वो भी बिना सही दस्तावेज़ों या नोटिस के।

    लोगों की प्रमुख शिकायतें:

    • बिना पूर्व जानकारी के ज़मीन का अधिग्रहण

    • दस्तावेज़ों की पारदर्शिता की कमी

    • धार्मिक असंतुलन और पक्षपात के आरोप

    • सरकार की निष्क्रियता या चुप्पी

    हिंसा का घटनाक्रम

    स्थानीय सूत्रों के अनुसार, जब कुछ लोगों ने वक्फ बोर्ड द्वारा ज़मीन चिन्हित करने का विरोध किया, तब दो समुदायों के बीच कहासुनी शुरू हुई। यह जल्दी ही हिंसक झड़प में बदल गई। हालात इतने बिगड़ गए कि भीड़ ने कुछ घरों में तोड़फोड़ की और आगजनी भी की।

    प्रशासन की पुष्टि:

    • 3 लोगों की मौत हुई है

    • कई अन्य घायल और अस्पताल में भर्ती

    • भारी पुलिस बल और RAF की तैनाती

    • इंटरनेट सेवा अस्थायी रूप से बंद

    • धारा 144 लागू

    भाजपा का तीखा हमला: “ममता सरकार हिंदुओं को असुरक्षित छोड़ रही”

    भाजपा ने ममता बनर्जी सरकार पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि यह हिंसा सरकार की तुष्टीकरण नीति का परिणाम है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा:

    “वक्फ कानून की आड़ में ज़मीन हड़पी जा रही है और आवाज़ उठाने वालों की हत्या की जा रही है। यह ममता सरकार की नाकामी नहीं, उनकी नीति है।”

    भाजपा ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है और राज्यपाल से मिलकर न्यायिक जांच की मांग की है।

    टीएमसी का पलटवार: “यह राजनीतिक रंग देने की कोशिश”

    तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को राजनीतिक चाल बताया है। सरकार का कहना है कि यह स्थानीय स्तर का भूमि विवाद है, ना कि सांप्रदायिक मुद्दा।

    राज्य के गृह विभाग की ओर से जारी बयान में कहा गया:

    “प्रशासन मामले की गंभीरता से जांच कर रहा है। किसी भी संप्रदाय को निशाना नहीं बनाया गया है। विपक्ष इसे चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है।”

    मुर्शिदाबाद की संवेदनशीलता: इतिहास दोहराता है खुद को?

    मुर्शिदाबाद पश्चिम बंगाल का एक धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से संवेदनशील जिला रहा है। यहां पहले भी कई बार सांप्रदायिक तनाव देखे गए हैं। भूमि विवाद, धार्मिक आयोजन और चुनावों के दौरान अक्सर तनाव की स्थिति बनती रही है।

    ग्राउंड रिपोर्ट: डर के साए में जी रहे लोग

     संवाददाता की ग्राउंड रिपोर्ट के अनुसार, घटना स्थल के आस-पास के गांवों में सन्नाटा पसरा है। लोगों में डर है कि कहीं फिर से हिंसा न भड़क उठे। स्कूल, बाजार, और परिवहन सेवा बंद हैं। कई परिवार गांव छोड़कर रिश्तेदारों के घर चले गए हैं।

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, मांगी रिपोर्ट

    घटना को देखते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से 72 घंटे में रिपोर्ट मांगी है।

    अदालत की टिप्पणी:

    “कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य का कर्तव्य है। यदि वक्फ कानून का दुरुपयोग हो रहा है, तो उसे पारदर्शिता से सुलझाया जाए।”

    राजनीतिक असर: 2026 विधानसभा चुनावों से पहले तनावपूर्ण माहौल

    पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं और ऐसे में धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दे चुनावी रणनीति का हिस्सा बनते जा रहे हैं। भाजपा इस मुद्दे को “हिंदू विरोधी नीति” के तौर पर प्रचारित कर रही है, वहीं TMC खुद को अल्पसंख्यक हितैषी बताने में लगी है।

    संभावित असर:

    • ग्रामीण वोट बैंक पर असर

    • भाजपा की “हिंदुत्व” राजनीति को बल

    • ममता सरकार पर दबाव बढ़ेगा

    मुर्शिदाबाद में हुई इस हिंसा ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीतिक तुष्टीकरण प्रशासनिक निष्क्रियता से अधिक खतरनाक है? अगर वक्फ कानून का पारदर्शिता से पालन नहीं हुआ, तो भविष्य में इससे और अधिक सांप्रदायिक तनाव पैदा हो सकते हैं।

    प्रदेश और देश के लिए अब ज़रूरी है कि धार्मिक कानूनों की समीक्षा, पारदर्शिता और साम्प्रदायिक सौहार्द को प्राथमिकता दी जाए — ताकि फिर किसी निर्दोष की जान ना जाए।

  • ​वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ पश्चिम बंगाल में हिंसक प्रदर्शन: 15 पुलिसकर्मी घायल, 118 गिरफ्तार

    ​वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ पश्चिम बंगाल में हिंसक प्रदर्शन: 15 पुलिसकर्मी घायल, 118 गिरफ्तार

    KKN गुरुग्राम डेस्क | पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के विरोध में शुक्रवार को व्यापक हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारियों ने सड़क और रेल यातायात को बाधित किया, वाहनों में आगजनी की, और पुलिस पर पथराव किया। इस हिंसा में 15 पुलिसकर्मी घायल हो गए, जबकि 118 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

    मुख्य घटनाक्रम

    1. मुर्शिदाबाद में हिंसा

    मुर्शिदाबाद जिले के सुत्ती क्षेत्र में शुक्रवार को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग-12 को अवरुद्ध कर दिया और पुलिस वाहनों पर पथराव किया। प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस वैन और सार्वजनिक बसों को आग के हवाले कर दिया, जिससे क्षेत्र में अफरा-तफरी मच गई।

    2. जुमे की नमाज के बाद विरोध प्रदर्शन

    पुलिस अधिकारियों के अनुसार, जुमे की नमाज के बाद मुस्लिम समुदाय के लोग वक्फ कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए एकत्र हुए। उन्होंने शमशेरगंज में डाकबंगला मोड़ से सुत्ती के सजुर मोड़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग-12 के एक हिस्से को अवरुद्ध कर दिया।

    3. पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प

    प्रदर्शन के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने एक पुलिस वैन पर पथराव किया, जिससे पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई। इसमें लगभग 15 पुलिसकर्मी और 10 नागरिक घायल हो गए। एक नाबालिग लड़की को भी गोली लग गई, जिसका कोलकाता के एक अस्पताल में इलाज चल रहा है।

    4. पुलिस की कार्रवाई

    कुछ प्रदर्शनकारियों ने पुलिसकर्मियों पर बम जैसे पदार्थ फेंके, जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया और आंसू गैस के गोले छोड़े। अब तक 118 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।

    5. रेल सेवाएं बाधित

    मालदा में प्रदर्शनकारियों ने रेल पटरियों पर धरना दिया, जिससे ट्रेन सेवाएं प्रभावित हुईं। पूर्वी रेलवे के फरक्का-आज़िमगंज खंड पर भी ट्रेन सेवाएं बाधित हुईं।

    6. राज्यपाल की प्रतिक्रिया

    राज्यपाल सी वी आनंद बोस ने राज्य सरकार को संवेदनशील क्षेत्रों में गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ तत्काल और प्रभावी कार्रवाई करने को कहा है।

    7. आलिया विश्वविद्यालय के छात्रों का प्रदर्शन

    आलिया विश्वविद्यालय के छात्रों ने भी शुक्रवार को वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में रैली निकाली और कानून को वापस लेने की मांग की। रैली में शामिल लोगों ने पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोधकों को पार करने के बाद पार्क सर्कस क्षेत्र में ‘सेवन पॉइंट क्रॉसिंग’ को भी कुछ समय के लिए अवरुद्ध कर दिया।

    8. बीएसएफ की तैनाती

    मुर्शिदाबाद के जंगीपुर में वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए। स्थिति बिगड़ने पर, कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बीएसएफ के जवानों को तैनात किया गया है।

    9. राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

    भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि वह बंगाल को “दूसरा बांग्लादेश” बनाना चाहती हैं। वहीं, नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने राज्य की पुलिस और मंत्री को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि विरोध करना सबका अधिकार है, लेकिन यह हिंसक तरीका बिल्कुल गलत है।

    वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 के खिलाफ पश्चिम बंगाल में भड़की हिंसा ने राज्य की कानून-व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रदर्शनकारियों की हिंसक गतिविधियों से न केवल सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचा है, बल्कि आम नागरिकों की सुरक्षा भी खतरे में पड़ी है। राज्य सरकार को चाहिए कि वह स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे।

  • पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर विवाद: ममता बनर्जी का विरोध और राज्य में उभरता तनाव

    पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर विवाद: ममता बनर्जी का विरोध और राज्य में उभरता तनाव

    KKN गुरुग्राम डेस्क | पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को लेकर राजनीतिक और सामाजिक तनाव बढ़ता जा रहा है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कानून को राज्य में लागू न करने की घोषणा की है, जबकि राज्य के विभिन्न हिस्सों में इस कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं।

    वक्फ संशोधन अधिनियम 2025: एक परिचय

    वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 को हाल ही में संसद के दोनों सदनों से पारित किया गया और राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद इसे कानून का दर्जा मिला। यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी में सुधार के उद्देश्य से लाया गया है, जिससे वक्फ बोर्डों की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़े।

    ममता बनर्जी का विरोध

    मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस अधिनियम के खिलाफ खुलकर विरोध जताया है। उन्होंने कहा है कि यह कानून राज्य के अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्तियों के अधिकारों को कमजोर करता है और उनकी सरकार इसे पश्चिम बंगाल में लागू नहीं होने देगी। बनर्जी ने जैन समुदाय के एक कार्यक्रम में कहा, “मैं अल्पसंख्यक समुदाय और उनकी संपत्तियों की रक्षा करूंगी।”

    संवैधानिक प्रावधान और राज्यों की भूमिका

    भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 और 246 के तहत संसद को कानून बनाने का अधिकार है, और वक्फ एक समवर्ती सूची का विषय है। इसका अर्थ है कि केंद्र और राज्य दोनों इस पर कानून बना सकते हैं, लेकिन यदि कोई टकराव होता है, तो केंद्रीय कानून को प्राथमिकता दी जाती है। अनुच्छेद 254 के अनुसार, केंद्रीय कानून राज्य कानूनों पर वरीयता रखते हैं, और अनुच्छेद 256 के तहत राज्य सरकारें केंद्र के निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

    मुर्शिदाबाद में हिंसा और विरोध प्रदर्शन

    मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं। प्रदर्शनकारियों ने रेलवे ट्रैक पर कब्जा कर लिया, ट्रेनों पर पथराव किया और पुलिस पर हमला किया, जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बीएसएफ के जवानों को तैनात किया गया है।

    सिद्दीकुल्ला चौधरी की भूमिका

    राज्य के लाइब्रेरी मंत्री और जमीयत उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश अध्यक्ष सिद्दीकुल्ला चौधरी इस विरोध आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने कोलकाता में एक रैली में कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो वे कोलकाता में बड़े पैमाने पर ट्रैफिक जाम करेंगे। चौधरी ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने उन्हें आश्वासन दिया है कि यह कानून राज्य में लागू नहीं किया जाएगा।

    राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

    भाजपा ने ममता बनर्जी पर आरोप लगाया है कि वह वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं और राज्य में अराजकता फैला रही हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, “बंगाल को अराजकता और आग में झोंका जा रहा है।”

    वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 पर पश्चिम बंगाल में जारी विवाद ने राज्य और केंद्र सरकार के बीच टकराव की स्थिति पैदा कर दी है। जहां केंद्र सरकार इस कानून को लागू करने पर जोर दे रही है, वहीं राज्य सरकार और कुछ मुस्लिम संगठन इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और इसका राज्य की राजनीति और सामाजिक समरसता पर क्या प्रभाव पड़ता है।

  • पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन अधिनियम पर ममता बनर्जी का बड़ा एलान: राज्य में लागू नहीं होगा यह कानून

    पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन अधिनियम पर ममता बनर्जी का बड़ा एलान: राज्य में लागू नहीं होगा यह कानून

    KKN गुरुग्राम डेस्क | वक्फ संशोधन अधिनियम पर सरकार और विपक्षी दलों के बीच तकरार लगातार बढ़ती जा रही है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून संविधान के खिलाफ है, जबकि सरकार का कहना है कि इस कानून से वक्फ से जुड़े भूमि विवादों में कमी आएगी और वक्फ बोर्ड का कार्य और अधिक पारदर्शी और जवाबदेह होगा। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कानून के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए ऐलान किया कि यह कानून राज्य में लागू नहीं होगा

    ममता बनर्जी ने न केवल वक्फ संशोधन अधिनियम पर विरोध जताया, बल्कि इस कानून के समय और इसके उद्देश्य पर भी सवाल उठाए। इस आर्टिकल में हम आपको ममता बनर्जी के बयान, वक्फ कानून की प्रमुख बातें और बंगाल में इस मुद्दे से जुड़े हालात पर चर्चा करेंगे।

    ममता बनर्जी का एलान: बंगाल में लागू नहीं होगा वक्फ संशोधन अधिनियम

    ममता बनर्जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री, ने 9 अप्रैल 2025 को कोलकाता में जैन समुदाय के एक कार्यक्रम में यह बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा, “मैं अल्पसंख्यक समुदाय और उनकी संपत्तियों की रक्षा करूंगी। मैं जानती हूं कि वक्फ अधिनियम के लागू होने से आपको तकलीफ हुई है, लेकिन आप मुझ पर भरोसा रखें, बंगाल में ऐसा कुछ नहीं होगा जिससे कोई बांटकर शासन कर सके।” ममता ने यह भी कहा कि बांग्लादेश की स्थिति को देखते हुए, वक्फ संशोधन विधेयक को पारित करना गलत था।

    ममता बनर्जी का यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक समुदाय की बड़ी संख्या है, और यह कानून धार्मिक और सांप्रदायिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। ममता का यह विरोध सीधे तौर पर केंद्र सरकार और भा.ज.पा. द्वारा किए गए इस कदम के खिलाफ है।

    वक्फ संशोधन अधिनियम क्या है?

    वक्फ संशोधन अधिनियम को पिछले हफ्ते लोकसभा और राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था। इसके बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी। सरकार का तर्क है कि इस कानून के लागू होने से वक्फ बोर्डों को पारदर्शी, कुशल और जवाबदेह बनाने में मदद मिलेगी, जिससे वक्फ से जुड़ी भूमि विवादों को सुलझाया जा सकेगा।

    इस कानून के अंतर्गत, वक्फ बोर्डों की निगरानी बढ़ाई जाएगी और इसमें सुधार किए जाएंगे ताकि उनके द्वारा प्राप्त संपत्तियों का सही उपयोग हो सके। हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि यह कानून संविधान के खिलाफ है और यह धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है।

    विपक्ष का विरोध और हिंसा का घटनाक्रम

    पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो गए हैं। जंगीपुर इलाके में प्रदर्शनकारियों ने पुलिस से संघर्ष किया और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। इस हिंसा के बाद पुलिस प्रशासन ने धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू की, जिससे सार्वजनिक स्थानों पर पांच या उससे अधिक लोगों के एकत्रित होने पर पाबंदी लगा दी गई।

    विरोध के बीच भा.ज.पा. नेता सुवेंदु अधिकारी ने ममता सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि राज्य सरकार कानून-व्यवस्था बनाए रखने में नाकाम रही है। अधिकारी ने आरोप लगाया कि ममता बनर्जी वोट बैंक की राजनीति कर रही हैं और स्थिति को बिगाड़ने का काम कर रही हैं। उन्होंने केंद्रीय बलों की तैनाती की मांग की और राज्य के मुख्य सचिव से हस्तक्षेप करने की अपील की।

    वक्फ संशोधन अधिनियम और बंगाल का राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

    ममता बनर्जी का यह विरोध सीधे तौर पर केंद्र सरकार और भा.ज.पा. के खिलाफ है। बंगाल में अल्पसंख्यकों का काफी प्रभाव है, और ममता का कहना है कि यह कानून किसी एक विशेष समुदाय के खिलाफ हो सकता है। इसके साथ ही, ममता ने बांग्लादेश का उदाहरण दिया और इस कानून के खिलाफ अपनी चिंताओं को उजागर किया।

    ममता का यह बयान राज्य में एक मजबूत धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर राजनीति करने का संकेत देता है। उनके अनुसार, वक्फ कानून के जरिए केवल एक समुदाय को फायदा पहुंचाने की कोशिश की जा रही है, जो बंगाल में सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकता है।

    केंद्र और राज्य के बीच संघर्ष: वक्फ कानून का भविष्य

    वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर अब दो मुख्य खेमे बन गए हैं – एक जो केंद्र सरकार के पक्ष में खड़ा है और दूसरा जो ममता बनर्जी के नेतृत्व में इस कानून के विरोध में है। ममता का स्पष्ट कहना है कि इस कानून को बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा। इस पर केंद्रीय सरकार ने नाराजगी जताई है, और राज्य सरकार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात की है।

    यह राजनीतिक टकराव एक बड़े संघर्ष की ओर बढ़ सकता है, खासकर जब यह मुद्दा वोट बैंक राजनीति और धार्मिक समीकरणों से जुड़ा हो। अगर राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव जारी रहता है, तो यह मुद्दा आगे चलकर संविधान और राज्य अधिकार के विवाद में बदल सकता है।

    राज्य में हिंसा और सुरक्षा व्यवस्था

    वक्फ संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़कने से मुर्शिदाबाद और अन्य जिलों में स्थिति तनावपूर्ण हो गई है। पुलिस और प्रशासन ने इसे नियंत्रित करने के लिए कड़ी कार्रवाई की है। सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया गया है, और सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी प्रकार के प्रदर्शन पर रोक लगा दी गई है।

    हालांकि, विपक्षी दलों का कहना है कि ममता सरकार इस स्थिति को नियंत्रित करने में विफल रही है और इस विरोध को शांत करने के लिए वह कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं।

    ममता बनर्जी का वक्फ संशोधन अधिनियम के विरोध में यह कदम राज्य की राजनीति को और जटिल बना सकता है। जहां एक ओर केंद्र सरकार इसे एक सुधार के रूप में पेश कर रही है, वहीं दूसरी ओर ममता बनर्जी इसे धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यक अधिकारों के खिलाफ मान रही हैं।

    इस राजनीतिक संघर्ष का भविष्य आगामी विधानसभा चुनावों और क्षेत्रीय राजनीति पर गहरा असर डाल सकता है। वक्फ कानून के खिलाफ पश्चिम बंगाल में जारी विरोध प्रदर्शन और हिंसा, राज्य में एक नए राजनीतिक माहौल का निर्माण कर सकती है।

  • कोलकाता में रामनवमी जुलूस पर पथराव का आरोप, भाजपा और तृणमूल आमने-सामने

    कोलकाता में रामनवमी जुलूस पर पथराव का आरोप, भाजपा और तृणमूल आमने-सामने

    KKN गुरुग्राम डेस्क | कोलकाता के पार्क सर्कस इलाके में रामनवमी के एक जुलूस पर कथित पथराव की खबर ने बंगाल की राजनीति को फिर से गर्मा दिया है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का आरोप है कि भगवा झंडा लेकर चलने और ‘जय श्रीराम’ के नारे लगाने की वजह से यह हमला हुआ।

    भाजपा का दावा: ‘हिंदू पहचान पर हमला’

    भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा:

    “भगवा झंडा और भगवान राम का नाम लेना अब बंगाल में अपराध हो गया है। यह सरकार सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करती है।”

    भाजपा ने सोशल मीडिया पर टूटे वाहनों के वीडियो भी साझा किए हैं, और दावा किया है कि पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

    कोलकाता पुलिस का बयान: ‘अनुमति नहीं थी’

    पुलिस ने साफ किया कि इस क्षेत्र में किसी जुलूस की अनुमति नहीं ली गई थी। एक वाहन को नुकसान पहुंचा, लेकिन कोई बड़ी हिंसा नहीं हुई। जांच शुरू हो गई है, और पुलिस लोगों से अफवाह न फैलाने की अपील कर रही है।

    तृणमूल कांग्रेस का आरोप: ‘चुनाव से पहले माहौल बिगाड़ने की साजिश’

    टीएमसी नेता कुणाल घोष ने कहा:

    “यह सब स्क्रिप्टेड है। भाजपा हर चुनाव से पहले ऐसा करती है – पहले तनाव, फिर वोटों की राजनीति।”

    रामनवमी: अब सिर्फ त्योहार नहीं, राजनीतिक टूल

    बंगाल में रामनवमी अब केवल आस्था का पर्व नहीं रहा। भाजपा इसे सांस्कृतिक पुनर्जागरण की तरह प्रस्तुत कर रही है, जबकि टीएमसी सांप्रदायिक सौहार्द की बात करती है। दोनों पक्षों की बयानबाजी से जनता असमंजस में है

    कोलकाता की घटना से ये साफ हो गया कि जब राजनीति त्योहारों में घुसपैठ करती है, तो न त्योहार सुरक्षित रहते हैं और न आम नागरिक।

    सवाल यही है – क्या हम त्योहारों को राजनीति से बचा सकते हैं, या हर बार यही कहानी दोहराई जाएगी?

  • 📚 बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला: 25,000 से अधिक शिक्षकों की नौकरी गई

    📚 बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला: 25,000 से अधिक शिक्षकों की नौकरी गई

    KKN गुरुग्राम डेस्क | वर्ष 2016 में पश्चिम बंगाल के स्कूल सर्विस कमीशन (SSC) द्वारा शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। परीक्षा पास करने वाले उम्मीदवारों ने मेरिट लिस्ट में जगह बनाई और नौकरी हासिल की।

    लेकिन 2018 में एक मामले के चलते घोटाले की परतें खुलनी शुरू हुईं। बबीता सरकार नाम की एक उम्मीदवार को पहले मेरिट लिस्ट में जगह मिली, लेकिन बाद में बिना किसी स्पष्ट कारण के नई मेरिट लिस्ट जारी की गई, जिसमें तृणमूल कांग्रेस नेता के परिजन अंकिता अधिकारी का नाम शीर्ष पर आ गया—जबकि उनके अंक बबीता से कम थे।

    यह मामला कलकत्ता हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

    ⚖️ सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पूरे पैनल की नियुक्तियां रद्द

    सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी में सुनवाई पूरी करने के बाद 4 अप्रैल 2025 को फैसला सुनाया और हाईकोर्ट के फैसले को बहाल रखते हुए, 2016 के पूरे भर्ती पैनल को रद्द कर दिया। इसका मतलब, करीब 25,000 शिक्षकों और स्टाफ की नियुक्तियां अब अमान्य हो चुकी हैं।

    ✅ राहत: सिर्फ उन सात हज़ार लोगों को वेतन लौटाना होगा जिन्होंने OMR शीट काली छोड़ी थी

    पहले हाईकोर्ट ने सभी को वेतन लौटाने का आदेश दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि केवल OMR शीट न भरने वालों को ही पैसा लौटाना होगा।

    👨‍🏫 शिक्षकों का दर्द: “अब क्या करेंगे हम?”

    🔸 दीपक मंडल (दक्षिण 24 परगना):

    “हम एक साल से उम्मीद और निराशा के बीच जी रहे थे। अब तो अंधेरा ही अंधेरा है।”

    🔸 प्रणब बर्मन (उत्तर 24 परगना):

    “मैंने योग्यता से नौकरी हासिल की थी, अब कोई दिशा नहीं दिख रही।”

    🧾 नियुक्ति में धांधली कैसे हुई?

    जांच में पाया गया कि कई उम्मीदवारों को OMR शीट सुधार के जरिए अवैध रूप से अधिक अंक दिए गए। फिर उन उत्तर पुस्तिकाओं को नष्ट कर दिया गया ताकि घोटाले के सबूत न बचें।

    यह सब रिटायर्ड जस्टिस रंजीत बाग की रिपोर्ट और CBI/ED की जांच में सामने आया। दोषी अधिकारियों ने आरटीआई के तहत पुनर्मूल्यांकन के नाम पर मार्क्स में फेरबदल किया।

    🏛️ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया

    सीएम ममता बनर्जी ने शिक्षा मंत्री, मुख्य सचिव और अधिकारियों के साथ राज्य सचिवालय में बैठक की। उन्होंने कहा:

    “कुछ लोगों की गलती की सजा हज़ारों लोगों को दी जा रही है। हम 3 महीने में नई भर्ती शुरू करेंगे।”

    📅 7 अप्रैल को नेताजी इंडोर स्टेडियम में होगी प्रभावित शिक्षकों से मुलाकात

    सरकार ने भरोसा दिया है कि योग्य उम्मीदवारों को नए सिरे से प्रक्रिया में मौका दिया जाएगा।

    🏫 स्कूलों पर असर: “अब कौन पढ़ाएगा?”

    • जामतला भगवाचंद्र हाईस्कूल (द. 24 परगना): 11 शिक्षक नौकरी से बाहर

    • अर्जुनपुर हाई स्कूल (मुर्शिदाबाद): 60 में से 36 शिक्षक नौकरी से गए

    हेडमास्टर शांतनु घोषाल:

    “गणित और विज्ञान के शिक्षक चले गए। अब पढ़ाई कैसे होगी?”

  • राम नवमी पर बंगाल में बढ़ेगा उत्साह: भाजपा का दावा – 1.5 करोड़ हिंदू जुलूसों में शामिल होंगे

    राम नवमी पर बंगाल में बढ़ेगा उत्साह: भाजपा का दावा – 1.5 करोड़ हिंदू जुलूसों में शामिल होंगे

    KKN गुरुग्राम डेस्क | राम नवमी, भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव का पर्व, हर वर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष पश्चिम बंगाल में राम नवमी के अवसर पर आयोजित होने वाले जुलूसों और रैलियों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि देखने को मिल रही है। भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया है कि इस बार राम नवमी पर 1.5 करोड़ हिंदू रैलियों और शोभायात्राओं में भाग लेंगे। भाजपा की ओर से किए गए इस दावे ने राज्य की राजनीति को फिर से गर्म कर दिया है, वहीं राज्य सरकार भी सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सतर्क है। इस लेख में हम बंगाल में राम नवमी के जुलूसों की तैयारियों, सुरक्षा उपायों और राजनीतिक संदर्भ पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

    राम नवमी पर बढ़ी रैलियों की संख्या: 2,000 से अधिक रैलियां

    राम नवमी के अवसर पर इस बार 2,000 से ज्यादा रैलियां आयोजित होने की योजना बनाई गई है। इस वर्ष इन जुलूसों में भाजपा का एक बड़ा दावा है कि 1.5 करोड़ हिंदू इस धार्मिक अवसर पर अपनी भागीदारी दर्ज कराएंगे। इससे पहले, पश्चिम बंगाल में राम नवमी के दौरान आयोजित रैलियों में बड़ी संख्या में लोग शामिल होते रहे हैं, लेकिन इस बार यह संख्या अभूतपूर्व बताई जा रही है।

    राम नवमी के दिन आयोजित होने वाली ये शोभायात्राएं केवल धार्मिक उत्सव नहीं हैं, बल्कि पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के बीच तीव्र राजनीतिक संघर्ष का भी हिस्सा बन गई हैं। भाजपा का आरोप है कि राज्य सरकार इस अवसर पर हिंदू समुदाय की धार्मिक भावनाओं का सम्मान नहीं करती, जबकि टीएमसी इसे एक राजनीतिक हथियार मानती है।

    राज्य में सुरक्षा व्यवस्था पर कड़ी निगरानी: ड्रोन से निगरानी

    राम नवमी के जुलूसों की बढ़ती संख्या और उसमें भाग लेने वालों की विशाल संख्या को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने हाई अलर्ट जारी किया है। राज्य के प्रमुख शहरों और महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अतिरिक्त पुलिस बल तैनात किया गया है। इसके अलावा, ड्रोन निगरानी के माध्यम से जुलूसों पर नजर रखी जाएगी, ताकि किसी भी अप्रत्याशित घटना से निपटा जा सके। यह कदम सुरक्षा को सुनिश्चित करने और किसी भी हिंसा को रोकने के लिए उठाया गया है।

    राज्य सरकार ने बिजली की आपूर्ति को कुछ क्षेत्रों में अस्थायी रूप से बंद करने की भी योजना बनाई है ताकि किसी भी प्रकार की अशांति की स्थिति में जल्दी से कार्रवाई की जा सके। पिछले कुछ वर्षों में राम नवमी के दौरान होने वाली हिंसा को देखते हुए ये सुरक्षा उपाय महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।

    भाजपा और टीएमसी के बीच राजनीतिक संघर्ष

    राम नवमी के जुलूसों का महत्व केवल धार्मिक उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच चल रहे राजनीतिक संघर्ष का हिस्सा भी बन चुका है। भाजपा के वरिष्ठ नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया है कि 1.5 करोड़ हिंदू इस बार राम नवमी के जुलूसों में हिस्सा लेंगे। इस बयान ने राज्य की राजनीति को गरमा दिया है, क्योंकि टीएमसी सरकार का कहना है कि भाजपा ने धार्मिक आयोजनों को राजनीतिक एजेंडे के रूप में इस्तेमाल किया है।

    टीएमसी के नेता आरोप लगाते हैं कि भाजपा ने राम नवमी को एक राजनीतिक मंच के रूप में बदल दिया है और इसका उद्देश्य केवल मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाना है। वहीं, भाजपा का कहना है कि राज्य सरकार हिंदू धार्मिक आयोजनों को दबाने का प्रयास कर रही है और उन्हें उचित सुरक्षा नहीं देती।

    राम नवमी और पश्चिम बंगाल की सांप्रदायिक स्थिति

    पिछले कुछ वर्षों में, पश्चिम बंगाल में राम नवमी के जुलूसों के दौरान सांप्रदायिक तनाव और हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं। 2021 और 2022 में होने वाली हिंसा ने राज्य में एक गंभीर संकट उत्पन्न कर दिया था। इन घटनाओं में विभिन्न समुदायों के बीच झड़पें और आरोप-प्रत्यारोप देखने को मिले थे, जिससे राज्य की सुरक्षा स्थिति पर सवाल उठे थे।

    भले ही राम नवमी का आयोजन धार्मिक उद्देश्यों के तहत किया जाता है, लेकिन यह दिन राज्य के राजनीतिक और सांप्रदायिक तनावों का केंद्र बन चुका है। भाजपा और टीएमसी के नेताओं के बयानों और आरोप-प्रत्यारोप ने इस अवसर को और भी विवादित बना दिया है।

    व्यापारिक और सामाजिक प्रभाव

    राम नवमी के अवसर पर आयोजित होने वाले विशाल जुलूसों का प्रभाव न केवल धार्मिक और राजनीतिक क्षेत्र में, बल्कि व्यापारिक दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। इस दिन खासकर हिंदू व्यापारियों के लिए अच्छे व्यापार का अवसर होता है। पूजा की सामग्रियों, राम के चित्र, मूर्ति और अन्य धार्मिक सामग्री की बिक्री में भारी बढ़ोतरी देखी जाती है। स्थानीय दुकानदारों को इस अवसर पर विशेष रूप से लाभ होता है।

    इसके अलावा, यातायात और सार्वजनिक सेवाओं पर भी असर पड़ता है, क्योंकि जुलूसों के कारण कई रास्तों को बंद करना पड़ता है, जिससे आम लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से कोलकाता जैसे शहरों में, जहां अधिकतम रैलियां होती हैं, वहां यातायात नियंत्रण और सुरक्षा को लेकर अतिरिक्त प्रबंध किए जाते हैं।

    राम नवमी 2025 पर बंगाल में होने वाली रैलियां केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि राजनीतिक बयानों और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रतीक बन चुकी हैं। भाजपा का दावा है कि इस बार 1.5 करोड़ हिंदू जुलूसों में भाग लेंगे, जो राज्य में एक नई राजनीतिक लहर की शुरुआत कर सकते हैं। वहीं, राज्य सरकार ने सुरक्षा को लेकर कड़े कदम उठाए हैं, ताकि किसी भी प्रकार की हिंसा से बचा जा सके।

    इस वर्ष की राम नवमी को लेकर बंगाल में एक विशेष प्रकार की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति बनी हुई है, जो राज्य के आगामी चुनावों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। अब यह देखना होगा कि राम नवमी के इस पर्व में कितना धार्मिक उल्लास देखने को मिलता है और कितनी राजनीति का प्रभाव इसे प्रभावित करता है।

  • ममता बनर्जी के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के भाषण में विरोध: विरोधियों से कहा, ‘बंगाल जाकर पार्टी को मजबूत करो’

    ममता बनर्जी के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के भाषण में विरोध: विरोधियों से कहा, ‘बंगाल जाकर पार्टी को मजबूत करो’

    KKN गुरुग्राम डेस्क | पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में भाषण दिया, जहां कुछ छात्रों ने उनका विरोध किया। भाषण के दौरान अचानक कुछ छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसके बाद ममता बनर्जी ने प्रदर्शनकारियों से कहा, “आप बंगाल जाइए और अपनी पार्टी को मजबूत करें।”

    ममता बनर्जी का यह भाषण और इसके बाद हुआ विरोध एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में सामने आया है, जिससे भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी चर्चा शुरू हो गई है। इस घटना ने लोकतांत्रिक विरोध, छात्रों के राजनीतिक सक्रियता और स्वतंत्र अभिव्यक्ति के अधिकार जैसे मुद्दों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

    ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ममता बनर्जी का भाषण

    ममता बनर्जी, जो कि तृणमूल कांग्रेस (TMC) की प्रमुख हैं, अपनी कड़ी राजनीतिक रणनीतियों और विचारों के लिए जानी जाती हैं। हाल ही में उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भाषण देने का अवसर मिला, जो कि एक प्रमुख वैश्विक शैक्षिक संस्थान है। इस भाषण में उन्होंने बंगाल राज्य के विकास, राज्य सरकार की योजनाओं और तृणमूल कांग्रेस पार्टी की दिशा के बारे में बात की।

    ममता ने इस अवसर पर बंगाल की वर्तमान राजनीतिक स्थिति, राज्य की आर्थिक वृद्धि और विकास परियोजनाओं के बारे में विस्तार से बताया। इसके साथ ही उन्होंने बंगाल में अपनी पार्टी की बढ़ती ताकत और राज्य में चल रहे बदलावों का उल्लेख भी किया। हालांकि, भाषण के दौरान कुछ छात्रों ने उनके विचारों से असहमत होते हुए विरोध प्रदर्शन किया।

    विरोध प्रदर्शन: क्या हुआ था?

    जब ममता बनर्जी अपना भाषण दे रही थीं, तभी कुछ छात्रों ने उठकर विरोध प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। इन छात्रों ने ममता बनर्जी की नेतृत्व शैली और बंगाल में उनकी पार्टी की राजनीति पर सवाल उठाए। विरोधी छात्र इस बात को लेकर असंतुष्ट थे कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का शासन लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है और राज्य में राजनीतिक असहमति को दबाने का आरोप भी लगाया गया।

    यह विरोध ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय जैसे प्रमुख शिक्षा संस्थान में एक अभूतपूर्व घटना थी, जो राजनीतिक आंदोलनों और छात्रों के सक्रियता के प्रतीक के रूप में उभरी। हालांकि, यह विरोध प्रदर्शन किसी भी गंभीर झगड़े में नहीं बदल सका और ममता ने इसे शांतिपूर्वक संभाल लिया।

    ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया: विरोधियों को चुनौती

    ममता बनर्जी ने विरोधियों का शांतिपूर्वक सामना किया और उन्हें ठंडे दिमाग से जवाब दिया। उन्होंने कहा, “आप बंगाल जाइए और वहां अपनी पार्टी को और मजबूत करें।” उनका यह जवाब उनकी राजनीतिक परिपक्वता और आत्मविश्वास को दर्शाता है। यह प्रतिक्रिया ममता की दृढ़ता और उनकी इस बात को स्वीकार करने की क्षमता को भी दिखाती है कि विरोध लोकतंत्र का हिस्सा है, लेकिन इसके बावजूद उन्हें अपनी पार्टी और राज्य के विकास पर विश्वास है।

    ममता का यह जवाब न केवल विरोधियों के लिए एक सीधी चुनौती थी, बल्कि यह उन लोगों के लिए भी था जो उनकी सरकार और पार्टी की आलोचना करते हैं। यह उनके राजनीतिक दृष्टिकोण को प्रदर्शित करता है, जिसमें वे आलोचनाओं से पीछे हटने के बजाय उन्हें एक अवसर के रूप में देखते हैं।

    छात्रों के विरोध का वैश्विक संदर्भ

    ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में छात्रों द्वारा किए गए इस विरोध प्रदर्शन से यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालयों और शैक्षिक संस्थानों में राजनीतिक विचारों और आंदोलनों का हिस्सा बनना उचित है। दुनिया भर में विश्वविद्यालयों को हमेशा से ही स्वतंत्र विचार और अभिव्यक्ति के स्थान के रूप में माना गया है। ऐसे संस्थानों में छात्रों का विरोध लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा होता है, और यह उनकी राजनीतिक सक्रियता को दर्शाता है।

    भारतीय राजनीति में भी छात्रों के विरोध का इतिहास बहुत पुराना है। विशेषकर भारत में विश्वविद्यालयों और छात्रों के आंदोलन हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं, जिनका प्रभाव न केवल राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ता है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उनकी प्रतिक्रिया का असर होता है।

    ममता बनर्जी का वैश्विक मंच पर प्रभाव

    ममता बनर्जी का ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में भाषण और उसके बाद हुआ विरोध बंगाल की राजनीति से बाहर भी चर्चा का विषय बन गया है। यह घटना ममता के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है, क्योंकि इससे उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि पर असर पड़ सकता है। उनके खिलाफ विरोध एक तरफ जहां उनकी आलोचना करता है, वहीं दूसरी ओर उनकी शांतिपूर्ण और आत्मविश्वासी प्रतिक्रिया ने उन्हें एक मजबूत नेता के रूप में प्रस्तुत किया।

    इस घटना ने ममता को एक ऐसे नेता के रूप में दिखाया जो न केवल भारतीय राजनीति में मजबूत हैं, बल्कि वे वैश्विक मंच पर भी अपने विचार और नेतृत्व को मजबूती से प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। उन्होंने इसे केवल एक विरोध के रूप में न देख कर, इसे एक अवसर के रूप में लिया और अपनी पार्टी और राज्य के प्रति अपने विश्वास को कायम रखा।

    ममता बनर्जी का नेतृत्व और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता

    ममता बनर्जी के नेतृत्व पर सवाल उठाए जाते रहे हैं, खासकर जब से तृणमूल कांग्रेस पश्चिम बंगाल में सत्ता में आई है। भाजपा और अन्य विपक्षी दलों ने कई बार ममता पर आलोचनात्मक टिप्पणियां की हैं, खासकर राज्य में तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद। उनके आलोचक उन्हें एक विवादास्पद नेता के रूप में देखते हैं, जबकि उनके समर्थक उन्हें एक ताकतवर और दृढ़ नेता मानते हैं जो बंगाल के विकास के लिए काम कर रही हैं।

    ममता की यह प्रतिक्रिया इस बात को भी उजागर करती है कि वह किसी भी विरोध को सिर्फ एक चुनौती के रूप में नहीं देखतीं, बल्कि इसे अपनी पार्टी और अपने विचारों के लिए एक सशक्त अवसर मानती हैं। इस दृष्टिकोण के कारण ममता ने राजनीति में अपनी अलग पहचान बनाई है, जो उन्हें मजबूत और सक्षम नेता के रूप में स्थापित करता है।

    भविष्य में ममता का वैश्विक नेतृत्व

    ममता बनर्जी का यह भाषण और विरोध प्रदर्शन निश्चित रूप से उनके राजनीतिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। यह घटना न केवल भारतीय राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक राजनीति में भी एक नेता के रूप में ममता की स्थिति को स्पष्ट करती है।

    अब यह देखना होगा कि ममता इस घटना को अपने राजनीतिक करियर के लाभ में कैसे बदलती हैं। उनका नेतृत्व, विशेष रूप से इस प्रकार के विरोधों से निपटने का तरीका, उन्हें भविष्य में एक सशक्त नेता के रूप में प्रस्तुत करेगा, जो न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।

    ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ममता बनर्जी का भाषण और विरोध प्रदर्शन भारतीय राजनीति में एक नए विवाद को जन्म देता है, लेकिन इसने यह भी साबित किया कि ममता बनर्जी एक मजबूत, आत्मविश्वासी और राजनीतिक धैर्य वाली नेता हैं। उनका यह कदम केवल उनके नेतृत्व के प्रति विश्वास को दर्शाता है, बल्कि यह उनके आलोचकों को भी यह संदेश देता है कि वह किसी भी चुनौती से पीछे नहीं हटेंगी।

    इस घटना के जरिए ममता ने अपने विरोधियों को यह स्पष्ट रूप से बताया कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विरोध का स्थान है, लेकिन उनके नेतृत्व और राज्य के विकास के प्रति उनका विश्वास कभी कमजोर नहीं होगा।

  • गोरखपुर-सिलीगुड़ी 6-लेन ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे को मिली मंजूरी, बिहार में सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर को मिलेगा बड़ा फायदा

    गोरखपुर-सिलीगुड़ी 6-लेन ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे को मिली मंजूरी, बिहार में सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर को मिलेगा बड़ा फायदा

    KKN गुरुग्राम डेस्क | बिहार में सड़क अवसंरचना (Road Infrastructure in Bihar) को और मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार (Central Government) ने गोरखपुर-सिलीगुड़ी 6 लेन ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे (Gorakhpur-Siliguri 6 Lane Greenfield Expressway) को मंजूरी दे दी है। यह 568 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे (Expressway in Bihar) बिहार के परिवहन नेटवर्क को आधुनिक बनाने में अहम भूमिका निभाएगा। खास बात यह है कि इसमें 417 किलोमीटर (73% से अधिक) का निर्माण बिहार में होगा, जिससे राज्य की कनेक्टिविटी और तेज़ होगी।

    गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवे की प्रमुख बातें (Key Highlights)

    • कुल लंबाई (Total Length): 568 किलोमीटर
    • बिहार में निर्माण (Length in Bihar): 417 किलोमीटर
    • कुल लागत (Total Cost): ₹37,645 करोड़
    • बिहार में निवेश (Investment in Bihar): ₹27,552 करोड़
    • अधिकतम गति सीमा (Speed Limit): 120 किमी प्रति घंटा
    • बिहार के 8 जिलों से गुजरेगा (Districts Covered in Bihar): 8
    • फायदा पाने वाले प्रखंड (Total Blocks Benefited): 39
    • फायदा पाने वाले गांव (Total Villages Benefited): 313

    यह हाई-स्पीड एक्सप्रेसवे (High-Speed Expressway) परिवहन व्यवस्था को आसान बनाएगा, यात्रा का समय घटाएगा और उत्तर बिहार (North Bihar) में आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा

    बिहार के पथ निर्माण मंत्री ने जताया आभार (Bihar Road Construction Minister Thanks Central Government)

    बिहार के पथ निर्माण मंत्री नितिन नवीन (Bihar Road Minister Nitin Navin) ने केंद्र सरकार को इस बड़े प्रोजेक्ट (Mega Road Project) को मंजूरी देने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि यह एक्सप्रेसवे बिहार के परिवहन नेटवर्क को आधुनिक बनाएगा और राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways in Bihar) की कुल लंबाई को भी बढ़ाएगा। इससे परिवहन व्यवस्था और अधिक मजबूत व प्रभावी होगी।

    किन जिलों से होकर गुजरेगा एक्सप्रेसवे? (Districts Covered in Bihar)

    गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवे (Gorakhpur-Siliguri Expressway) बिहार के 8 प्रमुख जिलों से होकर गुजरेगा:

    1. पश्चिम चंपारण (West Champaran)
    2. पूर्वी चंपारण (East Champaran)
    3. शिवहर (Sheohar)
    4. सीतामढ़ी (Sitamarhi)
    5. मधुबनी (Madhubani)
    6. सुपौल (Supaul)
    7. अररिया (Araria)
    8. किशनगंज (Kishanganj)

    इसके अलावा, यह 39 प्रखंडों (Blocks) और 313 गांवों (Villages) से होकर गुजरेगा, जिससे स्थानीय नागरिकों और व्यापारियों को सीधा लाभ मिलेगा

    बिहार में आर्थिक विकास को मिलेगा बढ़ावा (Economic Growth in Bihar)

    यह मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट (Mega Infrastructure Project) बिहार के उत्तर क्षेत्र (North Bihar) में व्यापार और रोजगार के नए अवसर पैदा करेगा

    आर्थिक लाभ (Economic Benefits):

    ✅ बेहतर रोड कनेक्टिविटी (Better Road Connectivity) से यात्रियों को लाभ मिलेगा।
    ✅ कंस्ट्रक्शन फेज (Construction Phase) में नई नौकरियां (New Job Opportunities) बनेंगी।
    ✅ व्यापार और उद्योग (Trade and Business) को बढ़ावा मिलेगा।
    ✅ मालवाहन (Freight Transport) तेज होगा, जिससे लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री को फायदा होगा।
    ✅ प्रॉपर्टी वैल्यू (Property Value) में वृद्धि होगी, जिससे रियल एस्टेट को बूम मिलेगा।

    इस एक्सप्रेसवे के माध्यम से उत्तर बिहार और पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) के बीच व्यापारिक संबंध भी मजबूत होंगे

    गंडक और कोसी नदी पर नए पुल बनाए जाएंगे (New Bridges on Gandak and Kosi Rivers)

    इस बड़े रोड प्रोजेक्ट के तहत गंडक नदी (Gandak River) और कोसी नदी (Kosi River) पर नए पुल बनाने और रियलाइन्मेंट (Realignment) करने की योजना है। यह लॉन्ग-डिस्टेंस ट्रैवलर्स (Long-Distance Travelers) के लिए फायदेमंद होगा।

    एनएचएआई ने बिहार के प्रमुख शहरों को एक्सप्रेसवे से जोड़ने को दी मंजूरी (NHAI Approves Spur Connectivity to Major Cities)

    बिहार सरकार (Bihar Government) ने एनएचएआई (NHAI – National Highways Authority of India) से आग्रह किया था कि कुछ प्रमुख जिला मुख्यालयों को भी इस एक्सप्रेसवे से जोड़ा जाए

    अब ये शहर भी एक्सप्रेसवे से जुड़ेंगे:

    ✔ बेतिया (Bettiah)
    ✔ मोतिहारी (Motihari)
    ✔ दरभंगा (Darbhanga)
    ✔ मधुबनी (Madhubani)

    एनएचएआई ने इस अनुरोध को स्वीकार (Approval for Spur Connectivity) कर लिया है और इन जिलों को स्पर कनेक्टिविटी (Spur Connectivity) के जरिए एक्सप्रेसवे से जोड़ने की मंजूरी दे दी है।

    बिहार के लिए गोरखपुर-सिलीगुड़ी एक्सप्रेसवे क्यों है जरूरी?

    यह एक्सप्रेसवे बिहार के इन्फ्रास्ट्रक्चर (Bihar Infrastructure) को मजबूत करने में मदद करेगा

    इस प्रोजेक्ट के मुख्य फायदे (Key Benefits of This Expressway):

    🔹 यात्रा का समय (Travel Time) कम होगा और ट्रांसपोर्टेशन आसान होगा।
    🔹 बिहार से यूपी, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत (Northeast India) के बीच कनेक्टिविटी सुधरेगी।
    🔹 राष्ट्रीय राजमार्गों (National Highways in Bihar) की लंबाई बढ़ेगी, जिससे लॉजिस्टिक्स तेज़ होगा।
    🔹 शहरों और ग्रामीण इलाकों (Urban and Rural Areas) के बीच इंटरकनेक्टिविटी बेहतर होगी।
    🔹 नई इंडस्ट्रियल और बिजनेस अपॉर्चुनिटी (New Industrial and Business Opportunities) बढ़ेंगी।

    यह एक्सप्रेसवे बिहार के लॉजिस्टिक्स और ट्रांसपोर्ट सिस्टम (Logistics & Transport System) में बड़ा बदलाव लाएगा, जिससे राज्य में निवेश (Investments) और विकास (Development) के नए रास्ते खुलेंगे

    गोरखपुर-सिलीगुड़ी 6-लेन ग्रीनफील्ड एक्सप्रेसवे (Gorakhpur-Siliguri Greenfield Expressway) बिहार के लिए बड़ा गेम चेंजर साबित होगा। यह प्रोजेक्ट सड़क इंफ्रास्ट्रक्चर को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा और उत्तर बिहार (North Bihar) को आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगा

    जैसे-जैसे निर्माण कार्य आगे बढ़ेगा, यह एक्सप्रेसवे बिहार को भारत के सबसे विकसित राज्यों की सूची में शामिल करने में मदद करेगा

    लेटेस्ट अपडेट्स के लिए जुड़े रहें और जानें Road Infrastructure, Expressway Projects और Bihar Development News! 🚀

  • बंगाल की खाड़ी में आया 5.1 तीव्रता का भूकंप, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में महसूस किए गए झटके

    बंगाल की खाड़ी में आया 5.1 तीव्रता का भूकंप, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में महसूस किए गए झटके

    KKN गुरुग्राम डेस्क | मंगलवार सुबह बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में 5.1 तीव्रता का भूकंप (Earthquake) दर्ज किया गया। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, इस भूकंप का केंद्र समुद्र के अंदर 91 किलोमीटर की गहराई में था

    ओडिशा (Odisha) और पश्चिम बंगाल (West Bengal) के कई शहरों में इसके झटके महसूस किए गए। कोलकाता (Kolkata) में भी कुछ सेकंड तक हल्के झटके दर्ज हुए, जिससे स्थानीय लोग कुछ समय के लिए सतर्क हो गए।

    हालांकि, अधिकारियों ने पुष्टि की कि इस भूकंप से किसी तरह के जान-माल के नुकसान की खबर नहीं है

    भूकंप के झटके: कहां-कहां महसूस हुए?

    भूकंप का केंद्र 19.52° उत्तरी अक्षांश और 88.55° पूर्वी देशांतर पर स्थित था।

    ✅ ओडिशा के पुरी (Puri), पारादीप (Paradip) और बरहामपुर (Berhampur) में भूकंप के झटके महसूस किए गए
    ✅ पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता (Kolkata) में भी हल्के झटके दर्ज किए गए
    ✅ स्थानीय लोगों ने सोशल मीडिया पर भूकंप महसूस होने की जानकारी साझा की

    ओडिशा के राजस्व विभाग के अधिकारियों ने बताया कि भूकंप का असर बहुत कम था, क्योंकि इसका केंद्र समुद्र के अंदर था।

    भारत में हाल के भूकंप: क्या बढ़ रही है भूकंप गतिविधि?

    बीते कुछ दिनों में भारत के अलग-अलग हिस्सों में कई भूकंप (Earthquake in India) दर्ज किए गए हैं

    1. हिमाचल प्रदेश में 3.7 तीव्रता का भूकंप

    • रविवार, 23 फरवरी 2025 को हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के मंडी जिले (Mandi) में 3.7 तीव्रता का भूकंप आया
    • इसका केंद्र सुंदरनगर (Sundernagar) क्षेत्र में 7 किलोमीटर गहराई में था
    • भूकंप जोन-5 में स्थित मंडी उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है
    • कोई जान-माल का नुकसान नहीं हुआ

    2. दिल्ली में 17 फरवरी को आया तेज भूकंप

    • दिल्ली (Delhi) और NCR में 17 फरवरी 2025 को भूकंप के झटके महसूस किए गए
    • भूकंप का केंद्र धौला कुआं (Dhaula Kuan) के पास था
    • यह झटका 5 किलोमीटर की गहराई में था, जिससे हल्की आवाजें भी सुनी गईं
    • दिल्ली भूकंप जोन-4 में आता है, जो भारत के सबसे भूकंप-संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है

    भारत में बार-बार भूकंप क्यों आते हैं?

    भारत का भौगोलिक स्थान (Geographical Location of India) इसे भूकंप संभावित क्षेत्र बनाता है

    भूकंप आने के मुख्य कारण:

    📌 टेक्टोनिक प्लेट्स मूवमेंट (Tectonic Plate Movements): भारतीय और यूरेशियन प्लेट्स की टक्कर से भूकंप आते हैं।
    📌 हिमालयी क्षेत्र (Himalayan Seismic Activity): हिमालयी क्षेत्र सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्र माना जाता है।
    📌 भूकंपीय जोन (Seismic Zones in India): दिल्ली-एनसीआर, उत्तर भारत और समुद्र तटीय क्षेत्र (Coastal Regions) अधिक भूकंप प्रभावित हैं।

    भारत के भूकंपीय क्षेत्र (Seismic Zones of India)

    भारत को चार मुख्य भूकंपीय जोन (Seismic Zones) में विभाजित किया गया है।

    Seismic Zone High-Risk Areas
    Zone 5 (Very High Risk) उत्तर-पूर्व भारत, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात
    Zone 4 (High Risk) दिल्ली-एनसीआर, बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र
    Zone 3 (Moderate Risk) ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान
    Zone 2 (Low Risk) मध्य भारत, दक्षिण भारत के कुछ राज्य

    भूकंप से कैसे बचें? (Earthquake Safety Tips in Hindi)

    भूकंप आने से पहले, उसके दौरान और बाद में सतर्क रहना बहुत जरूरी है।

    भूकंप से पहले क्या करें?

    ✔ घर में सुरक्षित जगह पहचानें – मजबूत फर्नीचर के नीचे छिपने की जगह रखें।
    ✔ आपातकालीन किट तैयार करें – पानी, खाना, टॉर्च और फ़र्स्ट एड किट हमेशा साथ रखें।
    ✔ भूकंप रोधी निर्माण (Earthquake-Resistant Construction) – घर और ऑफिस की मजबूत संरचना सुनिश्चित करें।

    भूकंप के दौरान क्या करें?

    ✔ ड्रॉप, कवर और होल्ड ऑन (Drop, Cover, Hold On) – ज़मीन पर बैठें, सिर को कवर करें और मजबूत जगह पकड़ें।
    ✔ खिड़कियों और भारी वस्तुओं से दूर रहें – शीशे, अलमारी या पंखे से दूर खड़े रहें।
    ✔ अगर आप बाहर हैं, तो खुली जगह में जाएं – पेड़ों और बिजली के खंभों से दूर रहें।

    भूकंप के बाद क्या करें?

    ✔ संभावित आफ्टरशॉक्स (Aftershocks) के लिए तैयार रहें – बड़े भूकंप के बाद छोटे झटके आ सकते हैं।
    ✔ अगर कोई इमारत क्षतिग्रस्त है, तो उसमें न जाएं – गिरी हुई इमारतों से दूर रहें।
    ✔ इंटरनेट और मोबाइल नेटवर्क बचाने के लिए SMS या सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें

    भूकंप को लेकर सरकार की क्या तैयारियां हैं?

    भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भूकंप अलर्ट सिस्टम को मजबूत किया है।

    ✅ भूकंप भविष्यवाणी के लिए उन्नत सेंसर और सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल किया जा रहा है।
    ✅ बड़ी इमारतों और पुलों को भूकंपरोधी बनाने के लिए नए निर्माण नियम लागू किए जा रहे हैं।
    ✅ स्कूलों और ऑफिस में भूकंप ड्रिल (Earthquake Drills) करवाई जा रही हैं।

    इस बार बंगाल की खाड़ी में आए भूकंप से किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ, लेकिन यह याद दिलाता है कि भारत भूकंप संभावित क्षेत्र है

    📌 पिछले कुछ हफ्तों में दिल्ली, हिमाचल और अब ओडिशा-पश्चिम बंगाल में भूकंप के झटके दर्ज हुए हैं
    📌 भारत में बढ़ती भूकंप गतिविधि को लेकर वैज्ञानिक सतर्क हैं
    📌 हमें भूकंप से बचाव के लिए जागरूकता बढ़ानी होगी और सुरक्षा उपाय अपनाने होंगे

    भूकंप की जानकारी और अलर्ट के लिए सरकारी एजेंसियों और मौसम विभाग की सूचनाओं पर ध्यान देना जरूरी है।

    👉 भविष्य में भूकंप से बचाव के लिए तैयार रहना ही सबसे अच्छा तरीका है! 🌍🚨

  • पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंसा के मायने

    पश्चिम बंगाल की राजनीति में हिंसा के मायने

    ब्रिटिसकाल से चली आ रही है हिंसा की परिपाटी

    KKN न्यूज ब्यूरो।  पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा का इतिहास बहुत पुराना है। ब्रिटिस शासन के दौरान भी यहां राजनीतिक हिंसा के कई प्रमाण मिले है। अध्ययन से पता चलता है कि वर्ष 1905 में तात्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन का निर्णय लिया था। फैसले का पुरजोर विरोध हुआ। इस दौरान बंगाल में कई स्थानो पर हिंसक घटनाएं हुई। यह सिलसिला आजादी मिलने तक और उसके बाद भी कमोवेश जारी है।

    मानस की जड़ में है जुनून

    पूर्वी हिमालय और बंगाल की खाड़ी के बीच बसे पश्चिम बंगाल में कई खुबसूरत बादियां है। यहां के चाय बागानों की ताजगी और सुंदरवन की विविधता भी है। धार्मिक और सांस्कृतिक तौर पर यह समृद्ध राज्य रहा है। वहीं, राजनीतिक रूप से यह इलाका बेहद ही संवेदनशील माना जाता है। जानकार बतातें हैं कि बंगाल की राजनीति का उग्रवाद से गहरा रिश्ता रहा है। क्रांति और जुनून राज्य के मानस में समाहित है। इतिहास के पन्ना को पलटने पर स्वतंत्रता आंदोलन में खुदीराम बोस और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का नाम बड़ा ही सम्मान के साथ लिया जाता है। दोनो को आजाद भारत में आक्रामक राजनीति का पुरोधा माना जाता है। आज़ादी के दिनो में भी बंगाल सुलग उठा था। हालात इतनी बिगड़ गई कि स्वयं महात्मा गांधी को यहां आना पड़ा। हालांकि, इसके बाद शुरुआती कुछ वर्षो तक बंगाल शांत रहा।

    नक्सलबाड़ी से आई नई दिशा

    हालांकि, 1960 के दशक में यहां नक्सलबाड़ी आंदोलन ने राजनीति को एक नई दिशा में मोड़ दिया। बंगाल की राजनीति ने फिर से हिंसा की राह पकड़ ली। गौरकरने वाली बात ये है कि नक्सलबाड़ी से उठी हिंसा की लपटो का सर्वाधिक खामियाजा उस दौर के कॉग्रेसियों को भुगतना पड़ा। उस दौर में पश्चिम बंगाल की सत्ता पर कॉग्रेस का कब्जा था। शुरूआत में कॉग्रेस ने नक्सलवाद के खिलाफ नरम रुख अख्तियार कर लिया और नक्सलवाद की आग पश्चिम बंगाल से निकल कर देश के दुसरे राज्यों तक फैलता चला गया।

    घुसपैठ भी है बड़ी समस्या

    उधर, पूर्वी बंगाल जो अब पूर्वी पाकिस्तान बन चुका था। पाकिस्तानी सैनिको के आतंक से कराह रहा था। महिलाओं की अस्मतरेजी और पुरुषो को सूली पर चढ़ाने की घटनाएं आम हो गई थीं। पूर्वी पाकिस्तान के लोग जान बचा कर पश्चिम बंगाल आने लगे। नतीजा, यहां शरणार्थियों की समस्या बिकराल रूप धारण करने लगा। हालात इतने बिगड़ गए कि 1971 में भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र देश होकर बांग्लादेश बन गया। बावजूद इसके अधिकांश शरणार्थी आज भी पश्चिम बंगाल के लिए सिरदर्द बना हुआ है। शुरू में कॉग्रेस, फिर वामपंथ और हालिया वर्षो में टीएमसी की सरकार ने इन समस्याओं से आंख मूंदे रहना बेहतर समझा। शरणार्थियों की यही सतस्या वर्तमान की मौजू बन कर करबट बदलने को बेताब है।

    विलय हुआ विकास नहीं

    बात सिर्फ शरणार्थियों की नहीं है। बल्कि, इससे पहले वर्ष 1950 में कूच बिहार और 1955 में फ़्रांस के अधीन रहने वाला चंदननगर का पश्चिम बंगाल में विलय किया जा चुका है। लेकिन कालांतर में इस भूभाग को वह दर्जा नहीं मिला। जिसका इसे दरकार था। उस दौर में बंगाल की राजनीति में कॉग्रेस की तुती बोलती थीं। हालांकि, 60 का दशक खत्म होने से पहले ही बंगाल कांग्रेस में मतभेद के स्वर भी उभरने लगा था। कॉग्रेस दो खेमो में बट चुकी थीं। अतुल घोष और प्रफुल चंद्र सेन का एक खेमा था। वहीं, प्रफुल्ल चन्द्र घोष, अरुण चंद्र गुहा और सुरेंद्र मोहन बोस दूसरे गुट के नेता माने जाते थे। दुर्भाग्य से अजय मुखर्जी के नेतृत्व में कॉग्रेस का तिसरा खेमा भी मुखर होने लगा था।

    कॉग्रेस की आंतरिक कलह

    कहतें है कि साल 1967 से 1980 के बीच पश्चिम बंगाल की राजनीति में कई बदलाव हुए। अव्वल तो लोग नक्सलवाद के हिंसक आंदोलन से उबने लगे थे। दूसरी ओर राज्य में बिजली का संकट गहराने लगा। इधर, मजदूर यूनियन ने आक्रामक रूख अख्यतिया कर लिया था। इससे आय रोज हड़तालें होने लगी। लम्बी चली हड़ताल की वजह से अधिकांश कल-कारखाना बंद हो गया या बंदी के कगार पर पहुंच गया। इसका जन जीवन पर गहरा असर पड़ा और लोगो के सामने आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया। यह वो दौड़ था, जब बंगाल में आर्थिक गतिविधियां लगभग थम सी गई। इस बीच पश्चिम बंगाल में चेचक ने महामारी का रूप धारण कर लिया था। लोग बुनियादी सुबिधाओं को तरस रहे थे। इधर, सत्तारुढ़ कॉग्रेस अपनी आंतरिक कलह को सुलझाने में लगी हुई थीं। हालांकि, कॉग्रेस को इसमें सफलता नहीं मिली और बंगाल कांग्रेस में दरार पड़ गई। अजय मुखर्जी के नेतृत्व में कॉग्रेस का तिसरा खेमा बगावत पर उतारु हो गया। गैर कांग्रेस दलों को एक साथ लाने का प्रयास विफल होने के बाद। अब पश्चिम बंगाल की राजनीति तीन धरा में बंट चुकी थीं। अजय बाबू के नेतृत्व में पीपल्स यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट यानी पी.यू.एल.एफ का गठन हुआ। वहीं, ज्योति बसु के नेतृत्व में यूनाइटेड लेफ्ट फ्रंट यानी यू.एल.एफ का गठन हुआ। अभी भी तिसरे धरा का नेतृत्व कांग्रेस के हाथो में ही थीं। विधानसभा का चुनाव हुआ और इस चुनाव में पी.यू.एल.एफ को 63 और यू.एल.एफ को 68 सीटें प्राप्त हुईं। चुनाव के बाद ये दोनों दल 18 सूत्रीय कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के तहत एक साथ आ गए और अजय बाबू के नेतृत्व में सरकार बन गई। इसको बंगाल की राजनीति का टर्निंग प्वाइंट कहा जाता है।

    राजनीतिक अस्थिरता

    हालांकि, आंतरिक कलह की वजह से अजय बाबू की सरकार ठहर नहीं पाई। आठ महीने बाद बांग्ला कांग्रेस के नेतृत्व में यूनाइटेड फ़्रंट ने सत्ता संभाली। यह सरकार भी नहीं चली। इसके बाद तीन महीने तक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक गठबंधन ने सरकार चलाई। राजनीतिक अस्थिरता के बीच फ़रवरी 1968 से फ़रवरी 1969 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। इसके बाद फिर फ़रवरी 1969 से मार्च 1970 तक बांग्ला कांग्रेस ने सत्ता संभाला। किंतु, सरकार चला नहीं सके और फिर से राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। यानी पश्चिम बंगाल की राजनीति में अस्थिरता का अंतहीन दौर शुरू हो चुका था। बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव होने लगा था। बंद पड़े कारखाना को छोर कर बड़ी संख्या में उद्दोगपति पश्चिम बंगाल से पलायन करने लगे थे। इसका सर्वाधिक खामियाजा युवाओं को भुगतना पड़ा। रोजगार के साधन बंद होने से बेरोजगारी काफी बढ़ गई। लोगो में असंतोष गहराने लगा।

    वामपंथ का उदय

    इन्हीं कारणो की वजह से 1977 आते- आते राज्य में कांग्रेस का प्रभुत्व खत्म होने लगा था और सत्ता वामपंथियों के हाथ में चली गयी। हालांकि, पश्चिम बंगाल की राजनीति में राजनीतिक हत्याओं का दौर बदस्तुर जारी रहा। वामपंथ के सत्ता में रहते हुए राजनीतिक हत्याओं में और बढ़ोतरी हो गई। तीन दशक से अधिक के शासनकाल में बंगाल के लोग कराह उठे थे। कहतें हैं कि शुरुआती वर्षों में वामपंथी सरकार ने राज्य में भूमि सुधारों को लागू करने और ग्रामीण इलाकों में ढ़ाचागत सुविधाओं को मजबूत करने की भरपुर कोशिश की। किंतु, इससे बंगाल का समाजिक तानाबाना टूटने लगा और टकराव शुरू हो गया। यहीं से विपरित विचारधारा को कुचलने के लिए वामपंथियों ने सत्ता संपोषित हिंसा का सहारा लेना शुरू कर दिया।

    अर्थव्यवस्था का उदारीकरण

    इस बीच 1990 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की शुरूआत हो चुकी थीं। वामपंथी इसको समझ नहीं सके। जाहिर है, इसका सर्वाधिक खामियाजा वामपंथियों को ही भुगतना था। उदारीकरण के बाद वामपंथ की धारा का कमजोर पड़ना स्वाभाविक था। काडर बेरोजगार हो गए और पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर एक बार फिर से शुरू हो गया। ग्रामीण बंगाल में तो हिंसा जैसे रोज़मर्रा की बात हो गई थीं। यहीं से बंगाल के लोग वामपंथ की सरकार से उबने लगे। हालांकि, अभी उनके पास मजबूत बिकल्प नहीं था। इधर, बिकल्प बनने की कस-मकस के बीच उम्मीद बन कर ममता बनर्जी बंगाल की राजनीति में अपना पांव जमा रही थीं। ममता बनर्जी के राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव आए। पर, उनके शुरुआती राजनीति पर गौर करें तो साल 1984 को भूला नहीं जा सकता है। उस वर्ष लोकसभा का चुनाव होना था और ममता बनर्जी ने सीपीएम के दिग्गज नेता सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ने का ऐलान करके सभी को चकित कर दिया। जाधवपुर को सोमनाथ चटर्जी का गढ़ माना जाता था। किंतु, अटकलो पर विरोम लगाते हुए ममता बनर्जी ने जाधवपुर में वामपंथ के कद्दावर नेता सोमनाथ चटर्जी को पराजित करके सांसद बन गई। ममता बनर्जी के आक्रामक राजनीति की यही टर्निंग प्वाइंट माना जाता है।

    ममता की आक्रामक राजनीति का असर

    ममता बनर्जी के बारे में बंगाल में एक आम धारणा है कि वह आक्रामक राजनीति में भरोसा करती है। वर्ष 1991 का एक वाकया सुनाता हूं। ममता बनर्जी उस वक्त प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार में खेल मंत्री थीं और कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में एक रैली को संबोधित करते हुए अपनी ही सरकार पर खेल करने का आरोप मढ़ दिए। ममता बनर्जी यही नहीं रुकी। मंच से खुलेआम इस्तीफा का ऐलान करके कॉग्रेस को बैकफुट पर ला कर खड़ा कर दिया। ममता बनर्जी के आक्रामक राजनीति का एक और मिशाल साल 1996 में देखने को मिला। तब दीदी ने कांग्रेस को सी.पी.एम की कठपुतली बता कर कॉग्रेस से अलग हट गई और त्रिणमूल कॉग्रेस का गठन कर लिया। दीदी की आक्रामक शैली को लोग पसंद करने लगा था। लोगो को लगा कि वामपंथियों के आक्रामकता का जवाब दीदी दे सकती है। इस बीच ममता ने अटल बिहारी वाजपेयी से हाथ मिला लिया और रेल मंत्री बन गयी। लेकिन एनडीए के साथ दीदी की जोड़ी जमी नहीं। साल 2001 में वह सरकार से अलग हो गयी।

    सिंगूर से सीएम की कुर्सी तक

    ममता ने एक बार फिर से कांग्रेस का दामन थामा और 2004 का लोकसभा और 2006 का विधानसभा चुनाव लड़ा। किंतु, उन्हे मुहकी खानी पड़ी। उन दिनो राजनीति के गलियारे में ममता की मर्सियां पढ़ी जाने लगी थीं। लोगो को लगा कि ममता बनर्जी अब कुछ नहीं कर पायेगी। इस बीच दीदी के पॉलिटिकल कैरियर में एक और टर्निंग आया। वर्ष 2007 से 2011 तक पश्चिम बंगाल राजनीतिक हिंसा की आग में झुलस कर कराहने लगा था। एक के बाद एक राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या का दौड़ शुरू हो गया। आरोप- प्रत्यारोप को राजनीति के चश्मे से देखा जाता रहा था। इधर, लोग मरते रहे। इसी आपाधापी के बीच बंगाल के सिंगूर में टाटा का नैनो प्रोजेक्ट आ गया। ममता बनर्जी ने नैनो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नंदी ग्राम में औद्योगिकरण के नाम पर किसानों की ज़मीन के अधिग्रहण के मामले को ममता ने हवा दी। देखते ही देखते बड़ा आन्दोलन शुरू हो गया। किसान और मजदूर दोनो ममता के नेतृत्व में गोलबंद होने लगे। नतीजा, टाटा को बंगाल छोर कर भागना पड़ा। सिंगूर और नंदीग्राम की सफलता ने ममता को गांव-गांव तक पहुंचा दिया।

    वामपंथ का पतन

    ममता बनर्जी को इसका राजनीतिक लाभ मिलना तय था। हुआ भी यही। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में त्रिणमूल ने बंगाल की राजनीति में अपनी जड़े मजबूत कर ली। दो साल बाद 2011 में विधानसभा चुनाव होने थे। ममता ने मां,माटी और मानुष का नारा दिया। लोग गोलबंद होने लगे। वामपंथ की चूले हिल गई। 34 सालों से चली आ रही वामपंथ की सरकार का पतन हो गया। सत्ता हासिल करने के बाद तृणमूल ने अपना पुराना रवैया जारी रखा। जनता को डराने के लिए हिंसा का सहारा थमने की जगह और बढ़ गया। जाति और पहचान की राजनीति को बढ़ावा देकर ममता बनर्जी ने अपनी ताकत बढ़ाई। पंचायत का चुनाव जीतने के लिए खुल कर हिंसा का सहारा लिया गया। यानी जिन कारणो से उब कर लोगो ने वामपंथ की सरकारे बदली थीं। उसको अब त्रिणमूल ने अपना  लिया। कहतें है कि बंगाल आज भी राजनीतिक हिंसा के बीच कराह रहा है।

    बंगाल का चुनावी संकेत

    अब कालचक्र का खेल देखिए। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में त्रिणमूल को बीजेपी से बड़ा झटका मिला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बंगाल की एक मशहूर कहावत को नारा बना दिया। बंगाल की वह मशहूर कहावत है- करबो, लरबो और जितबो। करबो, लरबो और जितबो का नारा बुलंद करके बीजेपी ने बंगाल में 2 से बढ़ कर लोकसभा की 22 सीटो पर कब्जा कर लिया। पहली बार बंगाल की राजनीति में दीदी के आभामंडल को लोगो ने फिका होते हुए देखा। कहने वाले तो यहां तक कहने लगे कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में सेंध नहीं लगाई है। बल्कि किले के काफी अंदर तक कब्जा कर लिया है। टीएमसी के कई विधायक और पार्षद बीजेपी में शामिल हो चुकें हैं। दूसरी ओर राजनीतिक हिंसा का सिलसिला आज भी बदस्तुर जारी है। कहतें है कि हिंसा की राजनीति से लोग उब चुकें है। ऐसे में 2021 का विधानसभा चुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति को नई दिशा दिखा दे तो आश्चर्य नहीं होगा।

  • पश्चिम बंगाल के खेला का खिलाड़ी कौन, दीदी या दादा

    पश्चिम बंगाल के खेला का खिलाड़ी कौन, दीदी या दादा

    पश्चिम बंगाल में सत्ता के लिए राजनीति का महासंग्राम शुरू हो चुका है। यहां विधानसभा की 294 सीट है और एक-एक सीट के लिए रस्सा-कस्सी जारी है। मुख्य मुकाबला टीएमसी और बीजेपी के बीच है। हालांकि, लेफ्ट और कॉग्रेस ने मिल कर सत्ता के लिए कदमताल शुरू कर दिया है। इस गठबंधन में कई छोटे और क्षेत्रीय दल भी शामिल है। ऐसे में बड़ा सवाल ये, कि होगा क्या? दीदी या दादा? इसको समझने के लिए बंगाल की करबट बदलती सियासी समीकरण को समझना जरुरी है।

  • पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा में छिपा है जीत का समीकरण

    पश्चिम बंगाल की राजनीतिक हिंसा में छिपा है जीत का समीकरण

    पश्चिम बंगाल में वाम से श्रीराम तक करबट बदलती राजनीति और राजनीतिक हिंसा की सुर्खियों के बीच वर्ष 2021 में विधानसभा का चुनाव होना है। टीएमसी के लिए सत्ता में वापसी करना चुनौती होगा। वहीं बीजेपी को बंगाल की राजनीति में अपने लिए जमीन तलासने की चुनौती होगी। वामपंथ और कॉग्रेस के लिए अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को बहाल कर पाना कितना मुश्किल होगा। इस सब के बीच राजनीतिक हिंसा का दौर क्या समीकरण पर भाड़ी पड़ेगा। ऐसे और भी कई सवाल है। ‘KKN लाइव’ के ‘खबरो की खबर’ के इस सेगमेंट में इन्हीं सवालो को टटोलने की कोशिश की गई है। देखिए, इस रिपोर्ट में…

     

  • जानिए पीएम मोदी की ‘दीया जलाओ’ अपील पर ममता ने क्या बोला

    जानिए पीएम मोदी की ‘दीया जलाओ’ अपील पर ममता ने क्या बोला

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की जनता से 9 मिनट का समय मांगा है। उन्होने पूरे देशवासी से 5 अप्रैल को रात 9 बजे अपने घर की सभी लाइटों को बुझा कर और अपने दरवाजे या बालकनी मे जाकर “दीया या मोबाइल की फ्लैश लाइट” जलाने की अपील की है।

    आपको बताते चले की इससे पहले भी प्रधानमंत्री लोगों से “ताली या थाली” बजाने की अपील कर चुके है। हालांकि, एस अपील का कुछ लोगों ने कायदे मे रह कर पालन किया तो कुछ लोग सड़क पर थाली बजाने लगे। जबकि, लॉकडाउन के दौरान लोगों को अपने घर मे ही रहकर ऐसा करने को कहा गया था।

    प्रधानमंत्री के “दीया या मोबाइल की फ्लैश लाइट” जलाने की अपील पर नए सिरे से राजनीति शुरू हो गई है। इस मामले पर अलग-अलग राजनीतिक पार्टियों की तरफ से प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं। इस कड़ी में अब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हो गयी हैं।

    ममता बनर्जी ने इस मामले पर कहा, कि वो प्रधानमंत्री मोदी के मामलों में नहीं पड़ना चाहती हैं।

    उन्होंने कहा,

    “अभी मैं राजनीति करूं या फिर कोरोना वायरस महामारी को रोकूं, क्यों आप एक राजनीतिक जंग की शुरुआत करवाना चाहते हैं? जिसे भी प्रधानमंत्री मोदी की बात सही लगती है वो उनकी बात मानें,अगर मुझे सोना होगा तो मैं सोउंगी यह मामला पूरी तरह से निजी है”

    दरअसल शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच अप्रैल की रात को नौ बजे लोगों से घर की लाइटें बंद कर घर के दरवाजे या बालकनी में नौ मिनट के लिए एक दीया जलाने की अपील की थी। ऐसे में अब इसे लेकर पक्ष और विपक्ष के नेताओं की तरफ से बयान आने लगे हैं। इससे पहले पीएम मोदी की अपील पर जनता कर्फ्यू के दिन शाम को पांच बजे लोगों ने पांच मिनट तक थाली या घंटी बजाई थी। उस समय भी प्रधानमंत्री की इस अपील पर लोगों और नेताओं ने अपनी राय रखी थी।

    बता दें कि भारत में अब तक कोरोना वायरस महामारी से 68 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, इस वायरस से देश भर में 2,902 लोग संक्रमित हैं। ऐसे में कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए केंद्र सरकार की तरफ से देशभर में 21 दिनों का लॉकडाउन किया गया है। जनता कर्फ्यू के बाद यह प्रधानमंत्री की देश के लोगों से इस तरह की दूसरी अपील है।

  • क्या बेडशीट का मास्क और रेनकोट बचाएगा डॉक्टरों को कोरोना से?

    क्या बेडशीट का मास्क और रेनकोट बचाएगा डॉक्टरों को कोरोना से?

    कोरोना का संक्रमण प्रतिदिन बढ़ रहा है। लॉकडाउन के दौरान भी संक्रमितों की संख्या मे लगातार इजाफा हो रहा है, सभी लोगों को घर मे रहने को कहा जा रहा है। परंतु, कुछ ऐसे भी लोग है जो दिन-रात इसी प्रयास में लगे हुये है की जितनी जल्दी हो हम इस संकट से पार पा लें। इस विकत परिस्थिति में एक अहम भूमिका हमारे देश के डॉक्टरों की है, जो कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे हैं। इसलिए सबसे पहले उनकी सुरक्षा जरूरी है, जो हमारी सुरक्षा के लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। परंतु, क्या ऐसा हो रहा है?

    क्या डॉक्टर सुरक्षित हैं?

    बात करते है बंगाल के सिलीगुड़ी स्थित नॉर्थ बंगाल मेडिकल कॉलेज की, जहां के डॉक्टरों की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं। तस्वीरों में डॉक्टर्स PPE (Personal Protective Equipments), लेबोरेटरी ग्लास और सर्जिकल N95 मास्क की जगह बेडशीट से बने मास्क, सनग्लास और रेनकोट इस्तेमाल कर रहे हैं। यहां के डॉक्टरों ने दावा किया है की उन्हें कोरोना वायरस के मरीजों को देखने के लिए Personal Protective Equipments नहीं मिले हैं। बल्कि उनसे बेडशीट के मास्क, सनग्लास और रेनकोट इस्तेमाल करने को कहा गया है।

    इस मामले में मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर्स MSVP (मेडिकल सुपरिंटेंडेंट कम वाइस प्रिंसिपल) से मिले, तब उन्होंने डॉक्टरों को बताया कि PPE की कोई आपूर्ति नहीं है और इसके लिए एक अनुरोध भेजा गया है। ऐसे में जब डॉक्टरों ने उन पर दबाव बनाया, तो उन्होंने डॉक्टरों को ड्यूटी पर न आने को कह दिया।

  • टीएमसी के दो विधायक और करीब 50 पार्षद बीजेपी में शामिल

    टीएमसी के दो विधायक और करीब 50 पार्षद बीजेपी में शामिल

    ममता दीदी को लगा बड़ा झटका

    पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री और टीएमसी नेता ममता बनर्जी को आज बड़ा झटका लगा है। उनकी पार्टी के दो विधायक सहित करीब 50 पार्षद टीएमसी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो गएं हैं। इसी के साथ सीपीएम के एक विधायक भी आज बीजेपी में शामिल हो गए। लोकसभा चुनाव 2019 में कई सीटों का नुकसान होने के बाद टीएमसी को यह एक और बड़ा राजनीतिक झटका माना जा रहा है।

    पीएम ने पहले ही दे दिए थे संकेत

    आपको याद ही होगा, जब पश्चिम बंगाल के एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि टीएमसी के 40 से अधिक विधायक बीजेपी के संपर्क में है। इस बीच बीजेपी नेता मुकुल रॉय के बेटे और टीएमसी के निलंबित विधायक शुभ्रांशु भी बीजेपी में शामिल हो गए हैं। वहीं, तृणमूल के तुषार भट्टाचार्य बीजेपी में शामिल हो गए। इसके अलावा करीब 50 पार्षदों ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है।

    बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव ने किया बड़ा खुलाशा

    बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजय वर्गीय ने टीएमसी नेताओं को बीजेपी की सदस्यता दिलाने के बाद कहा कि जिस तरह से पश्चिम बंगाल में सात चरणों में चुनाव हुए, ठीक उसी तरह टीएमसी के नेता सात चरणो में बीजेपी में शामिल होंगे और इसका सिलसिला शुरू हो गया है। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बाद तृणमूल कांग्रेस के कई और विधायक और पार्षद बीजेपी के संपर्क में हैं। पश्चिम बंगाल के गरीफा से तृणमूल कांग्रेस की पार्षद रूबी चटर्जी ने बताया कि बंगाल में बीजेपी की हालिया प्रदर्शन ने स्थानीय नेताओं को प्रभावित किया। लोग बीजेपी को पसंद करने लगे हैं। क्योंकि, बीजेपी ने आमलोगो के लिए बेहतर काम किया हैं।

  • चुनावी हिंसा, लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं, तो और क्या

    चुनावी हिंसा, लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं, तो और क्या

    भारत में 17वीं लोकसभा का चुनाव अब अपने अंजाम की आखरी पड़ाव पर है। मुद्दो की बिछात पर बदजुबानी की भरमार है। सेक्यूलरवाद बनाम राष्ट्रवाद की इस जंग में जीत और हार के मायने बदल गए है। बनते बिगड़ते समीकरण के बीच जन भावनाएं जमींदोज हो रही और आंकड़ो के साथ झूठ पड़ोसने वाले धुरंधरो ने अपनी बाजीगरी की बिसात पर नफरत और घृणा के बीज बो दिए। इतिहास के हवाले से खुलेआम झूठ पड़ोसे जा रहें हैं। कुतर्को को ज्ञान का आधार बना दिया गया है। जाहिर है, ऐसे में रोजगार, सुरक्षा, शिक्षा और चिकित्सा का मुद्दा घोषणापत्र के पन्नो में सिसकियां भरती रह जाये, तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा। दौर, ऐसा चला कि आधारभूत संरचनाओं की बातें  बेमानी हो गई। किसी को अपना परिवार खतरे में दिखा, तो किसी को देश की सुरक्षा खतरे में दिखा। बात यहां तक पहुंच गई, कि हमारे रहनुमाओं ने अपने चुनावी सभाओं में संविधान और प्रजातंत्र तक को खतरे में बताना शुरू कर दिया। चिल्ल-पो ऐसी मची कि 21वीं सदी के इस चुनाव में, चुनावी हिंसा पर किसी का ध्यान ही नहीं गया? यह एक बड़ा सवाल है और आज इसी सवाल की हम पड़ताल करेंगे। देखिए, यह रिपोर्ट…